राजस्थान

जयपुर के प्रमुख त्यौहार

राहुल तनेगारिया


 

देश की सांस्कृति परम्परा से जुड़े सभी त्यौहार एवं उत्सव समग्र राजस्थान एवं जयपुर में दृष्टिगोचर होते हैं। इसके अतिरिक्त कुछ विशेष त्यौहार में राजस्थान की लोक संस्कृति दिखाई देती है। यहां की प्राकृतिक एवं सामाजिक परिस्थितियों के कारण यहां इन त्यौहार व उत्सवों का जन्म हुआ। यहां वर्ष में कम वर्षा होती है अत: ज्युं ही वर्षा का मौसम आता है यहां के निवासी अनेक उत्सव व त्यौहारों का आयोजन करते हैं। जिनमें से प्रमुख त्यौहार निम्नलिखित हैं :-

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तीज त्यौहार

तीज का त्यौहार वर्ष में दो बार मनाया जाता है। प्रथम श्रावण शुक्ल की छोटी तीज एवं भादवे के महीने की बड़ी तीज, परन्तु छोटी तीज ही अधिक प्रसिद्ध है। यह त्यौहार नीरस ग्रीष्म ॠतु के बाद आने वाले त्यौहारों की कड़ी में पहला त्यौहार है, इसलिए कहा गया है ""तीज त्यौहारां बावड़ी ले डूबी गणगौर'' अर्थात तीज त्यौहारों को अपने-अपने साथ लेकर आती है है, जिनको गणगौर अपने साथ वापस ले जाती है। तीज त्यौहार के लिए यह कहा जाता है कि यह मुख्यत: बालिकाओं एवं नव विवाहितायों का त्यौहार है। रात-दिन पूर्व बालिकाओं को श्रृंगार करके सजाया जाता है।

""आज सिंझारा करके तीज छेरियां न लेगी पीर।''

इस अवसर पर लड़कियां साज श्रृंगार करती है व हाथों और पैरों पर मेंहदी लगाती है। इस अवसर पर माता-पिता अपनी विवाहिता लड़की के ससुराल वस्र एवं श्रृंगार की सामग्री भेंट स्वरुप भेजते हैं। तीज के त्यौहार पर लड़की अपने पिता के घर जाती है।

इस त्यौहार के दिन किसी तालाब के पास मेला लगता है, जहां पेड़ों पर झूला डालकर सभी बालिकाएं व स्रियां उस पर झूलती हैं। गणगौर की प्रतिमा की सवारी भी निकाली जाती है।

राजस्थान की राजधानी जयपुर में तीज के त्यौहार का विशेष महत्व है। जयपुर में यह त्यौहार बड़ी ही धूम-धाम से मनाया जाता है व तीज की सवारी निकाली जाती है। पूरा शहर सांस्कृतिक वातावरण से परिपूर्ण हो जाता है। स्रियां सवारी में लोकगीत की झड़ी लगा देती है। उदाहरणत: ""तीज की सवारी, पिया जणी लागै प्यारी'' प्रकृति तथा हृदय की भावना का तारतम्य तीज के उत्सव में स्पष्ट रुप से दिखाई देता है।

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गणगौर

गणगौर राजस्थान व जयपुर के प्रसिद्ध त्यौहारों में से एक है। यह त्यौहार होली के पन्द्रह दिन बाद मनाया जाता है। गणगौर शब्द का अर्थ है गौरी व पार्वती यह त्यौहार पार्वती के गौने का प्रतीक है। इस अवसर पर सुहागिन स्रियां तथा कुवारियां वस्राभूषणों से सुसज्जित होकर सिर पर कलश रखकर गीत गाती हुई तालाबों पर जाती है व वहां से कलश में पानी भरकर उसे फूलों से सजा कर उसी प्रकार वापिस घर आ जाती है। ईसर व गणगौर की काष्ठ की मूर्तियों का जूलुस निकलता है। उदयपुर व जयपुर की गणगौर की सवारी को देखने के लिए हजारों लोग आते हैं। उदयपुर के तालाबों के बीच नावों में होने वाले नृत्य व गायन के आयोजन बड़े ही सुन्दर लगते हैं।

कर्नल टॉड ने उदयपुर की गणगौर की सवारी का बहुत ही रोचक वर्णन किया है। ""जहां अट्टालिकाओं में बैठकर सभी जातियों की स्रियां व बच्चे और पुरुष रंग-रंगीले कपड़े व आभूषणों से सुसज्जित होकर गणगौर की सवारी को देखते थे यह सवारी तोप के धमाके से वे नगाड़े की आवाज से राजप्रासाद से रवाना होकर पिछोला झील के गणगौर घाट तक बड़ी धूमधाम से पहुंचती थी व नौका विहार तथा आतिशबाजी प्रदर्शन के बाद समाप्त होती थी।''

जब गणगौर की सवारी निकाली जाती है तब जयपुर के गुलाबी राजमार्ग और भी खिल उठते हैं। गणगौर स्रियों का सबसे प्रिय त्यौहार है। इस अवसर पर वे सजती-संवरती है व गीत गाती है। यही नहीं इस समय स्रियां घूमर नृत्य भी करती है। उदयपुर तथा बूंदी में यह घूमर नृत्य बहुत ही कलापूर्ण है।

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शीतला अष्टमी

यह त्यौहार चैत्र सुदी ८ को मनाया जाता है। इस दिन शीतला माता देवी की पूजा होती है। लोग इस दिन प्राय: सभी जगहों पर एक दिन पूर्व मनाया जाता है। एक दिन पूर्व बनाया गया ठंडा (बासी) खाना शीतला माता को भोग लगाकर खाते हैं। यह माता बच्चों की चेचक आदि की बीमारी से रक्षा करती है।

इसी दिन मारवाड़ में धुड़ले का त्यौहार भी बनाया जाता है। स्रियां एकत्रित होकर कुम्हार के गर जाती है व वहां से छिद्र किए हुए घड़े में दीपक रखकर गीत गाती हुई अपने घर लौटती हैं। तत्पश्चात् यह घड़ा तालाब में बहा देती है। इस त्यौहार पर चैत्र सुदी तीज का मेला लगता है। इस मेले का सम्बन्ध एक ऐतिहासिक घटना से है। ऐसा कहा जाता है कि मारवाड़ के पीपड़ा नामक स्थान पर एक बार कुछ स्रियां गौर का पूजन करने के लिए तालाब पर गई थी। वहां से अजमेर के सूबेदार मल्लू खाँ ने उनका अपहरण कर लिया जब जोधपुर नरेश राव सातल जी को इस बारे में पता चला तो उन्होंने पीछ किया व युद्ध किया। इसमें मल्लू खाँ के सेनापति घुड़ले का सिर तीरों से भेद दिया गया। इसके बाद राजा अपने गांव की स्रियों को बचाकर ले आया घुड़ले का छिद्रित सिर स्रियां अपने साथ ले कर आ गई। इसी घटना की स्मृति में यह त्यौहार मनाया जाता है। इस अवसर पर लड़कियां जगमगाता घुड़ला (छिद्रित घड़ा प्रतीकात्मक छिद्रित सिर) सिर पर रखकर प्रत्येक घर में जाती है।

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अक्षय तृतीया

राजस्थान कृषि प्रधान राज्य है। यहां की कृषि वर्षा पर निर्भर है। अत: एवं अक्षय तृतीया के दिन बाजरा, गेहूं, चना, तिल, जौ आदि सात अन्नों की पूजा कर शीघ्र वर्षा होने की कामना की जाती है। लोग कहीं-कहीं पर अपने घर के द्वार पर अनाज की बालों के चित्र बनाते हैं। यह त्यौहार वैशाख मास की शुक्ला तीज को मनाया जाता है।

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गणेश चतुर्थी

यह त्यौहार बच्चों का विशेष त्यौहार है। गणेश चतुर्थी से दो दिन पूर्व बच्चों का सिझांरा किया जाता है। उन्हें नए वस्र पहनाए जाते हैं। शिष्य तथा गुरु एक दूसरे का तिलक करते हैं। साथ में बच्चे मनोविनोद के गीत गाते हैं। सरस्वती एवं गणेश जी के भी गीत गाए जाते हैं। यह त्यौहार भादवा सुदी ४ को मनाया जाता है। जयपुर में गणेश मंदिर पर बहुत बड़ा मेला लगता है।

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रामनवमी

भगवान राम का जन्म चैत्र शुक्ल नवमी को हुआ था। इस दिन मंदिरों मं रामायण की कथा पड़ी जाती है व राम धुन बजायी जाती है।

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जन्माष्टमी

भगवान श्री कृष्ण को भादो कृष्ण पक्ष की अष्टमी के दिन जन्म हुआ था। इस स्मृति में जन्माष्टमी का त्यौहार मनाया जाता है। इस अवसर पर राज्य के प्रमुख मंदिरों में कृष्ण लीला की झाकियाँ दिखाई जाती है व शोभायात्रा निकाली जाती है। इस दिन भगवान कृष्ण के भक्त वृत रखते हैं व आधी रात को कृष्ण का जन्म हो जाने के बाद ही भोजन करते हैं।

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दशहरा

राजस्थान के त्यौहारों में दशहरा का अपना विशेष महत्व है। इस दिन राजस्थान की भूतपूर्व रियासतों में लवाजमा के साथ सवारियां निकाली जाती हैं। अनेक स्थानों पर आज भी राजा तथा आम नागरिक खेजड़े का पूजन करते हैं। इसी दिन जोधपुर में रामचन्द्र जी की रथ की सवारी निकाली जाती है। जयपुर में भी रामचन्द्र जी की रथ सवारी निकाली जाती है तथा कागज, घास-फूस के एवं बारुद के बने रावण, मेघनाथ, कुम्भकरण के पुतलों का दहन किया जाता है। दशहरे पर कोटा में एक बहुत बड़ा मेला लगता है, जो राजस्थानी संस्कृति की विशिष्टता का प्रतीक है।

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दीपावली

दीवाली सम्पूर्ण भारतवर्ष की तरह राजस्थान एवं जयपुर में भी बड़ी धूमधाम से मनायी जाती है। यह हिन्दुओं के प्रमुख त्यौहारों में से एक है। दीपावली त्यौहार का राजस्थानी एवं भारतीय संस्कृति में एक विशेष स्थान है। दीपावली पर मकानों की साफ-सफाई व रंग-रोगन किया जाता है, नए बही खाते व्यापार के लिए बनाए जाते हैं तथा पुराने बही खातों का तकाजा किया जाता है।

दीपावली से दो दिन पूर्व दिये में कोढ़ी डालकर जलाया जाता है। दूसरे दिन छोटी दीवाली मनाई जाती है, इसमें ११ दिए जलाकर दीपावली के आगमन का स्वागत किया जाता है। कार्तिक कृष्णा की अमावस्या को अंधकार दूर करने के लिए दिए जलाकर रोशनी से घरों, बाजारों व दुकानों को सजाया जाता है। रात्रि लक्ष्मी-गणेश-सरस्वती के पूजन के बाद लोग अपने मित्रों तथा सम्बंधियों से दीपावली की राम-राम करते हैं व बधाई देते हैं। साथ ही उपहारों का आदान-प्रदान होता है। रात्रि को आतिशबाजी जलाकर लोग दीपावली का त्यौहार मनाते हैं।

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गोवर्धन पूजा व अन्नकूट

दीपावली के दूसरे दिन अर्थात् कार्तिक शुक्ल प्रतिप्रदा को अन्नकूट अथवा गोवर्धन को पूजा जाता है। मंदिर में पूजा के लिए अन्नकूट (भोज) तैयार किया जाता है। गोवर्धन का अर्थ है गौवंश की वृद्धि होना। जयपुर में यह त्यौहार बड़े ही उत्साह के साथ मनाया जाता है। इस दिन ग्रामीण स्रियां बछड़े का पूजन करती है तथा बछड़े से खेत जुतवाकर गौवर्धन का शगुन करती हैं। इस अवसर पर स्रियां लोकगीत गाकर गौवर्धन पूजा करती हैं। बैलों के सीगों को रंगकर उनके बदन पर रंगों के छापे लगाए जाते हैं। जयपुर, अलवर, भरतपुर तथा उदयपुर में प्रथा विशेष रुप से प्रचलित है। कई स्थानों पर दीपावली की रात को होड़ दिया जाता है वे लोग गौपूजन करते हैं व गायों के गले में घंटी बांधकर होड़ का विशेष गीत गाते हैं।

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होली

जयपुर व सम्पूर्ण राजस्थान में यह त्यौहार बड़े ही उत्साह व रंग के साथ मनाया जाता है। होली के दिन होलिका दहन होता है व उसके दूसरे दिन धुलण्डी (फाग) खेली जाती है। होली का त्यौहार फागुन माह में आता है तथा रंग से खेला जाता है, अत: इस त्यौहार को रंगों का त्यौहार भी कहा जाता है। इसमें स्री-पुरुष व बच्चे समूहों में घर से बाहर निकलते हैं व चंग नामक वाद्य यंत्र हाथ में लेकर लोक बोलियों में फाग के गीत गाते हुए चलते हैं। इस समय वे एक दूसरे को रंग लगाकर होली की शुभकामनाएं देते हैं। इस अवसर पर डांडियों का नाच होता है। इस नृत्य में लोग तरह-तरह के वेश धारण कर व श्रृंगार करके समूह में छोटी-छोटी लकड़ियों या बेतें लेकर गोलाकर चक्कर में नृत्य करते हैं। राजस्थान के गावों के लोग तो होली खेलते हुए नाचते गाते अपनी सुधबुध तक खो देते हैं। ब्रज के निकट होने के कारण भरतपुर व अलवर में होली का त्यौहार विशेष उत्साह व हर्षोल्लास के साथ मनाया जाता है। भिनाय में होली खेलते समय समूह दो गुट में बं जाता है तथा इसके पश्चात् वे एक दूसरे पर कोड़ो से प्रहार करते हैं। ब्रज क्षेत्र में लट्ठमार होली खेलने का प्रचलन है यह होली राजस्थान की कई आदिवासी समुदाय खेलते हैं जिसे वे भगोरिया कहते हैं।

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रक्षा बंधन

भाई बहन के प्रेम के प्रतीक रक्षा बन्धन का राजस्थानी संस्कृति में एक विशेष स्थान है। रक्षा बन्धन के दिन बहनों द्वारा अपने भाईयों को कलाई पर राखी बांधी जाती है। इस राखी बन्धन का अर्थ है कि भाई द्वारा बहन की रक्षा का उत्तरदायित्व अपने ऊपर लेना। यह पर्व मनुष्य को प्रेरणा देता है कि उसे अपनी जाति धर्म से उठकर अपने कर्तव्य का पालन करना चाहिए। इस त्यौहार के अवसर पर जयपुर के बाजार विभिन्न राखियों एवं उपहारों से लदे होते हैं। इसी दिन गांव में ब्राह्मण लोग अपने जजमानों को राखियां बांधते हैं।

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तुलसी पूजन

राजस्थान व जयपुर में कार्तिक माह में लड़कियां एक माह तक संध्या के समय तुलसी का पूजन करती हैं। लड़कियां १५ दिन तक घी का एवं अगले १५ दिन तक तेल का दीपक जलाकर मंदिर ले जाती है तथा तुलसी की पूजा करती है।

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वन सोमवार

श्रावण माह में सोमवार पर विशेष मेले लगते हैं, जिन्हें वन सोमवार या सुखिया सोमवार के नाम से पुकारा जाता है। परदेस में रहने वाले लोग भी श्रावण माह में अपने देश लौट आते हैं।

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अन्य त्यौहार ंU]'

इन त्यौहारों के अतिरिक्त श्रावण माह में अन्य कुछ त्यौहार भी मनाए जाते हैं। जैसे कि हरियाली अमावस्या का, इसके अतिरिक्त भाद्र माह में "गोगानवमी' व "बच्छ बारस' का त्यौहार मनाया जाता है। "बच्छ बारस' में स्रियां अपने घरों में गायों को बुलाकर पूजती हैं। श्रावण माह में " के दिन अविवाहित लड़कियां रात्रि में चन्द्रमा के दर्शन करने के बाद ही भोजन करती हैं। विवाहित स्रियां ""करवा चौथ'' का व्रत रखती हैं।

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जैनियो के त्यौहार

जैनियों का महत्वपूर्ण पर्व पर्यूषण चौमासे में एक सप्ताह तक मनाया जाता है। उनके अन्य त्यौहारों में महावीर जयन्ती आदि प्रमुख हैं। डूंगरपुर में महावीर जी की सवारी के रथ का शानदार जूलुस निकाला जाता है।

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मुसलमाना ें के त्यौहार

मुसलमान अपने "ईद-ऊल-जुहा', तथा "ईद-उल-फितर' त्यौहार उत्साह पूर्वक मनाते हैं। इस दिन वे सामूहिक रुप से नमाज पढ़ते हैं व एक दूसरे को गले मिलकर बधाई देते हैं। मीठी ईद पर सिवईयां खुरमानी व खीर बनाई जाती है तथा बकरीद पर बकरे की कुर्बानी दी जाती है। मोहर्रम के अवसर पर ताजियों का जूलुस निकाला जाता है व उन्हें करबला में ले जाकर दफनाया जाता है।

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ईसाइ त्यौहार

ईसाई लोग क्रिसमिस का त्यौहार उत्साह पूर्वक मनाते हैं। इस दिन वे नए वस्र धारण करके गिरजाघर में जाकर प्रार्थना करते हैं तथा खूब नाचते व गाते हैं। इस अवसर पर वे अपने घरों तथा गिरजागरों को भी सजाते हैं। ईसाई लोग गुड फ्राइडे व न्यू ईयर्स डे भी धूमधाम से मनाते हैं।

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सिक्ख त्यौहार

सिक्ख लोग गुरु नानक जी एवं अन्य सिक्ख गुरुओं की जयन्ती बड़ी ही धूमधाम से मनाते हैं। इस अवसर पर वे शोभा यात्रा निकाली जाती है तथा गुरुद्वारों में गुरुग्रंथ साहब का पाठ होता है तथा लंगर भी लगाया जाता है।

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राष्ट्रीय त्यौहार

राजस्थान राज्य एवं जयपुर शहर में भारतवर्ष के राष्ट्रीय त्यौहार बड़ी धूमधाम से मनाए जाते हैं। जिसमें सरकार एवं जनता दोनों ही की भागीदारी होती है।

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जयपुर /राजस्थान में मनाए जाने वाले प्रमुख त्यौहार

त्यौहार का नाम

तिथि

मकर संक्रान्ति

१४ जनवरी

महाशिव रात्रि

फाल्गुन कृष्ण पक्ष, १३

इदुल फितर

रमजान के बाद शब्बाल की पहली तारीख

होली

फाल्गुन शुक्ल १५

शितलाष्टमी

चैत्र कृष्ण ८

रामनवमी

चैत्र कृष्ण ९

महावीर जयन्ती

चैत्र शुक्ल १३

ईदूल जुहा

रमजान के दो माह दस दिन बाद हिज की दसता

मोहर्रम

मोहर्रम माह की दस तारीख

बारावफात

मोहर्रम के दो माह वाद

रक्षा बंधन

श्रावण शुक्ल १५

तीज का मेला

श्रावण शुक्ल ३

गणगौर

फाल्गुन शुक्ल १५ से चैत्र शुक्ल पक्ष ३ तक

जन्माष्टमी

भाद्रपद कृष्ण पक्ष ८

गणेश चतुर्थी

भाद्रपद शुक्ल पक्ष ४

अन्नत चतुर्दशी

भाद्रपद शुक्ल पक्ष १४

स्थापना नवरात्रे

अश्विन शुक्ल १

दशहरा

आसोज सुदी १०

दीपावली

कार्तिक कृष्ण अमावस्या

गुरु नानक जयन्ती

कार्तिक शुक्ल १४

झूलना एकादशी

भाद्रपद शुक्ल ११

नाग पंचमी

भाद्रपद कृष्ण ५

 

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