राजस्थान |
नाथद्वारा में साहित्य का विकास श्रीनाथद्वारा के कविर्मनीषी अमितेश कुमार |
यह तो सर्वविदित है कि ब्रज प्रदेश से ही ब्रजचन्द श्रीनाथ जी का इस मेद पाट धाम में पदापंण हुआ अतः साथ में अपने वाले आचार्य महानुभाव एवं सेवक वर्ग की मातृभाषा ब्रज ही रही। श्रीनाथजी के कीर्तन में गाये जाने वाले पदों की भाषा भी ब्रज ही है जिन्हें अष्टेछाप के कवियों ने अपनी प्रज्ञा एवं भक्ति के पारस्परिक सहयोग से संवारा है। इसलिए नाथद्वारा मे सर्वप्रथम ब्रजभाषा का ही प्रादुर्भाव माना जाता है। श्रीनाथजी संबंधी सारा साहित्य ब्रजभाषा की धरोहर होते हुए भी हिन्दी के भंडार की अमूल्य निधि है। किन्तु मेवाड़ में आने से स्थानीय ब्रजभाषा में मेवाड़ी का मिश्रण होने लग गया और आज हम देखते हैं कि मन्दिर से संबंधित सेवक वर्ग ब्रजभाषा और अन्य नागरिकगण मेवाड़ी भाषा में वार्तालाप करते हैं इस प्रकार विशुद्ध ब्रजभाषा का यहाँ दिनोंदिन अभाव होता जा रहा है। नगर निर्माण से अद्यावधि जो कुछ साहित्य हमें दृष्टिगोचर हुआ है वह अधिकांश ब्रजभाषा में ही मिला है। उसके बाद आधुनिक समय में खड़ी बोली दिखाई देने लगी। नाथद्वारा में साहित्य सरिता अवाध गति से बहती रही और अनेकानेक कविकमल तथा गद्यकार नाथद्वारा की वसुन्धरा पर अवतरित होते रहे। नगर की साहित्यिक संपन्नता से ही प्रभावित होकर अनेकों विद्वानों ने इस सरस्वती पीठ की यात्रा की। आचार्य श्रीगोवर्धनलालजी महाराज के राज्यकाल में संपूर्ण भारत के साहित्यिक क्षेत्रान्तर्गत डंका बजाने वाले भी नाथद्वारा के ही साहित्य प्रेमी हुए जिन्होने गद्य पद्य और अपने अभिभाषणों द्वारा बड़े बड़े कवि चक्रवर्तियों को चकित कर दिया। दयानन्द सरस्वती ने जब अखिल भारत की एक ही राष्ट्रभाषा हिन्दी बनाने की बीड़ा उठाया तब राजस्थान में सबसे पहिले हिन्दी की पाक्षिक पत्रिका स्थानीय सुदर्शन यंत्रालय में मुद्रित होने लगी। उस समय उचित कारिणी सभा में आये दिन हिन्दी कविताओं की मादक बहारें लहाया करती थीं जिसकी सुरभि पाकर सारा मेवाड़ सुवासित हो जाता था। प्रसन्न होकर हिन्दी के जनक भारतेन्दु बाबू हरिशचन्द्र काशी छोड़ हमारे नगर नाथद्वारा में आकर निवास करने लगे। उनके पधारने से यहाँ की पाक्षिक पत्रिका "विद्यार्थी सम्मिलित हरिश्चन्द्र चन्द्रिका मोहन चन्द्रिका' को काफी बल मिला। कई कवि लोग भारतेन्दु बाबू से प्रश्रय और प्रेरणा पा साहित्य के प्रगति पथ पर सतारुढ़ होने लगे। सुहृदवर भारतेन्दु बाबू स्वयं श्रीनाथजी के परम भक्त, श्रेष्ठकवि एवं रसिक शिरामणि थे। शुक्ला ४ विक्रम संवत् १८३९ को स्थानीय उचित कारिणी सभा में पूज्यपाद श्रीगोवर्धन लालजी महाराज के नेतृतव में भारतेन्दु बाबू को अध्यच पद दिया गया। नगर साहित्य के इतिहास में वह दिन सर्वाधिक गौरवपूर्ण माना गया। भारतेन्दू जी के कुछ समय गाद काशी में हिन्दू विश्वविद्यालय के संस्थापक भक्त प्रवर महामना श्रीमदनमोहन मालवीय का नाथद्वारा आगमन हुआ और वे स्वयं भी नगर की साहित्यिक छटा से प्रवाहित होकर साहित्यकारों के मध्य बैठने उठने लगे। उन्हीं दिनों श्री मालवीयजी का बनाया निम्न सोरठा आज भी नाथद्वारा के घर-घर में चर्चित है:-
यहाँ के कवियों ने अपनी साहित्य सृजन क्षमता के आधार पर अनेक राजकीय सम्मान प्राप्त किये। नगर में कुछ कवि तो इतने प्रतिभावान् हुए कि जिनके पद आज दिन तक भगवान श्रीनाथजी के साथ समस्त भारत के वल्लभ साम्प्रदायिक मन्दिरों में गाये जाते हैं। पद्य साहित्य में अपना योगदान देने वाले यहाँ के कुछ प्रमुख कवियों का उल्लेख इस प्रकार है:- श्री हरिराय महाप्रभु:- इनका प्राकट्य पुनः श्रीगुसाईंजी के रुप में ही माना गया है। इन्होने वेदात्मक, भावात्मक, सैद्धान्तिक तथा प्रार्थनात्मक आदि छोटे मोटे कुल मिलाकर सात सौ ग्रन्थ लिखे हैं। इनके द्वारा लिखा हुआ "शिक्षा पत्र' बड़ा ही हृदयस्पर्शी है। आज भी लाखों वैष्णव जिसे बड़े आदर के साथ पढ़ते हैं। श्रीकृष्ण लीलाओं पर इनके द्वारा रचित अनके पद समस्त भारत के वल्लभ सांप्रदायिक मंदिरों में गाये जाते हैं। वे पदों में अपने नामों की छाप "रसिक प्रीतम' लगाते थे अतः हिन्दी साहित्य में अधिकतर इनकी रचनाएँ इसी नाम से प्रख्यात हैं, उनमें से एक पद देखिये:-
श्री विष्णुदास श्रीमाली :- इनका मुख्य नाम छबीलचन्द श्रीमाली था। श्रीदाऊजी महाराज ने जब खेड़ा देवी को वैष्णवी बनाया उस समय इन्हें भी वैष्णव घर्म से दीक्षित किया गया। तदवसर पर ही आचार्यश्री ने इनका मुख्य नाम हटाकर विष्णुदास रक्खा। इन्होंने दोहों में श्रीनाथजी की बारहखड़ी लिखी जो आज दिन पर्यन्त इनके वंशज मंगला दर्शन पूर्व प्रभातियों में दोहराते हैं। इस बारहखड़ी में इन्होने जगदम्बा की प्रारम्भिक दोहों में स्तुति कर श्रीकृष्ण का अमर गुणगान किया है। एक उदाहरण देखिये:-
श्रीअजब कुँवर बाइ :- ये मेवाड़ के महाराणा श्रीराजसिंहजी की पुत्री थी। इनका जन्म इतिहास प्रसिद्ध वीरंगना महारानी चारुमती के गर्भ से हूआ था। श्री गोस्वामीजी महाराज से दीक्षा प्राप्त कर ये श्रीनाथजी की भक्त हो गई थीं। श्रीनाथजी को मेवाड़ पधारने में इनका सर्वाधिक अनुरोध रहा। कई दिनों तक ये यहाँ रहीं और श्रीनाथजी के दर्शन कर काव्य सर्जन करती रहीं। इन्होने श्रीनाथजी के आठों दर्शन और मेवाड़ पधारने के कई काव्य लिखे हैं। उनमें से एक उदाहरण देखिये:-
श्रीगोवर्धनेशजी महाराज :- ये आचार्य श्रीविट्ठलेशरायजी के सुपुत्र तथा नाथद्वारा के नवम तिलकायित थे। ये अद्वितीय विद्वान्, सरस साहित्यकार एवं अनूठे कवि थे। इन्होने श्रीकृष्ण की लीलाओं पर अनेक पद लिखे हैं, जो आज भी भारतवर्ष के वल्लभ सांप्रदायिक मन्दिरों में छप्पन भोग आदि उत्सवों पर गाये जाते हैं। उन्हीं फुटकर पदों में से एक पद इस प्रकार है:-
श्रीबेनीमाधव "प्रवीण ':- इन्होने "द्वारिकाधीश विचित्र विलास' तथा "श्रृँगार चन्द्रिका' नामक काव्य लिखे। उनके द्वारा सप्त स्वरुपोत्सव पर बनाये गये स्फुट कवित्तों में से एक उदाहरण देखिये:-
श्रीदेविका बेटी जी :- इन्होने गुजराती में कई धोल तथा हिन्दी में कई गीतों को लिखा। इनकी रचनाएँ अधिकतर भक्ति रस परिपूर्ण हुआ करती थीं। ब्रजभाषा में लिखे इनके कई गीत प्रकाशित भी हो चुके हैं।उन्हीं में से एक उदाहरण देखिये:-
श्रीदामोदर शास्री :- इन्होने "वि. सं. हरिश्चन्द्र चन्द्रिका' नामक मोहन चन्द्रिका पत्रिका का प्रकाशन किया तथा नाथद्वारा नगर प्रशासन का सारा कार्य-भार संभाला। इनकी गद्य की रचनाओं के बीच बीच में लिखे दोहे काव्यात्मकता को प्रकट करते हैं। "ध्रुवचरित' में से ऐसा ही एक दोहा यहाँ दिया गया है:-
भारत मार्तण्ड श्रीगट्टूलालजी :- प्रथित यश भारत मार्तण्ड श्रीगट्टू लालजी की विद्वता की तुलना के विद्वान संयोग से मिलते हैं। दोनों आँखों से अंधा होने के बाबजुद उनकी ज्ञान दृष्टि चमत्कारी थी। संस्कृत के प्रकाण्ड पण्डित होकर भी भारतेन्दुजी के प्रभाव से ये हिन्दी में भी फुटकर रचनाएँ किया करते थे ऐसी ही एक रचना का उदाहरण दखिये:-
रेही श्री गोपाल लाल भ "गोप' :- ये अपनी हिन्दी कविताएँ "गोप' कवि के नाम से लिखते थे। इन्होने "रस-चूड़ामणि' नामक वैद्यक ग्रन्थ लिखा और "भगवद्गीता ज्ञान मंजरी' का पद्यानुवाद किया। श्रीमद्वल्लभाचार्य के प्रकाट्य पर बनाया इनका निम्न सवेया देखिये:-
रेही श्री त्रिविक्रमलाल भ "टीकम' :- इनके द्वारा रचित "कविता कुसुमाँजली' में विविध ॠतुओं पर रची हुई कविताएँ अत्यन्त ही हृदयहारिणी हैं। उनमें से ग्रीष्म वर्णन देखिये:-
श्री कृष्णदास सना :- इन्होने "भणत-कमान" के नाम का पुट देकर कवितों की रचना की है। इनके लिखे ग्रंथ "सभा बत्तीसी', "रुजगार पच्चीसी' और "कलामाष्टक' हैं। उन्हीं में से कुछ दोहे इस तरह के मिलते हैं-
श्री केशवजी पालीवाल :- इन्होने सत्यनारायण की सारी कथा का पद्यानुवाद किया है और कई फुटकर कवित्त लिखे। सत्यनारायण कथा का एक उदाहरण देखिये:-
श्री शंकरलाल गौड़ :- आप संस्कृत और हिंदी के अच्छे कवि थे। उनकी एक रचना का उदाहरण देखिये:-
श्री एकलिंग उस्ताद :- इनकी रचनाओं में ब्रजभाषा के साथ मेवाड़ी भाषा का मिश्रण दिखलाई पड़ता है। रचनाएँ अधिकांश फुटकर कविताओं में हैं, एक उदाहरण दिया जा रहा है-
श्री घनश्याम सना :- घनश्याम सागर इनका श्रेष्ठ काव्यग्रंथ है। इसके अलावा चंद्रकुमार खेल, लावनियां, गरबा और घूमर आदि की रचनाएँ भी इन्होंने की। नाथद्वारा तथा श्रीनाथजी में अटूट विश्वास रखने वाले इस कवि प्रवर की रचना एक से एक उत्कृष्ट है। एक उदाहरण देखिये:-
श्री भद्वल्लभाचार्य महिमा पर इनका एक कवित्त देखिये:-
श्री जमनादास दर्जी :- इनकी रचनाएँ अधिकांश सवैया तथा कवित्तों में ही मिलती हैं।
श्री मोहनलाल भाटिया :- इन्होने कई सवैयों की रचना की है। ऐसी ही एक रचना का एक उदाहरण यह है:-
श्री मट्टू लाल सना :- सर्वप्रथम नाथद्वारा में पाठशाला प्रारंभ करने वाले ये अच्छे पंडित थे। साथ ही हिन्दी के कुशल कवि भी थे। इन्होने नाथद्वारा के सभी दर्शनीय स्थानों का सुरुचि पूर्ण कविता बद्ध वर्णन किया है। लालबाग मार्ग में खड़े गणेश जी का वर्णन देखिये:-
श्री लक्ष्मण लोधा :- "लखनेश' नाम से कविता लिखने वाले इस लब्ध प्रतिष्ठित कवि की कविता में एक तरु जीवन के जहरीले अनुभवों का परिचय है तो दूसरी ओर सरस श्रृंगार तथा वैराग्य की कालिंदी प्रवाहित हो रही है। "वैराग्य शतक', "कड़कती बिजली' और "गरजता धन' इनकी सुन्दर रचनाएँ है। इनकी रचना का एक उदाहरण देखिये:-
रेही श्रीगोकुलेश भ :- फुटकर कविताओं के साथ इन्होने मेवाड़ी भाषा में भी रचनाएँ की। कविता का एक उदाहरण देखिये:-
श्री कृष्णचन्द्र बागरोदी :- ये वल्लभ संप्रदाय के अच्छे जानकार हैं इसके साथ ही साथ हिन्दी तथा संस्कृत के श्रेष्ठ कवि भी। इन्होने "नाथद्वारा का इतिहास', "सुदर्शन चक्रराज स्तुति', "श्रीमद्वल्लभाचार्य चरित', "अन्नकूट महोत्सव महत्ता' आदि अनेक पुस्तके लिखी है। नाथद्वारा के समस्त कवियों का संकलन, "साहित्य रसाल' भी इन्होने ही प्रकाशित करवाया। इनकी रचना का एक उदाहरण देखिये:-
श्रीकृष्ण सना :- इन्होने हिन्दी तथा आयुर्वेद के अनेक ग्रन्थ लिखे हैं। "सती-अनुसुया' खण्ड काव्य इनकी काव्य प्रतिभा का ज्वलंत उदाहरण है। इनकी कविता देखिये:-
श्री गिरिधारीलाल शास्री :- ये संस्कृत के श्रेष्ठ विद्वान होने के साथ-साथ हिन्दी में बड़ी सरस रचनाएँ करते हैं। इनकी रचनाओं में से एक का उदाहरण दिया जा रहा है:-
श्री कज्जूलाल शास्री :- इनकी रचनाएँ हिन्दी गद्य तथा पद्य दोनों में ही मिलती है। श्रीचारभुजानाथ पर इन्होने कविताबद्ध सारी कथा ही लिख डाली। इनकी कविताओं का एक उदाहरण देखिये:-
श्री गौरीशंकर औदीच्य :- ये सरस पाठक, सफल गद्य पद्यकार एवं हिन्दी के अच्छे प्रचारक हैं। "परशुरामयात्रा' इनकी अत्युत्तम कृति है। कविताएँ अधिकतर स्फुट होती है। इनकी रचना का एक उदाहरण दिया जा रहा है:-
श्री बलदेव बागरोदी "सत्य': - इस हिन्दी प्रेमी कवि ने "श्रीनाथ जी की चिन्ह भावना', "सात स्वरुप भावना' तथा "पुष्टि रसाल आदि अनेक ग्रंथों का लेखन किया । इनकी कविता का एक उदाहरण इस प्रकार है।
श्री पुरुषोत्तम तैलंग "विद्याभूषण' :- ये कई भाषाओं के विद्वान तथा सिद्व हस्त लेखक थे। इन्होने बंगला की "मायेर कृपा' और उर्दू में "बिहारी-सतसई' का अनुवाद किया। इनकी कविताएँ फुटकर ही हुआ करती थीं जिसका एक उदाहरण देखिये:-
श्री बालमुकुन्द वैद्य :- बाल्यकाल से ही इनको कविता के प्रति रुचि थी अतः नगर में "बाल कवि' के नाम से विख्यात हुए। इन्होने अधिकतर फुटकर रचनाओं को ही लिखा है। "कुसुमांजली' में प्रकाशित इनकी एक रचना देखिये:-
श्री नारायण दास प्रोफेसर :- इन्हें यदि राजस्थान का "गोगा-पाशा' कहा जाय तो कोई अत्युक्ति नहीं है। "सुखी वेबारी बातां', "शिवरात्रि', "दशहरा' आदि इनके प्रकाशित ग्रन्थ हैं। काव्य में अधिकांश रचनाएँ फुटकर हैं उनमें से एक उदाहरण देखिये:-
करम्भा श्री मुरलीधर उपाध्याय :- ये हिन्दी गद्य, पद्य दोनो में रचना करते हैं। इनकी रचना का एक उदाहरण देखिये:-
सुगन्धी श्री पन्नालाल सनाढ्य:- इनकी रचनाओं में "श्रीनाथजी मन्दिर की झाँकी' नामक पुस्तक प्रमुख है। "कबूतरों की उड़ान' पर इनका एक कवित्त देखिए:-
श्री चन्द्रशेखर शास्री :- इन्होने अधिकतर ब्रजभाषा में फुटकर रचना किया है। इनकी रचना सजीव होती है ऐसी ही एक रचना का उदाहरण देखिए:-
श्री घनश्याम "शलभ' :- ये छायावादी कवि हैं तथा "विजया', "चित्ररेखा' आदि पुस्तकों के रचयिता हैं। इनकी कविता का एक उदाहरण नीचे दिया जा रहा है:-
श्री रतनलाल सनाढ्य "रत्नेश' :- इनके द्वारा लिखित "सर्वोत्तम स्तोत्र" पद्यानुवाद, रत्नावली दोहे की कुण्डलियाँ प्रमुख हैं। इनकी रचना का प्रधान रस शांत है। इनकी कविता का एक उदाहरण देखिए:-
श्रीमनोहर कोठारी :- "मनहर' कवि के नाम से साहित्य मंडल में काव्य धारा बहाने वाले कवि ये ही हैं। नवोन्मेष के प्रतिभासम्पन्न इस कवि में काव्य रस देखते ही बनता है। इनके द्वारा रचित "शब्द वेध' एक ऐतिहासिक नाटक है। "तुलसीदास' इनका श्रेष्ठतम खण्डकाव्य है उसी की कुछ पंक्तियाँ इस प्रकार है:-
श्री श्यामराय भटनागर :- इनकी कविताओं में समाज का सही दर्शन हो रहा है। एक उदाहरण देखिये:-
श्री रजनीकांत व्यास :- श्रोतां इस कवि की कविता वुन मंत्र मुग्ध से हो जाते हैं। इनकी रचना का उदाहरण देखिये:-
श्री तिलकेश शर्मा :- इनकी कविताओं मे जीवन का कड़वा घूँट और परिस्थितियों का विचित्र विलास दिखलाई पड़ता है। श्री पुरुषोत्तम भ :- ये पद्य एवं गद्य दोनों में रचना करते हैं। इनकी रचना का एक उदाहरण देखिये:-
श्री गंगाधर शास्री :- इनकी रचनाएँ अत्यन्त ही सुमधुर एवं प्रभावोत्पादक होती है। इनकी कविता का एक उदाहरण देखिये:-
श्री आनन्दीलाल गोरवा :- इन्होने कई फुटकर कवित्त लिखे हैं उनमें से एक उदाहरण देखिये:-
श्री नंदलाल दया "अपूर्ण' :- ये खड़ी बोली, राजस्थानी तथा ब्रजभाषा में लिखते रहे हैं। "स्वतंत्रता संग्राम के सेनानी' तथा "पैसा' इन्हीं के लिखे खण्डकाव्य हैं। "सम्बोधन' नामक इनकी कविता का एक अंश देखिये:-
श्री सज्जन कुमार पालीवाल :- "सज्जन नेहरु', "पत्नी में परमेश्वर' तथा "बापू' आदि इनकी काव्य रचनाएँ हैं। "बापू' काव्य का एक अंश देखिये:-
श्री नवनीत कुमार पालीवाल :- इन्होने "यह देश है वीर जवानों का' नामक नाटक लिखा। सुमधुर राग के इस कवि की रचना का एक उदाहरण देखिये:-
श्री भूरालाल "अमिताभ' :- "पंचवटी' "रामवनवास' आदि इनके खंडकाव्य हैं। इसके अलावा इन्होने नई धारा की अनेक कविताएँ लिखी हैं। ऐसी ही एक कविता का अंश नीचे दिया जा रहा है:-
श्री रघुनाथ "चित्रेश' :- "हल्दीघाटी' खण्डकाव्य के साथ-साथ इन्होने कई फुटकर कविताएँ भी लिखी है। इनके द्वारा रचित "आँसू' कविता का उदाहरण देखिये:-
रेही श्री ब्रजेन्द्र भ :- श्री रेही अच्छे कवि, सफल संपादक तथा जोशीले लेखक हैं। नवीन धारा के इस कवि ने कविता में भी अकविता को लाकर खड़ा कर दिया है। इनकी रचना का एक उदाहरण देखिए:-
श्री देवकृष्ण सना :- "कवि', "हल्दी घाटी', "ललकार' तथा "काश्मीर हमारा है' इनकी सुन्दर रचनाएँ हैं। इनकी कविता का एक अंश देखिए:-
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