राजस्थान

महाराजा सवाई जगतसिंह जी

राहुल तोन्गारिया


जगतसिंह जी का जन्म चैत वदी १ २ वि. १८४१ (दिनांक १८ मार्च १७८४ ई०) को हुआ था। पिता की मृत्यु पर १ अगस्त, १८०३ ई० को ये जयपुर की गद्दी पर बैठे। इनके गद्दी पर बैठते ही अंग्रेजों ने सन्धि का जो प्रस्ताव इनके पिता के समय में तैयार किया गया था, उसे इनके पास भेजा। उस समय की परिस्थिती और मरहठे, पिंडारियों के लूटमार को लेकर राज्य में जो बर्बादी हो रही थी, उस लिहाज से वह अच्छा प्रस्ताव था। यशवन्त राव होल्कर ने अपना वकील भेज कर इनको कहलवाया कि अंग्रेजों से सन्धि करने पर देश और धर्म को हानि होगी। इनके सलाहकारों में भी राव चाँदसिंह दुनी के अलावा शेष सभी इस सन्धि के विरुद्ध थे। इसलिए इन्होंने इस प्रस्ताव को अस्वीकार कर दिया।

उदयपुर के महाराणा की पुत्री के विवाह को लेकर जयपुर और जोधपुर में काफी खिंचाव हो गया। इसी समय जोधपुर के भूतपूर्व महाराजा भीमसिंह जी के पुत्र धोकलसिंह को लेकर कुछ सरदारो ने जोधपुर महाराज मानसिंह जी का विरोध शुरु किया। उनमें मुख्य पोकरन का ठाकुर सवाईसिंह था जो उस समय बड़ा महत्व रखता था। अन्त में सवाईसिंह धोकलसिंह को लेकर शेखावटी में नवलगढ़ आया और वहाँ से खेतड़ी गया। फिर शेखावतों को लेकर वह जयपुर महाराजा के पास आया। सवाईसिंह के कहने पर धोकलसिंह के पक्ष में म. स. जगतसिंह जी ने जोधपुर पर चढ़ाई की। मीरखाँ पिंडारी भी इनके साथ था। बीकानेर महाराजा सूरतसिंह भी सेना सहित आकर जयपुर के साथ हो गये। दिनांक १४ मार्च, १८०७ ई० को परबतसर के पास गींधोली की घाटी पर जयपुर और जोधपुर के बीच मुकाबला हुआ। सवाईसिंह जी के इशारे पर मारवाड़ के कई सरदार जोधपुर का साथ छोड़कर जयपुर की सेना में जा मिले। इस युद्ध में महाराजा मानसिंह जी की पराजय हुई और वेभागकर जोधपुर चले गये। जयपुर की सेना ने धोकलसिंह का नागौर पर कब्जा कराकर जोधपुर पर घेरा डाला। घेरा करीब साढ़े पाँच महीने चला। इस युद्ध में खंडेला के राजा वृन्दावन दास और उनके पोते अभयसिंह जोधपुर में मरे।उन्होंने जोधपुर में मीरखाँ को रिश्वत देकर उसे अपनी तरफ मिला लिया। तब उसने कूचामण के मेड़तिया शिवनाथसिंह और इन्द्रराज सिंधी से मिलकर जयपुर राज्य के इलाके लूटने शुरु किये। म. स. जगतसिंह जी सन्धि करके वापिस जयपुर लौटे। यह घेरा १४ सितम्बर को उठा। कुछ समय बाद बापूजी सिन्धिया ने भी जयपुर राज्य के इलाकों में लूट - मार शुरु की। १८११ ई० में मीरखाँ आकर जयपुर इलाके में लूट - खसोट करने लगा। मीरखाँ के ये झगड़े चलते रहे। मीरखाँ ने जयपुर के भी पास पहुँचकर बड़ा उत्पात मचाया। कुछ युद्धों में उसे परास्त भी किया गया। इसी बीच ईस्ट इण्डिया कम्पनी ने खेतड़ी के राजा अभयसिंह से सन्धि की और मरहठों के विरुद्ध अंग्रेजों को मदद देने के कारण खेतड़ी को कोटपुतली का इलाका दिया। महाराजा जगतसिंह जी ने कई कारणों से विवश होकर ईस्ट इण्डिया कम्पनी से २ अप्रैल १८१८ ई० को सन्धि कर ली। तब डेविड ओक्टर लोनी जयपुर आया। उसने सरदारों की बैठक में भाग लिया और सरदारों को दबाया कि खालसा के इलाके जो उन्होंने दबाये हैं, वापिस राज्य को लौटा दें। कई सरदारों ने इसे स्वीकार नहीं किया। भारतसिंह नरुका लदाणा ने अमीरखाँ से माधोराजपुर का किला छीन लिया जो जयपुर का था। बाद में इसपर रेजीडेन्ट ने हमला करके वह किला वापस जयपुर को दिलाया।

म. स. जगतसिंह जी की मृत्यु २१ दिसम्बर १८१८ ई० (पौष वदी ९ वि. १८७५) को हुई। ऐसा भी माना जाता है कि मोहनलाल ना ने इन्हें जहर दिया था। इनके २२ रानियाँ थीं। उनमें से कई सती हुई। इनकी मृत्यु के ५ महीने के बाद एक रानी के गर्भ से म. स. जयसिंह जी का जन्म हुआ।

 

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