राजस्थान |
मेवाड़ की झीलें अमितेश कुमार |
प्राकृतिक तथा कृत्रिम झीलों की दृष्टि से मेवाड़ अत्यन्त समृद्धशाली है। रियासत की राजधानी, उदयपुर को तो झीलों की नगरी कहा जाता है। मेवाड़ की चार झीलें उल्लेखनीय है। पिछोला, उदयसागर, राजसमन्द (राजसमुद्र) तथा जयसमन्द (जयसमुद्र)। इनमें पिछोला झील सर्वाधिक प्राचीन है तथा जयसमन्दर झील मानव निर्मित झीलों में सर्वाधिक विशाल झील है। यह झील महाराणा जयसिंह ने सन् १६८७ से १६९१ ई. (विक्रमी १७४४ से १७४८) के बीच उदयपुर से ३२ मील दक्षिण में एक स्थान पर बनाया था। इसकी लम्बाई ९ मील तथा चौड़ाई ६ मील है। इसकी अधिकतम गहराई ८० फीट है। समुद्र तल से इसकी ऊँचाई ९६० फीट है। पहाड़ों के बीच संगमरमर का एक सुन्दर व मजबूत सा बाँध बनवाया गया था। बाद में सन् १८७५ (संवत् १९३२) में वैकुण्ठवासी महाराणा सज्जन सिंह ने इसका जीर्णोद्धार करवाया। इसके पूर्वी किनारों पर गुम्बदाकार महल हैं तथा मध्य में एक बड़ा मंदिर है। जिसके दोनों तरफ झील के अग्निकोण पर पानी का निकास है, जहाँ से एक धारा सोम नदी में जा मिलती है।
राजसमन्दर उदयपुर से करीब ४० मील उत्तर की ओर है। इसकी लम्बाई ४ मील तथा चौड़ाई १.७५ मील है। इसके निर्माण का आरम्भ महाराणा राजसिंह ने सन् १६६२ (संवत् १७१८) में किया तथा यह १४ वर्षों में बनकर तैयार हो गया। यह तालाब मैदानी क्षेत्र में पड़ता है जहाँ पर गोमती नामक एक छोटी सी नदी तीन मील के लम्बे संगमरमर निर्मित अर्द्धवृत्ताकार बाँध से रोकी गई है। बांध पर ही द्वारिकानाथ का प्रसिद्ध मंदिर है। बांध के ऊपर मण्डपदार गृह है, जिनको नौ चौकिया कहते हैं। उदयसागर झील उदयपुर से करीब ६ मील की दूरी पर पूरब की तरफ है। इसकी लम्बाई २.५ मील तथा चौड़ाई २ मील है। पानी एक ऊँचे बांध से रुका हुआ है। आहाड़ नदी इस झील का मुख्य जल स्रोत है तथा निकास से बेड़च निकलती है। आसपास की पहाड़ियाँ घने जंगल से ढकी हुई है। मेवाड़ की राजधानी उदयपुर में निर्मित पीछोला झील १५ वीं सदी विक्रमी में महाराणा लाखा के समकालीन किसी बंजारे ने बनवाया था। इसकी लम्बाई २.२५ मील तथा चौड़ाई १.५ मील है। सन् १७९५ (वि. सं. १८५२) में इसपर बनाया गया बांध टूट गया था, जिससे भारी क्षति हुई थी। इसके अलावा दो अन्य तालाब ग्राम बड़ी और देवाली के हैं। रियासत के उत्तर और पूर्वी हिस्से जैसे घासा, सेंसरा, कपासन, लाखोला, गुरला, मांडल, दरौची, भटेवर और भूताला आदि में भी तालाबें हैं।
|
|
Copyright IGNCA© 2003