राजस्थान |
बीकानेर राज्य के सिक्कें राहुल तनेगारिया |
बीकानेर में पहले बिना लेख वाले चिह्मांकित (Punchmarked) सिक्के चलते थे। फिर यौध्देयों के चलाए हुए गधिए, प्रतिहारों में भोजदेव के, चौहानों में अजयदेव और उसकी गणी सोमलदेवी के तथा अंतिम प्रसिद्ध चौहान पृथ्वीराज के सिक्के चलते रहे। मुसलमानों का राज्य भारतवर्ष में स्थापित हो जाने पर दिल्ली के सुल्तानों एवं बादशाहों के सिक्कों का यहां भी चलन हुआ। मुगल सम्राज्य के निर्बल होने पर राजपूताना के राजाओं ने बादशाह की आज्ञा से अपने-अपने राज्यों में टकसालें खोली। परंतु सिक्के बादशाह के नाम वाले फ़ारसी लिपि के लेख सहित ही बनते रहे। सर्वप्रथम महाराजा गजसिंह ने बादशाह आलमगीर दूसरे (१७५४-१७५९ ई०) से अपने राज्य में सिक्के बनाने की सन्द प्राप्त की। १८५९ ई० तक केवल बादशाह शाह आलम द्वितीय का नाम मिलता है। इससे कहा जा सकता है कि सनद आलमगीर दूसरे के समय में प्राप्त हो जाने पर भी सिक्के शाह आलम के समय में बीकानेर में बनने शुरु हों और दूसरे बादशाहों के गद्दी पर बैठने पर भी यहां के सिक्कों पर उसी (शाह आलम) का नाम चलता था। ये सिक्के राज्य की टकसाल में ही बनते थे। बीकानेर की टकसाल में पहले सोने की मुहरें बनती थी। सींकर के एक खजाने से दो मुहरें महाराजा रतनसिंह के समय की मिलीं जिनपर वही लेख और चिह्म हैं, जो उक्त महाराजा के चांदी के सिक्कों पर है। राज्य बड़े कारखाने के तोपखाने से दो मुहरें महाराजा सरदार सिंह के समय की देखने में आईं, जिनमें चांदी के सिक्के के समान ही लेख है। एक मुहर महाराजा डूंगरसिंह के समय की बीकानेर राज्य के बड़े कारखाने के तापखाने में देखने में आईं, जिस पर लेख उसके समय के रुपयों के अनुसार ही है। उसके दूसरी तरफ "ज़र्ब श्री बीकानेर' खुदा है। उनमें पताका, त्रिशूल, छत्र, चंवर और किरणिया भी है। साधारण रुपयों के साथ-साथ यहां न के लिए रुपये अलग बनाये जाते थे। इस राज्य के चांदी के सिक्के राजपूताना के अच्छे सिक्कों में गिने जाते थे। न के सिक्के अधिक सुंदर और पूरे वजन के होते थे तथा आकार में बड़ा होने के कारण उन पर ठप्पा पूरा आ जाता था। पहले तो केवल रुपया ही चांदी का बनता था, परंतु महाराजा सरदार सिंह और डूंगरसिंह के समय में अठन्नी, चवन्नी, दुअन्नी भी चांदी की बनने लगी। महाराजा गजसिंह के समय के न के रुपयों के एक ओर "सिक्का मुबारक साहब किरां सानी शाह आलम बादशाह गाजी' और दूसरी और सन् ११२१ जुलूस मैमनत मानूस लेख फ़ारसी में मिलता है। साधारण सिक्कों पर एक ओर केवल "सिक्का मुबारक बादशाह गाज़ी आलमशाह' और दूसरी ओर "सन् जुलूस मैमनत मानूस' लिखा मिलता है। महाराजा सूरत सिंह के सिक्कों पर भी क्रमश: ऊपर जैसे लेख मिलते है। गजसिंह का चिह्म पताका था, पर किसी-किसी सिक्के में त्रिशूल भी मिलता है। सूरत सिंह के सिक्कों पर उसका राज्य चिह्म त्रिशूल मिलता है। महाराजा रत्न सिंह का चिह्म किरणिया था, लेकिन उसके सिक्कों पर ऊपर जैसा ही लेख और कभी-कभी किरणिया के साथ झंडे का चिह्म भी मिलता है। महाराजा सरदार सिंह के सिपाही विद्रोह से पहले के सिक्कों पर एक ओर केवल 'मुबारक शाह गाज़ी आलम' और सन् तथा दूसरी ओर पूर्व जैसा ही लेख है। सिपाही विद्रोह के बाद के सिक्कों पर एक तरफ 'औरंग आराय हिन्द व इंग्लिस्तान क्वीन विक्टोरिया १८५९ ई०' तथा दूसरी तरफ 'ज़र्ब श्री बीकानेर १९१६' लेख फ़ारसी में अंकित है। इस समय का राज्य चिह्म छत्र था, पर उसके सिक्कों पर ध्वजा, त्रिशूल, छत्र और किरणिया के चिह्म एक साथ मिलते हैं। महाराजा डूंगरपूर के सिक्कों पर भी महाराजा सरदार सिंह के सिक्कों जैसा ही लेख है। उसका चिह्म चंवर था, पर उसके सिक्कों पर उपयुक्त सभी चिह्म अंकित मिलते है। महाराजा गंगासिंह जी के पहले के सिक्कों पर भी वही लेख है, जो महाराजा डूंगरपूर के सिक्कों पर था, परंतु उन पर उनका एक चिह्म मोरछल अधिक मिलता है। १८९३ ई० में अंग्रेज सरकार के साथ बीकानेर राज्य का अंग्रेजी टकसाल से रुपये बनवाने के संबंध में समझौता हुआ, जिसके अनुसार अंग्रेजी राज्य में प्रचलित रुपयों जैसे रुपये ही बीकानेर राज्य के लिए भी बने, जिसके एक तरफ सम्राज्ञी विक्टोरिया का चेहरा और अंग्रेजी अक्षर में 'विक्टोरिया एम्प्रेस' तथा दूसरी तरफ बीच में ऊपर नीचे क्रमश: नागरी और उर्दू लिपि में 'महाराजा गंगासिंह बहादुर' लिखा है। उर्दू लिपि में सन् विशेष दिया हैं। किनारे के पास ऊपर वन रुपी (one rupee ) और नीचे 'बीकानेर स्टेट' अंग्रेजी में है। मध्य में दोनों ओर किनारों के निकट एक-एक मोरछल भी बना है। १८९५ ई० में तांबे के सिक्के - पाव आना और आधा आना - अंग्रेजी राज्य के जैसे ही बीकानेर राज्य के लिए भी बने, परंतु उनमें दूसरी तरफ किनारे पर 'बीकानेर स्टेट' अंग्रेजी में है और मध्य में दोनों ओर किनारे पर एक-एक मोरछल बना है। ये सिक्के भी अंग्रेजी सिक्कों के साथ ही चलते रहे।
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