राजस्थान |
मेवाड़ी चित्रकला के तकनीक प्रेरक तत्व अमितेश कुमार |
मेवाड़ में प्रारंभिक गुर्जर प्रभाव काल से ही चित्रों में नाक, आँख, ठुड्डी एवं पहनावे का साल अंकन जैन चित्रों एवं गुर्जर कला में विकसित पाते हैं। पशु, पक्षी, पेड़ पत्तियाँ, फल- फूल आदि का कलात्मक सरलीकरण, नारी चित्रों के पहनावे में चित्रण में सादगी एवं अन्य सरलीकृत आकृतियाँ तत्कालीन चित्रण परंपरा में आधुनिक रुपों एवं विरुपण को व्यक्त करती है। रंगों में भी भिन्न- भिन्न प्रकार की रंग- श्रेणियाँ एवं झाइयों का प्रयोग है। रेखा, रंग, रुप एवं संयोजन का विश्लेषणात्मक प्रयोग मेवाड़ चित्र- शैली में संतुलित ढ़ंग से किया गया है। यही मेवाड़ के परंपरागत चित्रकारों की कुशल सुझ- बुझ का प्रतीक है। चित्र- संयोजन के साथ आत्मिक सात्विकता के आधार पर श्रृंगारिक एवं रीतिकालीन राग- रागिनियों का चित्रण हुआ है, उनमें भी वही सात्विक कौमार्य भाव है, जिन्हें दर्शक- ईश्वरीय गुणों के अनुरुप मान लेता है। यह इस चित्रशैली के चित्रों की मनोवैज्ञानिक संयोजन प्रणाली की विशेषता है। परंपरागत मेवाड़ चित्रशैली में सभी प्रेरक तत्व इस चित्रशैली के कलावादी दृष्टिकोण को प्रस्तुत करते हैं।
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