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मध्यकाल में मारवाड़ की जनता के आमोद-प्रमोद के अपने कुछ साधन रहे है जिसके माध्यम से यहाँ का जन-जीवन आह्यादित व आनन्दित होता रहा है। मनोरंजन के साधन कहीं न कहीं सामाजिक व्यवस्थाओं से प्रभावित था। विविध अवसरों पर आयोजित होने वाले मेलों व पवाç का खास महत्व होता था। सांस्कृतिक महत्व के ये आयोजन मानव भी स्वाभाविक मनोरंजन की प्रवृति को भी बहुत हद तक संतुष्ट करने में सक्षम थे। धार्मिक महत्व के आयोजनों में यह प्रवृत्ति कम भी देखने को मिले किन्तु अन्य संस्कार जन्म, उत्सव, सामाजिक पर्व एवं पारिवारिक उत्सवों में आमोद-प्रमोद की बहुलता होती थी। सारे आयोजन बहुत उत्साह व धूमधाम से मनाए जाते थे जिसमें हर एक स्री-पुरुष भाग लिया करते थे। त्योहारों में होली, दीपावली, गणगौर, रक्षा बंधन, अक्षय तृतीया, दुर्गाष्टमी व तीज प्रमुख हैं। इसी
प्रकार यहाँ आयोजित होने वाले विभिन्न मेले व पर्व-त्यौहार
लोगों के आमोद-प्रमोद व मनोरंजन के सहज-सुलभ साधन थे। मनोरंजन के कुछ अन्य साधनों का भी उल्लेख किया जा रहा है।
आखेट
मध्यकालीन मारवाड़ में राज परिवार, सामन्तों व जागीरदारों के मनोरंजन का एक प्रमुख साधन आखेट रहा है। इसमें घुड़सवारी करने, गोली, तलवार, भाला और तीर चलाने जैसे युद्ध के तरीकों का प्रशिक्षण दिया जाता था, साथ-साथ मनोबिनोद भी हो जाता था।
आखेट में शेर, चीता, सूअर, हिरण, तीतर, बाटबउ आदि पशु-पक्षियों का शिकार किया जाता था। नरेशों व सरदारों में यह शाही व्यसन 'मृगया' के नाम से भी संबोधित किया जाता था। राजपूतों में शिकार का प्रचलन अधिक था। शिकार भेंट करने का भी प्रचलन था।
चौपड
विभिन्न साहित्यिक प्रमाणों से ज्ञात होता है कि मध्यकाल में चौपड़ का खेल बहुत लोकप्रिय रहा है। यह मनोरंजन का एक प्रमुख साधन रहा है। राजपूतों में चौपड़ खेलने का आम रिवाज था। विशेषकर नवविवाहित औरतों में यह खेल अधिक लोकप्रिय था। आज भी उनकी शादी में चौपड़ देने की प्रथा प्रचलित है। इस खेल के कारण आपस में कलह और झगड़ा भी हो जाया करता था। कहा जाता है कि इसी खेल में हार-जीत के मसले से उत्पन्न विवाद के दौरान राव चन्द्रसेन के पुत्र आसकरण एवं उग्रसेन आपस में लड़कर मर गए।
चौयान
वर्तमान पोलों की भांति मैदानों में खेले जाने वाले खेलों में चौगान एक प्रमुख खेल था लेकिन यह शाही खेल शासकों व उच्च अधिकारियों के मनोरंजन तक ही सीमित था।
घुड़दौड़
कुलीन वर्ग के लोगों में समय-समय पर घुड़दौड़ प्रतियोगिता का प्रचलन था।
इसके अतिरिक्त यहाँ कुश्ती भैंसों व भींडों की लड़ाई, नृत्य आदि भी होते थे।
आज जनता के बीच लोकनाटक, तमाशे, ख्याल, कठपुतली, स्वांग, रामलीला, कच्छी घोड़ी, बहरुपिया स्वांग आदि भी मनोरंजन के साधन हुआ करते थे। लोक संगीत व लोक नृत्य
में भी जनता दिलचस्पी लेती थी।
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