हजारीप्रसाद द्विवेदी के पत्र

प्रथम खंड

संख्या - 48


IV/ A-2047

विश्वभारती पत्रिका

साहित्य और संस्कृति सम्बन्धी

हिन्दी त्रैमासिक

पत्र सं.

हिन्दी भवन

शान्ति निकेतन,बंगाल

14.11.41

श्रध्देय पंडितजी,

              सादर प्रणाम!

       बहुत दिनों से आपका कोई समाचार नहीं मिला। सुना था कि आप कुछ अस्वस्थ हो गये हैं। शर्मा जी बता रहे थे कि आप जब आगरे गये थे, तब काफी अस्वस्थ रहे। उनसे ही मालूम हुआ कि अब आप स्वस्थ हैं। कृपया लौटती डाक से स्वास्थय का समाचार अवश्य दें।

       इधर विश्वभारती की ओर से हिन्दी का एक त्रैमासिक निकलने जा रहा है। अयोजन तो बहुत दिनों से हो रहा था। पर ऐसे आयोजन कई बार होकर रह गये थे और इसीलिए मैं तब तक आपको ख़बर नहीं देना चाहता था, जब तक उसका निकालना पक्का न हो जाय। अब यह पक्का हो गया। पहला अंक जनवरी में निकल रहा है। इस अंक में गुरुदेव के निम्नलिखित लेख जा रहे हैं-(१) एशिया के जागरण में ही यूरोप का कल्याण है, (२) पहली बार विलायत में, (३) आधुनिक काव्य, (४) नामंजूर कहानी और दो-तीन कविताँए भी दे रहा हूँ। क्षिति बाबू का एक लेख और नंद बाबू का गुरुदेव की चित्रकला के विषय में एक विचारपूर्ण लेख भी जा रहा है। मूल तिब्बती से एक लामा जी ने सिद्धों का जीवन-चरित्र अनुवाद किया है। उसका एक अंश भी दे रहा हूँ। एक लेख मैनस्क्रिप्टों की रक्षा के बारे में और एक अपना रस के विषय में। बाहर से अभी तक कोई लेख नहीं मिला है। आप सुझाइये कि किस प्रकार इस पत्रिका को हिन्दी और विश्वभारती के गौरव के उपयुक्त बनाऊँ। मैं इसमें ऐसा कुछ भी नहीं देना चाहता जो उस गौरव को लेशमात्र भी क्षुण्ण करे। पर हिन्दी में अधिकारपूर्वक लिखे हुए लेखों की बड़ी कमी है। किनसे कहूँ। कृपया आप इस विषय में मुझे ज़रुर मार्ग बताते रहें। फिर यह भी ज़रुरी है कि पत्रिका अपने पैरों पर खड़ी हो जाय। विज्ञापन अगर अच्छे हों तो हमें लेने में कोई आपत्ति नहीं है।

       आपके उत्तर की आशा में हूँ। पत्रोत्तर ज़रुर दें।

       आशा करता हूँ, आप सानंद होंगे।

आपका

हजारी प्रसाद

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© इंदिरा गांधी राष्ट्रीय कला केन्द्र १९९३, पहला संस्करण: १९९४

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प्रकाशक : इन्दिरा गांधी राष्ट्रीय कला केन्द्र, नई दिल्ली एव राजकमल प्रकाशन प्राइवेट लिमिटेड, नई दिल्ली