हजारीप्रसाद द्विवेदी के पत्र

प्रथम खंड

संख्या - 91


IV/ A-2142

पूज्य चतुर्वेदी जी,

                प्रणाम!

       कृपापत्र मिला था। आपका शरीर अब कैसा है आशा करता हूँ कि आप ज्वरमुक्त हो गये होंगे। "विशाल भारत" के लिये बौद्ध धर्म संबंधी लेख मैंने भेज दिया था। आपने देखा होगा इस बार की टिप्पणियों मे साहित्यिक महत्व की कोई टिप्पणी नहीं मिली। लोग वि.भा. में आधुनिक साहित्य संबंधी चर्चा भी चाहते हैं। आपको इसलिये लिख रहा हूँ कि कई आदमियों ने मुझसे कहा है।

       मल्लिक जी ने आप को प्रणाम कहा है। बड़े दादा के बारे में उन्होंने और क्षिति बाबू ने भी लिखने को कहा है। शेष कुशल है।

विनीत

हजारी प्रसाद

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© इंदिरा गांधी राष्ट्रीय कला केन्द्र १९९३, पहला संस्करण: १९९४

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प्रकाशक : इन्दिरा गांधी राष्ट्रीय कला केन्द्र, नई दिल्ली एव राजकमल प्रकाशन प्राइवेट लिमिटेड, नई दिल्ली