राजस्थान

मेवाड़ के पहाड़ व नालें

अमितेश कुमार


मेवाड़ रियासत में अरावली पर्वत का अच्छा खासा फैलाव है। पर्वत की संकड़ी समानान्तर परस्पर रगड़ खाकर चिकने व गोल बने हुए पाषाणों की पहाड़ियाँ अलग से देखी जा सकती हैं। ये समानान्तर पहाड़ी पंक्तियाँ पश्चिम की तरफ प्रायः ईशान कोण की ओर चली गई हैं तथा धीरे-धीरे पश्चिम की ओर मुड़ गई है जहाँ से अग्नि-कोण में आगे बढ़ते हुए टूटती हुई पृथक होती चली जाती है।

इस पर्वतीय प्रदेश में कई तंग घाटियाँ भी हैं जो यातायात की दृष्टि से अत्यन्त उपयोगी है। साथ ही साथ इनका सामरिक महत्व भी हैं। इन घाटियों में सर्वाधिक महत्वपूर्ण घाटी जीलवाड़ा के पास है जो जीलवाड़ा की नाल व पागल्या नाल के नाम से प्रसिद्ध है। इसकी लम्बाई लगभग ४ मील है तथा चौड़ाई संकड़ी है, सिर्फ जीलवाड़ा गाँव के पास वाले टीले की चोटी से नीचे की तरफ उतार आसान है। इसके अतिरिक्त मेवाड़ और मारवाड़ को मिलाने वाली देसूरी की नाल, सोमेश्वर की नाल, हाथी गुड़ा की नाल तथा भागपुरा की नाल है।

देसूरी जो मारवाड़ के नाल के नीचे है, एक छोटी चट्टानी पहाड़ी के करीब स्थित एक गाँव है। सोमेश्वर नाल देसूरी से ही कुछ मील दूर उत्तर की ओर है। यह बहुत लम्बी और विकट है।

देसूरी से दक्षिण की ओर लगभग ५ मील की दूरी पर हाथी गुड़ा की नाल है। इस नाल के ठीक ऊपर एक मोर्चा बन्द फाटक था जहाँ मेवाड़ के सिपाहियों का पहरा रहता था। कुम्भलगढ़ का पहाड़ी किला इस नाल के ठीक ऊपर ही था। इस नाल के सम्बन्ध में कहा जाता है कि जिस समय महाराणा कुम्भा कुम्भलगढ़ में रहता था, उस समय राणा के हाथियों को इसी नाल के पास रखा जाता था। हाथियों की देख भाल के लिए नियुक्त व्यक्तियों ने यहाँ एक छोटी सी बस्ती बसा ली थी जो हाथी गुड़ा कहलाती थी। इस बस्ती के पास स्थित होने के कारण यह नाल हाथी गुड़ा की नाल के रुप में जाना जाने लगा। इस नाल के किनारों पर घने जंगल हैं जो अति रमणीक स्थान हैं। नाल में जो लोग लड़ाई में मारे गये उनके बहुत से चबूतरे बने हैं।

भाणपुरा की नाल जो घाणेराव से ६ मील दक्षिण की ओर है, राणपुर के जैन मंदिरों के लिए प्रसिद्ध हैं।

रियासत के दक्षिण की ऊँची जमीन से नीचे की ओर दोमार्ग उल्लेखनीय हैं - एक बानसी से दक्षिण मे धरयावद होकर बांसवाड़ा तक तथा दूसरा उदयपुर से सलूंबर होकर डूंगरपुर तक। इन रास्तों से गाड़ियों के आने-जाने की तो व्यवस्था नहीं थी पर यद्दु जानवर आते-जाते थे।

रियासत के पूर्वी किनारे पर पहाड़ियों का एक समूह है जो उत्तर और दक्षिण की तरफ की समानान्तर संकड़ी घाटियाँ बनाता हुआ चला गया है। सबसे बड़ी घाटी के रुप में विजयपुर का एक छोटा कस्वा है। पहाड़ियों की औसत ऊँचाई १८५० फीट के आस-पास है। यहाँ का बहाव अक्सर उत्तर और दक्षिण की ओर है। उत्तर की तरफ का बहाव सीधा बड़ेच तक है और दक्षिण का बहाव गंभीरी नाम की छोटी नदी में जा मिलता है जो पश्चिम की तरफ बहकर पहाड़ियों को घेरती हुई चित्तौड़ के पास बड़ेच में मिल जाती है।

चित्तौड़ से पश्चिम की ओर की भूमि खुली हुई है। बंजर जमीन के बड़े-बड़े टुकड़े देखने को मिलते हैं। कहीं कहीं छोटी पहाड़ियाँ व ऊँची जमीन न आती है। नैॠत्य कोण की ओर पहाड़ियाँ अधिक उँची और जंगल से ढकी है। इन ऊँची पहाड़ियों का दृश्य सुहाना है, खासकर सफेद चट्टानों के कारण। वनाच्छादित होते जाने के बावजूद इसका ऊपरी भाग दिखता रहता है।

बड़ी सादड़ी से जाकुम तक एक ऊँचे पहाड़ियों की पंक्ति अग्नि कोण में स्थित हैं ये पहाड़ियों की पंक्ति अग्नि कोण में स्थित हैं। ये पहाड़ियाँ एक बड़े चौड़े और सघन जंगल से ढकी हुई जमीन वाली एक बड़ी घाटी की पश्चिमी सीमा है जहाँ की जमीन नीची है। वास्तव में यह पहाड़ियाँ विंध्याचल की शाखा हैं जो अरावली में मिल जाती है।

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