देवनारायण फड़ परम्परा Devnarayan Phad Tradition पाँचों भाईयों की फौज और रावजी से बदला गायों की वापसी और रावजी की मौत देवनारायण के कहने पर सबसे पहले भांगीजी राताकोट में से गायों के बन्धन काट कर छुड़ातें हैं और गायों को ग्वालों को सोंपते हैं और उन्हें गोठां में जाने को कहते हैं। फिर देवनारायण और भूणाजी रावजी से बैर लेने को चलते हैं। देवनारायण, भूणाजी राताकोट में जाकर तबाही मचा देते हैं और सावर के ठाकुर दियाजी को जाकर खत्म कर देते हैं। अटाल्या जी कालूमीर को मार देते हैं। भांगीजी अपनी लाठ से राताकोट को ही ढेर कर देते हैं, नीमदेवजी वहां से भाग निकलते है। और जोगियों की जमात में जाकर शामिल हो जाते हैं। लगोंट धारणकर तुम्बी हाथ में लेकर धूणी पर आकर बैठ जाते हैं। भांगीजी वहीं पर आकर नीमदेवजी को मार देते हैं। इसके बाद भांगीजी हनुमान की तरह राताकोट में वापस आते हैं और सारे गोला-बारुद में आग लगा देते हैं। राताकोट लंका की तरह धूं-धूं कर जलने लग जाता हैं। जब देवनारायण रावजी को ढूढते हुए राण के महल में पहुंचतें हैं तो देखते हैं कि रावजी अपने घोड़े पर सवार होकर सुरंग के रास्ते फरार हो चुके हैं। देवनारायण भूणाजी को कहते हैं कि भूणाजी आप तो यहां ११ वर्ष रहे हैं, यहां के चप्पे-चप्पे को जानते हो। रावजी का पता लगाओ कि वे कहां छुपे हुए हैं और उनको किसी बहाने ढूंढ कर हमारे सामने लाइऐ ? भूणाजी बोर घोड़ी पर सवार हो ठाप दे कर सीधे सुरंग के अन्दर जाकर रावजी को ढूंढ लेते हैं और रावजी को कहते हैं कि बाबासा आप हमारे साथ बागतला के जंगल में शिकार पर चलो रावजी भूणाजी की बात मानकर शिकार पर जाने के लिए तैयार हो जाते हैं। देवनारायण के अलावा सारे भाई भूणाजी और रावजी के साथ शिकार खेलने बागतला के जंगल में पहुंच जाते हैं। बागतला
के जंगल में पहुंचकर भूणाजी रावजी
को देवनारायण के सामने ले जाकर
खड़ा कर देते हैं और अपने धनुष के
छल्ले से उनकी गरदन पीछे से पकड़ लेते
हैं। रावजी के हाथ में भाला होता
है वो देवनारायण पर छोड़ देते
हैं। देवनारायण एक तरफ हट जाते
हैं और भाला एक तरफ निकल जाता
हैं और फिर देवनारायण एक ही वार
में रावजी की गर्दन उतार लेते हैं। रावजी
वहीं ढेर हो जाते हैं। उनका सिर कट
कर दूर जा पड़ता हैं। रावजी
की मौत देखकर भूणाजी की आंखों में
आंसु आ जाते हैं और वह देवनारायण
से कहते हैं कि रावजी ने मुझे पाल-पोसकर
बड़ा किया था। अपना बेटा बना कर रखा
था। आज मैं ही उनकी मृत्यु का कारण बना
हूं। यह सुनकर देवनारायण रावजी का सिर वापस जोड़कर उन्हें जिन्दा कर देते हैं और उन्हें सिसोदिया की पदवी दे देते हैं, और रावजी से कहते हैं कि जाओ आप उदयपुर और चित्तोड़ के राजा कहलाओगे और राणा सांगा के नाम से जाने जाओगे।
देवनारायण राण को फतेह कर दड़ावत वापस आते हैं और दड़ावत के चबूतरे आकर विराजते हैं। तब सा माता देवनारायण की आरती उतारती हैं। नापाजी भी नहा-धोकर पीताम्बर वस्र पहनकर गायों की आरती उतारते हैं।
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