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छत्तीसगढ़ के आदिवासियों के बीच सामान्य जन का मसीहा "कबीर' |
परिशिष्ट छत्तीसगढ़ी लोकगीत - शैली... १
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छत्तीसगढ़ के लोक गीतों में पुरुष, महिला तथा बच्चों के विभिन्न रुपों, मनो-भावनाओं तथा पर्व-विशेष की महिमा का वर्णन निहित होता है। इन लोक गीतों में निहित भावना सीधी-सीधी होती है। लाग-लपट का इनमें पूर्ण अभाव होता है। क्षेत्र के कुछ प्रमुख लोक-गीत इस प्रकार हैं - |
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१. |
सुआ गीत - दीपावली के शुभ अवसर पर जो गीत "सुआ' को संबोधित कर के गाए जाते हैं, वे "सुआ गीत' कहलाते हैं। इन गीतों में रस की प्रधानता तो होती ही है, किंतु उनमें एक व्यथा भी छिपी होती है। |
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२. |
भोजली गीत - यह हरियाली गीत है, जिसे महिलाएं सावन के मह में विशेषकर गाती हैं। |
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३. |
गौरा गीत - यह महिलाओं द्वारा गौरा-गौरी की स्तुति में गाये जाते हैं। |
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४. |
पंथी गीत - सतनामी संप्रदाय द्वारा गाय जाने वाले इस नृत्य-गीत में अध्यात्म की महिमा का वर्णन होता है। |
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५. |
सोहरा गीत - जन्म संस्कार विषयक गीत को "सोहर गीत' कहा जाता है। किंतु यह गीत गर्भावस्था की सुनिश्चितता के साथ ही जन्मोत्सव तक गाए जाते हैं। इस प्रकार के गीत पुत्र जन्म की अपेक्षा में अधिक गाए जाते हैं। |
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६. |
बरुआ गीत - उपनयन संस्कार के समय गाए जाने वाले गीत को "बरुआ गीत' कहा जाता है। |
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७. |
विवाह गीत - विवाह समारोह के विभिन्न अवसरों पर इन्हें गाया जाता है। वर पक्ष तता वधू पक्ष द्वारा गाए जाने वाले विवाह गीतों में भिन्नता होती है। |
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८. |
मृत्यु संस्कार गीत - इस प्रकार के गीत राज्य के कबीर-पंथी समाज में प्रचलित हैं, जो "आत्मा' को गुरु के बोल सुनाने हेतु गाए जाते हैं। |
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९. |
भजन गीत - इन गीतों में संतों की निर्गुण एवं सगुण उपासना का भावनापूर्ण वर्णन होता है। |
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१०. |
करमा गीत - आदिवासी महिला-पुरुषों द्वारा सामूहिक रुप से गाए जाने वाला यह नृत्य-गीत विपत्ति-निवारण हेतु गाया जाता है। |
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११. |
राउत गीत - प्रत्येक वर्ष कार्तिक शुक्ल एकादशी से प्रारंभ होकर लगभग १० दिन तक चलने वाले उत्सव में यह नृत्य-गीत "राऊत' समाज में गाया जाता है। |
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१२. |
होली गीत - होलिका दहन के पश्चात् इन गीतों को सामूहिक रुप से गाया जाता है। इस गीत को "फाग गीत' कहते हैं। |
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१३. |
बारहमासी गीत - इस गीत को गाने का कार्यक्रम जेठ माह से प्रारंभ होता है और इसमें ॠतुओं का वर्णन एवं महिमा व्यक्त की जाती है। |
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१४. |
मांझी गीत - राज्य के जशपुर क्षेत्र की पहाड़ियों में बसे लोगों द्वारा गाए जाने वाला यह नृत्य-गीत अत्यंत कर्ण-प्रिय होता है। |
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१५. |
बांस गीत - बांस के वाद्य यंत्रों को बजाकर गाए जाने वाला यह गीत लोक कथाओं पर आधारित होता है। |
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१६. |
ढोला मारु गीत - राजस्थान के इस अत्यंत चर्चित प्रेम-गीत को छत्तीसगढ़ के ग्रामीण क्षेत्रों में भी बड़ी ही सरसता से गाया जाता है। |
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१७. |
लोरिक चन्देनी गीत - लोक कथा पर आधारित यह गीत राज्य के ग्रामीण क्षेत्रों में बड़ी ही उन्मुक्तता से गाया जाता है। |
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१८. |
पंडवानी गीत - छत्तीसगढ़ का यह विश्व-विख्यात गीत महाभारत के विभिन्न वीरता के प्रसंगों पर आधारित होता है। गायक तम्बूरा लेकर गाता है तथा अभिवय करता जाता है। |
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१९. |
देवार गीत - राज्य के देवार जाति में गाया जाने वाला नृत्य-गीत लोक कथाओं पर आधारित होता है।
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रायजादा, के. डॉ. मधुमोद : प्रतियोगिता साहित्य सीरीज : साहित्य भवन पब्लिकेशन : आगरा : २००१ : पृष्ठ : ६३ एवं ६४ |
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