राजस्थान |
नाथद्वारा में साहित्य का विकास नाथद्वारा के गद्यकार अमितेश कुमार |
हरिराय महाप्रभु ये नाथद्वारा के आद्य गद्याचार्य माने जाते हैं। इन्होंने सम्पूर्ण नाथद्वारा की भावना ब्रज के अनुसार लिखी है। "नाथद्वारा में ब्रज की भावना' इनकी उत्कृष्ट गद्य रचना है। दामोदर शास्री :- भारतेन्दुकालीन इस लेखक ने नाटक रामायण तथा बदरिकाश्रम आदि की मात्राओं को हिन्दी गद्य में सजाया। कृष्णचन्द्र शास्री इन्होने "सप्तस्वरुपोत्सव की महात्वाकांक्षा' नामक निबंध लिखा। कज्जूलाल जी शास्री इनके गद्य में हिन्दी का प्रांजल स्वरुप दिखलाई पड़ता है तथा संस्कृत शब्दों का पेशल प्रयोग है। नारायण दास इस समाजसुधारक व्यक्ति ने विभिन्न पुस्तकें लिखकर शिक्षा के क्षेत्र में विशेष योगदान दिया। मेवाड़ी भाषा में लिखी "सुखी वेवारी वार्त्ता इस प्रान्त में काफी लोकप्रिय हुई। पं. रघुनाथ पालीवाल नगरपालिका नाथद्वारा के प्रथम चेयरमेन रह चुके इस विद्वान ने "प्रकाश' नाम के स्वतंत्र पत्र का प्रकाशन किया है। "प्रभात' इनके द्वारा सम्पादित दूसरी साप्ताहिक पत्रिका है। रतनलाल सना कवि "रत्नेश' नाम से ख्याति प्राप्त इस गद्यकार ने श्री हरिराय महाप्रभु की भावनानुसार "नाथद्वारा में ब्रज की झांकी' नामक पुस्तक की रचना की। गणेशलाल साँचीहार कविता के शौकीन इस लेखक ने नवोदित साहित्यकारों को प्रेरणा दिया है। इनकी रचना बड़ी प्रभावोत्पादक तथा शुद्धता लिए है। राधाकृष्ण वैद्य इन्होने सर्वप्रथम "नाथद्वारा परिचय' लिखा जो कई वर्षों तक प्रारम्भिक कक्षाओं में अनिवार्य विषय के रुप में पढ़ाया जाता रहा। इनकी लेखनी में बड़ा ओज है। मनोहर कोठारी इनके गद्य संस्कृत बहुल होते हुए भी बोधगम्य होते हैं। राधाकृष्ण शर्मा इन्होने श्रीनाथ दर्शन नामक एक पुस्तक की रचना की। इनकी रचनाओं में एक स्वाभाविक प्रवाह है। भगवतीप्रसाद देवपुरा इन्होने "नाथद्वारा-दर्शन' नामक पुस्तक लिखी है। नवनीत कुमार पालीवाल साप्ताहिक पत्रिका "प्रकाश' के इस सम्पादक ने "नाथद्वारा तीर्थ' नाम की एक पुस्तक लिखी है जिसमें श्रीनाथजी के पदापंण से लेकर अन्त तक का सारा वृतांत है। रघुनन्दन त्रिपाठी ये ऐतिहासिक निबन्धकार हैं। "क्या महाराणा प्रताप निर्धन थे? और "आचार्य किसे कहते हैं?' इनके अनोखे निबंध हैं। |
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