राजस्थान |
नाथद्वारा में साहित्य का विकास संस्कृत साहित्य अमितेश कुमार |
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नाथद्वारा संस्कृत के कई विद्वानों से जुड़ी भूमि है इनमें से कुछ की कृतियों का संक्षिप्त परिचय इस प्रकार है- श्री हरिराय महाप्रभु ये "नाथद्वारा के कवि' माने जाते हैं जिन्होने संस्कृत वाड़मय को कई ग्रंथ दिये। उनके द्वारा रचित यं श्लोक उनकी काव्यशक्ति व श्रीनाथ के प्रति अटूट विश्वास बतलाते हैं -
श्रीदामोदर शास्री इन्होने ने ही नगर में सर्वप्रथम संस्कृत का प्रचार-प्रसार किया। उन्होनें "बालखेल ध्रुवचरित' नामक बच्चों का एक संस्कृत नाटक लिखा। "देववाणी' नामक व्याकरण के पुस्तिका की रचना की। इनकी विद्वता का उदाहरण निम्न श्लोक में देखा जा सकता है -
भारतमार्तण्ड श्री गट्टूलालजी ये नाथद्वारा के प्रतिभावान विद्वानों में से एक थे। १३ वर्ष की अवस्था में ही उन्होने सुद्ददवरों का आकर्षण केन्द्र "रुक्मिणी चम्पू' रच डाला। २१ वर्ष की अवस्था में "वेदान्त चिंतामणि' नाम का ग्रंथ रच डाला जो वल्लभ सम्प्रदाय की एक विधि मानी जाती है। इसके अलावा उन्होनें "युद्धाद्वेैत चन्द्रोदय', मारुत्शक्ति, उपनिषद् भाष्य, भगवद्गीता टीका, सत्सिद्धान्तमार्तण्ड कृष्णा किंभसार, कृदन्त व्यूह आदि कई ग्रंथों की रचना की थी। इन्द्रप्रस्थ (दिल्ली) से शतावधान के कारण वहाँ के विद्वानों ने इन्हें "भारतमार्तण्ड' की उपाधि प्रदान की वहीं श्री गोवर्धन लालजी महाराज ने "वेदान्तभट्टाचार्य' की उपाधि से विभूषित किया। इनकी सरस रचनाओं में कुछ का उदाहरण इस प्रकार हैं -
शक्त्या खिलागम गति: खलु पंडितः स्यात् साम्यास मेकमपि शास्रंभवाप्य शास्री । श्लोकार्थमात्र मतिरेव न वैदुषि स्यात्प्रायोध नैव सुलभा किल भाति सापि ।।
श्री श्यामशास्री इनकी रचनाऐं गद्य व पद्य दोनों में मिलती है। अधिकतर स्फुट रचनाएँ ही देखने को मिलती है :
श्रीरविशास्री ये भारतमार्तण्ड श्री गट्टूलालजी के शिष्य थे। इनकी भी अधिक स्फुट रचनाऐं ही देखने को मिलती है। उनकी रचना का एक उदाहरण इस प्रकार है -
आशुकवि श्री नंदकिशोर भ यह श्री गट्टूलालजी के ही शिष्य थे। इन्हें गद्य-पद्य का उद्भट विद्वान तथा संस्कृत साहित्य का निष्णात पंडित माना जाता है। इस कवि राजा के सम्मुख कैसी भी कविता की शीघ्रातिशीघ्र रचना कर देना एक साधारण बात थी। इसी कारण इन्हें आशुकवि के रुप में भी जाना जाता है। इनकी श्रेष्ठ रचनाओं में से एक का उदाहरण इस प्रकार है -
श्री वामनाचार्य ये व्याकरण साहित्यादि के श्रेष्ठतम् विद्वानों में से एक थे। इन्होने गद्य तथा पद्य दोनों की ही रचनाऐं की थी। इनकी रचना का एक उदाहरण इस प्रकार है।
पोतकूर्चि श्रीबाल कृष्ण शास्री ये मूलतः कोटा के निवासी थे तथा नाथद्वारा में शुद्धाद्धैत पुष्टिभार्गीय गोवर्धन संस्कृत पाठशाला के प्रधानाचार्य रहे। इनकी रचनाऐं क्लिष्ट होती थी। भाषा पर इनकी विशेष पकड़ थी। इन्होने ईशावास्योपनिषद् तथा केनोपनिषद की टीका लिखी थी। इन्होने कई कविताएँ रची। उनमें से एक का श्लोक इस प्रकार है -
श्री शंकरलाल गौड़ ये नगर के इतिहास में चमत्कारी संत माने जाते हैं। इन्होने हिन्दी तथा संस्कृत दोनों भाषाओं में रचना की है। श्रीनाथाष्टक तथा श्रीएकलिंगाष्टक आदि इनकी संस्कृत की रचनाएँ हैं। श्री गिरिराजजी की स्तुति स्वरुप निम्न श्लोक कितना हृदयहारी है।
श्री लक्ष्मी नारायण शास्री ये बहुश्रुत विद्वान व्याकरण, साहित्य, रमल और वेदान्त, आयुर्वेद आदि के विशिष्ट ज्ञाता थे। इनकी स्फुट रचनाओं में से एक श्लोक उदाहरण स्वरुप नीचे दिया जा रहा है।
श्रीसदानन्द झा मूलतः ये एक मैथिल ब्राम्हण थे। इनकी विद्वता के बड़े-बड़े प्रशंसक रह चुके हैं। उनकी कई साहित्यिक कृतियाँ मिलती हैं उनमें से एक में लिखित श्लोक निम्न प्रकार है:-
लिगृह श्रीबलभद्र भ ये व्याकरण साहित्य एवं शुद्धाद्वेैतः वेदान्त के उत्कृष्ट विद्वान् थे। इन्होने ईशावास्योपनिषद् के ऊपर भाष्य भी लिखा है।इसके अलावा रामनवमी निर्णय तथा सुबोधिनी नामक पुस्तकें लिखी। कवि काव्य रत्नाकर श्रीभट्टजी की कई स्पुट रचनाएँ देखने को मिलती है उनमें से एक का श्लोक निम्न प्रकार है:-
श्रीरमानाथ शास्री ये जयपुर के मूलनिवासी मुलतः तैलंग ब्राह्मण थे। वल्लभ सम्प्रदाय के मर्म को समझाने के लिए इन्होने अनेक ग्रन्थ लिखे जिनसे सर्वसाधारण भी सम्प्रदाय का पूर्ण ज्ञान प्राप्त कर सकता है। इन्होने संस्कृत में छान्दोग्योपनिषद पर भाष्य भी लिखा। अणुभाप्य वेदान्तचिन्तामणि आदि अनेक प्राचीन ग्रन्थों का भी शोधन प्रकाशन करवाया। इनके लेखों में से प्रकाशित श्लोक इस प्रकार है:-
श्रीपुरुषोत्तम चतुर्वेदी इसकी रचनाएँ हिन्दी तथा संस्कृत दोनों में मिलती है। इनके द्वारा रचित संस्कृत श्लोकों में से एक श्लोक नीचे दिया जा रहा है:-
श्रीमार्कण्डेय कमश्र मुलतः मिथिला के निवासी श्रीमार्कण्डेय मिश्र न्याय व्याकरण आदि के उद्भट विद्वान थे। इनके नाम के पीछे "दरभंगा महाराजतो लब्ध सन्मानः, इन्दौर नरेशतो न्याय व्याकरण योर्लब्धोत्तम सन्मानः व्याकरणतीर्थ व्याकरणन्याय निष्णात व्याकरण विद्वान् विद्याभूषण मार्कण्डेय मिश्रः' लगता था। इनकी अनेक संस्कृत रचनाएँ हैं उनमें से निम्न श्लोक उनकी श्रीनाथजी पर अडिग आस्था का ज्वलन्त प्रमाण है:-
श्रीरामचन्द्र मिश्र इन्होने संस्कृत में कई सुन्दर स्फुट रचनाएँ की हैं उनमें से नीचे दिया हुआ एक श्लोक अत्यन्त ही पठनीय है:-
श्रीगिरिधारीलाल शास्री इनकी हिन्दी और संस्कृत में अनेक रचनाएँ हैं उनमें से एक श्लोक नीचे दिया जा रहा है:-
श्रीदामोदर शास्री ये व्याकरण साहित्य वेदान्त आदि के तलस्पर्शी विद्वान् थे। इनकी कई स्फुट रचनाएँ हैं। उनमें से निम्न श्लोक देखिये:-
श्री आनन्दीलाल शास्री इन्होने रामनवमी पर शास्रार्थ तथा अन्नमूटोत्सव पर एक पुस्तिका लिखी है। इनकी निम्न संस्कृत रचना देखिए:-
श्री कृष्णचन्द्र शास्री ये सार्वजनिक संस्थाएँ साहित्य मंडल तथा राष्ट्रीय विद्यापीठ आदि के स्थापन में आप ही अग्रगण्य रहे हैं। ये हिन्दी तथा संस्कृत के उद्भट विद्वान एवं आशुकवि हैं:-
श्री नारायणलाल त्रिपाठी ये ज्योतिष एवं वैद्यक शास्र के श्रेष्ठ विद्वान हैं। इन्होने संस्कृत वाग्ड़मय में अधिकतर स्फुट रचनाएँ की हैं जिनका एक उदाहरण इस प्रकार है:-
श्री रामेश्वरदयाल शास्री ये व्याकरणाचार्य, वल्लभवेदान्ताचार्य, आयुर्वेद विशारद तथा साहित्य सुधाकर हैं। इनकी अधिकतर रचनाएँ भगवद् विषयक संस्कृत की स्फुट रचनाएँ ही हैं। श्रीनाथ दर्शनाष्टकम् में से आठों दर्शन पर बनाया निम्न श्लोक कितना पठितव्य है:-
श्री नंदलाल शास्री ये संस्कृत के अच्छे विद्वान, उपदेशक तथा शुद्धाद्वेैत पुष्टिमार्गीय पाठशाला के मुख्याध्यापक हैं। इनकी रचना का एक उदाहरण देखिये:-
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