राजस्थान

मेवाड़ में सरदारों की श्रेणियाँ

अमितेश कुमार


मेवाड़ में सरदारों की तीन श्रेणियाँ हैं। प्रथम श्रेणी के सरदार सोला (सोलह) कहलाते थे, क्योंकि महाराणा अमरसिंह (द्वितीय) ने अपने प्रथम श्रेणी के सरदारों की संख्या १६ नियत की थी। इन सरदारों के ठिकाने इस प्रकार हैं:-

१ सादड़ी
२ बेदला
३ कोठारिया
४ सलूंबर
५ घाणेराव
६ बीजोल्या
७ बेगम (बेगूं)
८ देवगढ़
९ देलवाड़ा
१० आमेट
११ गोगूंदा
१२ कानोड़
१३ भींडर
१४ बदनौर
१५ बानसी
१६ पारसोली

बाद में महाराणा अरिसिंह द्वितीय ने भैंसरोड, महाराणा भीमसिंह ने कुरावड़, महाराणा जवानसिंह ने आसींद तथा महाराणा शंभुसिंह ने मेजा के सरदारों को प्रथम श्रेणी में शामिल कर दिया, जिससे उनकी कुल संख्या २० हो गयी थी। बाद में घाणेराव के मारवाड़ में शामिल हो जाने से सकी संख्या १९ रह गयी। सरदारों की संख्या में वृद्धि के बावजूद उनके बैठकों की संख्या १६ ही नियत रखी गई। बाद में बनाये गये प्रथम श्रेणी के सरदार, पहले के नियुक्त १६ सरदारों में से किसी की अनुपस्थिति पर दरबार में उपस्थित होते थे।

द्वितीय श्रेणी के सरदारों की संख्या महाराणा अमरसिंह (दूसरे) के काल में ३२ होने की वजह से  उन्हें बत्तीस कहा जाता था। लेकिन बाद में इनकी संख्या बढ़ा दी गई। कुछ द्वितीय श्रेणी के सरदारों को तीसरी श्रेणी में डाल दिया गया। कुछ नये बनाये गये तथा कुछ का पड़ोसी राज्यों में विलय हो जाने से मेवाड़ के साथ सम्बन्ध नहीं रहा।

 

मेवाड़ के प्रमुख सरदारों की नामावली
ठिकाने का नाम समकालीन महाराणाओं के नाम (राज्याभिषेक व देहान्त का काल, वि.संवत में)  सम्बद्ध सरदार का नाम जिसे ठिकाना मिला  कौम खिताब (पदवी) वर्तमान सरदार का नाम
सादड़ी    महाराणा संग्राम सिंह अव्वल (वि. १५६५-१५८४)  अज्जा  झाला राजरणा रायसिंह
बेदला    महाराणा अमर सिंह अव्वल वि. १६५३-१६७६ बल्लू  चहुनान राव कर्णसिंह
कोठारिया  महाराणा जगत सिंह अव्वल वि. १६८४- १७०९  रुक्मांगद ऐजन रावत् जवान सिंह
सलूंबर     महाराणा उदय सिंह  वि.१५९२- १६२८  कृष्णदास सीसोदिया चूड़ावत रावत् जोधासिंह
बीजोलिया     महाराणा विक्रमादित्य वि. १५८८- १५९२  अशोक पंवार राव गोविंद दास
देवगढ़      महाराणा जयसिंह ।। वि.१७३७- १७५५ द्वारिका सीसोदिया चूड़ावत रावत कृष्णा सिंह
बेगूं    महाराणा अमर सिंह अव्वल  वि.१६५३-१६७६  मेघसिंह । सीसोदिया चूड़ावत रावत  मेघासिंह ।।
देलवाड़ा  महाराणा संग्राम सिंह अव्वल वि. १५६५-१५८४  

 

 

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