|
छत्तीसगढ़ के आदिवासियों के बीच सामान्य जन का मसीहा "कबीर' |
जन-नायक - कबीर |
अमरकंटक की साया में दो महान गुरुओं का संलाप
|
||
अमरकंटक का शांत, स्निग्ध, शीतल व रम्य पर्वतीय प्रदेश सदा से पर्यटकों को अपनी ओर आकर्षित करता रहा है। उसकी शीतल छाया में महामनाओं की संगोष्ठियां होती रही हैं। उसकी हरी-भरी गोद में जीवन की हरीतिमा संवेदनशील मन को बांधती रही है। एक अबूझ रहस्य भरा सौंदर्य उसे अपने आगोश में लिये हुये है। उस दिन जब इतिहास के पन्ने फड़फड़ा उठे थे, युग ने करवट ली थी, दो महान विभूतियों के मिलन और परिसंवाद का स्थल होने का उसे सौभाग्य मिला था। आज भी उसकी गूंज सुनाई पड़ती है। सदगुरु कबीर साहब और महान संत गुरुनानक देव जी का मिलन और परिसम्वाद, आज से ५०० वर्ष पूर्व यहीं पर हुआ था। इसलिए वह आज भी उनके संगोष्ठी-स्थल के नाम से परिचित है। यहां की प्रकृति ने इस बीतरागी अक्खड़-फक्कड़ कबीर को ऐसा बांध लिया कि वे इसके लता-गुल्मों में कुछ समय के लिए आत्मलीन हो गये थे और ध्यान मग्न हो गये थे। इसकी रमणीयता के आकर्षण से निकलने के लिए उस महामनो को कुछ समय लगा था। यहीं पर नानक देव जी से उनकी भेंट नये इतिहास को जन्म देती है। नानक देव जी का सदगुरु साहब से गहन रुप से प्रभावित होना तथा आगे चलकर सद्गुरु साहब का अपने मत के प्रसार के लिये नानक देव जी को लेकर आश्वस्त होना आदि बातें इस स्थल को ऐतिहासिक संदर्भ देती हैं। साथ ही छत्तीसगढ़ी संस्कृति और व्यापक रुप से भारतीय संस्कृति को भी समृद्ध करती है। दोनों महान संत भारत की जनवादी संस्कृति और जनपदीय जीवन को एक नया उत्थान देते हैं। साथ ही उसको नवीन युगानुरुप नवीन अर्थ भी देते हैं, तथा जनता में जागृति की एक नई लहर लाते हैं। दोनों भविष्यद्रष्टा महात्मा जांत-पांत, भेदभाव, असमानता, धार्मिक असहिष्णुता, कट्टरता, पारस्परिक वैमनस्य व कटुता को मिटाकर एक वर्ग-विहीन, समानता मूलक, सहिष्णु और समन्वयात्मक समाज की कल्पना करते हैं या फिर एक सपना इतिहास को देते हैं। उनकी उदार जीवन दृष्टि, संघर्षरत वर्गों को पास लाती है। और सह-अस्तित्व को संभव बनाती है। उनकी जनपदीय-चेतना, जनता जनार्दन को जगाकर, युग के बरजोर वर्ग को गण शक्ति के सामने झुकने के लिए मजबूर कर देती है। युग जीवन की समस्याओं और उनके समाधानों की परिचर्चा यहीं पर हुई थी। इस क्षेत्र में या देश के इस भाग में कबीर का यह पहला प्रवेश था। कबीर की चेतना की जीवन्त प्रतिमूर्ति वह स्थल आज भी हर आगन्तुक को इस महान ऐतिहासिक घटना को सुना रहा है। जगत् जननी नर्मदा की पवित्र धारा उसे सजल बना रही है। ऐसी मान्यता है कि नर्मदा एक बालिका के रुप में सद्गुरु साहब से रहने के लिए थोड़ा सा स्थान मांगती है। कबीर साहब का उत्तर उनकी जनचेतना की सुंदर अभिव्यक्ति है। ''यहां तो सबी भूमि गोपाल की है। तू तो जगत की माता है - जहां चाहे वहाँ स्थान ले ले। '' इस स्थान का परिचय पाकर कबीर पर कुछ लिखने से पहले मैंने इसका दर्शन करना चाहा। वहां सब कुछ आज भी वैसा ही है, जैसा तब था। अन्यत्र जिस प्रकार तीर्थ स्थलों का प्रबंध मिलता है, वैसा यहां कुछ भी नहीं है। कोई परिवर्तन नहीं हुआ है। अच्छा ही हुआ। उस वातावरण में पहुंचकर जो अनकही-अनुभूति हुई, उसने मुझे यह आत्मविश्वास दिया कि कबीरीय प्रभाव से यहां का वायुमण्डल अनूगूंजित है। अत: निराश होने की जरुरत नहीं, केवल विश्वास के साथ प्रयास करने की आवश्यकता है। हम सब लौट तो आये पर उस माहौल का प्रभाव काफी समय तक हम पर बना रहा। ऐसा लगा मानो बहुत कुछ वहीं रह गया हो। वह स्थान परम् सुन्दर भी है और भास्वर भी। निसर्ग सुन्दरी उस महान ऐतिहासिक घटना को अपने अंतर में छुपाये २१वीं सदी को दोनों महान संतों का संदेश सुना रही है। क्या जन्त्रारुढ़-वि इस दो महामानवों के इस संदेश को समझ सकेगा ?
''कबीर और नानक के कार्य के महत्व को अधिक व्यापक दृष्टिकोण से देखना चाहिए। उन्होंने ऐसी विचार-धारा को जन्म दिया जो आगे की कई सदियों तक काम करती रही। सुविदित है कि अकबर के धार्मिक विचारों और नीतियों में इन दो महान संतों की बुनियादी शिक्षाओं के काफी तत्व समाए हुए थे।।""... १
|
|
Copyright IGNCA© 2003