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इस राज्य में अंग्रेजी
सरकार की छावनियाँ खैरवाड़े
और कोटड़े में थी। इन छावनियों
के सिपाहियों में अधिकतर भील थे।
खैरवाड़े में सिपाहियों की संख्या
अधिक रखी गई थी।
उदयपुर राज्य के जिले
प्रशासनिक कार्यों के
सम्पादन में सुविधा के लिए पूरे
उदयपुर राज्य को १६ भागों में बाँट
दिया गया था, जो जिले या परगने
कहलाते थे। प्रत्येक जिले का प्रधान
हाकिम कहलाता था। इन जिलों के
अन्तर्गत आने वाले तहसील नायब
हाकिम के अन्तर्गत होते थे।
हाकिमों को दीवानी फौजदारी
तथा माल के मुकदमे तय करने का
अधिकार था तथा उनके किये गये इन
मुकदमों की अपीलें उदयपुर नगर की
अदालतों में हाती थी। १० जिलों में
पैमाइश होकर पक्का बंदोबस्त
हो जाने पर जमीन का हासिल
रुपयों में लिया जाता था। बाकी ६
जिलों में पुराने ही ढंग का प्रबन्ध
होने के कारण पैदावार का हिस्सा
लिया जाता था।
जिले
का नाम व स्थिति |
मुख्य
स्थान |
तहसीलें |
गाँवों
की संख्या |
विशेष |
१ |
गिरवा
(गिर्दवाह) (उदयपुर तथा आस
-पास का क्षेत्र) |
उदयपुर |
गिरवा
(भीतरी गिरवा), लसाड़िया,
मावली, ऊँटाला |
४८९ |
पर्वतश्रेणी
से घिरा क्षेत्र भीतरी गिरवा तथा
बाहरी समतल क्षेत्रबाहरी
गिरवा |
२ |
छोटी
सादड़ी (अग्नि कोण पर स्थित) |
छोटी
सादड़ी |
छोटी
सादड़ी, कर जू |
२०९ |
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३ |
कपाषण
(राज्य के मध्य में स्थित) |
कपासण |
कपासण,
अकोला, जासमा |
१४२ |
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४ |
चित्तौड़ |
चित्तौड़ |
चित्तौड़,
कणेरा, नगावली |
४४० |
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५ |
रास्मी
(राज्य के मध्य में स्थित) |
रास्मी |
रास्मी,
गलूंड |
१०० |
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६ |
भीलवाड़ा |
भीलवाड़ा,
पुर |
भीलवाड़ा,
मांडल |
२०५ |
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७ |
सहाड़ा
(नैॠत्य कोण पर स्थित) |
सहाड़ां |
सहाड़ां,
रायपुर, रेलमगरा |
२७४ |
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८ |
मांडलगढ़
(ईशान कोण पर स्थित) |
मांडलगढ़ |
कोटड़ी,
मांडलगढ़ |
२५८ |
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९ |
जहाजपुर
(ईशान कोण पर स्थित) |
जहाजपुर |
जहाजपुर
एवं रुपान |
३०६ |
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१० |
राजनगर
(पश्चिम की ओर स्थित) |
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१२३ |
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११ |
साभरा
(पश्चिमी भाग में अरावली पर्वत
श्रेणियों में) |
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५८ |
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१२ |
कुभलगढ़
(पश्चिमी भाग में अरावली की
पहाड़ियों के बीच) |
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१६५ |
हाकिम
कुंभलगढ़ के नीचे कैलवाड़ में
तथा नायब हाकिम रींछेड़ में रहता
था। |
१३ |
मगरा
(राज्य के दक्षिण तथा सराड़ा दक्षिण-
कल्याणपुर, जावर पश्चिम
की ओर) |
सराड़ा |
सराड़ा,
खैखाड़ा, |
३२८ |
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१४ |
बागोर |
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६४ |
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१५ |
आसींद |
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१६ |
कुआखेड़ा |
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यह
जहाजपुर जिले से ही
अलग करके बनाया गया
था। |
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