१९२१ में महात्मा गाँधी ने असहयोग आन्दोलन आरम्भ,जिससे राजस्थान भी प्रभावित हुए बिना नहीं रह सका। असहयोग आन्दोलन ने राजस्थान में राजनीतिक चेतना जागृत की, जिसके कारण विभिन्न राज्यों में राजनीतिक संस्थाओं की स्थापना हुई, जिनका मुख्य उद्देश्य उत्तरदायी सरकार की स्थापना की मांग करना था। सिरोही, मेवाड़, जयपुर, जोधपुर, अलवर और हाड़ौती आदि राज्यों में भाषण देने पर प्रतिबन्ध था और सार्वजनिक सभा का आयोजन भी नहीं किया जा सकता था। परन्तु इन राज्यों में अनेक राजनीतिक आन्दोलन हुए, इसलिए १९२४-२५ में राजस्थान के राज्यों में निरंकुश दमन का नया दौर आरम्भ हुआ।
१९२५ में अलवर राज्य की दो तहसीलों
- बानसूर व गाजी का थाना में आन्दोलन आरम्भ हो गया,
यह आन्दोलन सरकार द्वारा लागू किये गये नये करों के विरोध में था। राज्य की सेनाओं ने इस आन्दोलन को कुचलने के लिए दोनों गाँवों को घेर लिया और गोलीबारी आरम्भ कर दी। परिमामस्वरुप ९५ व्यक्ति मारे गये और २५० से अधिक घायल हुए। सरकार की दमन नीति के फलस्वरुप राज्य में भय का वातावरण उत्पन्न हो गया। इसके बाद १९३२ में मेव -मुसलमानों के आन्दोलन आरम्भ हो गया। मेवों ने मांग की कि राज्य में कुरान की शिक्षा पर प्रतिबन्ध न हो और शिक्षा का माध्यम उर्दू को बनाया जाए। धीरे - धीरे यह धीरे राज्य की सीमा से बाहर भी फैल गया।
अन्त में अलवर महाराजा ने १९३३ में ब्रिटिश सेनाओं के द्वारा इस आन्दोलन को
कुचल दिया गया और इस क्षेत्र में शान्ति एवं व्यवस्था स्थापित की। १९३५ में राज्य के ठाकुर और किसानों ने लगान वृद्धि के विरोध में आन्दोलन आरम्भ कर दिया। इस आन्दोलन को कुचलने के लिए राज्य की फौज ने नीमचूणा
गाँव में एक सभा में बैठे लोगों को चारों ओर से घेरकर पौन घण्टे तक गोलियाँ चलाई, जिससे सैकड़ो लोग मारे गये। सरकार की दमन नीति के फलस्वरुप राज्य में आतंक फैल गया।
नीमचूणा गाँव की घटना से राज्य में असंतोष फैल गया। अत: अक्टुबर १९३७ में अलवर महाराज के इंग्लैण्ड से लौटने पर लोकप्रिय सरकार की स्थापना की माँग को लेकर आन्दोलन आरम्भ हो गया। १९३८ में अलवर प्रजा मण्डल की स्थापना हुई। राज्य सरकार ने
अनेक व्यक्तियों को गिरफ्तार कर कारावास की सजा दी। राज्य में स्थिति तनावपूर्ण हो गई, परन्तु १९३९ में द्वितीय विश्व युद्ध के आरम्भ हो जाने से वातावरण कुछ ठण्डा हुआ।
इसी प्रकार जयपुर महाराज के निरंकुश शासन के विरुद्ध १९२७ में आन्दोलन आरम्भ हो गया। १९३१ ई० में जयपुर में प्रजा मण्डल की स्थापना हुई, जिसका मुख्य उद्देश्य उत्तरदायी सरकार की मांग करना तथा नागरिकों को अधिकार दिलाना था। इस आन्दोलन के मुख्य नेता पण्डित हीरालाल शास्री एवं सेठ
जमनालाल बजाज आदि थे। सरकार ने शक्ति से इस आन्दोलन को कुचलने का प्रयास किया।
परिणामस्वरुप जनता ने सविनय अवज्ञा आन्दोलन आरम्भ कर दिया। राज्य सरकार ने
अत्याचार प्रजा मण्डल को मान्यता नहीं दी और लोगों पर अमानवीय अत्याचार किये। इस समय ५०० व्यक्ति गिरफ्तार किये गये, जिनमें सेठ जमनालाल बजाज और हीरालाल शास्री आदि
शामिल थे। अन्त में ९ मार्च
१९३९ ई० में राज्य सरकार ने विवश होकर सभी गिरफ्तार व्यक्तियों को रिहा कर दिया गया और प्रजा मण्डल
को मान्यता दे दी। इसी प्रकार भरतपुर में महाराजा के निरंकुश शासन के विरुद्ध आन्दोलन छिड़ गया। १९२९ में भरतपुर पीपुल्स एसोसियेशन की स्थापना हुई, जिसने राज्य में सविनय अवज्ञा आन्दोलन का संचालन किया। राज्य सरकार ने दमन नीति का सहारा लिया। अन्त में विवश होकर १९३९ में प्रजा मण्डल को मान्यता देना स्वीकार कर लिया। बीकानेर में महाराजा के निरंकुश शासन के विरुद्ध आन्दोलन
छिड़ गया। पंचायत बोर्ड के सरपंच रामनारायण के नेतृत्व में उत्तदायी सरकार की मांग की गई, परन्तु राज्य की पुलिस ने उसे निर्ममतापूर्वक पीटा। इतना ही नहीं महात्मा गाँधी की जय व जयहिन्द के नारों पर भी प्रतिबन्ध लगा दिया गया।
जोधपुर में जयनारायण व्यास ने हितकारिणी सभा की स्थापना की। इसके बाद उन्होंने आन्दोलन आरम्भ कर दिया। इस समय' पीपाबाई की पोल 'नामक पुस्तक प्रकाशित हुई थी, जिसमें प्रशासन की कटु आलोचना की गई थी। १९ सितम्बर, १९२९ ई ० में जयनारायण व्यास और आनन्द राज सुराणा ने सार्वजनिक सभा को सम्बोधित करने के बाद लोगों में यह पुस्तक वितरित की। परिणामस्वरुप जयनारायण व्यास और आनन्द राज सुराणा एवं भंवरलाल सर्राफ को गिरफ्तार कर लिया गया तथा उन्हें तीन वर्ष के कारावास की सजा दी गई। जनता द्वारा विरोध करने पर पुलिस ने लाठीचार्ज किया तथा अनेक आंदोलनकारियों को गिरफ्तार कर लिया जिनमें कुछ विद्यार्थी भी थे। १९३१ में सरकार ने जयनारायण व्यास तथा उनके साथियों को जेल से रिहा कर दिया गया। इस समय जोधपुर में सविनय अवज्ञा आन्दोलन आरम्भ हो गया। अत: जयनारायण व्यास एवं उनके साथियों को पुन: गिरफ्तार कर लिया गया। इतना ही नहीं, सरकार ने मारवाड़ हितकारिणी सभा को गैर कानूनी घोषित कर दिया। सरकार ने आन्दोलन का दमन करने के लिए अनेक दमनकारी कानून लागू किये। फिर भी १९३४ में मारवाड़ प्रजामण्डल नामक संस्था की स्थापना हुई। सरकार ने प्रजामण्डल को भी गैरकानूनी घोषित कर दिया तो, नागरिक अधिकार रक्षक सभा की स्थापना की गई। परन्तु सरकार तो आंदोलन को कुचलने पर तुली हुई थी, अत: सितम्बर १९३६ को आंदोलनकारी नेताओं को बन्दी बनाकर परबतसर के किले में नजरबन्द कर दिया। अब अचलेश्वर प्रसाद शर्मा ने आन्दोलन
का नेतृत्व सम्भाला, १९३७ में उन्हें भी गिरफ्तार कर लिया गया। मारवाड़ प्रजामण्डल और नागरिक अधिकार रक्षक सभा गैरकानूनी घोषित हो चुके थे। अत: १९३८ में 'मारवाड़ लोक परिषद' नामक संस्था की स्थापना की गई, जिसने १९४० में उत्तरदायी सरकार की स्थापना के लिए आन्दोलन किया।
उदयपुर महाराणा के निरंकुश शासन के विरुद्ध जनता में घोर असंतोष व्याप्त था। बिजौलिया के किसानों ने
ठाकुर के विरुद्ध आन्दोलन आरम्भ कर दिया था। अन्त में
ठाकुर को किसानों की माँगें स्वीकार करनी पड़ी थीं।
जुलाई, १९३२ में महाराणा
ने कुछ नये कर लगाये, जिनका विरोध करने के लिए उदयपुर के नागरिक
पीपलीघाट में एकत्रित हुए। ४ अप्रेल, १९३५
को रामसिंह ने अजमेर में इन्सपैक्टर खलीलउद्दीन की हत्या करने का असफल प्रयास किया। पुलिस ने खोजबीन के बाद रामसिंह को गिरफ्तार कर लिया। रामसिंह ने पुलिस को बताया कि हत्या की यह योजना ज्वालाप्रसाद ने बनाई थी और रिवाल्वर भी उसी ने दिया था।
परिणामस्वरुप पुलिस ने २९, अप्रैल १९३५ ई० को ज्वालाप्रसाद को गिरफ्तार कर लिया।
जेल में उन्होंने सी० आई० डी० पुलिस अधीक्षक मुमताज हुसैन को एक धमकी भरा पत्र लिखा, जिसमें कहा कि यदि उन्होंने समस्त
क्रान्तिकारियों को जेल से रिहा नहीं किया, तो उनकी भी हत्या कर दी जाएगी। इस पत्र के बाद ज्वालाप्रसाद को दिल्ली की जेल में भेज दिया गया। ब्रिटिश सरकार ज्वालाप्रसाद को सशर्त रिहा करने को तैयार थी, परन्तु ज्वालाप्रसाद ने सशर्त रिहा होने से इन्कार कर दिया। अन्त में १९ मार्च, १९३९ ई० को महात्मा गाँधी ने उन्हें रिहा करवाया। जेल से रिहा होने के बाद ज्वालाप्रसाद २२ मार्च को अजमेर पहुँचे, तो उनका भव्य स्वागत किया गया। इसके
बाद जयनारायण व्यास की अध्यक्षता में एक सभा हुई। सभा में नृसिंह एवं कुमारानन्द आदि वक्ताओं ने भाषण दिये। उन्होंने अपने भाषण में कहा कि भारतीयों को जर्मनी तथा इटली में शिक्षा ग्रहण करनी चाहिए तथा ज्वालाप्रसाद के पदचिन्हों पर
चलना चाहिए।