राजस्थान |
राज्य में जागीर, भोम और शासन में भूमि विभाजन अमितेश कुमार |
मेवाड़ की कुल भूमि जिसे १३.५ भाग के रुप में देखा जाए, तो उसमें ७ भाग जागीरदार तथा भोम के, ३ भाग शासन के तथा ३.५ भाग राज्य के खालसे के होते थे। जागीर यहाँ दो प्रकार की होती थी, एक सैनिक सेवा के बदले में मिली हुई तथा दूसरी महाराणा की कृपा से प्रधान आदि अधिकारियों तथा अन्य व्यक्तियों को, उसकी अच्छी सेवा के लिए। सैनिक सेवा के बदले जिसको परगने, गाँव या जमीन दी जाती थी, वैसे लोग काले पट्टे के जागीरदार कहे जाते थे। महाराणा अमरसिंह (प्रथम) के समय एक व्यवस्था प्रचलित की गई, जिसके तहत सरदार (उमराव) के रहने के खास गाँव को छोड़कर बाकी के गाँव समय-समय पर बदल दिये जाए, परन्तु इससे आम जनता को हो रही हानि को देखते हुए महाराणा अमरसिंह (द्वितीय) ने इस व्यवस्था में संसोधन किया। नई व्यवस्था के मुताबिक, जब तक सरदार अच्छी तरह नौकरी देता रहे तथा सरकारी हक पूरे अदा करता रहे, तब तक उसके पट्टे (जागीर) के गाँव नहीं बदले जाएंगे। इस व्यवस्था से जागीरों में स्थिरता आ गई।
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