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A-2082
शान्तिनिकेतन
दिनांक : 26.9.49
पूज्य पंडित
जी,
सादर प्रणाम!
कृपापत्र मिला।
आपको किसी ने गलत खबर दी है कि
मैं हिंदी भवन छोड़ रहा हूँ। ऐसा करता
तो आपसे एक बार पूछता अवश्य। काशी
मे निमंत्रण आया था, रुपये का प्रलोभन
भी था और मातृ संस्था में पहुँचने
का आर्कषण भी, पिताजी तथा अन्य गुरुजनों
का आग्रह भी था। परन्तु इस प्रकार तो
आपको आशीर्वाद से मैं विचलित नहीं
हुआ। गुरुदेव की इस पुण्यभूमि का
बंधन मजबूत साबित हुआ और मैं
रह गया। इधर गंगा जी की बाढ़ से मेरा
पूरा गाँव बह गया है, मैं बेघरबार
का अनिकेत हो गया हूँ। आपके पास मैं
निर्णय नहीं लिख पा रहा था। एक बार
आपने काशी के किसी अधिकारी को
वहाँ के प्रोफेसर पद के लिये मेरा
नाम सुझाया था और मैं समझ रहा
था कि मेरे न जाने से कहीं आपको मानसिक
क्लेश न हो। मुझे बड़ी प्रसन्नता हुई
कि आप मिझे हिंदी भवन नहीं छोड़ने
को ही लिख रहे हैं।
आशा है प्रसन्न
हैं।
आपका
हजारी
प्रसाद द्विवेदी
पुनश्चः
मेरा घर बहुत छोटा ही था, पर
वही एक मात्र स्थान था जिसे अपनी पैतृक
सम्पति कहा जा सकता था, अब तो वह
भी नहीं है।