राजस्थान

बाडमेर के प्रसिद्ध स्थल

प्रेम कुमार


बाडमेर
किराडू के अवशेष
मेवा नगर
खेड
जसोल

 

बाडमेर

यह शहर २५ ४५' उत्तरी अक्षांश तथा ७१ २३' पूवीर् देशांतर पर स्थित है। रेल मार्ग द्वारा जोधपुर शहर से यह २०८ किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। यह शहर एक पहाड़ी के किनारे बसा है जिसके एक किनारे में पुराने किले के अवशेष अभी भी देखे जा सकते हैं। यहाँ पर बालारिख (सूय्र) मंदिर स्थित है। शहर के उत्तर-पश्चिम भाग में जूना के अवशेष हैं तथा दक्षिण में ३ जैन मंदिरों के अवशेष हैंा यहाँ पर सबसे बडे मंदिर के एक खंभे में शिलालेख है जिसके अनुसार महाराजाकुल श्री सामंत सिंह देव ने बाहड्मेर पर शासन किया है।

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किराडू के अवशेष

यह स्थान हथमा गाँव के निकट बाडमेर तहसील में स्थित है। बाडमेंर से २६ यह स्थान किरट कूप के नाम से जाना जाता है, जो एक समय में पुनवारों की राजधानी थी। इन पुवार राजाओं का संबंध समकालीन गुजरात के राजाओं से था। यहाँ पर पाँच मंदिरों के अवशेष मिलते हैं, जो पुरातात्विक दृष्टि से काफी महत्पूर्ण है। इन मंदिरों में से चार मंदिर शिव को तथा एक विष्णु को समर्पित है। इनमें सबसे बङा मंदिर रामेश्वर है। यहाँ से शिव तथा विष्णु की कई मूर्तियां प्राप्त हुई हैं, जिसमें विष्णु की मूर्ति सबसे पुरानी है।

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मेवा नगर

इस गांव का पुराना नाम वीरमपुर था तथा ऐसा कहा जाता है, कि इसे १२ वीं या १३ वीं सदी में बनाया गया था। मेवा नगर एक पहाङ्ी के ढ़लान पर बनी है। इस पहाङ्ी को नगर की भकरियों के नाम से जाना जाता है तथा यह बालोतर नगर से ९ किलो मीटर की दूरी पर स्थित है। यहाँ पर ३ जैन मंदिर तथा एक विष्णु मंदिर है। यहाँ पर सबसे बङा एवं पुराना मंदिर नकोरा पार्श्वनाथ का है। अन्य जैन मंदिर रिशभदेव तथा शांतिनाथ को समर्पित हैं। यहाँ पर कई ऐतिहासिक शिलालेख है। यहाँ हरेक साल पूस माह में एक मेला लगता है।

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खेड

ऐतिहासिक रुप से यह गांव उत्तर में राठौर वंश का जन्म स्थान माना जाता है। १३ वीं शताब्दी के प्रारंभ में राव सीहाजी तथा उनके पुत्र स्थान जी ने खे तथा मेवा गुहिल राजपूतों से जीता था। यहाँ पर राणा छोदाजी का प्राचीन विष्णु मंदिर स्थित है। इस मंदिर के द्वार पर गरु की आकृति बनी है। बगल में ब्रहम्मा तथा भैरव जी का मंदिर है। यहाँ महादेव तथा जैन मंदिर भी हैं।

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जसोल

यह गाँव काफी प्राचीन है तथा यह मलानी में महत्वपूर्ण जागीर थी। वर्तमान नाम जसोल जसोलियों राजपूतों के ऊपर रखी गई है, जो राठौङों की उप-जाति है तथा यहाँ आकर बस गई। यहाँ पर एक हिन्दू तथा एक जैन मंदिर है। यहाँ का हिन्दू मंदिर महत्वपूर्ण तथा पुराना है। यहाँ के जैन मंदिर को दादाडेरा कहा जाता है।

 

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