राजस्थान |
मेवाड़ रियासत में पाये जाने वाले धातु और कीमती पत्थर अमितेश कुमार |
मेवाड़ रियासत में धातुओं व कीमती पत्थरों का उत्पादन बड़े पैमाने पर होता था। पोटलां, जावर व दरीबर की खानों से सीसे निकाले जाते थे। जावर उदयपुर से दक्षिण की ओर १८ मील की दूरी पर है तथा खंडहर की हालत में है। इसके पश्चिम तरफ एक छोटी नदी बहती है वहाँ के आसपास की दीवारें केवल प्राचीन घरियों से बनी हुई है जिसका इस्तेमाल धातु गलाने के काम में किया जाता है। इस बात से इसकी प्रबल संभावना है कि वहाँ पहले धातु गलाई जाती थी। इस स्थानों पर पुनः उत्खनन के लिए खुदाई भी की गइर् तथा अशोधित सीसा (गैलेना) पाई गई। यहाँ मिले चाँदी के अपर्याप्त अंश की वजह से, अधिक लागत मूल्य हो जाने के कारण कार्य के लिए दरबार से वित्तीय सहायता नहीं मिल पायी थी। मांडलगढ़ जिले के गुंहली गाँव में, जहाजपुर जिले के मनोहरपुर में गंगार में रेलवे लाइन पर और पारसोला में भी, जो बड़ी सादड़ी से कुछ मील दक्षिण की ओर है, लोहे के खनन का कार्य अभी तक जारी है। खान में काम करने वाले लोग कच्ची धातु को गलाने के लिए हवा से तप्त होने वाली भट्टियाँ रखते थे। धातु शोधन के लिए नमक का प्रयोग यहाँ पहले से ही होता आ रहा था जो बाद के समय की तरकीब समझी जाती है। सादड़ी, हमीरगढ़ और अमरगढ़ जिलों में पुरानी खानें थी। रियासत की दक्षिणी पहाड़ियों में बेदावल की पाल और अनजेनी के बीच लोहे तथा ताँबे की खानें थी। उदयपुर के निकट केवड़ा की नाल में भी बहुत सी प्राचीन खानें हैं। एक बहुमूल्यपत्थर रक्तमणि मांडल, पुर और भीलवाड़ा के जिलों में तथा दरीबा में बड़े पैमाने पर पाया जाता है। नोटः - प्राचीन प्रशस्तियों के अनुसार इसका नाम जोगिनीपुर है। इस नाम की बुनियाद एक देवी के स्थान से है, जिसको लोग जावर की माता के नाम से पुकारते हैं।
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