राजस्थान में अंग्रेजों के
आगमन के साथ ही समाज के
आधुनिकीकरण की प्रक्रिया शुरु हो
गयी थी :
अंग्रेजों के सम्पर्क के कारण
राजस्थान के चारों वणाç के रहन -
सहन एवं स्तर में भी अन्तर आ गया।
राजपूतों ने अब नौकरी करना
शुरु कर दिया और नौकरी प्राप्त
करने के लिए शिक्षा प्राप्त करने लगे।
मध्यम वर्ग के विकास ने ब्राह्मणों
के लिए चुनौती पैदा कर दी,
जिससे उनकी सर्वोच्चता समाप्त हो
गयी। इससे वैश्यों के जीवन पर
कोई प्रभाव नहीं पड़ा। वे पहले
से भी बड़े व्यापारी बन गये। लेन
- देन तथा व्यापार के अतिरिक्त
उन्होंने राजकीय सेवाओं में आना
प्रारम्भ कर दिया। उन्होंने
प्रशासनिक और सैनिक पदों पर
कार्य करना भी शुरु कर दिया।
ग्रामीण वैश्यों ने कृषि का
व्यवसाय अपना लिया था। व्यापारी
होने के कारण उनका अंग्रेजों से
सम्पर्क स्थापित हुआ और धीरे -
धीरे इस सम्पर्क ने घनिष्ठता का
रुप ले लिया। कई इतिहासकारों
का मानना है कि राजस्थान में
ब्रिटिश संरक्षण का सर्वाधिक लाभ
वैश्य वर्ग को ही प्राप्त हुआ।
अंग्रेजों के सम्पर्क के कारण उन्हें
राजनीतिक क्षेत्र में प्रवेश करने का
अवसर प्राप्त हुआ,जिससे उन्होंने
सामाजिक क्षेत्र में भी अपनी प्रतिष्ठा
बनाये रखने में सफलता प्राप्त की।
परन्तु अंग्रेजी सम्पर्क के कारण
शूद्रों के व्यवसाय तथा प्रतिष्ठा
पर कोई प्रभाव नहीं पड़ा। उन्हें तो
ईसाई पादरियों ने अपने धर्म
में दीक्षित करना आरम्भ कर दिया।
इस प्रकार स्पष्ट है कि जातियाँ
अपने मूल व्यवसाय को छोड़ रही
थीं तथा जाति के नियम शिथिल
होते जा रहे थे। इस प्रकार
पुरातन संस्थाओं में परिवर्तन
हो रहा था।
जनवरी १८८९ ई० में अजमेर
के कार्यवाहक ए० जी० जी० द्वारा इस
सभा की स्थापना की गई थी। इस
सभा के पुराने सदस्यों की संख्या
२० और नये सदस्यों की संख्या १४ थी।
इस कमेटी का नाम वाल्टर
कृत"राजपूत हितकारिणी
सभा"रखा गया।
सभा के सुधार
वैसे इस सभा ने अपने
कार्य 'मेवाड़ देश हितैषनी सभा
'के अनुरुप ही चलाने का प्रयास
किया था, किन्तु इसने इसके
अतिरिक्त निम्न सुधारों को अपनाया -
१. वाल्टर ने
बहु विवाह प्रथा को पूर्णत:
समाप्त करने का सुझाव दिया।
२. लड़की वाले
विवाह से पूर्व लड़के वालों
को नकद राशि तथा लड़के व उसके
रिशतेदारों के लिए कपड़े एवं
उपहार भेजते हैं। लड़के वाले
लड़की के लिए आभूषण एवं वस्र आदि
भेजते हैं। वाल्टर ने इन दोनों
प्रथाओं को फिजूलखर्ची मानकर
इन्हें समाप्त करने की सिफारिश
की।
३. वाल्टर ने
लड़की व लड़के के विवाह की आयु
को भी निर्धारित करने का
सुझाव दिया, ताकि बाल विवाह
की प्रथा को रोका जा सके। उन्होंने
लड़के के विवाह के लिए आयु १८
वर्ष एवं लड़की के लिए १४ वर्ष
निश्चित करने का सुझाव दिया।