राजस्थान

श्रीनाथजी के अष्ट दर्शन

अमितेश कुमार


श्रीनाथजी की सेवा बाल भाव से होती है अतः प्रभु को बार-बार भोग लगाया जाता है। बालक पर किसी की दृष्टि न पड़ जाये उनको दर्शन कुछ समयान्तराल पर बीच-बीच में खुलते हैं जिन्हें झांकी भी कहा जाता है। उत्सवों जैसे जन्माष्टमी, नन्दमहोत्सव, अन्नकूट, बसन्तपंचमी, फूलडोल, रामनवमी, अक्षय तृतीया एवं ग्रहणादि में इसे विशेष दर्शन के लिए खोला जाता है।

गर्मी के दिनों में बालक को प्रातःकाल सुखद नींद आती है अतः मंगला के दर्शन (पहला दर्शन) देर से होता है। चूंकि सर्दी में बालक जल्दी उठकर कुछ खाना चाहता है अतः उन्हें जल्दी ही मंगल-भोग अरोगाया जाता है। इन दिनों दर्शन प्रातःकाल ४ बजे के लगभग शुरु हो जाता है। रात्रि को प्रगाढ़ निद्रा में सुलाने के लिए अष्टछाप कवियों के पदों का गान होता है। शयनान्तर बीन बजाई जाती है। ग्रीष्मकाल में पंखे झुलाए जाते हैं तथा शीतकाल में उष्णता पहुँचाने की भावना से अंगीठी रखी जाती है। भगवान के अष्ट दर्शनों का उल्लेख इस प्रकार है:-

१. मंगला

श्रीनाथजी को प्रातःकाल शंखनाद करके जगाया जाता है। उसके बाद ये दर्शन के लिए खुलते हैं। गर्मी में आड़बन्द और उपरणा आदि का हल्का श्रृंगार होता है वही शीतकाल में दुग्गल धारण करते हैं। ये दर्शन बाल-कृष्ण के भाव से होता है। दर्शन में आरती उतारी जाती है।

२. श्रृंगार

मंगला दर्शन के पश्चात् प्रभु का स्नानादि कराकर वस्रालंकार धारण कराया जाता है। दर्शन की समय-सीमा श्रृंगार पर निर्भर करती है। यह दर्शन श्रीगोकुलचन्द्रमाजी के भाव से होता है।

३. ग्वाल

श्रृंगार के बाद श्रीजी दर्शन के लिए खुलते हैं। ये दर्शन श्रीद्वारिकानाथजी के भाव से खुलते हैं।

४. राजभोग

गोवर्धन निवास के दौरान प्रभु का घर चन्द्रसरोवर पर था अतः राजभोग के लिए फूल धारिये को जोर से आवाज ही जाती थी। उसी भावना के अनुसार आज भी एक सेवक द्वारा छत से बुलन्द आवाज में माला बोली का प्रचलन है। माला बोलने के कुछ ही समय बाद ये दर्शन के लिए खुलते हैं। प्रातःकाल का यह सबसे बड़ा दर्शन है। दर्शन देवाधिदेव श्रीनाथ जी के भाव से किया जाता है।

 

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