राजस्थान |
मकराने के संगमरमर का स्थापत्य-कला में योगदान प्रेम कुमार |
मकरानेसे उपलब्ध संगमरमर ने यहाँ की स्थापत्य कला को कई रुपों में प्रभावित किया है। यह सफेद रंग का चमकीला पत्थर कीमती होने के कारण यहां के आवासगृहों में तो कम प्रयुक्त हुआ है फिर भी राज प्रासादों व मुख्य इमारतों में इसका प्रयोग देखने को मिलता है। इस पर बारीक खुदाई का कार्य बड़ा सुन्दर व मनमोहक लगता है किन्तु मध्यकाल में न तो इतने कल-कारखाने थे न यंत्र व विकसित उपकरण थे। यातायात के साधनों की कमी भी थी। उपलब्ध साधन महंगे थे। अतः इसका प्रयोग हमें निजी आवास-गृहों में कम देखने को मिलता है। मूर्तिकला में इस पत्थर का प्रयोग प्राथमिकता के साथ किया गया। प्रत्येक मन्दिर में स्थित प्रायः सभी मूर्तियां इसी पत्थर से निर्मित हैं जिनमें हिन्दू देवी-देवताओं के साथ्#ं जैन तीथर्ंकरों की मूर्तियां भी इसी पत्थर की बनी हुई मिलती हैं। कृष्ण-विग्रह की मूर्तियों को काले संगमरमर से भी बनाने का रिवाज है। इस प्रकार संगमरमर का मत्थर मारवाड़ की स्थापत्य कला में भव्यता व सम्पन्नता का परिचायक होते हुए भी लोगों की धार्मिक आस्था से जुड़ा रहा। जिसका प्रमुख कारण इसका मूर्तिकला में प्रयोग होना रहा है। मुगलों के काल में यहाँ के राजप्रासादों में भी इसके प्रयोग में अधिकता आई।
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