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१.
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जय जय श्री
गुरुदेव
पारख रुप कृपालं मुदमय त्रय
कालम्।
मानस साधु मरालं नाशक भव
जालम्
कुन्द इन्दुवर, सुन्दर, सन्तन
हितकारी।
शान्ताकार शरीरं, श्वेताम्बर धारी।
श्वेत मुकुट चक्रांकित मस्तक पर
शोभे।
शुभ्र तिलक युत भृकुटी, लखि मुनि
मन मोहे।
हीरामणी मुक्तादिक भूषित
उरदेशम्।
पद्मासन सिंहासन, स्थित मंगल
वेशम्।
तरुण अरुण कंजांघ्रि जन मन वशकारी
तम अज्ञान प्रहारी, नख द्युति अति भारी।
सत्य कबीर की आरती जो, कोई
गावे
भक्ति पदारथ पावे, मुक्ति पदारथ
पावे।
भव में नहिं आवे, जय जय श्री।।... १
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२.
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जय जय सत्य
कबीर
सत्य नाम सतसुकृत सतरत हतकामी
साहिब........।
विगत क्लेश सतधामी त्रिभुवन पति
स्वामी।
जयति जयति कब्बीरं नाशक भव
भीरम्।
धार्यो मनुज शरीरं, शिशुवर सर
तीरम्
कमल पत्र पर शोभित शोभा जित
कैसे, साहिब......।
नीलाञ्चल पर राजित, मुक्तामणि
जैसे।
परम मनोहर रुपं, प्रमुदति सुख
राशी, साहिब........।
पारख रुप विहारी, अविचल
आविकारी।
साहिब कबीर की आरती, अगणित
अघहारी साहिब......।
धर्मदास बलिहारी, मुदमंगल
कारी, जय जय।
साहिब कबीर की आरती जो कोई
गावे, साहिब
भक्ति पदारथ पावे, मुक्ति पदारथ
पावे,
भव में नहं आवे, जय जय........।
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