राजस्थान

अम्बेर के देवालय

राहुल तोन्गारिया


जगत शिरोमणि मंदिर
शिलादेवी मंदिर

जयपुर नगर की नींव पड़ने से पूर्व (१७२८ ई०) अम्बेर जयपुर राज्य के शासकों की राजधानी थी। जयगढ़ के नाम से प्रसिद्ध अम्बेर का किला एक पहाड़ी की चोटी पर बना हुआ है और यह उसमें रहने वाले सभी लोगों की सभी आवश्यकताओं की पूर्ति करने में समर्थ था। अम्बेर में जगत शिरोमणि मंदिर और शिलादेवी मंदिर स्थापित हैं जिन्हें देखने के लिए पर्यटकों का ताँता लगा रहता है। अपने धार्मिक महत्व के साथ ये मंदिर राजपूत स्थापत्य कला की कीर्ती और वैभव के सर्वोत्तम स्मारक हैं।

जगत शिरोमणि मंदिर

इस मंदिर का निर्माण राजा नामसिंह ने अपने पुत्र जगत सिंह की पावन और अमर स्मृति में करवाया था। यह राजपूत स्थापत्य कला का अनूठा उदाहरण है। एक मत के अनुसार इस मंदिर का निर्माण रानी कनकवती ने करवाया था। यह मंदिर अम्बेर के उत्तरी - पश्चिमी पहाड़ी तल पर स्थित है एवं इसका निर्माण हिन्दू वास्तुशिल्प के नमूने पर हुआ है। तत्कालीन युग के अन्य मंदिरों की भांति इस पर मुसलमानी शिल्पकला का प्रभाव कहीं भी दृष्टिगोचर नहीं होता। यह मंदिर एक १५ फुट चबुतरे पर संगमरमर से बनाया गया है। मुख्य उपासना गृह में राधा, गिरिधर, गोपाल और विष्णु की मूर्तियां हैं। अक दीर्घायत विशाल कक्ष उत्कृष्ट रुप से निर्मित कला और शिल्प की शोभा को प्रदर्शित करता है और इस मंदिर के सामने हाथ जोड़े खड़ी हुई गरुड़ की एक विलक्षण मूर्ति इस मंदिर के शोभा में श्रीवृद्धि करती है।

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शिलादेवी मंदिर

अम्बेर में पहाड़ी पर राजमहल के निकट ही शिलादेवी का मंदिर है। वर्तमान मंदिर में राजकीय गुणों के सभी अंश और धार्मिक संस्थानों की प्राचीन वस्तुशिल्प शैली के मूल्य विद्यमान हैं। इस मंदिर के शिलादेवी की मूर्ति के बारे में कई तरह की कथाएँ प्रचलित हैं। मंदिर के प्रवेश द्वार पर लगे पुरातत्वीय विवरण के अनुसार इस मूर्ति को राजा मानसिंह बंगाल से लेकर आए थे। कहा जाता है कि केदार राजा को पराजित करने के प्रयत्न में असफल रहने पर मानसिंह ने युद्ध में अपनी विजय के लिए उस प्रतिमा से आशीर्वाद माँगा, इसके बदले में देवी ने राजा केदार के चंगुल से अपना आपको मुक्त कराने की मांग की। इस शर्त के अनुसार देवी ने मानसिंह को युद्ध जीतने में सहायता की और नामसिंह ने देवी की प्रतिमा को राजा

केदार से मुक्त कराया और अम्बेर में स्थापित किया। एक अन्य कथा के अनुसार मानसिंह ने राजा केदार की कन्या से विवाह किया और देवी की प्रतिमा को भेंट - स्वरुप प्राप्त किया। लेकिन यह निश्चित है कि वर्तमान मूर्ति समुद्र में पड़े हुए एक शिलाखण्ड से निर्मित है और यही कारण है कि मूर्ति का नाम शिलादेवी है। जयपुर के शासकों को शिलादेवी में अगाध विश्वास है। मुख्य मंदिर के प्रवेश - द्वार पर दस महाविद्याओं और नव दुर्गा की प्रतिमाएँ उत्कीर्ण हैं। मंदिर के अन्दर कलाकार धीरेन्द्र घोष ने महाकाली और महा लक्ष्मी की सुन्दर चित्रकारी की है। मंदिर के जगमोहन भाग में चाँदी की घंटी बन्धी हुई है। इसे भक्तगण देवीपूजा के पूर्व बजाते हैं। मंदिर के कुछ भाग एवं स्तम्भों में बंगाली शैली दष्टिगोचर होती है।

शिलादेवी के पाशर्व में गणेश और मीणा कुल की देवीमाता हिंगला की मूर्तियाँ हैं। नवरात्रों में यहाँ दो मेले लगते हैं। इनमें देवी को प्रसन्न करने के लिए पशुओं की बली दी जाती है। उदयपुर के राजस्थान - परिवार के सदस्य और भूतपर्व जयपुर रियासत के सामन्तगण नवरात्र के इस समारोह में सम्मिलित होते हैं।

इन दो मंदिरों के अतिरिक्त यहाँ अम्बिकेश्वर के मंदिर भी हैं। इनका नाम अम्बेर राज्य के संस्थापक के नाम पर पड़ा है जो जयपुर के भी शासक थे।

शिलावतन अथवा चारों धाम का मंदिर भी अपने निर्माण की सुन्दरता के लिए प्रसिद्ध है।

 

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