राजस्थान

नाथद्वारा में साहित्य का विकास

संस्कृत साहित्य

अमितेश कुमार


 

 

नाथद्वारा संस्कृत के कई विद्वानों से जुड़ी भूमि है इनमें से कुछ की कृतियों का संक्षिप्त परिचय इस प्रकार है-

श्री हरिराय महाप्रभु

ये "नाथद्वारा के कवि' माने जाते हैं जिन्होने संस्कृत वाड़मय को कई ग्रंथ दिये। उनके द्वारा रचित यं श्लोक उनकी काव्यशक्ति व श्रीनाथ के प्रति अटूट विश्वास बतलाते हैं -

श्याम सुन्दराड़ग रत्नयुक्तपिग्ड़भूषितं,

कुंकुभाभि रक्तसार कृष्ण नाभिरुषितम्।

केकेपिच्छ चूड़का मेघचाप दूषितं,

श्रीगिरीन्द्रधारिणं ब्रजेन्द्र सूनुमाश्रमये।।

 

तरणिदुहितृतीरे मण्डले बल्लवीनां,

करकरुचिरमासां मध्यगो गीतवेषु:।

मरकतमणिकान्ति: कामितः कामिनीनां,

जयंति मधुरमूर्तिर्वल्लभेन्द्रः किशोरः।।

 

श्रीदामोदर शास्री

इन्होने ने ही नगर में सर्वप्रथम संस्कृत का प्रचार-प्रसार किया। उन्होनें "बालखेल ध्रुवचरित' नामक बच्चों का एक संस्कृत नाटक लिखा। "देववाणी' नामक व्याकरण के पुस्तिका की रचना की। इनकी विद्वता का उदाहरण निम्न श्लोक में देखा जा सकता है -

जले स्थले तथा दृश्ये अदृश्ये चापि वासकृत् ।

त्रयर्जिंस्रशद्देवतानां वंद्य: स परमेश्वरः ।।

अनन्तरुपोपि विशालमूर्तिरणोरणीयान् महतो महीयान्।

काल स्वरुपो जगतीपति: स मनोरथांस्ते परिपूरयिष्ति ।।

आलो सवर्ं शास्राणि विचार्य च पुनः पुनः ।

इदमेव सुनिष्पन्नं ध्येयो नरायणः सदा ।।

 

भारतमार्तण्ड श्री गट्टूलालजी

ये नाथद्वारा के प्रतिभावान विद्वानों में से एक थे। १३ वर्ष की अवस्था में ही उन्होने सुद्ददवरों का आकर्षण केन्द्र "रुक्मिणी चम्पू' रच डाला। २१ वर्ष की अवस्था में "वेदान्त चिंतामणि' नाम का ग्रंथ रच डाला जो वल्लभ सम्प्रदाय की एक विधि मानी जाती है। इसके अलावा उन्होनें "युद्धाद्वेैत चन्द्रोदय', मारुत्शक्ति, उपनिषद् भाष्य, भगवद्गीता टीका, सत्सिद्धान्तमार्तण्ड कृष्णा किंभसार, कृदन्त व्यूह आदि कई ग्रंथों की रचना की थी। इन्द्रप्रस्थ (दिल्ली) से शतावधान के कारण वहाँ के विद्वानों ने इन्हें "भारतमार्तण्ड' की उपाधि प्रदान की वहीं श्री गोवर्धन लालजी महाराज ने "वेदान्तभट्टाचार्य' की उपाधि से विभूषित किया। इनकी सरस रचनाओं में कुछ का उदाहरण इस प्रकार हैं -

श्रीमद्वालमुकुन्दमिन्टुवदनं वृन्दावनानन्दिनं

वन्दे सुन्दर मेकमेव न परान्निन्दामि वृन्दारकान् ।

वर्तन्नामचिरन्तनारि विषदोडनन्ता, "अनन्त तले'

मन्तुंते "गणयन्तु' नायमितरान्मूर्द्धा निनन्तुं क्षमः ।।

शक्त्या खिलागम गति: खलु पंडितः स्यात् साम्यास मेकमपि शास्रंभवाप्य शास्री ।

श्लोकार्थमात्र मतिरेव न वैदुषि स्यात्प्रायोध नैव सुलभा किल भाति सापि ।।

 

श्री श्यामशास्री

इनकी रचनाऐं गद्य व पद्य दोनों में मिलती है। अधिकतर स्फुट रचनाएँ ही देखने को मिलती है :

मृंगापान प्रमत्रोयं, मनुजो मनुते हृहादि ।

मक्षिका पाद द्यातेन, कंपितं भुवनत्रयम् ।।

 

जनो जनानात्सुखं सुप्त, कला कुशलः कर्मठः ।

मक्षिका पाद धातेन कंपितं भुवनत्रयम् ।।

 

कृष्णोडपश्यत्पयः पात्रे मुखस्थं प्रतिबिंबितम् ।

मक्षिका पाद घातेन कंपितं भुवनत्रयम् ।।

 

श्रीरविशास्री

ये भारतमार्तण्ड श्री गट्टूलालजी के शिष्य थे। इनकी भी अधिक स्फुट रचनाऐं ही देखने को मिलती है। उनकी रचना का एक उदाहरण इस प्रकार है -

एकः शैलं स्वकरशिखरे सप्तसेवत्सरीण ।

स्रातुं स्वीयान् बहति करुणापूर पीयूषपूर्णः ।।

मातु स्तन्यं धयति च परः प्रेंखपर्यंकशायी ।

द्वावष्येतौ ममहृदि सदा सन्निधताँ मुरारी ।।

 

आशुकवि श्री नंदकिशोर भ

यह श्री गट्टूलालजी के ही शिष्य थे। इन्हें गद्य-पद्य का उद्भट विद्वान तथा संस्कृत साहित्य का निष्णात पंडित माना जाता है। इस कवि राजा के सम्मुख कैसी भी कविता की शीघ्रातिशीघ्र रचना कर देना एक साधारण बात थी। इसी कारण इन्हें आशुकवि के रुप में भी जाना जाता है। इनकी श्रेष्ठ रचनाओं में से एक का उदाहरण इस प्रकार है -

घटाभि: श्यामाभिर्नव जलमुचां व्योम्भि पिहिते ।

तटे श्री कालिन्द्या: कुसुमितनिकुंजावलिष्टते ।।

श्रियां साहस्रीभि: परिचरित पार्श्व: प्रियतमा ।

समालिष्टो दोलान्तरमधिगतः क्रीड़ति हरि: ।।

 

श्री वामनाचार्य

ये व्याकरण साहित्यादि के श्रेष्ठतम् विद्वानों में से एक थे। इन्होने गद्य तथा पद्य दोनों की ही रचनाऐं की थी। इनकी रचना का एक उदाहरण इस प्रकार है।

यो विश्वं विविधं विधाय विशति स्वानसंविद्वषु-

भक्ति भक्तजने विभाव्य भवजा भीतिं विभिन्ते विभु: ।

यश्चाद्यावधि भक्त पक्षमामितः पुष्णंश्च तिष्ठन्नसा-

वुद्धाहु: परयात्रिया विजयंते श्रीनाथ नामा हरि: ।।

 

पोतकूर्चि श्रीबाल कृष्ण शास्री

ये मूलतः कोटा के निवासी थे तथा नाथद्वारा में शुद्धाद्धैत पुष्टिभार्गीय गोवर्धन संस्कृत पाठशाला के प्रधानाचार्य रहे। इनकी रचनाऐं क्लिष्ट होती थी। भाषा पर इनकी विशेष पकड़ थी। इन्होने ईशावास्योपनिषद् तथा केनोपनिषद की टीका लिखी थी। इन्होने कई कविताएँ रची। उनमें से एक का श्लोक इस प्रकार है -

ध्रुवविजय विजृम्भद्वीर्यसंरक्षितां या

निजवसतिमिव श्रीवत्सवत्सोडधि शेते ।

स्पृहयति च नवाढां दिक्करीं वोपभाक्तु

जयति भुवनभूषा सा विधुप्रेयसी पू: ।।

 

श्री शंकरलाल गौड़

ये नगर के इतिहास में चमत्कारी संत माने जाते हैं। इन्होने हिन्दी तथा संस्कृत दोनों भाषाओं में रचना की है। श्रीनाथाष्टक तथा श्रीएकलिंगाष्टक आदि इनकी संस्कृत की रचनाएँ हैं। श्री गिरिराजजी की स्तुति स्वरुप निम्न श्लोक कितना हृदयहारी है।

निराधाराधारं सकलभुवनाकार मतुलं

दयार्जिंब्धसर्वेशं परमकुशलं तारण्विधौ ।

गुणागारं सारं भवभयहरं विश्वजनकं

ब्रजेश गोपीशं गिरिवरधरं नौमिसततम् ।।

 

श्री लक्ष्मी नारायण शास्री

ये बहुश्रुत विद्वान व्याकरण, साहित्य, रमल और वेदान्त, आयुर्वेद आदि के विशिष्ट ज्ञाता थे। इनकी स्फुट रचनाओं में से एक श्लोक उदाहरण स्वरुप नीचे दिया जा रहा है।

गोवर्धनं धारयतो मुरारेर्जयन्ति लावण्यतरग्ड़ितानि ।

ग्रजाग्ड़नानां सतृषो ह्मशो यैरभीप्सितं पारणमचरन्ति ।।

 

श्रीसदानन्द झा

मूलतः ये एक मैथिल ब्राम्हण थे। इनकी विद्वता के बड़े-बड़े प्रशंसक रह चुके हैं। उनकी कई साहित्यिक कृतियाँ मिलती हैं उनमें से एक में लिखित श्लोक निम्न प्रकार है:-

सदा रासक्रीड़ावलितहृदयो दीनसदयो

भावव्धेरुद्धर्त्ता सकलजनभर्त्ता प्रभुरसौ।

मुदा वृन्दारण्ये प्रतियुवति सम्भिन्नसुतनू-

र्दधानः श्रीकृष्णो भवतु तव भव्याय सततम्।।

 

लिगृह श्रीबलभद्र भ

ये व्याकरण साहित्य एवं शुद्धाद्वेैतः वेदान्त के उत्कृष्ट विद्वान् थे। इन्होने ईशावास्योपनिषद् के ऊपर भाष्य भी लिखा है।इसके अलावा रामनवमी निर्णय तथा सुबोधिनी नामक पुस्तकें लिखी। कवि काव्य रत्नाकर श्रीभट्टजी की कई स्पुट रचनाएँ देखने को मिलती है उनमें से एक का श्लोक निम्न प्रकार है:-

अन्यत्र संश्रयजुषः स्वजनान्निजस्य

पादारविन्दमकरन्दलिहो विधाय ।

सर्वात्मनस्तदभिवृद्धिविधायिने श्री-

गोवर्द्धनोद्धरण धीर । नमोनमस्ते ।।

 

श्रीरमानाथ शास्री

ये जयपुर के मूलनिवासी मुलतः तैलंग ब्राह्मण थे। वल्लभ सम्प्रदाय के मर्म को समझाने के लिए इन्होने अनेक ग्रन्थ लिखे जिनसे सर्वसाधारण भी सम्प्रदाय का पूर्ण ज्ञान प्राप्त कर सकता है। इन्होने संस्कृत में छान्दोग्योपनिषद पर भाष्य भी लिखा। अणुभाप्य वेदान्तचिन्तामणि आदि अनेक प्राचीन ग्रन्थों का भी शोधन प्रकाशन करवाया। इनके लेखों में से प्रकाशित श्लोक इस प्रकार है:-

मुकुटलकुटीभूषावासः स्रगादि च मौक्तिक-

प्रसररचितं भूषित्वाडपि स्थितौ व निरंशुकः।

जयति परितो गन्धोशीरैर्निषिक्तगुहागृहः

सकलजगतां भाग्यं ग्रीष्मागमे दयितः श्रियाम्।।

 

श्रीपुरुषोत्तम चतुर्वेदी

इसकी रचनाएँ हिन्दी तथा संस्कृत दोनों में मिलती है। इनके द्वारा रचित संस्कृत श्लोकों में से एक श्लोक नीचे दिया जा रहा है:-

आसीदुभ्दट वादि दुर्दम महादन्तावलानां निजै-

वीचां सुप्रसरै: सुतीक्ष्णनखैरुन्मूलयन् दुर्मदम्।

आप्रालेय शिलोच्चयाम्बुधितटं स्वीयै: प्रतापैर्जग-

न्मान्यत्वं समुपागतः स भगवान् श्रीवल्लभाह्यो हरि:।।

 

श्रीमार्कण्डेय कमश्र

मुलतः मिथिला के निवासी श्रीमार्कण्डेय मिश्र न्याय व्याकरण आदि के उद्भट विद्वान थे। इनके नाम के पीछे "दरभंगा महाराजतो लब्ध सन्मानः, इन्दौर नरेशतो न्याय व्याकरण योर्लब्धोत्तम सन्मानः व्याकरणतीर्थ व्याकरणन्याय निष्णात व्याकरण विद्वान् विद्याभूषण मार्कण्डेय मिश्रः' लगता था। इनकी अनेक संस्कृत रचनाएँ हैं उनमें से निम्न श्लोक उनकी श्रीनाथजी पर अडिग आस्था का ज्वलन्त प्रमाण है:-

विधि: सिध्दे: ख्यातः प्रचुरकरणातत्समुदयन्,

यदीयोह्मक्पातः सुखयति सुजातः सुजनताम्।

तपान्तोद्यत्पाथो घटरुचि सनाथोडतिरुचिरः

स देवः श्रीनाथो विमलगुणगाथो विजयताम्।।

 

श्रीरामचन्द्र मिश्र

इन्होने संस्कृत में कई सुन्दर स्फुट रचनाएँ की हैं उनमें से नीचे दिया हुआ एक श्लोक अत्यन्त ही पठनीय है:-

वृन्दारण्य विहारिहारि हरिणी शावाम्वका गोपिका

गन्त्रयः सन्ति सहस्रशो रसपरा रासोत्सवे सत्वरा:

गोपीनाथ विहार भूमि पटवी गच्छाधुनामुन्मना:

श्रुत्वैतद्विहसन्यन्हततमा रासप्रियो वोडवतात्।

 

श्रीगिरिधारीलाल शास्री

इनकी हिन्दी और संस्कृत में अनेक रचनाएँ हैं उनमें से एक श्लोक नीचे दिया जा रहा है:-

श्यामां गोरोचनाभां स्फुरदसितपटां सूक्ष्मवस्रावगुण्ठां

रम्भां वेणीं दधानां सुचिकुरनिकर स्पृष्ट पादां प्रसन्नाम्।

तर्जन्यग्ड़ पुष्ठतो वै निजदयितमुखे भुज्जते वीटिको श्री-

राधां संप्रेक्षमाणः प्रहसित वदनः पातुवः श्रीरमेशः।।

 

श्रीदामोदर शास्री

ये व्याकरण साहित्य वेदान्त आदि के तलस्पर्शी विद्वान् थे। इनकी कई स्फुट रचनाएँ हैं। उनमें से निम्न श्लोक देखिये:-

श्रीनाथांघ्रि सरोरुहस्य मधुपः सन्मार्ग पुड्मानसे

विद्यावैभवमासुरान् द्विजवरान् वित्तेनयस्तोषयन्।

भव्यान् भावुकमानवान् सदयया दृष्ट्या ससंभावयन्

जीव्याद् वर्षशतं गुणैक निलयो गोविन्दलालः प्रभु:।।

 

श्री आनन्दीलाल शास्री

इन्होने रामनवमी पर शास्रार्थ तथा अन्नमूटोत्सव पर एक पुस्तिका लिखी है। इनकी निम्न संस्कृत रचना देखिए:-

सत्यं ज्ञानमनन्तयेवमखिलैर्वाक्यैर्हि वेदोदितै:

शक्यं वर्णयितुं न यच्छमदमोपैतैश्च नासादितम्।

श्रीमद्वल्लभ सेवितं ब्रजवधूवश्यं परप्रेमतो

लभ्पं तत्किमपि स्तुमो ब्रजपतेरड्के स्थितं सन्महः।।

 

श्री कृष्णचन्द्र शास्री

ये सार्वजनिक संस्थाएँ साहित्य मंडल तथा राष्ट्रीय विद्यापीठ आदि के स्थापन में आप ही अग्रगण्य रहे हैं। ये हिन्दी तथा संस्कृत के उद्भट विद्वान एवं आशुकवि हैं:-

नित्यं यो ब्रजवासिनां निवसतौ मुष्णति हैयंगवं

राधायासततं च यः पदतलं संराजते दीनवत्।

धेनूनां निकरं सदैव विपिने यश्चारयन् दृश्यते

मिथ्याद्यैव वदन्ति कुत्सितधियः केनापि नालोक्यते।।

 

श्री नारायणलाल त्रिपाठी

ये ज्योतिष एवं वैद्यक शास्र के श्रेष्ठ विद्वान हैं। इन्होने संस्कृत वाग्ड़मय में अधिकतर स्फुट रचनाएँ की हैं जिनका एक उदाहरण इस प्रकार है:-

यातोडनेहा स यस्मिश्चिर तदमुषितं सज्जनै: सप्रमोदं

तस्यै वेदं करालं स्फुरति बहुतरं साम्प्रतं रुपमुग्रम्।

नाना वाक्य प्रबन्धैस्तदिह रुचिकरैवर्ंचयभ्दिर्विमूढान्

गोपाय प्रशस्त दनुजमति निभैर्दूषितं वेदमार्गम्।।

 

श्री रामेश्वरदयाल शास्री

ये व्याकरणाचार्य, वल्लभवेदान्ताचार्य, आयुर्वेद विशारद तथा साहित्य सुधाकर हैं। इनकी अधिकतर रचनाएँ भगवद् विषयक संस्कृत की स्फुट रचनाएँ ही हैं। श्रीनाथ दर्शनाष्टकम् में से आठों दर्शन पर बनाया निम्न श्लोक कितना पठितव्य है:-

प्रातर्मग्ड़लमग्ड़लाकृतितनुं श्रृंगार सोख्यप्रदं

गोपालेसुतगोसुखं च धनदं श्रीराज भोगप्रियम्।

अहृयुत्थापन भोगयो: सदनदं स्वारार्तिके कीर्तिदम्

श्रीशं स्तौम्यपवर्गदं हि शयने चक्रं च सर्वार्थदम्।।

 

श्री नंदलाल शास्री

ये संस्कृत के अच्छे विद्वान, उपदेशक तथा शुद्धाद्वेैत पुष्टिमार्गीय पाठशाला के मुख्याध्यापक हैं। इनकी रचना का एक उदाहरण देखिये:-

मातर्यासि कथं स्वयं विमथितुं सुस्वादुमथ्यं दधि

मा याहीति वदन् रुदःँश्वपदतः संमर्दयन् भूतलम्।

गच्छन्तीमनुगम्य मन्थनगतो नेत्रं समाकर्षयन्

गोविन्दं ससुतं सदा हृवतु सः गोपालबालो हरि:।।

 

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