राजस्थान |
धर्म प्रेम कुमार |
जैन
धर्म इस्लाम धर्म
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भारतवर्ष की भूमि सदैव से धर्म प्रधान रही है, यहाँ पर धर्म के बिना जीवन की कल्पना भी नही की जा सकती है। जैसलमेर राज्य का विस्तार भू-भाग भी इस भावना से मुक्त नहीं रहा। इस क्षेत्र के सर्वप्रथम राव तणू द्वारा तणोट नामक स्थान बसाने तथा वहाँ देवी का मंदिर का मंदिर बनाने का उल्लेख प्राप्त होता है। यह देवी का मंदिर आज भी विद्यमान है, हालांकि इस मंदिर में कोई स्मारक व लेख प्राप्त नहीं होता है किन्तु जन-जन के इतिहास के माध्यम से यह मंदिर राव तणू के पिता राव केहर के समय का माना जाता है व इस क्षेत्र में इसकी बहुत ही मान्यता है। भारत पाक युद्ध १९६५ के बाद तो भारतीय सेना व सीमा सुरक्षा बल की भी यह आराध्य देवी हो गई व उनके द्वारा नवीन मंदिर बनाकर मंदिर का संचालन भी सीमा सुरक्षा बल के आधीन है। इसी समय के अन्य देवी के मंदिर भादरा राय, काले डूंगर की राय, तेमङ्ै राय व चेलकरी तणूटिया देवी के मंदिर आठवीं सदी से यहाँ जन-जन के आराधन स्थल बने हुए हैं। देवी को शक्ति रुप में इस क्षेत्र में प्राचीन समय से पूजते आये हैं। रावल देवराज (८५३ से ९७४ ई.)के राज्यच्युत होने पर नाथपंथ के एक योगी की सहायता से पुनः राजसत्ता पाने व देरावर नामक स्थान पर अपनी राजधानी स्थापित करने के कारण भाटी वंश तथा राज्य में नाथपंश को राज्याश्रय प्राप्त हुआ तथा जैसलमेर में नाथपंथ की गद्दी की स्थापना हुई, जो कि राजवंश के साथ-साथ राज्य के स्वत्रंत भारत में विलीनीकरण के समय तक मौजूद रहा। नाथ सम्प्रदाय के प्रति अपने कृतज्ञता के भाव के कारण यहाँ के शासक राजतिलक के समय योगी द्वारा प्रदत्त भगवा वस्र पहनकर उनके मठाधीश के हाथ से मुकुट धारण करते रहे हैं। देवराज के पौत्र विरजराज लांझा (११ वीं सदी) के समय के कुछ शिलालेख प्राप्त होते हैं, जो किन्ही मंदिर के स्थापना से संबंधित है, शिलालेख संस्कृत में हैं तथा श्री शिव, श्री मतछण देव्य आदि शब्द से युक्त होने के कारण ऐसा प्रतीत होता है कि ये शिव, विष्णु मंदिर प्रचुरता में मिलते हैं, ये शक्ति देवी दुर्गा के विभिन्न रुपों में हैं, जिन्हें पीढ़ी-दर-पीढ़ी लोग प्रत्येक अवसर पर जैसे विवाह व पुत्त जन्म आदि के अवसर पर सर्वप्रथम पूजते हैं। जैसलमेर में सनातन धर्म का प्राचीन मंदिर दुर्ग पर स्थित आदि नारायण का है, जो टीकमराय के मंदिर के नाम से विख्यात है, यहाँ विष्णु की अष्ठ धातु की प्रतिमा स्थापित है। रावल लक्ष्मण के समय (१३९६ से १४३७ ई.) यहाँ सन् १४३७ ई. में एक विशाल मंदिर स्थापित किया गया तथा इसमें विष्णु की प्रतिमा, लक्ष्मीनाथ के रुप में स्थापित की गई। वस्तुतः यह लक्ष्मी विष्णु दोनों की युगल प्रतिमा है। मंदिर के गर्भ गृह के गोपुर पर दशावपार के सभी देवी देवताओं का बहुत ही सुंदर शिलालेखन हुआ है। इस मंदिर के निर्माण में रावल लक्ष्मण के अतिरिक्त जैन पंचायत पुष्करणा ब्राहम्मण समाज, महेश्वरी समाज, भाटिया समाजश् खन्नी, सुनार, दरजी, हजूरी, राजपूत आदि सातों जातों द्वारा निर्माण में सहयोग दिये जाने से यह जन-जन का मंदिर कहलाता है व सभी लोग बिना किसी भेदभाव के यहाँ प्रतिदिन दर्शन के लिए जाते हैं। रावल लक्ष्मण ने जैसलमेर राज्य की संपूर्ण सत्ता भगवान लक्ष्मीनाथ के नाम पर स्वयं उसके दीवन के रुप में कार्य करने की घोषणा की थी।जैसलमेर में विभिन्न संप्रदायों के प्रति बहुत आस्था रही है, इनमें राम स्नेही, नाथपंथ तथा वल्लभ संप्रदाय प्रमुख हैं। महारावल अमरसिंह के समय रामानंदी पंथ के महंत हरिवंशगिरि ने अमरसिंह को अपने चमत्कारों प्रसन्न किया व रावल देवराज के समय से राज्स में किसी अन्य पंथ के प्रवेश पर लगी रोक को हटवाया तथा स्थान-स्थान पर रामद्वारों की स्थापना कराई। महारावल अमरसिंह द्वारा भूतेश्वर तथा अमरेश्वर नामक दो शिव मंदिर बनवाये थे। साथ ही फलसूंढ़ नाम स्थान से गणेश प्रतिमा मंगवा कर गणेश मंदिर, दुर्ग में स्थापित कराया गया। महारावल अमरसिंह के उपरांत उनके पुत्र महारावल जसवंत सिंह द्वारा दुर्ग स्थित टीकमराय के मंदिर का जीर्णोंधार कराया गया तथा एक देवी के मंदिर के निमार्ण का उल्लेख प्राप्त होता है। महारावल अखैसिंह (१७७२-१७६२ ई.) के समय उनके द्वारा दो मंदिर तथा वैशाखी नामक स्थल पर राजगुरु हरिवंश गिरि के स्मारक बनाने का उल्लेख प्राप्त होता है। अखैसिंह द्वारा प्रतिष्ठित मंदिर में रणछोङ् जी (कृष्ण का रुप) का मंदिर प्रमुख है। महारावल मूलराज (१७६१से १८१९ ई.) के समय में जो धार्मिक लहर प्रवाहित हुई, वह अपने आप में अनोखा उदाहरण है। मूलराज के समय जैसलमेर नगर में वल्लभ संप्रदाय के स्वामी ने यहाँ छः मास तक प्रवास किया। उनके उपदेशों से मूलराज इतने प्रभावित हुए कि उन्होने सपरिवार वल्लभ संप्रदाय ग्रहण कर लिया। तदुपरांत प्रजा के अधिकांश जनों ने भी इस संप्रदाय में दीक्षा ग्रहण कर ली, इसमें हमेश्वरी तथा भाटिया समाज प्रमुख था। यह संप्रदाय आज भी इस धर्म का पालन करता है। मूलराज द्वारा इसी तारतम्य में वल्लभ कुल के स्वरुपों के अर्थात गिरधारी जी का मंदिर, बांकेबिहारी जी का मंदिर, मदनमोहन जी का मंदिर, गोवर्धन नाथ जी का मंदिर मथुरानाथ जी का मंदिरों का निर्माण कराया। महारावल मूलराज द्वारा पुष्टिमार्गीय वल्लभ संप्रदाय स्वीकार करने के बावजूद अन्य संप्रदायों का समान आदर किया गया, अतः उन्होंने अपनी माता सोढ़ी जी की आज्ञा से सीताराम का मंदिर बनवाया। इसी क्रम में १७७० ई. में घङ्सीसर नामक तङाग के किनारे देव चंद्रशेखर महादेव मंदिर बनवाया। सन् १७९७ में गोरखनाथ का मंदिर तथा अम्बिका देवी के मंदिरों के निर्माण कार्य भी महारावल के धार्मिक सहिष्णुता के सजीव उदाहरण है। जैन धर्म सुरक्षित किय। जैसलमेर राज्य के जैन धर्म के बारे में सबसे महत्वपूर्ण पक्ष यह है कि यहाँ के शासकों द्वारा इस धर्म के पालन करने वालों को पूर्ण राज्याश्रय दिया, किन्तु स्वयं उस धर्म से दीक्षित नहीं हुए, साथ ही जैन धर्म से प्रभावित होने के पश्चात् भी उन्होंने अन्य किसी धर्म का तिरस्कार या अवनति में हिस्सा नहीं लिया। इस्लाम धर्म
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