राजस्थान |
मारवाड़ियों का बेजोड़ रुप लावण्य एवं व्यक्तित्व अमितेश कुमार |
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किसी भी समाज के व्यक्तित्व का विश्लेषण करने में उसके रुप-रंग और शारीरिक बनावट का विशेष महत्व होता है क्योंकि चरित्र अथवा व्यक्तित्व का आधार मात्र यह मानव शरीर ही है। प्रकृति ने मारवाड़ियों को सुन्दर, चित्ताकर्षक देह व रंग-रुप प्रदान किया है। रुप के पारखी यह भली-भांति जानते हैं कि भारतवर्ष में रुप-रंग व शारीरिक सुडौलता की दृष्टि से सुंदर लोग सौराष्ट्र से लेकर कश्मीर तक विशेष रुप से मिलेंगे पर उनमें भी मारवाड़ के लोगों का रुप तो सुन्दरतम कहा जाये तो कोई अतिशयोक्ति नहीं होगी।
मारवाड़ी पुरुष औसत मध्यम कद वाली होते हैं। उनका गेहुँवा अथवा लाल मिश्रित पीत वर्ण रुप-लावण्य का प्रतीक है। फिर उनके श्याम कुन्तल बाल, गोल शिर, मृगनयन, शुक-नासिका, मुक्ता सदृश्य दंत, छोटी मुँह-फाड़ व ओष्ठ, गोल ठोड़ी, दबी हुई हिचकी, लंगी ग्रीवा, भौहों से भिड़ने वाली बिच्छु के डंक तुल्य काली मूंछे व नारियल के जटा सी लम्बी दाढ़ी, केहरी कटि व छाती, लंबे हाथ व नीचे का मांसल तंग को प्रकृति ने बड़ी चतुराई से बनाया है।
जिन प्रदेश के पुरुषों का रुप भी जब इतना मन-मोहक है तब उन माताओं के रुप-लावण्य का तो बखान कहाँ तक करें जिनके कोख से सुडौल सन्तति का जन्म होता है। माखण, भूमल, सूमल, भारमली, जैसी अनिंद्य सुन्दरियों की कहानियाँ कपोल-कल्पित नहीं हैं वरन् गाँव-गाँव में ऐसी पद्मनियां देखी जा सकती है। पूंगलगढ़ की पद्मनियां तो जग-विख्यात रही हैं, जिनका पूर्वी भाग मारवाड़ प्रदेश के अंतगर्त आता है। ऐसी पद्मनियां जब सोलह श्रृंगार कर निकलती है तो इन्द्र की अप्सराओं के तुल्य प्रतीत होती हैं।
यहाँ के नर-नारियों का वर्णन किसी कवि के द्वारा इस प्रकार मिलता है:-
मारवाड़ के नर-नारियों के रुप का जितना बखान करें उतना अल्प रहेगा पर उससे भी अधिक महत्वपूर्ण यहां के जनसाधारण का उच्च वयक्तित्व है। युगों के संस्कारमय जीवन ने मारवाड़-वासियों के व्यक्तित्व को बारीकी से तराशा है। सरल स्वभाव, वचन पालन, अतिथि सत्कार, आडम्बर शून्यता, कुशल व्यवहार, परिश्रमी जीवन, मीठी बोली, आस्त्कि, मारवाड़ी वयक्तित्व के अभिन्न अंग हैं। ये सभी लक्षण न्यूनाधिक रुप में सत्पुरुषों के गुणों के नजदीक हैं जैसा कि कवि-कुल-शिरोमणि बाल्मीकि ने कहा है, "प्रशमश्च क्षमा चैव आर्जव प्रियवादिता' अर्थात शांति, क्षमा, सरलता और मधुर भाषण ये सत्पुरुषों के लक्षण हैं। जनसाधारण के व्यक्तित्व स्तर से ऊपर यहां के अधिक संस्कार संपन्न समुदायों में व्यक्तित्व का वह उच्च स्तर अभी भी देखने को मिलता हैं जो आज के भौतिक व भोग प्रधान युग में लगभग समाप्त हो चुका है। जिसका आकलन एक दोहे के द्वारा इस प्रकार किया गया है:-
मारवाड़ के सत्-पुरुषों के वचन पालन की जीवन घटनाएँ हमारी संस्कृति और इतिहास की बड़ी महत्वपूर्ण घटनाएँ है। पाबूजी राठौड़ द्वारा देवल चारणी को दिए वचन, वीर तेजा जी के लाछा गूजरी व विशधर सपं को दिए गए वचन, बल्लू जी चंपावत द्वारा अपने पिता गोपीनाथ जी, अमरसिंह जी राठौड़ व उदयपुर महाराणा को दिए गए वचन, जाम्भोजी द्वारा राव हूदा जी (मेड़ताधिपति) को दिए वचन आदि की कहानियों से मारवाड़ की संस्कृति व इतिहास से लोग सुपरिचित हैं। ये लोग यह भी भली-भांति जानते हैं कि मारवाड़ में जगह-जगह वचनसिद्ध महापुरुषों के दृष्टांत विद्यमान हैं जो मरुवासियों को सतत् प्रेरणा देते रहेंगे।
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