राजस्थान |
मेवाड़ वासियों का दैनिक जीवन अमितेश कुमार |
ग्राम- बस्तियों का दैनिक जीवन प्रातः ३ बजे से प्रारंभ हो जाता था। दैनिक नित्य"- कर्म से निवृत होने के बाद स्रियाँ आटा पीसने बैठ जाती थी। प्रायः प्रतिदिन दैनिक उपभोग के हिसाब से एक- दो सेन अनाज पीसा जाता था। इसके बाद वे कुँए से पानी लाने का काम करती थी। दूसरी तरफ कृषक लोग उषा- बेला में ही हल, बैल व अन्य मवेशियों को लेकर खेत चल देते थे। दिन भर काम करने के बाद सायंकाल ५-६ बजे घर आते थे। स्रियाँ प्रातः कालीन गृह- कार्य से निवृत्त होकर पुरुषों का हाथ बँटाने के लिए खेत से घर पहुँच जाती थी। साथ में दिन का भोजन भी ले जाती थी। जो प्रायः राब या छाछ, जब या मक्की की रोटी और चटनी- भाजी होती थी। वृद्धाएँ घर में बच्चों की देखभाल करती थीं। बच्चे बड़े होकर गोचरी का कार्य करते थे। सायंकाल में किसान इंधन तथा पशुओं के चारे के साथ घर लौटते थे। साल में खेती के व्यस्ततम दिनों में फसल की पाणत (सिचाई) के लिए रात को भी खेत में रहना पड़ता था। उसी तरह पके हुए फसलों की सुरक्षा के लिए भी किसान खेतों में बनी डागलियों में रात बिताते थे। फसल कटाई के लिए पूरा परिवार खेत में जुट जाता था। वही व्यावसायिक जातियाँ अपना पूरा दिन कर्मशालाओं में बिताते थे। वहीं वे दिन का भोजन करते थे। शाम में लौटकर भोजन के बाद लोग पारस्परिक बैठक, खेलकूद, किस्से कहानियों, भजन- कीर्त्तन व ग्राम्य स्थिति की चर्चा के माध्यम से आमोद- प्रमोद करते थे। सर्दियों में लोग अलाव के चारों तरफ लंबी बैठकियाँ करते थे। ग्राम्य- नगरों का जीवन वैसे तो ग्राम्य- जीवन के प्रभाव से मुक्त नहीं था, लेकिन लोगों के पास साधन होने की स्थिति में वे "भगतणों' का नृत्य देखने, मुजरे सुनने, दरबारी क्रिया- कलापों में सेवकाई करने, भजन- कीर्त्तन तथा दरबार- यात्राओं की जय- जय करने में व्यस्त रहते थे। दैनिक गोठ (मित्र भोग), अमल- पानी, भांग, गांजा, शराब आदि का व्यसन कुलीन वर्ग के दैनिक जीवन का हिस्सा था।
|
|
Copyright IGNCA© 2004