राजस्थान

श्रीनाथजी के वर्षोत्सव

अमितेश कुमार


पुष्टि पुरुषोत्तम लीला विग्रह ब्रजराज श्रीकृष्ण की सेवा में तन्मय होकर आनन्द विभोर होने वाली गोपियों के स्वकीय उत्साह एवं उल्लास द्वारा नित्य नूतन मनोरथों से प्रभु को सानन्द रिझाना तथा नानाविधि से प्रेम-प्रदर्शित करना ही "उत्सव' कहलाता है। दसी गोपीभाव भावित परिपाटी से महाप्रभु श्री वल्लवाचार्यजी, श्री गुसाईजी, श्रीगोपीनाथजी तथा श्री गोकुलनाथजी ने उत्सवों की परम्परा को चलाया। बाद में उनके वंशजों ने उसमें स्वेच्छानुसार समयानुसार नवीनता का पुट देकर उत्सवों का विस्तार किया। वर्ष के बारह वर्षो में महोत्सवों की प्रधानतः चार अधिनायिकाएँ मानी जाती है।

१. नित्यसिद्धा स्वामिनी श्रीराधा

२. श्रुतिरुपा श्री चंद्रावली

३. नंदकुमारिका श्रीललिता तथा

४. श्रीयमुना।

प्रत्येक का सेवाकाल तीन-तीन मास (महीने) का माना जाता है। जब इनमें से एक प्रभु की सेवा में रहती है तो शेष तीन उनका दर्शन तथा कीर्तन करती रहती है। इन अधिनायिकाओं का सेवाकाल तथा उस दौरान आने वाले महोत्सव इस प्रकार है:-

 

अधिनायिका  सेवाकाल(मास)  महोत्सव
श्रीराधा श्रावण, भाद्रपद, आश्विन जन्माष्टमी
श्रीललिता कार्तिक, मार्गशीर्ष, पौष छप्पन भोग
श्री चन्द्रावली माघ, फाल्गुन, चैत्र फूलडोल
श्रीयमुना वैशाख, ज्येष्ठ, आषाढ़ स्नान यात्रा का विशेष महत्व महारास की लीलाएँ

सम्प्रदाय के भावनानुसार महाप्रभु श्रीवल्लभजी, श्रीगुसाई विट्ठलनाथजी तथा श्री दामोदरदास हरसाली क्रमशः श्रीराधा, श्रीचन्द्रावली तथा श्रीललिता के स्वरुप माने जाते हैं। श्रीयमुना जी साक्षात् श्रीजी की सेवा में अहर्निश विद्यमान मानी जाती है। प्रत्येक उत्सव पर प्रभु की देहली मंडित होती है तथा द्वारों को बन्दरवारों से सजाया जाता है। कुछ महत्वपूर्ण उत्सवों जिसमें प्रभु के कुछ खास निश्चित श्रृंगार का प्रावधान है का क्रमानुसार उल्लेख इस प्रकार है।

श्रावण कृष्णा-१

श्रृंगारः - लाल पिछौड़ा, श्रीमस्तक पर छज्जेदार पाग, मोरचंद्रिका, हीरा, पन्ना माणिक मोती के आभरण, वनमाला का भारी श्रृंगार, चार कर्णफूल, पीतठाड़ा वस्र। चन्द्रवल के आधार पर मुहूर्त से हिंडोला रोपा जाता है। पूरे श्रावण मास यह लगा रहता है और इसी पर अन्य सभी हिंडौले सजते हैं। इसी दिन भगवान का अभ्यंग होकर स्नानादि के पश्चात् श्रृंगार से सजाया जाता है। आचार्य वंशज श्रीप्रभु को झुला झुलाते हैं तो सहचरी भाव से सभी सेवक वर्ग चँवर, मोरछल तथा पंखा करते हैं। इसी दिन से मणि कोठे व डोलतिवारी में प्रतिदिन नये-नये दीवालगिरी व चँदोवे आने लग जाते हैं। इस दिन से जन्माष्टमी तक झाँओं की बधाई बैठ जाती है।

श्रावण कृष्ण ८

श्रृंगारः - केसरी पिछौड़ा, श्रीमस्तक पर कुलहे, मोरपंख का जोड़, माणिक, मोती व हीरे के आभूषण, वनमाला का श्रृंगार, कर्ण में कुण्डल, मेघश्याम कर्ण का ठाड़ वस्र और चौखट। आज के दिन से जन्माष्टमी की बधाई प्रारम्भ हो जाती है तथा सलमा सितारे के काम आने वाला केसरिया हिंडैला रोपा जाता है।

श्रावण कृष्णा ९

इस दिन का प्रभु का श्रृंगार श्री विट्ठलनाथजी के घर से आता है। संध्या को पंचरंगी लहरिये का हिंडौला आता है।

श्रावण कृष्णा ३०

इस तिथि को हरियाली अमावस कहते हैं। इस दिन प्रभु का सम्पूर्ण श्रृंगार करीब-करीब हरे रंग में होता है। संध्या को वदीवारगिरि, चँदोवा आदि भी हरे रंग के ही आते हैं। हरे चंदन की पत्तियों से सिलू का हिंडौला बनता है तथा जूही की दांडी बनाई जाती है।

श्रावण शुक्ल ३

यह तिथि ठकुरनी तीज के रुप में जाना जाता है। इस दिन की संध्या को काँच का हिंडौला रखा जाता है तथा श्रीनाथजी को कलात्मक कपड़ों से सजाया जाता है।

श्रावण शुक्ला ५ (नाग पंचमी)

श्रृंगारः- बैंजनी रंग के वस्र, श्रीमस्तक पर पाग, नागफणी का कतरा, कर्णफूल, हीरे मोती के आभरण, मध्य का श्रृंगार, सफेद ठाड़वस्र, चित्रकला की पिछवाई जिसमें श्रीजी की उर्ध्वभूजा का प्राकट्य और आन्योर तथा जतीपुरे के ब्रजवासी दर्शन के लिए जाते हुए दिखाये जाते हैं।

विशेषता:- आज संध्या डोलतिवारी में मोती का हिंडौला लगता है।

श्रावण शुक्ला ७ (बगीचा)

श्रृंगारः- लाल मोठड़ा भाँति की काछनी, गाती का पटका, श्रीमस्तक पर नीलम का मुकुट, हीरा पन्ना तथा मोती के आभरण, भारी वनमाला का श्रृंगार, कुण्डल, सफेद ठाड़वस्र, चित्रकला की पिछवाई जिसमें निकुंज अन्तर्गत मोर नाचते होते हैं और वर्षा हो रही होती है।

विशेषता:- आज के दिन डोलतिबारी में चौबीस केलों के खंभों का कुंज बनता है। केलों के मध्य में भगवान् को झूला झूलाया जाता है तथा विशेष भोग आते हैं।

श्रावण शुक्ला ९(वर्तमान ति. श्रीगोविन्दलालजी कृत सप्तस्वरुपोत्सव)

श्रृंगारः- केसरी गोल काछनी, श्रीमस्तक पर टिपारा, गोकर्ण, कुलहे का जोड़, कुण्डल, वनमाला का भारी श्रृंगार, मेघश्याम ठाड़वस्र।

विशेषता:- इस दिन सातों घरों के स्वरुप एक होकर छप्पन भोग अरोगते थे।

श्रावण शुक्ला ११ (पवित्रा एकादशी)

श्रृंगारः- सुनहरी धोरा के सफेद वस्र, पिछौड़ा, श्रीमस्तक पर कुलहे, मयूरपंख का जोड़, उत्सव के आभरण, मध्य का श्रृंगार, लाल ठाड़वस्र, रुपहरी, सुनहरी, रेशमी तथा तीन सौ साठ सूत के तार का पवित्रा धराया जाता है। सुनहरी धोरा की सफेद पिछवाई होती है। जिसके ऊपर पवित्रा टंगे रहते हैं।

विशेषता:- आज ही पुष्टि प्राकट्य का दिवस है। श्रीमहाप्रभुजी को श्रीनाथजी ने आज ही दर्शन दिये थे। श्री गोविन्दलाल जी ने सातों स्वरुपों को श्रीजी के समीप पधरा कर एक साथ ही सातों स्वरुपों को पवित्रा धराये थे।

श्रावण शुक्ला १३ (संत चतुरानागा का उत्सव)

श्रृंगारः- इकबूंदी चूँदड़ी की काछनी, श्रीमस्तक पर सलमा सितारे का मुकुट, पीताम्बर, कुण्डल, उत्सव के आभरण, मध्य का श्रृंगार, पवित्रा तथा सफेद ठाड़ वस्र।

विशेषता:- आज ही के दिन "टोड के घने' में श्रीनाथजी भैंसे पर बैठकर संत चतुरानागा के पास पधारे थे।

श्रावण शुक्ला १५ (रक्षाबंधन)

श्रृंगारः- लाल पिछौड़ा, श्रीमस्तक पर पाग, मोरचंद्रिका, चार कर्णफूल, उत्सव के आभरण, मध्य का श्रृंगार, पवित्रा, पीला ठाड़वस्र, लाल पिछवाई जिस पर पवित्रा टंगे रहते हैं।

विशेषता:- आज मुहुर्त के अनुसार भगवान को राखी पहनाई जाती है। आज से जन्माष्टमी तक राजभोग में विविध खिलौनों से भगवान को खिलाया जाता है। इसी दिन से गीतों वाली बधाई का भी आरंभ हो जाता है।

भाद्रपद कृष्णा पंचमी:-

श्रृंगारः - इकबूंदी चूंदड़ी का पिछौड़ा, श्रीमस्तक पर पाग, लूम की कलगी, पन्ना तथा मोती के आभरण, छोटा श्रृंगार, हरे ठाड़वस्र, चूंदड़ी की पिछवाई।

विशेषता :- ये श्रृंगार तिलकायत के होते हैं। आज गोपीवल्लभ अथवा राजभोग पश्चात् जन्माष्टमी को पहनाये जाने वाले वस्र रंगे जाते हैं।

भाद्रपद कृष्णा ६

श्रृंगार :- हरा सफेद लहरिया पिछौड़ा, श्रीमस्तक पर पाग, नागफणी का कतरा, मानक मोती के आभरण, लाल ठाड़ वस्र।

भाद्रपद कृष्णा ७ (छठी का उत्सव)

श्रृंगारः - लाल पिछौंड़ा, हीरा मोती के आभरण, सादा चन्द्रिका, पीला ठाड़ वस्र तथा किनारीदार पीले रंग की पिछवाई।

विशेषता :- छठी पूजन के भाव से शयन में विशेष सामग्री के भोग आते हैं। छठी का मंडना आरंभ हो जाता है।

भाद्रपद कृष्णा ८ (जन्माष्टमी)

श्रृंगार :- चाकदार केसरी बाग, श्रीमस्तक पर केसरी कुलहे, मोरपंख का जोड़ा, तीन जोड़े का भारी श्रृंगार, हाँस, हमेल, चवल, कटला, बघनखा, कुण्डल, लघुकिरीट, धराये जाते हैं। मेघश्याम ठाड़ वस्र, लाल पिछवाई और जड़ाऊ चौखटा आता है।

विशेषता :- इस दिन चार बजे प्रातः खुलती है। सारी सजावट बिल्कुल नई आती है। महाप्रभुजी के खिलौने श्रीजी के सम्मुख धरे जाते हैं। सायंकाल ७ बजे उत्थापन खुलते हैं। नित्य सेवोपरांत आज शयन के विशेष दर्शन होते हैं। जिसमें भगवान् विविध खिलौनों से खेलते रहते हैं। इस पवित्र रात्रि में भगवान पूरा जागरण करते हैं।

भाद्रपद कृष्णा ९ (नंद महोत्सव)

श्रृंगार :- जन्माष्टमी के दिन जैसा ही रहता है।

विशेषता :- इस दिन श्रीनवनीतप्रिय श्रीजी में पधार कर पलना में बिराज जाते हैं। आरती पश्चात् प्रभु पर राई, नमक उतारा जाता है। भाद्रपद कृष्णा ११ से लेकर ३० तक श्रीमद्भागवतानुसार निपट बालबीला के पाँच श्लोकों के आधार पर पाँच श्रृँगार होते हैं। बधनखा सबमें धराया जाता है।

क. लाल पिछौड़ा, केसरी पाग, केसरी गाती का पटका, छोटा श्रृँगार, हरे ठाडवस्र, चित्रकला की पिछवाई जिसमें नंद महोत्सव, छठी पूजन तथा पलना झूलता हुआ होता है।

ख. गोलकाछनी, बाबरी वाली जडाउ टोपी, वनमाला का श्रृँगार, कुण्डल, चोटी, अलकावली, मेघश्याम ठाड़वस्र, चित्रकला की पिछवाई जिसमें वत्स पूजन करती श्रीयशोदा रानी होती है।

ग. पाग, पिछैड़ा, लूम का कतरा, छोटा श्रृँगार, चित्रकला की पिछवाई "कबहु चितै प्रतिबिम्ब खंभ में लवनी लिए खवावत' का भाव रहता है।

घ. लाल कुलहे, पीला पिछौड़ा, पिरोजा के आभरण, भारी वनमाला का श्रृँगार, लाल ठाड़ वस्र, पीली पिछवाई। निम्न पद के आधार पर श्रृँगारः-

मनिमय आँगन क्रीड़त रंग।
पीत ताप को बन्यौ झगूला कुलहे लाल सुरंग।'

ड़. मल्ल काछ टिपारा, मध्य का श्रृँगार, चित्रकला की पिछवाई जिसमें तिवारी में माखन चोरी होती हुई दिखती है।

भाद्रपद शुक्ला १

श्रृँगार :- केसरी धोती उपरणा, श्रीमस्तक पर गोल चंद्रिका, छोटा श्रृँगार, चित्रकला की पिछवाई जिसमें भगवान् को पलना झुलाया जा रहा होता है।

विशेषता :- आज से लेकर राधाष्टमी तक अष्ट सहचरियों में से प्रत्येक के उत्सव आरंभ हो जाते हैं।

भाद्रपद शुक्ला ४.

श्रृँगार :- चूँदड़ी युक्त रुपहरी धोरा का सूथन और पटका, फेंटा, लोलक बिन्दी (झेला) जड़ाउ आभरण, मध्य का श्रृंगार, हरा ठाड़ वस्र, चित्रकला की पिछवाई जिसमें बच्चे डंका बजाते हुए होते हैं, दोनों ओर कृष्ण बलराम खड़े हैं तथा मण्डलाकार में गवालबाल नाच रहे हैं।

विशेषता :- श्रीजी के सम्मुख आज डंका धराये जाते हैं।

भाद्रपद शुक्ला ५ (श्रीचन्द्रावली का उत्सव)

श्रृँगार :- पीले वस्र में नीले हँसिये का पिछौड़ा, पगा, कुलहे की चमकदार जोड़ कुण्डल, पिरौजा के आभरण, वनमाला का भारी श्रृँगार, लाल ठाड़ वस्र, नीले हाँसिये की पीली पिछवाई।

विशेषता :- आज श्रीचंद्रावली का उत्सव होता है। ये ठाकुर चंद्रभान की पुत्री तथा श्रीकृष्ण की यूथनायिकाओं में गिनी जाती हैं। तथा कामवन वाले श्रीमदनमोहनजी के समीप ही बिराजती है।

भाद्रपद शुक्ला ६ (श्रीललिता का उत्सव)

श्रृँगार :- पिछौड़ा, पाग, पिछवाई आदि सब वस्र पंचरंगी लहरिया के, सफेद ठाड़ वस्र, श्रीमस्तक पर मोरपंख की चंद्रिका, मोती आभरण आदि।

विशेषता :- "ऊँचे गाँव' की निवासिनी तथा ठाकुर श्रीललितभानु की पुत्री श्री ललिता भी यूथनायिकाओं में से एक है। आज के ही दिन प्रथम तिलकायत श्री विट्ठलेशरायजी का उत्सव होता है।

भाद्रपद शुक्ला ८ (राधाष्टमी)

श्रृँगार :- सारा कार्यक्रम जन्माष्टमी के अनुसार होता है परन्तु पंचामृत स्नान नहीं होता है।

विशेषता :- भोग संध्या आरती में ढाढ़ी ढाढिन श्रीनाथजी के सम्मुख नृत्य करते हैं।

भाद्रपद शुक्ला ११ (दान एकादशी)

श्रृँगार :- काछनी लाल नीली, श्रीमस्तक पर जड़ाउ का मुकूट, उत्सव के आभरण, वनमाला का श्रृँगार, सफेद ठाड़वस्र, चित्रकला की पिछवाई जिसमें गिरिराज की घाटी पर श्रीकृष्ण अपने साथियों सहित दान लूटते हूए होते हैं।

विशेषता :- आज से बीस दिन तक अर्थात् आश्विन कृष्णा अमावस्या तक भागवान् दान अरोगते हैं।

भाद्रपद शुक्ला १२ (वामन द्वादशी)

श्रृँगार :- केसरिया धोती, गाती का उपरणा, श्रीमस्तक पर कुलहे, मयूर पंख का जोड़, उत्सव का भारी श्रृँगार, मेघश्याम ठाड़ वस्र, जन्माष्टमी की पिछवाई।

विशेषता :- राजभोग के दर्शन में वामन जन्म के उपलक्ष में श्रीबालकृष्णलाल का पंचामृत होता है।

भाद्रपद शूक्ला १५

श्रृँगार :- मुकुट, काछनी, वनमाला का भारी श्रृँगार, चित्रकला की पिछवाई जिसमें साँझी के लिए पुष्पचयन करती हुई ब्रजललनाएँ दिखलाई देती है।

विशेषता :- आज से लेकर अमावस्या तक हथियापोल के द्वार पर केले के पत्तों को कलात्मक काटकर ब्रजमण्डल की चौरासी कोस की यात्रा के विविध दृश्य साँझी के रुप में मंडित करते हैं।

आश्विन कृष्णा ५ (महादान-श्रीहरिराय महाप्रभु का उत्सव)

श्रृँगार :- केसरी वस्र, काछनी, सूथन, पटका, श्रीमस्तक पर नवरत्न का मुकुट, नवरत्न के आभरण, वनमाला का श्रृँगार, सफेद ठाड़ वस्र, चित्रकला की पिछवाई जिसमें दान और साँझी अंकित होते हैं।

विशेषता :- प्रातःकाल गोपीवल्लभ में महादान होता है जिसमें दूधघर की अनेक सामग्रियाँ अरोगाई जाती हैं। सायंकाल मणिकोठे में विविध फूलों की कलात्मक ढ्ँग से साँझी बनाई जाती है और विशेष भोग आता है।

आश्विन कृष्णा ११ (महादान)

श्रृँगार :- केसरिया वस्र, काछनी, सूथन, पटका, श्रीमस्तक पर माणक (माणिक्य) का मुकुट, जड़ाउ आभरण, वनमाला का श्रृँगार, सफेद ठाड़वस्र, चित्रकला की पिछवाई जिसमें भगवान् दानघाटी में दान लेते हुए हैं और साँझी अंकित रहती है।

आश्विन कृष्णा १२ (श्रीगोपीनाथजी का उत्सव)

श्रृँगार :- लालरंग के धोती उपरणा, श्रीमस्तक पर लाल कुल्हे, पाँच पंखों का मयूरपंख, पन्ना तथा मोती के आभरण, वनमाला का श्रृँगार, मेघश्याम छापे का ठाड वस्र, पिछवाई-लाल हॉसिये वाली नीले छापे की।

विशेषता :- यह महाप्रभुजी के प्रथम लालजी का उत्सव है।

आश्विन कृष्णा १३ (श्रीबालकृष्णजी का उत्सव)

श्रृँगार :- केसरिया वस्र, पिछौड़ा, श्रीमस्तक पर कुल्हे, चमक की जोड़, माणक मोती के आभरण, वनमाला का श्रृँगार, मेघश्याम ठाड़ वस्र, पिछवाई सिन्धी कला की रेशमी केसरिया जिसमें गायें खड़ी है।

विशेषता: - श्रीबालकृष्णजी श्रीगुसाईजी के चतुर्थ लालजी थे।

आश्विन कृष्णा अमावस्या (कोरट की आरती)

श्रृँगार :- रुपहरी गाज के श्याम वस्र, काछनी, सूथन, पटका, श्रीमस्तक पर जड़ाउ मुकूट, हीरे के आभरण, वनमाला का श्रृँगार, पिछवाई-श्याम सुनहरी बूँटे की।

विशेषता :- संध्या कमल चौक में हथिया-पोल के आगे कोट मंडित होता है जिसमें द्वारिका के महल, विविध खिलौने और रंगीन कागज पर कलात्मक ढंग से हाथी घोड़े आदि बनवाये जाते हैं।

आश्विन शुक्ला १ (नवरात्रारंभ)

श्रृँगार :- लाल छापे के वस्र, चमकदार खुलाबंध का बागा, श्रीमस्तक पर छापे की कुलही, मोरपंख का जोड़, वनमाला का श्रृँगार, उत्सव के आभरण, जड़ाउ चोखटा, मेघश्याम ठाड़ वस्र, पिछवाई हरे छापे की हॉसिये वाली जिसमें त्रिशूल दिखलाई पड़ते हैं।

विशेषता :- आज के दिन श्रीजी में यवांकुर रोपण होता है तथा आज से लेकर नौ दिन तक नव विलास होते हैं।

आश्विन शुक्ला ५

श्रृँगार :- व गुलाबी छापे के, चमकदार बागे जिसमें बाहें चढ़ी हुईं हैं, मल्लकाछ, जड़ाउ टिपारा, जड़ाउ आभरण, मध्य का श्रृँगार, मेघश्याम ठाड़वस्त, पिछवाई-चित्रकला की जिसमें रामराज्य से लेकर रावणवध और पुनः राम राज्य तक दिखलाया गया है।

विशेषता :- "करखा' आरंभ।

आश्विन शुक्ला ८

श्रृँगार :- सफेद छापे के काछनी पटका, मेघश्याम चोली, श्रीमस्तक पर डॉक का मुकुट, हीरे के आभरण, वनमाला का श्रृँगार, सफेद ठाड़वस्र, पिछवाई-चित्रकला की। जिसमें रास भावना होती है।

विशेषता :- श्रीमद्भागवतान्तर्गत रास पंचाध्यायी के प्रथम अध्याय का आज श्रृँगार होता है। तथा "वेणुनाद' के पद गाये जाते हैं। उपर्युक्त पिछवाई में चौसठ गोस्वामी बालक सखीभाव से चित्रित है।

आश्विन शुक्ला १० (दशहरा)

श्रृँगार :- सफेद जरी के वस्र, घेरदार बागा' श्रीमस्तक पर पाग, सादा चंद्रिका, लूमतुर्रा, कर्णफूल, वनमाला का भारी श्रृँगार, उत्सव के जड़ाउ आभरण, हरा ठाड़ वस्र।

विशेषता :- आज से सवालक्ष तुलसी मंगला उपरांत प्रतिदिन श्रीजी के चरणों में धराई जाती हैं। यह सेवा कार्तिक शुक्ला १० तक चलती है। राजभोग में श्रीजी के सम्मुख काष्ठनिर्मित सुसज्जित गाएँ रक्खी जाती है। आज के दिन से ही अन्नकूट की सामग्री का शुभारंभ हो जाता है।

आश्विन शुक्ला ११-१४ पय्र्यत

श्रृँगार :- सफेद और गुलाबी जरी के वस्र, काछनी, सूथन, पटका, श्याम चोली, श्रीमस्तक पर जड़ाउ का सफेद मुकूट, माणक और पन्ना के आभरण, सफेद ठाड़ वस्र, पिछवाई चित्रकला वाली जिसमें रास अंकित होता है।

विशेषता :- श्रीमद्भागवतान्तर्गत "रास पंचाध्यायी' के दो अध्याय का श्रृँगार उक्त दोनों दिन होता है और महारास के पद आज से प्रतिपदा तक गाये जाते हैं।

आश्विन शुक्ला १५ (महारास)

श्रृँगार :- सफेद सुनहरी जरी की काछनी, केसरी जरी का सूथन, मेधश्याम चोली, लालदरियाई वस्र का पीताम्बर, श्रीमस्तक पर हीरे का मुकुट, हीरे के आभरण, सफेद ठाड़ वस्र, जड़ाउ हीरे का चोखटा, पिछवाई-चित्रकला वाली जिसमें महारास अंकित होता है और दो-दो गोपियों के बीच माधव दिखलाई देते हैं।

विशेषता :- आज संध्या में शयन के दर्शन नहीं होकर डोलतिबारी, मणिकोठा, और रतनचौक में बिछात होती है। सामग्री एवं साज आदि सब सफेद होते हैं।

कार्तिक कृष्णा १

श्रृँगार :- शरद् पुर्णिमा वाला।

विशेषता :- शयन के दर्शनों में भगवान् को तारामंडित सफेद उपरणा तथा पाग धराई जाती है। आज भी शरद् का ही उत्सव माना जाता है।

कार्तिक कृष्णा २

श्रृँगार :- नीली जरी के वस्र, चाकदार बागा, मोती के आभरण, कर्णफूल, पीत दुमाला, लाल ठाड़ वस्र मध्य का श्रृँगार, पिछवाई सलमा सितारे की जिसमें कसीदे की कारीगरी रहती है। "पीत दुमालो बन्यौ कंठ मोतिन की माला' सूरदास जी के इस पद के आधार पर श्रृँगार होता है।

नोटः - "इन्हीं दिनों में कार्तिक कृष्णा १० के पहिले मुकुट काछनी का श्रृँगार, टिपारे का श्रृँगार ओर अभ्यंग का श्रृँगार पदों के भावानुसार होता है तथा परचारगी में श्रृँगार कार्तिक कृष्णा दशमी से लेकर चतुर्दशी तक हेर फेर से होते रहते हैं। मुहूर्त से अन्नकूट में बनने वाली सखरी रसोई हेतु भट्ठी की पूजा भी होती है।'

कार्तिक कृष्णा ९ (दीपावली का श्रृँगार)

श्रृँगार :- सफेद फुरकशाही जरी के वस्र, चाकदार बागा, सूथन, श्रीमस्तक पर कुलहे, मयूर पंख का जोड़, उत्सव के आभरण, वनमाला का श्रृँगार, केसरिया ठाड़ वस्र, सफेद जरी की पिछवाई जिसके ऊपर कलात्मक रचना होती है।

विशेषता :- आज के दिन शयन में काच की हटड़ी और डोलतिबारी तथा मणिकोठे में रोशनी झाड़ फानूस आदि सब प्रकाशित रहते हैं। यह श्रृँगार भी परचारगी माना जाता है।

कार्तिक कृष्णा १०

श्रृँगार :- सफेद वस्र जिसमें सुनहरी किनारी का काम किया है, धेरदार वागा, श्रीमस्तक पर पाग, लूम की कलंगी, पन्ना और मोती के आभरण, छोटा श्रृँगार, लाल ठाड़ा वस्र, पिछवाई-वस्रानुकूल।

विशेषता :- आज ही से तिलकायत के श्रृँगार आरंभ हो जाते हैं। आज से लेकर भाई दूज तक अष्ट सहचरी के भाव से आठ श्रृँगार होते हैं। आज के दिन ही नौबत की बधाई बैठ जाती है।

कार्तिक कृष्णा ११

श्रृँगार :- श्याम जरी के वस्र, चाकदार बागा, सूथन, श्रीमस्तक पर पाग, नागफणी का कतरा, मोती के आभरण, मध्य का श्रृँगार, पीत ठाड़ वस्र, पिछवाई-भरत की होती है जिसमें सलमे सितारे का काम किया हुआ होता है।

विशेषता :- आज से बड़ी सेवा होती है।

कार्तिक कृष्णा १२

श्रृँगार :- पीली जरी के वस्र, घेरदार बागा, श्रीमस्तक पर छज्जेदार पाग, जमाव की चंद्रिका, पन्ना और मोती के आभरण, मध्य का श्रृँगार, हरा ठाड़ वस्र, पिछवाई-भरत की जिसमें सलमे सितारे का काम हुआ रहता है।

कार्तिक कृष्णा १३ (धनतेरस)

श्रृँगार :- हरी जरी के वस्र, चाकदार वागा, श्रीमस्तक पर पाग, सादा चंद्रिका, मानक मोती के आभरण , वनमाला का श्रृँगार, लाल ठाड़ वस्र, जड़ाउ चोखटा, पिछवाई-भरत की। जिसमें सलमे सितारे का भारी काम किया हुआ होता है।

विशेषता :- आज के दिन सब साज जड़ाउ रहता है।

कार्तिक कृष्णा १४ (रुप चतुर्दशी)

श्रृँगार :- सुनहरी जरी के वस्र, घेरदार वागा, श्रीमस्तक पर पाग, सादा मोर चंद्रिका, उत्सव के आभरण, चार कर्णफूल, वनमाला का श्रृँगार, मेघश्याम ठाड़ वस्र, पिछवाई-भरत। आज के दिन सूर्योदय के पूर्व ही भगवान का अभ्यंग होता है।

कार्तिक कृष्णा अमावस्या (दीपमालिका)

श्रृँगार :- सफेद फरुखशाही जरी के वस्र, चाकदारबागा, सूथन, श्रीमस्तक पर कुलहे, मोरपंख का जोड़, हीरा, पन्ने, माणिक, मोती आदि के आभूषण, तीन जाड़ी वाले वनमाला का भारी श्रृँगार, कुण्डल, चोटी, केसरिया ठाड़ वस्र, जड़ाऊ चोखटा, पिछवाई-मोतियों की जड़ाऊ।

आज उत्थापन, भोग, संध्या आरती तथा शयन अन्दर होते हैं। डोलतिवारी में सजावट होकर सात स्वरुपों की भावना पधारती है। प्रातः १०.३० - ११.०० बजे के बीच श्रीजी की नाथूवास स्थित गउशाला से गाए श्रृँगार करके नाथद्वारा नगर में प्रवेश करती है तथा श्रीजी की पायगा में विश्राम करती है। सायंकाल (लगभग ४ बजे) "ग्वाल' सेवक अनोखे पाग धारण किये हीरी गाते हुए श्रीजी की परिक्रमा करते हैं।

संध्या आरती के बाद गऊमाताएँ गोवर्धन-पूजा चौक में पधारती है। दूध का भोग आता है। नंदरामजी के गोवंश की गाय की तिलक करने के बाद "कान्ह जगाई' होती है। काँच की किरच वाली हटड़ी में श्रीनवनीत प्रभु विराजते हैं। इनका दर्शन सर्वसाधारण के लिए खुल जाता है।

कार्तिक शुक्ला १ (अन्नकूट)

श्रृँगार :- दीपावली वाला ही। परन्तु चोखटे के ऊपर दुग्गल आता है। पीत पिछौडी तथा गोकर्ण रखे जाते है। राजभोग में प्रभु को ठाड़े वेत्र भी धराये जाते हैं।

विशेषता :- यह नगर का सबसे बड़ा उत्सव है। आज श्रीजी के केवल एक ही दर्शन "मंगला' के होते है। बाकी के सब दर्शन अन्दर होकर सेवा चालू रहती है। डोलतिवारी में घास का "मिढ़ा' (चाँवल रखने का घास निर्मित कूआ) बनता है जिस पर अन्नकूट के भात का ढेर किया जाता है। राजभोग पश्चात् श्री विट्ठलनाथजी श्रीजी में अन्नकूट अरोगने पधारते हैं। प्राचीन समय में आज के दिन इस समय श्री द्वारिकानाथ जी, काँकरोली से पधारते थे। श्रीदाउजी महाराज के सेवा काल में आज ही के दिन सातों स्वरुपों ने नाथद्वारे पधार कर श्रीजी के साथ अन्नकूट अरोगा था। इसके बाद गउमाताएँ पूर्व दिवस के ही समान धूम-धाम से क्रीड़ा करती हुई मंदिर मार्ग को अपनी रुनझुन से निनादित करती हुई श्रीमंदिर के गोवर्धन पूजा चौक में पधारती हैं। श्रीनवनीतलाल को पधराए जाने से पूर्व श्रीनाथजी से आज्ञा लेकर श्रीनवनीत प्रिय को लेने जाते हैं। तदनन्तर श्री नवनीतप्रिय भी पूर्ववत् पधार कर सूरजपोल के पावन सोपानों पर बिराज जाते हैं। इसके बाद दूध का भोग आता है और गोवर्धन पूजा शुरु हो जाती है।

मानसी गंगा के जल, दूध, चंदन, कूमकुम से करीब पौन घंटे तक गोवर्धन-पूजा चलती है। भोग के पश्चात् आरती की जाती है। इसके बाद श्रीनाथजी के दूध घर एवं गउशाला के प्रधान गवालों तथा सातों घरों के ग्वालों को तिलकायत श्री "टौना' बाँध कर प्रसाद देते हैं। इसके पश्चात् श्रीनवनीत प्रिय धोली पटिया से होकर श्रीनाथ जी के पास अन्नकूट अरोगने पधार जाते है। इधर गोमय के वने गोवर्धन पर गौएँ चढ़ाई जाती हैं। तदनन्तर गाऐं अपने वासस्थान पर पहुंच जाती हैं वहाँ पर श्रीजी की तरु से गौओं को सरस स्वादिष्ट थूली (गेहूँ का दलिया गुड़ युक्त) खिलाई जाती है। इसके तुरन्त बाद सभी गाएँ नगर के प्राचीन मार्ग गुर्जरपुरे से नाथूवास स्थित गउशाला मे आ जाती हैं। उधर श्रीजी में अन्नकूट का भोग आ जाता है।

भोग धरने के पश्चात् लोग तिलकायत से अनुगत श्रीजी की बड़ी परिक्रमा करते हैं। परिक्रमा के पश्चात् श्रीजी का भोग सरा दिया जाता है। इसके बाद दर्शन खुल जाते हैं। इन दर्शनों में एक-एक घड़ी के बाद ९ आरती होती है। चौथी आरती के बाद भील चाँवल लूटना आरंभ कर देते हैं। पाँचवीं आरती के बाद श्रीविट्ठलेशरायजी अपने घर पधार जाते हैं। नवमीं आरती के बाद श्रीनवनीतलालजी बगीचे के रास्ते अपने घर चले जाते हैं।

अन्नकूट

डोलतिवारी के बीच के दरवाजे में "मिढ़ा' पर डेढ़ सौ मन भात का ढेर लगाकर अन्न का कूट (शिखर) बनाया जाता है। उसके ऊपर चारों दिशाओं में मिष्टान्न के चार बढ़े गूंजे बीच में मिष्टान्न का एक चक्र गाड़ दिया जाता है। शिखर को तुलसी की माला धराई जाती है। इसके चारों ओर सखड़ी रसोई के विविध पकवान रक्खे जाते हैं। इन पकवानों से सारा रतनचौक और डोल तिवारी पूरे भर जाते हैं। इसके अलावा दूध घर तथा बालभोग की सामग्री निज मंदिर, मणिकोठा और छठी वाले कोठे में चार-चार टोकरे में एक दूसरे के ऊपर रक्खी जाती है। भोग सरने के बाद दर्शन में श्रीजी के सम्मुख निज मंदिर में आठ-आठ टोकरे की जोड़ रखी रहती है परन्तु इन्हें श्रीविट्ठलेशरायजी के पधारने के पूर्व ही हटा ली जाती है।' आज से गोपाष्टमी तक "इन्द्रभान भंग के पद' होते हैं।

कार्तिक शुक्ला २ (यम द्वितीया)

श्रृँगार :- लाल खीनखाप के वस्र, घेरदार बागा, श्रीमस्तक पर सुनहरी जरी की पाग, सादा चंद्रिका, पन्ना तथा मोती के आभरण, छोटा श्रृँगार, सफेद ठाड़ वस्र, पिछवाई (लाल कपड़े पर मोतियों के झाड़ वाली)।

विशेषता :- आज राजभोग में श्रीजी को दूज का तिलक होता है और उसके तुरंत बाद भोग अरोगाया जाता है।

कार्तिक शुक्ला ५ (पंचमी)

श्रृँगार :- चाकदार वागे पर टिपारे का श्रृंगार, पिछवाई (चित्रकला वाली, जिसमें भगवान् श्रीनाथ जी गोवर्धन उठाये हुए हैं)।

विशेषता :- इस दिन उक्त पिछवाई सात दिन तक गोवर्धन गिरि को उठाये रखने के भाव से आती है। इसमें नंद, यशोदा, गोपी, गवाल सभी श्रीकृष्ण को गोवर्धन उठाने में लकड़ी का सहारा लगाकर सहयोग कर रहे होते हैं और ऊपर आकाश मेघमय हो रहा होता है।

कार्तिक शुक्ला ८ (गोपाष्टमी)

श्रृँगार :- हरी व लाल जरी के वस्र, काछनी, श्रीमस्तक पर जड़ाउ मुकुट, लाल दरियाई पीताम्बर, जड़ाउ आभरण, वनमाला का श्रृंगार, सफेद ठाड़ वस्र, पिछवाई (भरत के काम की सलमे सितारे वाली जिसमें गाएँ दिखाई गई हैं)।

विशेषता :- आज के दिन सर्वप्रथम भगवान कृष्ण गाएँ चराने वन में पधारे थे। इसी से आज गोचारण के पद होते हैं तथा नाथूवास गउशाला में भगवान की तरफ से गायों को थूली खिलाई जाती है।

कार्तिक शुक्ला ९ (अक्षय नवमी)

श्रृँगार :- अननकूट के अनुसार। परन्तु चौखटा और पीत पिछौड़ी नहीं आता है। पिछवाइ (चित्रकला जिसमें गाएँ दिखाई गई हैं)।

विशेषता :- संध्या भोग आरती में श्रीजी को तुलसी की माला धराई जाती है। यदि कार्तिक कृष्णा अमावस्या को ग्रहण आ जाय तो श्रीजी में आज के दिन अन्नकूट का उत्सव होता है। नियमानूसार आज ही गोवर्धन पूजा होकर गाएँ गोवर्धन पर चढ़ाई जाती है। अननकूट का भोग आता है तथा रात्रि को भीज भात लूटते हैं। इस दिन भगवान को पेड़े की विशेष सामग्री अरोगाई जाती है। घस्यार में आज के दिन अन्नकूट होता है।

कार्तिक शुक्ला ११ (प्रबोधिनी)

श्रृँगार :- सुनहरी फरुखशाही जरी के वस्र, चाकदार बागा, श्रीमस्तक पर जड़ाउ कुल्ही, मोरपंख का जोड़, उत्सव के आभरण, वनमाला का भारी श्रृँगार, चरणारविन्द में मोजे, मेघश्याम ठाड़ वस्र, जड़ाउ चौखटा, पिछवाइ (फरुखशाही सफेद जरी की)।

विशेषता :- आज मुहुर्त के अनुसार डोलतिवारी में ईख का मण्डप स्थापन होकर श्रीवालकृष्णजी उसमें बिराजते हैं। यहां उनका पंचामृत होता है। शीतकाल की सभी साकग्रियाँ अर्पित की जाती है।

कार्तिक शुक्ला १२ (श्री गिरधरजी का उत्सव)

श्रृँगार :- सुनहरी जरी के वस्र, घेरदार बागा, श्रीमस्तक पर सेहरा, चोटी, तुर्रा, लूम, वनमाला का भारी श्रृँगार, पतंगी रंग के ठाड़वस्र, पिछवाई (भरत की जिसमें गोपियाँ मोरछल कर रही हैं और विवाह का मण्डप बना हुआ है)।

विशेषता :- गुसाईजी श्रीविट्ठलनाथ जी के प्रथम पुत्र जिन्होने श्रीनाथजी को सतघरा (मथुरा) में पधराकर सर्वस्र अपंण कर दिया था उन्हीं के आभूषणों का प्राचीन चौखटा बनाया गया जो सदा उत्सवों में श्रीजी को अंगीकार कराया जाता है।

मार्गशीर्ष कृष्णा ४ (ति. श्रीदाउजी महाराज कृत ६ स्वरुपों का उत्सव)

श्रृँगार :- सुनहरी जरी के वस्र, चाकदार बागा, श्रीमस्तक पर बीच का सफेद जरी का दुमाला, वामका कतरा, जमाव की चंद्रिका, अन्तर्वर्ती पटका, कुण्डल, उत्सव के आभरण, वनमाला का भारी श्रृँगार, मेघश्याम ठाड़वस्र पिछवाई (भरत की जिसमें काच के गोटों युक्त झाड़ खड़े हुए होते हैं)।

विशेषता :- आज के दिन दुहरे मानोरथकर्ता श्रीदाउजी महाराज ने श्रीजी में छप्पन भोग किया था जिसमें श्रीमथुरानाथजी, श्रीविट्ठलनाथजी, श्रीद्वारिकानाथजी, श्रीगोकुलनाथजी, श्रीगोकुलचंद्रमाजी, श्रीमुकुंदरायजी, श्री मदनमोहनजी तथा श्रीनटवर जी आदि स्वरुप इकट्ठे हुए थे।

टिप्पणी :- मार्गशीर्ष और पौष मास में मंगल भोग होते हैं। तथा द्वादशी को चौकी होती है। इनके श्रृँगार पृथक्-पृथक् होते हैं। सेवा में शीघ्रता रक्खी जाती है। इसी मास से श्रीजी के हरी, श्याम, चंदाउगाल, लाल, केसरी, सफेद जरी की, बैंगनी, गुलेनार, गुलाबी, पीली सुनहरी जरी तथा पिरौजी आदि की घटाएँ शुरु हो जाती है। इसके अलावा पद के आधार पर पंचरंग पाग, पाछिली रात का श्रृँगार, पीताम्बर का चोलना, सोने की पाग, हीरा की पाग आदि के श्रृँगार श्रीजी को होते रहते हैं।

मार्गशीर्ष कृष्णा ८ (श्री गोविन्दजी का उत्सव)

श्रृँगार :- केसरिया साटन के वस्र, चाकदार बागा, श्रीमस्तक पर हीरा की कुलही, चमक का जोड़, मोती के आभरण, वनमाला का भारी श्रृँगार, ठाड़ वस्र, पिछवाइ-साटन की लाल हाँसिये वाली पीली पिछवाई।

विशेषता :- ये गोविन्दजी भगवान श्रीविट्ठलेशराय के प्रधान आचार्य एवं श्री गुसाईंजी के दूसरे पुत्र थे।

मार्गशीर्ष १३ (श्रीघनश्यामजी का उत्सव)

श्रृँगार :- लाल साटन के वस्र, सूथन, चाकदार वागा, हरे मौजे, श्रीमस्तक पर पन्ने की कुल्ही, मोरपंख का जोड़, पन्ना तथा मोती का आभरण, वनमाला का भारी श्रृँगार, पीले ठाड़ वस्र, पिछवाई-लाल साटन की।

विशेषता :- ये गुसाईंजी के सप्तम पुत्र और कामवनस्थ श्रीमदनमोहनजी के प्रधान आचार्य थे।

मार्गशीर्ष शुक्ला ७ (श्रीगोकुलनाथजी का उत्सव)

श्रृँगार :- लाल खीनखाप जिसमें बड़े-बडे बूँटा अंकित हैं, चाकदार बागा, श्रीमस्तक पर कुलही, मोरपंख का जोड़, जड़ाउ मोते, उत्सव के आभरण, वनमाला का श्रृँगार, मेघश्याम ठाड़ वस्र, पिछवाई (जड़ाउ, भरत की, जिसमें सलमे सितारे का काम किया गया है)१

विशेषता :- ये गुसाईंजी के चतुर्थलालजी थे। इन्होने ही कुलही और मौजे वनवाकर श्रीजी को अंगीकार करवाए थे।

हिन्दुओं के तिलक और कंठी की रक्षा की तथा पुष्टिधर्म का प्रचार कश्मीर तक किया। इनके व्यक्तित्व से भारत सम्राट जहाँगीर भी प्रभावित हो गया था। हिन्दी साहित्य में गद्य के आद्याचार्य ये ही माने जाते हैं। आज की तिथि से भगवान के शयन भीतर होते हैं।

मार्गशीर्ष शुक्ला ८ (ति. श्रीगोवर्धनेशजी कृत सप्तस्वरुपोत्सव)

श्रृँगार :- लाल खीनपान के छोटे बूँटा वाले वस्र, चाकदार वागा, श्रीमस्तक पर हीरा की जड़ाउ कुलहे, कुण्डल, उत्सव के आभरण, वनमाला का भारी श्रृँगार, हरा ठाड़ वस्र, पिछवाई-चौकड़ी वाली जिसमें काच के बूँटा का काम किया गया है।

विशेषता :- श्रीगोवर्धनेशजी ने सर्वप्रथम नाथद्वारा में सप्तस्वरुपों को एकत्रित किया था।

मार्गशीर्ष शुक्ला १५ (छप्पन भोग)

श्रृँगार :- सुनहरी जरी के वस्र, चाकदार बागा, श्रीमस्तक पर सफेद जरी का टिपारा, सुनहरी जरी के गोकर्ण, कुल्हे का सुनहरी जोड़। उत्सव के आभरण, वनमाला का भारी श्रृँगार, मेघश्याम ठाड़ वस्र, जड़ाउ चौखटा, पिछवाई श्याम रुपहरी जिसमें गायें खड़ी हैं।

विशेषता :- आज मंगला दर्शन के पश्चात् केवल राजभोग के ही दर्शन खुलते हैं। गोपी वल्लभ में छप्पन भोग का भोग आता है।

पौष कृष्णा १ (लालबाबा श्रीदाउजी का जन्म दिवस)

श्रृँगार :- केसरिया साटन के वस्र, चाकदार वागा, श्रीमस्तक पर जड़ाउ काम का किरीट, हीरा तथा मोती के आभरण, भारी वनमाला का श्रृँगार, मेघश्याम ठाड़ वस्र, पिछवाई-मखमल पर सलमे सितारे के कसीदे वाली जिसमें श्री गोविन्दलाल जी महाराज, बहूजी, बेटीजी तथा छोटे बाबासाहब आदि बने होते हैं।

विशेषता :- आज राजभोग में काच की किरच का बंगला श्रीजी को धराया जाता है।

पौष कृष्णा ७ (श्री कल्याणरायजी का उत्सव)

श्रृँगार :- लाल साटन के वस्र जिस पर पशु पक्षी अंकित हैं, चाकदार बागा, श्रीमस्तक पर कुल्हे जिस पर मीने के काम में पशु पक्षी कढ़े हुए होते हैं, मोर पंख का जोड़, उत्सव के आभरण, वनमाला का भारी श्रृँगार, सुनहरी छापा के मेघश्याम ठाड़ वस्र, पिछवाई-श्याम हांसिया वाली चिड़िया अंकित लाल वस्र की।

विशेषता -' कल्याणरायजी श्री विट्ठलेश-प्रभु के घराने के आचार्य तथा महाप्रभु श्री हरिरायजी के पूज्य पिता थे। इनके जन्म के उपलक्ष्य पर उनके पिता श्री गोविन्दजी ने श्रीनाथ जी को अंगुठी भेंट की थी। उस अंगूठी का पन्ना आज भी श्रीनाथजी अपने मस्तक पर धारण करते हैं और अंगूठी आज के दिन श्री विट्ठलेश प्रभु को धराई जाती है जिसके दर्शन राजभोग में किये जा सकते हैं।

पौष कृष्णा ९ (री गुसाईंजी का उत्सव)

श्रृँगार :- केसरी साटन के सादा वस्र, चाकदार बागा, श्रीमस्तक पर केसरी कुल्ही, मोर पंख का जोड़। जन्माष्टमी जैसा श्रृँगार।

विशेषता :- आज के दिन गुसाईं जी श्रीविट्ठलनाथजी का प्राकट्य हुआ था। इस दिन भगवान् विशेषकर जलेबी अरोगते हैं, इस कारण इसे "जलेबी उत्सव' के नाम भी पुकारा जाता है।

संक्रान्ति:-

श्रृँगार :- छींट के वस्र, घेरदार बागा, श्रीमस्तक पर पाग, मोर पंख की चंद्रिका, मोती के आभरण, छोटा श्रृँगार, सफेद ठाड़ वस्र, पिछवाई-छींट की।

विशेषता :- आज राजभोग दर्शनान्तर डोलतिवारी में सुखपाल आता है और उसमें गेंद रक्खी जाती है। इसमें प्रधान भावना यह है कि भगवान राजभोग करते ही खेलने पधारते हैं।

माघ शुक्ला ५ (बसन्त पंचमी)

श्रृँगार :- सफेद वस्र, घेरदार वागा, श्रीमस्तक पर पाग, सादा चंद्रिका मीना के आभरण, मध्य का श्रृँगार मेघश्याम मौजा, लाल ठाड़ वस्र। खण्ड, पाट आदि चाँदी के आते हैं तथा पर्दा और चन्दुआ भी सफेद वस्र के होते हैं। आज से लेकर डोलोत्सव तक सफेद पिछवाई पर गुलाल की चिड़िया अंकित की जाती है।

विशेषता :- इस दिन से शयन के दर्शन खुलते हैं। मध्याह्म राजभोग दर्शनानन्तर एक विशेष दर्शन और होते हैं। श्रीजी के सम्मुख वसंत का कलश स्थापित किया जाता है। आज से ही श्रीजी गुलाल, अबीर, चंदन तथा चोबा से खेलना आरंभ कर देते हैं। यह क्रम डोलोत्सव तक चलता रहता है। आज से जयदेव की बसंत वाली अष्टपदी प्रारंभ हो जाती है।

माघ शुक्ला १५ (होली-डांडा रोपण)

श्रृँगार :- सफेद वस्र, घेरदार बागा, श्रीमस्तक पर खिड़की की पाग, श्याम चौवा की चोली, लूम की कलंगी, सोना के आभरण, छोटा श्रृँगार, सफेद पिछवाई।

विशेषता :- मुहूर्त के अनुसार होली मगरे पर आज के दिन होली का डंडा रोपा जाता है जिसमें आचार्यश्री की बैठक से कीर्तन समाज गाता बजाता खर्च भंडारी सहित वहां पहुँचता है। डंडारोपण के पूर्व डंडे की मन्त्रोक्त विधि सक पूजा की जाती है। यहां श्रीनाथजी में "धमार' का आरंभ हो जाता है। होली डंडे को मदनघ्वज भी माना जाता है और मास भर इसी के नीचे मय्र्यादातीत धूमधाम होती रहती है।

फाल्गुन कृष्णा ७ (श्रीनाथजी का पाटोत्सव)

श्रृँगार :- केसरिया वस्र, दुहेरा किनारी का घेरदार बागा, चौवा की चोली, श्रीमस्तक पर खिड़की का पाग, लूम की कलंगी, पिरोजा के आभरण, छोटा श्रृँगार, सफेद ठाड़ वस्र।

विशेषता :- आज के दिन ही मथुरा (सतधरा) में श्रीनाथजी गोवर्धन से पधारे थे। इसी दिन भगवान् नाथद्वारा आकर पाट पर बिराजे थे। इसके बाद उदयपुर और घस्यार जाकर पुनः इसी दिन पाट पर बिराजमान हुए थे। आज के दिन से स्वांग आरंभ हो जाते हैं। शयन में ये स्वांग श्रीजी के आगे नृत्य करते हैं। आज से ही राजभोग दर्शन के समय रतन चौक में ब्रजवासी ढोल और चंग बजा बजाकर रसिया गाते हैं तथा एक ब्रजवासी "ग्वाल' बनकर भगवान के आगे नाचता है।

फाल्गुन शुक्ला ७ (लालबाबा श्रीइंद्रदमनजी का जन्मदिवस)

श्रृँगार :- पतंगी रंग के वस्र, चाकदार वागा, श्रीमस्तक पर सेहरा, सोना के आभरण, वनमाला का श्रृँगार, मेघश्याम ठाड वस्र।

विशेषता :- आज राजभोग सरने के पश्चात् मणि कोठे में गुलाल कुँड आता है जिसके चारों ओर वृक्षावलियाँ होती है और उनके बीच ब्रजभक्त खड़े रहते हैं। आज से गुलाल द्वारा सारी पिछवाई लाल करके ऊपर अबीर की सफेद चिड़िया अंकित की जाती है। ब्रजभक्तों द्वारा बनाई गलियाँ भी भगवान् को आज से ही सुनाना आरंभ होता है।

फाल्गुन शुक्ला ११ (कुँज-एकादशी)

श्रृँगार :- केसरिया वस्र, काछनी, गाती का पटका, श्रीमस्त्क पर पुष्प का मुकुट, मीना के आभरण, वनमाला का भारी श्रृँगार, सफेद ठाड़ वस्र।

विशेषता :- आज राजभोग सरने के पश्चात् निज मंदिर में कुँज बनता है। श्रीनवनीत-प्रभु अपने घर से पधारकर श्रीजी के गोद में बिराजते हैं। राजभोग आरती के बाद श्रीनवनीत प्रिय पुनः अपने घर पधार जाते हैं। संध्या आरती में श्रीजी को ठाड़ वेत्र धराते हैं तथा वेणु कटि में खोंसा जाता है।

फाल्गुन शुक्ला १५ (होली)

श्रृँगार :- सफेद वस्र, घेरदार बागा, श्रीमस्तक पर पाग, सादा चंद्रिका, मीना के आभरण, मध्य श्रृँगार, लाल ठाड़ वस्र।

विशेषता :- आज शयन में श्रीजी की गुलाल से दाढ़ी रंगी जाती है। प्रभु को ठाड़ा वेत्र धराते हैं। बडूयला की माला की भावना से भगवान को आज सोने के ताबीज की माला पहनाई जाती है। शयन में भरपुर गुलाल उड़ता है। मुहूर्त के अनुसार कीर्तन समाज होली-मगरा पहुँच कर होलिकादाह करता है।

चैत्र कृष्णा १ (डोलोत्सव)

श्रृँगार :- सफेद वस्र, घेरदार वागा, श्रीमस्तक पर सादा चंद्रिका, चार कर्णफूल, मीना तथा सोने के आभरण, वनमाला का भारी श्रृँगार, लाल ठाड़ वस्र।

विशेषता :- आज के दिन डोलतिवारी में ध्रुवबारी के नीचे डोल बंधता है जिसे आम्रमौर, मालती एवं विविध पुष्प पल्लवों से सजाया जाता है। राजभोग सरने के पश्चात् श्रीनवनीत-प्रभु श्रीनाथजी में पधारते हैं तथा डोल का अधिवासन होकर भगवान उसमें बिराजते हैं। डोल ही में भोग आता है। भारी खेल होता है और दर्शन खुल जाते हैं। इसी तरह चार भोग आते हैं और चार दर्शन खुलते हैं। दर्शनों में खूब गुलाल उड़ाया जाता है। अंतिम दर्शन में श्री नवनीतप्रिय श्रीजी की गोदी में पधारते हैं। मुखियाजी गोस्वामी बालकों को गुलालादि से खिलाते हैं। इसके बाद तिलकायतश्री सेवकों-मुखिया, भीतरिया तथा कीर्तनियाँओं को खिलाते हैं। फिर श्रीनवनीत प्रिय अपने घर पधार जाते हैं। आज लाल खीनखाप के दुग्गल पर पुष्पों (चैत्र गुलाब) की माला धराई जाती है इस प्रकार भोग के दर्शनों में श्रीजी की अनुपमेय छटा अत्यंत ही चित्ताकर्षक होती है।

चैत्र कृष्णा २ (द्वितीया पाट)

श्रृंगार :- सुनहरी जरी के वस्र, चाकदार वागा, श्रीमस्तक पर जड़ाउ कुलहे, चमकना जोड़, उतसव के आभरण, वनमाला का श्रृँगार, मेधश्याम ठाड़ वस्र, पिछवाई-सफेद जरी की।

विशेषता :- आज चैत्र गुलाब की फूलमंडनी बनती है और श्रीनाथजी राजभोग दर्शन में उसमें बिराजते हैं।

चैत्र कृष्णा ५ (रंग पंचमी)

श्रृंगार :- गुलाबी जरी के वस्र, काछनी, श्रीमस्तक पर सलमे सितारे का मुकुट, जड़ाउ आभूषण, वनमाला का श्रृँगार, सफेद ठाड़ वस्र, पिछवाई-चित्रकला की जिसमें कृष्ण बलदेव हाथी पर बैठे फाग की सवारी में देखे जाते हैं।

विशेषता :- आज कई स्थानों में डोल झूलते हैं। पहले आज के दिन फाग की शोभायात्रा भी निकलती थी।

चैत्र शुक्ला १ (नव-वर्ष)

श्रृँगार :- लाल छापा के वस्र, चाकदार खुला बंध का बागा, हरे छापे का सूथन, श्रीमस्तक पर कुलहे, मोर पंख का जोड़, उत्सव के आभरण, वनमाला का भारी श्रृँगार, मेघश्याम ठाड़ वस्र, पिछवाई-त्रिशूल की लाल पिछवाई हरे हाँसिया वाली।

विशेषता :- श्रृँगार में नये वर्ष का पंचाग भगवान् को सुनाया जाता है। आज राजभोग में फूलों की दुहेरी मंडनी (शाहीवान वाली) में श्रीजी बिराजते हैं।

चैत्र शूक्ला ३ (गणगौर)

श्रृँगारः - चौफूली चूंदड़ी के वस्र, खुले बंध का चाकदार बागा, श्रीमस्तक पर सादा पाग, नागफणी का जमाव का कतरा, जड़ाव का आभरण, मध्य का श्रृँगार, हरे ठाड़ वस्र, पिछवाई-चूंदड़ी की।

विशेषता: - आज से लेकर तीन दिन तक राजस्थान में "गणगौर' का मेला लगता है अतः यहाँ भी मनोरथ होता है तथा चूंदड़ी के भाव के पद होते हैं।

चैत्र शूक्ला ५ (गुलाबी गणगौर)

श्रृँगार :- गुलाबी वस्र, घेरदार बागा, श्रीमस्तक पर गुलाबी पाग, गुलाबी मीना के आभरण, छोटा श्रृँगार, गुलाबी ठाड़ वस्र, पिछवाई-गुलाबी। इसके अतिरिक्त खण्ड, गादी, तकिया और बिछात सब गुलाबी रंग के होते हैं।

विशेषता: - आज के दिन भगवान गुलाब का सीरा (हलुआ) तथा गुलाब की कतली अरोगते हैं। रात्रि को गुलाब की शय्या बिछती है। कभी-कभी मनोरथ होने पर केवल गुलाब की फूलमंडनी भी होती है।

चैत्र शुक्ला ६ (श्रीयदुनाथजी का उत्सव)

श्रृँगार :- केसरिया वस्र, खुले बंध का चाकदार वागा, श्रीमस्तक पर कुलहे, मोर पंख का जोड़, माणक मोती के आभरण, वनमाला का भारी श्रृँगार, मेघश्याम ठाड वस्र, पिछवाई-केसरिया।

विशेषता :- श्रीयदुनाथजी गुसाईंजी के छठे लालजी तथा "वल्लभ दिग्विजय' के रचयिता हैं।

चैत्र शुक्ला ९ (राम नवमीं)

श्रृँगार :- केसरिया वस्र, चाकदार बागा, श्रीमस्तक पर कुलहे, मोरपंख का जोड़, जड़ाउ उत्सव के आभरण, वनमाला का भारी श्रृँगार, सफेद ठाड़ वस्र, पिछवाई-जन्माष्टमी वाली लाल।

विशेषता :- आज राजभोग में फूल की मंडनी आती है तथा श्रीवालकृष्णजी को पंचामृत स्नान कराया जाता है।

चैत्र शूक्ला १५ ( महारास समाप्ति)

श्रृँगार :- गुलाबी वस्र, काछनी, गुलाबी पटका, श्रीमस्तक पर हीरा का मुकुट, हीरा मोती के आभरण, वनमाला का श्रृँगार, सफेद ठाड़ वस्र, पिछवाई-चित्रकला की जिसमें महारास हो रहा होता है और व्रजांगनाएँ नृत्य कर रही हैं।

विशेषता :- श्रीमद्भागवतानुसार आज के दिन छः मास की रात्रि पूर्ण हुई। अतः महारास की पूर्णता के उपलक्ष्य में यह अंतिम श्रृँगार श्रीकृष्णस्वरुप श्रीनाथजी को धराया जाता है।

वैशाख कृष्णा १० (श्रीगोवर्धनलालजी कृत पाँच स्वरुपों का उत्सव)

श्रृँगार :- कसुमल वस्र, काछनी, पटका, सूथन, श्रीमस्तक पर सलमा सितारे के काम का मुकुट, मोती और हीरा के आभरण, वनमाला का भारी श्रृँगार, सफेद ठाड़ वस्र, पिछवाई-चित्रकला की जिसमें गाऐं और चार स्वरुप विराजमान है।

विशेषता :- आज के दिन श्रीगोवर्धनलालजी महाराज ने पाँच स्वरुप श्रीजी में पधरा कर छप्पन भोग किया था जिसमें श्री विट्ठलनाथजी, श्रीद्वारिकानाथ जी और श्रीमथुरानाथजी पधारे थे।

वैशाख कृष्णा ११ (श्री महाप्रभुजी का उत्सव)

श्रृँगार :- केसरिया वस्र, खुले बंध का चाकदार वागा, श्रीमस्तक पर कुलहे, मोर पंख का जोड़, जन्माष्टमी के अनुसार श्रृँगार परन्तु सफेद ठाड़ वस्र, मोती का चौखटा, पिछवाई-केसरिया।

विशेषता :- आज ही के दिन महाप्रभु श्रीवल्लभाचार्यजी का प्राकट्य हुआ था। आज डोलतिवारी में चंदन का काम का बंगला आता है। मध्याह्यन में मणिकोठे में प्रभु हिंडौला शैय्या पर पौढ़ते हैं। यह आज से शुरु होकर जन्माष्टमी तक रहती है।

वैशाख कृष्णा १२

श्रृँगार :- केसरिया वस्र, खुले बंध का चाकदार वागा, श्रीमस्तक पर कुलहे, मोर पंख का जोड़, जन्माष्टमी के अनुसार श्रृँगार परन्तु सफेद ठाड़ वस्र, मोती का चौखटा, पिछवाई-केसरिया। पिछवाई जिसमें चम्पारण्य के मध्य अग्निकुँड में श्रीवल्लभ खेलते हैं। दूसरी ओर माता इल्लमागारु तथा पिता श्रीलक्ष्मण भ अपने पुत्र श्रीवल्लभ को गोदी में खिलाते हुए हैं।

विशेषताऐं :- आज के दिन ही आचार्य श्रीवल्लभ को माता ने अंक में लेकर स्तनपान कराया था।

वैशाख शुक्ला ३ (अक्षय तृतीया)

श्रृँगार :- चंदन की कोर के सफेद वस्र, पिछौड़ा, श्रीमस्तक पर कुलहे, तीन मोर पंख का जोड़, कुण्डल, मोती के आभरण, मध्य का श्रृँगार, चंदनी ठाड़ वस्र, मोती का चौखटा, पिछवाई-सफेद मलमल की जिस पर रुपहरी किनारी लगी है।

विशेषता :- आज से सारे मंदिर में खस के पर्दे लग जाते हैं और निर्मल जल का छिड़काव शुरु हो जाता है। राजभोग के समय श्रीनाथ-प्रभु के वक्षस्थल पर श्रीहस्त पर तथा चरणारविन्द में चंदन धराया जाता है। शीतल सामग्री का भोग आता है। आज के दिन ही श्रीपरशुरामजी का प्राकट्योत्सव माना जाता है।

वैशाख शुक्ला १४ (नृसिंह जयन्ती)

श्रृँगार :- केसरिया पिछौड़ा, श्रीमस्तक पर कुलहे, मोरपंख का जोड़, कुण्डल, हीरे के आभरण, वनमाला का श्रृँगार, पिछवाई-केसरिया।

विशेषता: - आज संध्या आरती के पश्चात् श्रीनृसिंह भगवान का जन्म होता है। उस वक्त श्रीशालग्रामजी को पंचामृत स्नान कराया जाता है। ज्येष्ठ और आषाढ़ के महीने में फूलों के आभरण और फूलों के वस्रादि के श्रृँगार होते हैं। जैसा श्रृँगार प्रातःकाल होता है वैसा ही फूल निर्मित श्रृँगार संध्या भोग आरती में भगवान को धराया जाता है। पाँच अभ्यंग होते हैं।

ज्येष्ठ कृष्णा २ (श्रीदाउजी महाराज कृत चार स्वरुप का उत्सव)

श्रृँगार :- केसरिया वस्र, पिछौड़ा, श्रीमस्तक पर बीच का दुमाला, मोती के कुण्डल, मोती के आभरण, मध्य का श्रृँगार, पिछवाई-केसरी।

विशेषता :- सर्वप्रथम आज के दिन ही श्रीमथुरानाथजी, श्री विट्ठलनाथ जी तथा श्रीगोकुलनाथजी नाथद्वारा पधारे थे।

ज्येष्ठ कृष्णा १० (यमुना दशमी)

श्रृँगार :- सफेद वस्र, आड़वन्द, श्रीमस्तक पर सफेद पाग, मोती के आभरण, सबसे छोटा श्रृँगार, पिछवाई-सफेद।

विशेषता :- राजभोग पश्चात् डोलतिवारी में ध्रुवबारी के नीचे सिंहासन तथा खण्डपाट आता है। मणिकोठा और डोलतिवारी में जल भरा जाता है। अनेक बालक उसमें जल विहार करते हैं।

ज्येष्ठ शुक्ला ५ (नाव का मनोरथ)

श्रृँगार :- गुलाबी वस्र, परदनी, श्रीमस्तक पर लटपटी पाग, गोल चंद्रिका, हीरा के आभरण, छोटा श्रृँगार, पिछवाई-चित्रकला की जिसमें गणगौर-धाट उदयपुर में नाव की सवारी हो रही है और ग्वालों सहित श्रीकृष्ण नाव में बिराजे हुए हैं।

विशेषता :- राजभोग अनन्तर डोलतिवारी तथा आधे रतन चौक में जल भरा जाता है। बड़ी नाव सुसज्जित होकर श्रीमदनमोहनजी उसमें बिराजते हैं। तिलकायतश्री भगवान् को नाव द्वारा इधर-उधर विहार करवाते हैं। श्रीमदनमोहन जी के अन्दर पधारने के साथ ही जल छोड़ दिया जाता है। उस समय अनेक भावुक भक्त, महिलाएँ तथा बालक जल में किलोल करते हैं।

ज्येष्ठ शुक्ला १० (गंगा-दशमी)

श्रृँगार :- केसरिया वस्र, पिछौड़ा, श्रीमस्तक पर पाग, मोरपंख की चंद्रिका, मोती के आभरण, मध्य का श्रृँगार, पिछवाई-केसरिया।

विशेषता :- आज के दिन वर्तमान तिलकयतश्री गादी बिराजे थे। राजभोग के बाद डोलतिवारी तथा मणिकोठे में जल भरा जाता है।

ज्येष्ठ मास में उत्सवों के पूर्व, दिन में केसर, गुलाबजल व बरास मिश्रित जल से वस्र रंगे जाते हैं और उन्हीं वस्रों से प्रभु को वायु झली जाती है।

ज्येष्ठ शुक्ला १४ (चतुर्दशी)

श्रृँगारः - किनारी का गुलाबी आडबन्द, श्रीमस्तक पर पाग, सफेद मोरपंख का कतरा, मोती के आभरण, छोटा श्रृँगार, पिछवाई-सफेद कसीदा की जिसमें ब्रजभक्त भगवान को स्नान कराते हुए होते हैं।

विशेषता :- आज के दिन श्रृँगार करके तिलकायतश्री अपने मुख्य सेवकों के साथ वनास नदी स्थित "चूआ' (श्रीजी के निजी जलाशय) से जल भरकर लाते हैं। इसके बाद दिन जल भरने की सेवा चालू रहती है। शयन के समय इस जल का अधिवासन होता है।

ज्येष्ठ शुक्ला १५ (स्नान यात्रा)

श्रृँगार :- कमल बूँटा वाले चंदन के सफेद वस्र, पिछौड़ा, श्रीमस्तक पर कुलहे, पाँच मोरपंख को जोड़, कुण्डल, वनमाला का श्रृँगार, मोती के आभरण, पिछवाई-कमल बूँटे वाले चंदन के सफेद वस्रों की।

विशेषता :- मंगला आरती के पश्चात् भगवान श्रीनाथजी सफेद धोती उपरणा धराते हैं। फिर तिलकायश्री के स्वजाति बन्धुओं के मन्त्रोच्चार के साथ प्रभु का अभिषेक होता है। आज के दिन प्रभु गोपीवल्लभ भोग में सवालाख आम अरोगते हैं।

आषाढ़ कृष्णा १ (ति. श्री गोवर्धनलालजी महाराज कृत गादी उत्सव)

श्रृँगार :-गुलाबी वस्र, परदनी, श्रीमस्तक पर लटपटी पाग, हीरा की कलगी, हीरा के आभरण, अलकावली, छोटा श्रृँगार, पिछवाई-चित्रकला की, जिसमें गोवर्धन की कन्दरा में स्वामिनी श्रीराधिका श्रीनाथजी से लिपटी हुई हैं।

विशेषता :- आज ति. श्रीगोवर्धनलालजी महाराज गादी पर बिराजे थे। आज के दिन प्रभु आम की तवापूरी अरोगते हैं।

आषाढ़ शुक्ला २ (रथयात्रा)

श्रृँगार :- सुनहरी घोरा के वस्र, पिछौड़ा, श्रीमस्तक पर कुलहे, मोरपंख का जोड़, मोती के आभरण, वनमाला का श्रृँगार, केसरिया ठाड़ वस्र, मोती का चौखटा, पिछवाई-धोराकी।

विशेषता: - आज भी गोपीवल्लभ में भगवान सवा लक्ष आम अरोगते हैं। भगवान के सम्मुख रजत-रथ रक्खा जाता है। आज के दिन से ही खस के पर्दे और पंखा हट जाता है तथा छिड़काव व फव्वारा बंद हो जाता है।

आषाढ़ शुक्ला ३-४ (रथयात्रा का दूसरा दिन)

श्रृँगार :- सफेद डोरिया के सुनहरी वस्र जिस पर सुनहरी फूल हो, आड़बन्द, श्रीमस्तक पर कुलहे, तीन मोरपंख का जोड़, कुण्डल, हीरा के आभरण, मध्य का श्रृँगार, ठाड़वस्र नहीं, पिछवाई-वस्रानुसार।

विशेषता :- वर्ष भर में यह एक ही श्रृँगार होता है जिसमें भगवान आड़बन्द पर कुलहे धारण करते हैं।

आषाढ़ शूक्ला ६ (कसुंभा-छठ)

श्रृँगार :- कसुमल वस्र, पिछौड़ा, श्रीमस्तक पर पाग, सादा चंद्रिका, चार कर्ण-फूल, मोती के आभरण, वनमाला का भारी श्रृँगार, पिछवाई-कसीदा की, जिसमें भारत व जापानी कला का समन्वय होता है।

विशेषता :- आज महाप्रभु श्रीवल्लभाचार्य के पूज्य पिता श्रीलक्ष्मणभट्टजी का जन्म दिवस माना जाता है। श्रीविट्ठलनाथजी के घर से आने वाले श्रीगोविन्दजी का गादी उत्सव भी आज ही है। आज से रंगीन वस्र का इस्तेमाल शुरु हो जाता है।

आषाढ़ शुक्ला ११ (एकादशी)

श्रृँगार :- गुलागी वस्र, काछनी, सूथन, पटका, श्रीमस्तक पर सलमा सितारे सिर मुकुट, मोती के आभरण, वनमाला का श्रृँगार, सफेद ठाड़ वस्त, पिछवाई-गुलाबी मलमल की।

विशेषता :- आज भोग आरती में फूल की कली निर्मित मुकुट काछनी का अन्तिम श्रृँगार होता है। उस समय पिछवाई श्याम कला की धराई जाती है।

आषाढ़ शुक्ला १४ (चतुर्दशी)

श्रृँगार :- सफेद मलमल बिना किनारी के वस्र, परदनी, श्रीमस्तक पर खिड़की की पाग, मोरपंख का सफेद कतरा, मोती के आभरण, एकदम छोटा श्रृँगार, पिछवाई-वस्रानुसार।

विशेषता :- आज भोग आरती में वनस्पतियों की वनमाला तथा गोवर्धन माला श्रीजी को अंगीकार कराई जाती है।

आषाढ़ शुक्ला १५ (व्यास पूर्णिमा या आषाढ़ी)

श्रृँगार :- इकदली चूँदड़ी के वस्र, काछनी, सूथन, पटका, श्रीमस्तक पर मोती का मुकुट, मोती के आभरण, वनमाला का भारी श्रृँगार, सफेद ठाड़ वस्र, पिछवाई-चित्रकला की जिसमें वर्षा का आगमन और "गुगी' ओढ़े हुए ग्वालबाल हैं।

विशेषता :- आज का दिन भगवान् वेदव्यास का प्रार्दुभाव दिवस माना जाता है। श्रीजी आज के दिन सामग्री में कचौरी विशेष रुप से अरोगते हैं अतः इस दिन को "कचौरी-पूनम' भी कहा गया है।

उपर्युक्त वर्ष भर के महामहोत्सवों की वैभवपूर्ण सेवा देखकर परमैश्वर्य-शाली श्रीनाथजी के अलौकिक माहात्म्य का परिचय मिल जाता है। परिस्थितयों में बहुत तरह के बदलाव आ चुके हैं फिर भी श्रीजी की सेवा उसी परंपरा के अनुसार चल रही है।

 

विषय सूची


Top

Copyright IGNCA© 2003