मगध

मगध की शान : मगही - पान

पूनम मिश्र


भारत में पान की खेती अनेक स्थानों में होती है। परन्तु मगही पान सर्वोत्तम है। आर्थिक दृष्टिकोण से बी मगही पान की कीमत अन्य जगहों की पान की अपेक्षा अधिक है। मगध के अनेको ग्रामों में पान की खेती की जाती है। मगध के मुख्यत: तीन जिलों में पान की खेती होती है। वे जिले हैं नवादा, नालन्दा, तथा औरंगाबाद। नवादा जिल के मंझवे, तुंगी, बेलदारी, ठियौरी, कैथी हतिया, पचिया, नारदीगंज, छत्तरवार डोला तथा डफलपुरा में, नालन्दा जिले को बौरी, गाँव के बारह टोले में, कोचरा, जौए, डेउरा सरथुआ में तता औरंगाबाद जिले के देव प्रखण्ड के बारह गाँवों में पान की खेती होती है। इसके साथ ही साथ गया जिले के बोध गया। आमस तथा बजीरगंज प्रखण्डों में भी पान की खेती होती है। उपरोक्त सभी स्थानों में पान की खेती एक विशेष जाति के लोग जिन्हें चौरसिया "बरई" के नां से जाने जाते हैं सदियों से करते आ रहे हैं। मगध क्षेत्र में ही नहीं बल्कि जहाँ भी पृथ्वी पर पान का खेती होती है उसे चौरसिया ही सिर्फ पान की खेती होती है उसे चौरसिया ही सिर्फ पान की खेती क्यों करते ? इसकी श्रुतियों के आधार पर एक पौराणिक कहानी है। अत्यंत प्राचीन काल में एक बार समस्त ॠषिगणों ने पृथ्वी पर विष्णु यज्ञ का आयोजन करने का संकल्प किया। यज्ञ के लिये समस्त वस्तु पृथ्वी पर उपलब्ध थी। परन्तु पान पृथ्वी पर नहीं था। बिना पान के यज्ञ की पूर्णता पर प्रश्न चिन्ह उपस्थित हो गया। समस्त ॠषिगण चिन्तित हो गये। क्योंकि पाना नागलोक के सिवा कहीं उपलब्ध नहीं था। यज्ञ के आयोजन कर्त्तार्थों में "चौॠषि" नामक ॠषि के पुत्र पान को नागलोक से लाने को तैयार हुए। अपने संकल्प के अनुसार "चौॠषि" पुत्र अनेक विघ्न बाधाओं को पारकर नागलोक से पान पृथ्वी पर लाये और उस समय से अभी तक नागदेवता से पाये वरदान के आधार पर पृथ्वी पर पान की खेती हो रही है। पान की खेती भी "चौॠषि" के वंशज चौरसिया के सिवा अन्य कोई अन्यकोई नहीं के बराबर करते हैं।

पान की खेती करने के लिए भूमिका चुनाव बड़ा सोच समझकर किया जाता है। पान की खेती ऊँची जमीन पर की जाती है। पान की खेती वैसी जमीन पर की जाती है जहाँ बरसात में भी पानी का तल एक फीट नीचे रहना चाहिए। इसके लिये दोमट मिट्टी सर्वश्रेष्ठ है। पान की खेती के लिये सिंचाई आवश्यक है। इसकी सिंचाई को धायन में रखते हुए जहाँ पानी की सुलभता हो, वहीं खेती की जाती है। इसके लिये दोमट मिट्टी को जीवांशयुक्त होना आवश्यक है। पान की खेती करके के लिये सबसे पहले कुदाली से खेत की मिट्टी को उलट दिया जाता है। इसके बाद हल बैल से खेत को चौरस तथा समतल करते समय गोबर की खाद दो क्विंटल को तथा सरसों की खल्ली १५ किलो प्रति कट्टा की दर से अंतिम जुताई के पहले खेत में डालकर पहटा अर्थात् चौकी से समतल कर दिया जाता है। उसके बाद खेती में आवश्यक समानों की मात्रा निश्चित करने के लिये भूमि की नापी की जाती है। इसके लिये साढ़े छ: हाथ के लग्गेसे खेत का सीमांकन किया जाता है। फिर दो फीट चौड़ी आँतर तथा दो आँतरो के बीच डेढ़ फीट की दूरी रखते हुए सीमांकन किया जाता है। पाँच दिनों के बाद सीमांकन की हुई भूमि को कुदाली से कोडा जाता है। उसके बाद सिंगल सुपर फास्फेट चार किलो, पोटाश दो किलो यूरिया दो किलो तथा आधा किलो जिंक प्रति कट्ठा के हिसाब से मिलाकर कुदाल से मिट्टी को हल्का कर दिया जाता है, उसके बाद अंतरो के बीच की खाली जमीन में आठ फीट की दूरी पर एक फीट गहरा गढ्ढा खोदकर आठ फीट के फट्टों का जड़ वाला भाग उसमें तिरछा करे गाड़ा जता है। इसके बाद कीटनाशक पाउडर के रुप फ्यूराडन या बी. रच. की. का छिड़काव किया जाता है। सात दिनों के बाद हल्की सिंचाई की जाती है, ताकि दवाओं की प्रतिक्रियात्मक शक्ति लगने वाली फसल पर किसी प्रकार का नुकसानदायक असर न डाले। पुन: मिट्टी को मुलायम रखने के लिये भुर-भुरा बना देते हैं। उसके बाद बरैठा तैयार किया जाता है। बरैठा पान की खेती के लिये तैयार किया गये पूर्ण घेरे को कहा जाता है।

बरैठा के लिये आवश्यक समान तथा उसके व्यवहार की विधि - बाँस का फट्टा तीन सौ, कान्ह चौबालीस, बाती - एक सौ साठ, जिम्मर का साटा - पैंतालीस, राड़ी, खडछौनी हेतु - बारह बोझा पान का पेड़ बाँधने वाले साड़े चार हजार, लोहे की पतली तार दो किलो-ग्राम, धान की पुआल दो बोझा। मिट्टी की लोइट - दो, मिट्टी उठाने के लिये टोकरी-२, पान बाँधने का सवा दो किलोग्राम प्रतिकट्टा की दर से पहले से जुटा रखना पड़ता है।

जमीन में गाड़े फट्टे में साढ़े छ: इंच ऊँचाई पर कान्ह डालकर तार से एक-सूत्र में बाँध दिया जाता है। इन कान्हों पर एक फीट की दूरी पर बाँस की पतली बत्ती नारियल की रस्सी या गोढ बत्ती से बाँध देते हैं जिस पर राडी खर डालकर पतला ढ्ँक देते हैं। ऊपर से एक-दो बाती छोड़ते हुए खडही डालकर नाड् की जड़ भाग या केले के पत्ते के डंठल को चीर-चीर कर उससे बाँध डालते हैं।

बरैठा को चारों तरफ से ढट्टी लगाते समय खूटा के रुप में जिम्मर का साटा इस प्रकार गाड़ देते हैं कि कान्ह उस जिम्मर साटे में गोढ लत्ती या नारियल रस्सी से बाँधी जा सके।

पान लगाने की विधि

पान मुख्यत: तीन प्रकार से लगाया जाता है -

(१) छपट पान - १५ मार्च से ५ अप्रैल तक लगाये जाने वाले पान के छपटा पान कहा जाता है।

(२) बेल पान - १६ जून से १५ जुलाई तक लगाये जाने वाले पान के बेल पान कहा जाता है।

(३) एक पन्ना - १५ अगस्त से ५ सितम्बर तक लगाये जाने वाले पान को एक पन्ना कहा जाता है।

इस प्रकार पाना लगाने के समय को देखते हुए छपटा पान की रोपनी के समय दिन में पछिया हक के प्रभाव को देखते हुए ५ या ६ बार पानी की फुहार देनी पड़ती है। बेलपान में बरसात के समय को देखते हुए दो या तीन बार हल्का पानी का छींटा दिया जाता है। एक पन्ना में दिन में एक या दो बार हल्का छींटा देकर पराया जाता है।

सभी कि के पान रोपाई के चौथे महीने से तोड़े लायक हो जाते हैं। पान को बड़ी सावधानी से तोड़ा जाता है। पान गंदे हाथ से नहीं तोड़ा जाता है। किसी प्रकार की गंदगी का प्रवेश पान के बरैठा में वर्जित है।

पान की खेती के लिये प्राकृतिक प्रकोप जैसे आँधी, तूफान, मोला, सुखाड आदि लाइलाज है। पान की खेती करने वाले किसान को हर मौसम की आपदाओं का सामना करना पड़ता है। उसके अलावा भी विभिन्न रोगों के कारण पान का नुकसान होता है। पान में लगने वाले रोगों के नाम हैं - झेलमा, चनाक, गलका, लाल मकड़ी, पेड़ सूखना, दीमक का लगना इत्यादि। इन रोगों के निदान हेतु सल्फेक्स, डमा-इथेन, एम-४५ अनुकौपर, बोडो मिश्रण, रोगर इणजडोसल्फालन कीटनाशोको का व्यवहार समय-समय पर किया जाता है।

प्राकृतिक आपदाओं तथा 'पान' में लगने वाले रोगों से होने वाली क्षति से पान की खेती करने वाले किसान हतोत्साहित तो जरुर होते हैं। लेकिन पुन: अपनी हिम्मत जुटा कर यथासम्भव क्षतिपूर्ति करने में प्रयासरत रहते हैं। मगही पान अपनी विशेषताओं के कारण विश्व बाजार में अपना विशिष्ट स्थान प्राप्त किये हुए हैं। पान की खेती को सरकारी संरक्षण दिया जाए तो मगही पान विदेशी मुद्रा कमाने के लिए भारत का एक प्रमुख जरिया साबित हो सकता है।

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