हजारीप्रसाद द्विवेदी के पत्र

प्रथम खंड

संख्या - 90


IV/ A-2140

शान्तिनिकेतन

मान्यवर,

       प्रणाम!

       कृपापत्र मिला। आपने जो कुछ करने को कहा है, वह सब हो गया है। कुछ कुछ बाकी है। आज हो जायगा। आपकी सूची में बिहार का एक भी साहित्यिक नहीं था। मैंने राहुलजी, देवव्रत शास्री, शिवपूजन सहायजी और बेनीपुरी को लिख दिया है। एक पूरे प्रान्त को भूलना अच्छा न होता। कुछ गलती तो नहीं हुई न? प्रेमचंद्रजी को पत्र लिख दिया है। उनकी स्तुति में एक दो श्लोक लिखे हैं-

भञ्जन्मोहमहान्धकार वसति सद्वृत्तमुच्चैर्भजन्

वैदग्ध्यं प्रथयन् सुसज्जन मानो वारां निधिं ह्मलादयन्

ध्वान्तोदभ्रान्तजनान् दिशन् ननु दिशं ध्वान्त प्रियान्क्षोभयन्

चन्द्रःकोच्पि च कास्त्यसावभिनवः श्री प्रेमचन्द्रः सुधी:।

प्रेमचन्द्रश्च चन्द्रश्च न कदापि समावुभौ

एकः पूर्णकलो नित्यमपरस्तु यदा कदा।

       उपाध्याय जी को पत्र लिखते समय "भक्त" जी के बारे में जो कुछ लिखा था, प्रेम की भाषा में ही लिखा था, अपना समझकर। उससे उन्हें बुरा नहीं मानना चाहिये। बुरा मान जाँय तो मेरा दुर्भाग्य!

       वि.भ. मिला वर्माजी का तिलि बड़ा सुन्दर उतरा है। सरस्वती जी का उत्तर भी अच्छा है। उन्होंने कमलिनी को पोल खोल कर अच्छा ही किया था। उसकी सम्पादिका सचमुच बेढब हैं। बाकी वि.भा. अभी नहीं पढ़ा है।

       हिन्दी साहित्य बंगला संस्कृति से ब्याह करने आ रहा है। बारात न्योत दी गई है, मगर उसकी आव-भगत का क्या बंदोबस्त होगा? जान पड़ता है, ३०रु. के ऊपर खर्च होगा। हिन्दी समाज का दिवाला बोल जाएगा। इसलिये आप किसी धनी मानी से इस कन्यादान के शुभकर्म में दान दिलवाइये। और कुछ न हो तो अपने साथ कुछ रुपये बतौर ॠण के लेते आइयेगा। "विशाल भारत" के मेरे प्राप्य में से काट लीजियेगा। और सब कुशल है। अगर मेरे प्राप्त रुपयों में से व्यवस्था हो सके तो किसी से न माँगना ही अच्छा है। सियारामशरण जी के संबंध में लिखूँगा। अभी ज्योतिष संबंधी एक व्याख्यान लिखने में लगा हूँ। दो एक दिन में इसे समाप्त करके उस कार्य में हाथ दूँगा।

       निमंत्रण पत्र प्रायः पचास के करीब लिखे गये हैं। इनमें हमारे प्राक्तन छात्र या ex-student भी शामिल हैं। आशा करता हूँ २० आदमी तो हो ही जायंगे।

आपका

हजारी प्रसाद द्विवेदी

पुनश्चः   वर्मा जी और धन्यकुमार जी को मेरा प्रणाम। उन लोगों को बारात में निमंत्रित करने की बात चल रही है। मगर सवाल यह है कि वे लेग किस पक्ष से आएँगे? लड़की वाले की ओर से या लड़के वाले की ओर से विवाह के घटक तो आप ही हैं। इन लोगों को चाहे जिस पक्ष से निमंत्रण दे दें। अपने यहाँ के पांडे जी को भी निमंत्रित कर दीजिये। बैजनाथ सिंह जी को भी।

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© इंदिरा गांधी राष्ट्रीय कला केन्द्र १९९३, पहला संस्करण: १९९४

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प्रकाशक : इन्दिरा गांधी राष्ट्रीय कला केन्द्र, नई दिल्ली एव राजकमल प्रकाशन प्राइवेट लिमिटेड, नई दिल्ली