देवनारायण फड़ परम्परा  Devnarayan Phad Tradition

पाँचों भाईयों की फौज और रावजी से बदला

रानी सांखली और देवनारायण की गायें


रानी सांखली रावजी से कहती है कि गुदलिया तालाब पर छप्पनीयां भैरु प्रकट हुए हैं, वो सब को बच्चा देते हैं, जिसके बच्चा नहीं होवे उसकी गोद भर देते हैं। रावजी कहते हैं भैरुजी की जात में क्या चढ़ाना पड़ता है ? रानी कहती है भैरुजी की जात न्योतने में सवा मण पापड़िया, सवामण पुवां चढ़ाना पड़ेगा। रावजी कहते है आज ही जाओ और भैरुजी की जात जिमाओ।

कपूरी धोबन रानी को अपने साथ लेकर गुदलिया पर आती है। वहां एक पेड़ के नीचे रानी जी को धूप-दीप लगाने को कहती है। पेड़ पर छिपा बैठा गेद्यां धोबी सारी बात देख रहा होता है। रानी सांखली भैरुजी का ध्यान करती है और धूप-दीप लगाती है। अचानक पेड़ पर बैठा गेद्यां धोबी पेड़ से गिर जाता है और सीधा रानी की गोद में जा पड़ता है। रानी सोचती है भैरुजी ने मेरी सुनली और बेटा भेजा दिया है।  

उधर से देव के ग्वाले गायों को चराते हुए आते हैं। ग्वालों को देखकर कपूरी धोबन एक झाड़ी के नीचे छुप जाती है। एक ग्वाला झाड़ी के पीछे जाकर देखता है कपूरी धोबन छिपी हुई है। उस बाहर निकलने को कहता है। कपूरी धोबन कहती है अरे ग्वालों ये रानी यहां भैरुजी को पूजने आयी हैं और सवामण पापड़ी और सवामण पुवां चढ़ाने आयी है वो सब मिल कर खाओ मुझे छोड़ दो।  

कपूरी काकी के कहने पर एक ग्वाला पेड़ के नीचे भैरुजी बनकर बैठ जाता है। रानी देखती है साक्षात भैरुजी प्रगट हुए हैं और उनके ढोक (चर्णस्पर्श) लगाती है। और कपूरी धोबन के कहे अनुसार वहां से एक लकड़ी लेकर ग्वालों को मारने दौड़ती है। गरड़ डांग को रानी के हाथ की लकड़ी की लगती है तो गरड़ डांग रानी के कमर में बंधा सोने का जेवर छीनकर उसे कादे (कीचड़) में धकेल देता है और फिर सब ग्वाले मिलकर रानी को छेड़ते हैं। रानी कहती है अरे ग्वालों मैं तुम्हें देख लूंगी। तुम्हें इसकी सजा मिलेगी।

रानी की बात सुनकर नापाजी रानी को कीचड़ से बाहर निकाल कर उसे गाड़ी में बैठा कर गाड़ी को हांक कर छोड़ देते हैं।

रानी वहां से सीधे अपने महल में आकर रावजी से ग्वालों की शिकायत करती है। रावजी गुस्से में आकर अपनी सेना के साथ दियाजी और मीरजी को भेजते हैं और ग्वालों को मारकर देव की गायों को घेर कर लाने का हुक्म देते हैं।

 

 
 

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