राजस्थान

मारवाड़ में भांति-भांति के अभिवादन

प्रेम कुमार


मारवा में जिस तरह लगभग हर बारह कोस पर बोली बदल जाती है, उसी प्रकार यहाँ थोङ्ी-थोङ्ी दूरी पर भाँति-भाँति क अभिवादन के तौर-तरीके पाये जाते हैं। ये सभी अभिवादन उस स्थान विशेष की धार्मिक भावना एवं ईष्टदेव के प्रतीक होते हैं। अगर बारीकी से इस विषय का अध्ययन करें तो इसमें काफी रोचक तथ्य उजागर होते हैं। अभिवादन करने के पीछे इतिहास की कोई घटना, धार्मिक आस्था एवं लोक-देवता अथवा पूर्वज इत्यादि का प्रभाव प्रमुख रहा है।

जोधपुर राजवंश के टिकायत ठिकाने बागङ्ी एवं वहाँ के गॉवों में आज भी जय श्री चामुंडा जी का प्रचलन है तो जालोर जिले के भाद्राजून एवं उसके चौरासी गाँवों में जय श्री गोपाल जी का। जोधपुर से निकलते ही पाली की तरफ झालामण्ड एवं आस-पास जय श्री द्वारका नाथ जी कहा जाता है। झालामण्ड में आज भी आपस में इसी तरह अभिवादन किया जाता है। महाराजा उम्मेद सिंह जी के नाम से बसाया उम्मेद नगर जो भाटियों की जागीर में रहा हुआ गाँव है, वहाँ जय श्री कृष्ण कहा जाता है। भाटी अपने आप को भगवान शिव का वंशज मानते हैं। उसी प्रकार भटियों के ठिकाने खेजङ्ला एवं साथीण गाँव में भी जयश्री कृष्ण का ही प्रचलन है।

मारवा के सियासत रहे रीयां एवं आलणियावास में जयश्री चारभुजा जी कहा जाता है, तो रायपुर में जयश्री गोपाल जी का अधिक प्रचलन है। निम्बाज भी जोधपुर का प्रमुख ठिकाना रहा है। वहाँ पर जयश्री राधा मुकन जी का अभिवादन प्रचलित है। इस अभिवादन के सम्बोधन में राधाजी को मुकन जी के समान आदर दिया गया है।

कंटालिया जागीर भी यहॉ की रियासतों में से एक थी। वहाँ का भी अभिवादन जयश्री गोरधननाथ जी, चंडावल में जयश्री मुरलीधर जी, रास में भी निम्बाज के समान जयश्री राधामुकन जी का ही प्रचलन है। मारवाड् के धूंसे में गाये जाने वाले आऊवा और आसोप ठिकाने भी जगजाहिर हैं। आसोप अभी नागौर जिले में है। वहाँ का अभिवादन जय श्री बैजनाथ जी है तो खींवसर में भी यही अभिवादन विख्यात है।

कूचामन ठिकाने के पटायत को महाराजा श्री उम्मेद सिंह जी ने भाद्राजून, आसोप एवं उम्मेद नगर के साथ राजा की उपाघि दी थी वहाँ का अभिवादन जयश्री चारभुजा जी है। मारवा में राणावत के ठिकाने में बेङा की जागीर भी महत्वपूर्ण स्थान रखती है। वहाँ जय श्री मुरलीधर जी कह कर अभिवादन किया जाता है। नाणा में जयश्री द्वारकानाथ जी री कह कर अभिवादन करने की परम्परा रही है।

चौहान राजपूतों का ठिकाना राखी-जोजावर है। वहाँ अभिवादन के समय जयश्री बैजनाथ जी तो आऊवा में जयश्री द्वारकानाथ जी काह जाता है।

जोधपुर के एक प्रमुख ठिकाने पोकरन में उस क्षेत्र में लोक देवता बाबा रामदेव जी का अधिक प्रभाव है अतः वहाँ जय बाबा री का अभिवादन प्रसिद्व है।

मलाणी के प्रमुख ठिकाने जसोल, सिणधारी एवं बाङ्मेर में जयश्री मल्लीनाथ जी आज भी प्रचलित हैं। मल्लीनाथ के पीछे मालाणी परगना जाना जाता है। वे सिद्ध पुरुष तथा खे के संस्थापक रहे थे। मालाणी के अलावा आगे राङ्धरा के अङ्तालीस गाँवों में प्रमुख ठिकानों नगर एवं गुङा के गाँवों में जय आलम जी का अभिवादन आज भी प्रचलित है। जैतमाल जी मल्लीनाथ के छोटे भाई थे और सिवाना के शासक थे।

जोधपुर में जयमाता जी, राम-राम जैसे अभिवादन भी प्रचलित हैं। चारण समाज भी जय माता जी एवं जय करणी जी का उपयोग करते हैं। विश्नोई समाज में जय जम्भेश्वर जी प्रचलित है तो जाट, कलबी एवं खेतीहर समाज में ज्यादातर राम-राम का ही उपयोग करते हैं। डोङ्ीयाली में मल्लीनाथ जी की बहिन ब्याही थी और उन्होंने मरणोपरान्त बहिन के ससुराल में चमत्कार एवं परचे दिए थे इसलिए आज भी वहाँ उनका मंदिर स्थित है। वहाँ के चौहान जागीरदार भी मल्ली नाथ को अपना इष्ट मानते हैं। दर्जी समाज पीपा जी से अपने वंश को जोङ्ता है। नाथ लोग जय जलन्थरनाथ जी कहते हैं।

महाराजा विजय सिंह जी के जमाने में कृष्ण भक्ति अधिक प्रचलित थी, इसलिए वहाँ जयश्री कृष्ण अत्यधिक प्रचलित रहा। कहीं-कहीं स्थानीय देवता खेतपाल जी का प्रभाव अधिक है अतः वहाँ जय खेतलाजी री भी कहा जाता है। पाबूजी की कर्मस्थली क्रोलू गाँव में जय पाबू जी कहा जात है। जहाँ-जहाँ जिस देवता की अधिक मान्यता होती है, उसी के अनुसार अभिवादन प्रचलित होते गए। कहीं जय भैंस जी री तो कहीं जय एकलिंगजी री जैसे अभिवादनों का प्रचलन है।

मारवा में कृष्ण भक्ति काफी प्रचलित रही है जिस कारण अभिवादन के तौर-तरीके में अधिकतर कृष्ण तथा उनके अलग-अलग नामों का उल्लेख आता है।

राजपरिवारों, राजवाङों एवं ठिकानों में आपस में खम्मा धणी कह कर अभिवादन किया जाता है। खम्मा क्षमा शब्द का अपभ्रंश रुप है। इस शब्द का शाब्दिक अर्थ होगा, मुझे आप बारम्बार बिना गलती के ही क्षमा करें। अभिवादन का यह अत्यन्त विनम्र प्रकार है।

आज के दौर में हिन्दी के अभिवादन के तौर-तरीकों का प्रचलन भी काफी बढ़ गया है। हाथ जोड्कर अभिवादन का पारंपरिक प्रचलन काफी कम होता जा रहा है। नमस्कार तथा नमस्ते मुख्य रुप से शहरी क्षेत्रों में काफी प्रचलित है। नए जमाने की मार तथा माश्चात्य संस्कृति ने भी यहाँ की पारम्परिक संस्कृति को काफी प्रभावित किया है।

 

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