Yugantar |
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प्रोफेसर
श्री उमानाथ झा |
दिन रहइक रवि । ५ अगस्त २००१ । रक्षाबन्धनक परात । दरभंगाक बेला गार्डेन अपन अतीतकें समेटने चुपचाप बीतल जा रहल अछि... राजाबहादुर विश्वेश्वर सिंह, सैगल, पद्मश्री रामचतुर मल्लिक, मांगन खवास... आ बेनजीर... नृत्य, गीत, कविता, साहित्य आ कला... बेला गार्डेनक सड़क पर चलैत-चलैत एक गलीमे मुड़ि जाइत छी । छोटछीन ग्रीलक गेट । पैघ कैम्पस । दुमंजिला मकान । आमक गाछ, कनैलक फूल... बेली, जूही... झुमैत गाछ, हँसैत... पात... हरियर साड़ी पहिरने धरती - दरभंगामे एकटा द्वीप जकाँ.... हमरा देखितहि ड्राइंग रुमसँ बाहर भए आदरणीय उमानाथ बाबू दरबज्जाक सिकड़ी खोलए लगलाह...जखन गेट खुजलैक तँ पएर छुबिक' प्रणाम कएलियनि - समय पहिनहिसँ निर्धारित रहय... घड़ीमे एगारह बजैत रहैक... मैथिलीक प्रसंग कथा-लेखन.. साहित्य आदिक प्रसंग इन्टरव्यू । कहलनि... चलू... ड्राइंग रुम... एखने अहाँकें फोन कएने रही... मुदा एंगेज्ड टोन- तखन अमरनाथकें फोन कएलियनि... ओतहु नहि लागल... तावत अहाँ पहुँचि गेलहुँ.. सामनेक पलंग पर बैसैत कहलनि, बैसू... "बैसू ने... ठाढ़ किएक छी ?..." हम सामनेक सोफा पर बैसैत कहलियनि. -"की अपनेक स्नान-ध्यान भ' गेलैक ।" -"देखू, स्नान-ध्यान आ जलखइमे हम कोनो सम्बन्ध नहि रखने छी । स्नान करब तखन जलखइ करब एहन कोनो नियम नहि... जलखइ भ' गेल छैक... कोनो बन्धन नहि । पूछू... अहाँकें जे पुछबाक हो..." -"अपनेक बाल्यकाल कत' बीतल ?" -"जन्म भेल मातृकमे, बाल्यकाल बीतल गाम महरैलमे, राजनगर-खर्रखमे आ इन्द्रपूजाक समयमे हम दरभंगा आबी- रामवागमे निवास रहैत छल ।... १९२९मे उपनयन भेल गाममे... महाराज रमेश्वर सिंहक देहान्त ओही साल भेल रहनि । हमर आचार्यगुरु रहथि पं. मथुरानाथ झा.. ओ रहथि संस्कृतक निष्णात विद्वान.. हुनकहिसँ हम अमरकोश, लघुकौमुदी आदि पढि संस्कृतक ज्ञान प्राप्त कएल । हमर आचार्य गुरु रहथि म.म. शिवकुमार मिश्रक शिष्य... शिवकुमार मिश्रक नाम सूनल अछि ?... अपन युगक रहथि ओ प्रकाण्ड विद्वान ।... तें हमर व्यक्तित्व पर आचार्यगुरुक प्रभाव पड़ल..." -"जी, प्रेरणा स्रोतक काज कएलनि... " -"देखू, बाल्यकालमे की प्रेरणास्रोत ?... प्रेरणआ की... ओतेक अवगति रहए बाल्यकालमे जे बुझितिऐक जे ओ हमर प्रेरणास्रोत छथि ?... तें कहलहुँ प्रेरणा की ?" -"जी, अपनेक पिताक नाम ?" -"पंडित कलानाथ झा।" -"हुनक जीविका ?" -"पहिने महेश्वर लता लोहना विद्यापीठ मे साहित्य-व्याकरणक अध्यापक रहथि । ठाढ़ीक शिवशंकर झा प्रिन्सिपल रहथिन । मुदा बादमे शिवशंकर बाबू जखन धर्मसमाज संस्कृत कॉलेज, मुजफ्फरपुरमे प्रिन्सिपल भ'क' चल जाइत रहलाह तँ हमर पिता प्रिन्सिपल भ' गेल रहथि।" -"अपनेक पिता आ आचार्यगुरु संस्कृत निष्णात विद्वान... तखन अपने अंग्रेजी शिक्षा दिस कोना प्रवृत्त भेलिऐक ?" -"पैतृक पक्षमे बड़ विरोध भेल । हमर पिताक इच्छा नहि रहनि जे हम अंग्रेजी पढ़ी । हुनक स्पष्ट मान्यता रहनि जे अंग्रेजी पढ़लासँ लोक नास्तिक भ जाइत अछि । धर्म-कर्म सबटा छुटि जाइत छैक । मुदा... " -"जी, मुदा... ?" -"हमर मातृकक प्रभाव... विशेष रुपसँ हमर माम बलभद्रबाबू हमर पिताकें कहलथिन जे संस्कृत पढ़लासँ की भेल ? कतेक वेतन भेटैक अछि ? संस्कृत अर्थकरी विद्या नहि थिक। हिनका अंग्रेजी पढ़ए दिऔन्ह । तें हम अंग्रेजी पढि सकलहुँ।" -"अपनेक शिक्षा ?" -"श्रोत्रिय परिवारमे जे परम्परा छैक... खर्रीसँ अक्षराम्भ भेल । ताहिसँ पहिनहि हम कतेक श्लोक रटि गेल रही जाहिमे सँ एक प्रमुख श्लोक एखनहुँ स्मरण अछि -
बाल्यकालमे सोझे श्लोक रटि लेने रही.. अर्थ नहि बूझल भेल । बादमे एहि श्लोकक अर्थ लागल। -"जी, अपनेक औपचारिक शिक्षा?" -"हम सरिसवक मिडिल स्कूलसँ मिदिल धरिक शिक्षा ग्रहण कएल ।... नवटोलक केशवबाबू हेडमास्टर रहथि। दरभंगाक राजस्कूलसँ मएट्रिकक परीक्षा उत्तीर्ण कएल । पटना साइन्स कॉलेजमे पढ़लहुँ आ आइ.एस-सी.क डिग्री प्राप्त कएल। पटना कॉलेजसँ अंग्रेजीमे आनर्स आ एम.ए.क डिग्री प्राप्त कएल ।"
किंट्रग-किंट्रग... किंट्रग... फोनक घण्टी बजैत अछि। उमानाथबाबू उठि क'
बगलक रुममे राखल फोन पर गप्प करए
लगैत छथि । बीयनि, दू तीन टा पेपर, पुरान टाइपक
सोफासेट, टेबुल.. टेबुलमे दराज, पेनस्टैण्ड, घड़ी, कोनमे एक कात स्टूल, स्टूल पर कलश, कलशमे
फूल.... रगील सेलोरा टीवी.. ऊपरमे नचैत
सिलिंग फैन.... साक्षात् सरस्वतीक वरदपुत्र... वाग्मती, फल्गू, गंडक, गंगाक तीर पर' अधीत मध्यापितमर्जितं यशः - अपराजेय शिक्षक... अंग्रेजी साहित्यक निष्णात विद्वान... पलंग पर बैसल छथि.. बालसुलभ आभा-मण्डल... हम सहज होइत कहलियनि- "हमर मोनमे जे प्रशन अबैत अछि से पूछए दिअ... अपने रोकू नहि..." ई गप्प सुनिक' उमानाथबाबू भभा-भभाक' हँस' लगलाह.. कहलनि- " अच्छा पुछू... जे पूछब से पूछू... कोनो बन्धन नहि ।" हम साकांक्ष होइत पुछलियनि- "अपने स्वदेशी की बिलैती ?" -"हम स्वदेशी... हमर सम्पूर्ण परिवार स्वदेशी कट्टर सनातन.. हमर पिता-पित्ती सब केओ। ओना राजसँ सब किछु अबैत छलैक... मुदा स्वयंपाक... राज दरभंगाक वहिष्कार ओ एक बड़ पैघ सामाजिक आन्दोलन रहैक । महाराज जे समुद्र-लंघन कए विदेश गेल रहथि.. से ताहिसँ सम्पूर्ण श्रोत्रीय समाजमे स्वदेशी - विलैती आन्दोलनक उद्भव भेल रहैक जे सब महाराजक संग रहलाह से सब विलैती आ जे महाराजक वहिष्कार कएल से स्वदेशी... बुझल किने ।" -"अपनेक आध्यात्मिक गुरु?" -"क्यो नहि । एहन गुरुक प्रति कोनो आस्था नहि । हँ तखन महर्षि रमण प्रभावित कएने रहथि । एखनुका नहि, पूर्वक सिरडीक साईं बाबाक प्रति किछु आस्था जागल छल... एकटा बात कहू..." -"जी, कहल जाए.. -"हम गहन गुरु सभक कतेक भाषण सुनने छी. गोष्ठी-संगोष्ठीमे गेल छी - इन्टलेक्चुअल लेभल अत्यन्त निम्न ... बौद्धिक स्तर कोनो उत्कर्ष नहि ।" -"आ रजनीश ?" मोन क्लान्त भ' उठलनि.. बजलाह-" रजनीश की ? बाल योगेश्वर की ? महेश योगी की ? सब व्यर्थ- सब बेकार.. कोनो आध्यात्मिक शक्ति नहि, कोनो ऊर्जा नहि । सब निस्तेज ।" हम गप्पक सूत्र पकड़ैत पुछैत छियनि - - जी, मुर्दाक्लबक प्रसंग कहल जाए ।...." -"देखू, मुर्दाक्लबक प्रसंग हम रमानाथ झा अभिनन्दनग्रन्थमे एक संस्मरण लीखि चुकल छी ।.... एहि नामक के प्रस्तावक छलाह से आब हमरा मोन नहि अछि । एकर स्थापना कोन दिन भेल से कहब असम्भव नहि तँ कठिन । एकर अधिष्ठाता छलाह रमानाथ बाबू, ओ सदस्य सर्वश्री सुभद्र बाबू, तंत्रनाथ बाबू, दीनाबाबू, सम्पादक जी अर्थात् श्री सुरेन्द्र झा 'सुमन' - ओहि समय मिथिला मिहिरक सम्पादक । श्री शचीनाथ जी यदा-कदा भाग लैत छलाह तें अर्द्धसदस्य आ हमरा लोकनि- अर्थात् हमर सहपाठी स्वर्गीय शंकर झा आ हम अवैतनिक लिपिकक कार्य करी । एम्हर पता चलल अछि जे..." -"की पता चलल अछि ?" -"यैह जे चन्दाझाक समयमे सेहो मुर्दाक्लबक रुपमे कोनो संस्था-समिति छलैक । कहेन छलैक ? की छलैक ? तकर विशेष सूचना नहि अछि ।" -"जी, अपने लोकनिक जे मुर्दाक्लब रहय तकर की उद्देश्य रहैक ?" -"हम एहि प्रसंग लिखने छियैक - १९३७-३८क प्रसंग थिक । तंत्रनाथबाबू परिषद्क मंत्री निर्वाचित भेल रहथि । परिषद्कें क्रियाशील करबाक विचार भेल... नव दिशामे ल' जयबाक विचार भेल । मुदा अपन समाजमे नव दिशामे चलनिहार व्यक्तिक बड़ विरोध होइत छैक... एकटा बात बुझैत छिऐक ?" -"जी, से की ?" -"उमानाथ बाबू गम्भीर होइत कहलनि- छिद्रान्वेषी सभ समाजमे रहैत छथि मुदा मैथिल तँ छिद्रान्वेषणकें अपन जन्मसिद्ध अधिकार बुझैत छथि तथा आलोचनामे हुनका सबसँ अधिक आनन्द भेटैत छन्हि। तें हमरा लोकनिक समाजमे कोनो नव काज कयनिहार व्यक्तिकें अपन त्वचा गेड़ाक खाल-सन बनायब आवश्यक । आ गेड़ाक खाल जँ कम संवेदनशील तँ मुर्दाक चमरा संवेदनहीन हेइत अछि । तें जखन मैथिलीमे योजनाबद्ध रुपें साहित्य निर्माणक विचार भेल तँ मुर्दाक्लबक स्थापना कएल गेल। -"मुर्दाक्लबक नीति की रहैक?" -"मुर्दाक्लबक नीति अधिनायक नहि, साम्यवादी रहैक । प्रकाशनार्थ प्रस्तुत सब सामग्रीक विषयमे विचार प्रकट करबाक सभकें समान अधिकार रहैक ।.... दीनबाबू द्वारा रुपान्तरित दुनू ग्रन्थक पाण्डुलिपि मूलसँ मिलएबाक हेतु हमरा देल गेल, यद्यपि सदस्य लोकनिक हम शिष्य वा तद्वतरही ।" -"अपने बाल्यकालेसँ मैथिलीक गति विधिमे रह' लगलिऐ तकर की कारण ?" -"तकर कारण भेलैक मुर्दाक्लब... साहित्यपत्र ! हम मएट्रिकमे पढ़ैत रही आ सब श्रेष्ठ जनसँ हमरा सम्पर्क आ सामीप्य रहय । राजस्कूलमे तंत्रनाथ बाबू हमर मास्टर रहथि । रमानाथ बाबूकें हमर अंग्रेजी पर विशेष भरोस भ' गेल रहनि साहित्यपत्रक प्रकाशनक क्रममे हम आ हमर अनन्य मित्र सहपाठी स्वर्गीय शंकर झा सक्रिय रुपें भाग लैत रही।" -"अपनेक पहिल रचना ?" -"हमर पहिल रचना थिक कथा ! रमानाथ बाबू मएट्रीकुलेशनक लेल एकटा संकलन प्रकाशित करैत रहथि । कहलनि- एकटा कथा लीखि क'द' जाउ ! हम हुनके आग्रह पर पहिल कथा लिखने रही... रमानाथबाबू अपन संकलनमे ओहि कथाकें प्रकाशित कएने रहथि । मुदा आब ओ कथा कतहु भेभैट नहि अछि.. दुर्लभ अछि...।" -"अपनेक पहिल कथा-संग्रह ?" -"हमर पहिल कथा-संगह थिक रेखाचित्र । ओहिमे एकटा कथा अछि आध घण्टा । हमरा अतिशय आनन्द भेल जखन कलीम साहेब पटनासँप्रकाशित एक उर्दू पत्रिकामे एहि कथाक अनुवाद प्रकाशित करौने रहथि- कलीम साहेब हमर शिक्षक रहथि । अंग्रेजीक उच्च कोटिक विद्वान- अंग्रेजी आलोचनाक प्रकाशस्तम्भ- मुदा हम जे मैथिलीमे पूर्णरुपेण अर्पित भेलहुँ से तकर कारण भेल डा. अमरनाथ झाक आत्मीयतापूर्ण उपदेश आ साहचर्य। हुनक हृदयमे मैथिलीक प्रति.... मातृभाषाक प्रति अनन्य आस्था रहनि ।" -"अपने जे मैथिलीमे कथा लिखलिऐक... तकर की कारण ?" -"देखू, हम पढ़लहुँ अंग्रेजी साहित्य..... ताहिमे एक-सँ-एक कथाकार छथि- ओहिमे एकठा भेल छथि Sarayon -ओ छोट-सँ-छोट स्टोरी लिखबामे सिद्धहस्त ।.. Stream of Consciousness - वर्जिनिया वुल्फ (Virginia Woolf ) आ जेम्स आदिक । कलेवर संक्षिप्त मनोवैज्ञानिक छैक- हमहूँ मैथिलीमे ओहने कथा लिखब आरम्भ कएल ।" -"एहि कथा सभ पर मैथिलीक आलोचक लोकनिक केहन प्रतिक्रिया रहलनि ?" -"नहि हम जनैत छी ।... अवसर नहि भेटल । प्रतिक्रिया देखाबक बुझाबाक समय नहि भेटल ।" -"रेखाचित्र कथा संग्रहक प्रकाशन कतऽसँ भेल रहइक ?" -"इहलाबादसँ । जयकान्त बाबू प्रकाशित कयने रहथि । पूर्वहिसँ जयकान्तबाबूक परिवारक संग घनिष्ठ सम्पर्क छल । हमर पिताक सहपाठी रहथिन म.म. जयदेव मिश्र रहथिन गुरु ।.... तें जयकान्त बाबूसँ पारिवारिक सम्पर्क रहल... ओ कहलनि हम छापब । हम कहलियनि- छापू । मुदा एकटा शर्त..." -"जी, कोन शर्त?" -"शर्त यैह जे पहिल संस्करणक कॉपीराइट जयकान्त बाबूक रहतनि- नो प्रॉफिट नो लॉस- मुदा दोसर संस्करण पर फेर हमर कॉपीराइट होएत । ओकरा पर हमर अधिकार। आब दोसर संस्करण हुनका छपएबा लेल दिअनि अथवा कतहु आनठाम छपाबी- ई हमर अधिकार होयत । जयकान्त बाबू शर्त मानलनि । रेखाचित्र छपल ।" -"जी, दोसर संस्करण कतऽसँ छपलैक?" उमानाथ बाबू उदास होइत कहलनि- "दोसर संस्करण कहाँ बहरएलैक ? वैह पहिल संस्करण- तकर बाद प्रकाशित कहाँ भेलैक ? हँ पी.एच.-डी.क शोध आदि लिखल गेल ओहि पर । जनिका प्रयोजन भेलन्हि से फोटो कॉपी करबाय ल' गेलाह । बिहार विश्वविद्यालयमे एक जन शोध करैत रहथि । हमरा स्मरण अछि जे हुनक गाइड आबि क' रेखाचित्रक फोटो कॉपी ल' गेल रहथि ।" -अतीत कथा-संग्रहक प्रकाशन कोना भेल रहैक ?" -अतीत कथा-संग्रहक प्रकाशन मैथिली अकादमीसँ भेल । 'भलामानुस' उपन्यासक लेखक योगानन्द झा हमरासँ एक साल जुनियर । मुदा हमर बड़ घनिष्ठ मित्र । एक बेरि ओ राँचीमे रहथि तँ हम जे राँची गेलहुँ तँ हुनकहि डेरा पर टिकल रही । जखन ओ मैथिली अकादमीक निदेशक रहथि तँ एक दिन दरभंगामे साँझमे हमर घर पर आएल रहथि । अबितहिं कहलनि- झोड़ा ल'क' आयल छी । 'रेखाचित्र'क बाद जे कथा अछि से सबटा द' दिअ ! हम अकादमीसँ छापब । आब हमरा पराभव । कोनो फाइलमे रहितय तँ फाइले द' दतियनि- किछु एतऽ-किछु ओतऽ- कोनहुना ताकिक' किछु कथा सब देलियनि- जे उपलब्ध रहय, जे भेटल- योगाबाबूक सत्प्रयाससँ अतीत कथा-संग्रह प्रकाशित भेल ।" -"अपनेके जे साहित्य अकादमीक पुरस्कार भेटल तकरा अपने कोन रुपमे ग्रहण कएलिऐक ?" उमानाथ बाबू प्रतिप्रश्न करैत कहलनि- "माने ?" -"माने अतिशय आनन्द भेल ?" -"नहि" -"अतिशय उल्लास भेल ?" -"नहि" -"आश्चर्य भेल ?" -"नहि" -"तखन.....?" -"तखन की ? सहज रुपमे ग्रहण कएल, ओना नीक होइतैक जे ओहि खेप निर्णायक लोकनि निर्णय लितथि जे कोनो पोथी पुरस्कारक योग्य नहि अछि । एक खेप की भेल से बूझल की ?" -"जी से की ?" हम स्वयं कएने छिऐक एहन । हम रहिऐक निर्णायक । रमानाथ बाबू प्रतिनिधि रहथि। हम लिखि क पठा देलिऐक जे कोनो पुस्तक पुरस्कारक योग्य नहि छैक । एना कैक खेप संस्कृतमे भेल रहैक । एक खेप बंगलामे सेहो भेल रहैक । मुदा ओहि सब भाषामे कोनो हल्ला नहि भेलैक । मुदा मैथिलीमै तँ बबन्डर मचि गेल हमर विरोधमे आ रमानाथ बाबूक विरोधमे कतेक हल्ला भेल ।" -"जी, कहल जाए अपनेक दृष्टिमे रेखाचित्र नीक अछि कि अतीत.कथा-संग्रह ?" प्रश्न सूनि क' उमानाथ बाबू निमिषमात्रक लेल मौन भ' गेलाह, फेर साकांक्ष होइत कहलनि- "हमरा अपनो कथा कि निबन्ध दोबारा महि पढ़ल पार लगैत अछि - तें हम कोना कहू जे कोन नीक ?" -"एहि दुनू कथासंग्रहक अतिरिक्त आर कथा सब अछि ?" -"हँ, बहुत कथा अछि । असलमे हम मिथिलाक्षरमे लिखल करैत छी । आब समस्या अछि जे लिप्यन्तर के करत ? पटनामे श्रीचन्द्रधर जी (मैथिली विभाग, पटना विश्वविद्यालय) लिप्यन्तर क' दैत छलाह । ओ मिथिलाक्षर आ देवाक्षरक नीक ज्ञाता छथि । बहुत कथा योगाबाबूकें नहि द' सकलियनि... बहुत कथा एमहर-ओमहर पड़ल अछि । असलमे हम कहियो प्रोफेसनल राइटर नहि भेलहुँ..... फरमाइसी राइटर रहलहुँ । तें सबटा सरिआओल नहि भेल ।" -"अपनेक अनुसार मैथिली कथाक तत्त्व की ? तकनीक की ?" -"हम तँ कोनो प्रोफेसनल राइटर छी नहि, फरमाइसी राइटर छी ।.... क्यो आग्रह क' देलनि, लीखि क' पठा देलियनि... रमानाथ बाबू कहलनि तँ लीखिक' द' देलियनि । प्रभास हमरासँ घनिष्ठ रुपें जुड़ल रहथि । 'कथादिशा'क विशेषांक प्रकाशित करैत रहथि, कहलनि तँ लीखिक' द' देलियनि... " -"जी, मैथिलीक कथाक तत्त्व आ तकनीक ?.." -"कहलहुँ ने, हम तँ कोनो प्रोफेसनल राइटर नहि छी, फरमाइसी लेखक छी । साहित्य अकादमीसँ जे पुरस्कार भेटल तँ आकाशवाणी मे इन्टरभ्यू लेलनि । हम ओतहु कहने रहियनि जे हम फरमाइसी कथाकार छी...." हम उद्विग्न होइत कहलियनि- "अपने प्रोफेसनल रही कि फरमाइसी ... कथा तँ लिंखितहिं छी ।... कहल जाए मैथिली कथाक तत्त्व की ? तकनीक की ?" उमानाथ बाबू मुस्कुराइत कहलनि- "मैथिली कथामे मिथिलाक माटि-पानिक सौरभ होएबाक चाही । टेकनिक कतहुसँ ली, कोनो टेकनिक उपयोग करी- मुदा मिथिलाक माटि-पानिक कथा नहि भेल तँ ओहेन मैथिलीक कथाक कोनो अर्थ नहि ।... एकटा रोचक गप्प कहै छी ।.." -"जी, कहल जाय " -"हमर जे अतीत कथा-संग्रह अछि ताहिमे एकटा कथामे हम एक प्रसिद्ध अंग्रेजी कविक कविताक उद्धरण देने छिऐक... मैथिली अकादमी सँ जखन छपल तँ प्रफूक अशुद्धि सँ एकटा शब्द अशुद्ध छपि गेलैक । शब्द रहैक 'चीफली' मुदा छपि गेलैक 'चीपली' ... 'फ' 'प' 'भ' गेलैक । मुदा मैथिलीक कतोक प्रबुद्ध आलोचक अतीतक समीक्षा करैत ओहि कविताक उद्धरण अविकल प्रस्तुत कएने छथि- वैह 'चीपली' ..." -"रेखाचित्र आ अतीतक अतिरिक्त अपनेक अन्य मैथिली प्रकाशन ...." -"साहित्य अकादमीसँ प्रकाशित अछि Songs of Vidyapati तथा मनोजदासक लिखल अरविन्द पर मनोग्राफक मैथिली अनुवाद । साहित्य अकादमी हमरा भार देने रहय Songs of Vidyapati हेतु १०० गीतक संकलन करबाक हेतु.... हम १५० गीतक संकलन कए साहित्य अकादमीक समक्ष प्रस्तुत कएलिऐक । हम स्वयं परामर्शदातृसमितिक सदस्य रही.. जयकान्त बाबू सेहो रहथि । जयकान्त बाबू हमर गीतक संकलन देखि बहस करए लगलाह जे एहिमे मात्र श्रृंगार रसक गीतक संकलन अछि । हम कहलियनि पूर्वाञ्चलमे विद्यापतिक जे लोकप्रियता छनि से हुनक श्रृंगार रसपूर्ण गीतक कारणे.... दोसर श्रृंगार आ भक्तिमे विभेद करब बड़ कठिन। बहुतो भक्तिरसक गीत-कविता आ श्लोक श्रृंगाररसक उत्कृष्ट उदाहरण थिक।... -"जी, मनोजदासक अरविन्द ?"
-"हँ, एहि कार्यमे हमरा बड़ परिश्रम भेल ।
मनोज दास अरविन्द पर जे मोनोग्राफ
लिखने छथि ताहिमे प्रतिशत अरविन्दक
उद्धरण देने छथिन । अरविन्दक चिन्तन, दर्शन, रहस्य
सबकें बूझि तखन अनुवाद करए पड़ल ।
अनुवाद कएलाक उपरान्त हरिमोहन बाबूकें देखए देलियनि आ जखन देखिक'
स्वस्ति देलनि तँ प्रकाशनक देतु पठा' देलिऐक ।" -"नहि, कविता.... कविताक रचना नहि । कविता नहि लिखलहुँ । हँ, तखन हमर एक पहिल आ आखिरी कविता अछि । यात्री पर केन्द्रित । चेतना समितिक यात्री स्मृतिसँ सम्बन्धित स्मारिकामे प्रकाशित भेल अछि। -"अपनेक अप्रकाशित रचना ?" -"निबन्ध अछि । संस्मरण अछि- काठमांडू धरि लिखल संस्मरण अछि । किछु कथा सब अछि । अरविन्द (पुत्र) कहने छलाह जे प्रकाशित करब मुदा एखन धरि सम्भव नहि भ' सकलैक ।" बेलागार्डेनक एहि भव्य एकान्त कैम्पसमे सोलहटा फूल आ अनेक फलक गाछ झूमि रहल अछि । छोटछीन बंगालीनुमा ड्राइंगरुम .... अनेक खिड़की...... खुजल खिड़की द' क' चल अबैत इजोत । हम आह्लादित होइत कहलियनि- "अपनेक कैम्पसक गाछ-पात.... ई हरीतिमा मोनकें झुमा रहल अछि..... " मुग्ध होइक उमानाथ बाबू कहलनि- एक बेरि हिन्दीक पाठकजी .... डा. रमाकान्त पाठक आएल रहथि । घूमि-घूमि क' देखने रहथि आ तखन कहलनि जे श्रीमान् अपनेक कैम्पसमे अनेक गाछ अछि, फलफूलसँ युक्त- मात्र बेल नहि अछि- बेलक गाछ- बेल पवित्र होइत छैक - बेलक गाछ लगाओल जाए..... से ठीके, तकर बाद दू गोट बेलक गाछ हम लगौलहुँ । एकटा तँ मरि गेल मुदा दोसर बाँचल अछि.... क्रमिक बढि रहल अछि । '' उमानाथ बाबू उदास होइत कहलनि- "" फल तँ हम नहि देखि सकबैक मुदा प्रत्यह बढ़ैत बेलक गाछकें देखि मोन प्रमुदित होइत अछि । '' -""जँ आज्ञा होइक तँ हम अपनेसँ समकालीन मैथिली साहित्यक प्रसंग किछु पूछए चाहैत छी ....'' उमानाथ बाबू किंचित विचलित होइत कहलनि- "" से की पूछब ? जाहि विषयमे हम कहियो सोचबे नहि कयलिऐक ताहि विषयमे हम की कहब ? एक बेर की भेल तँ पटनामे एकटा हिन्दी पत्रिकाक विशेषांक बहराइत रहैक- स्वाधीनता के पच्चीस वर्ष- हमरा आग्रह करैत गेलाह- मैथिलीक प्रसंग स्वाधीनता के पच्चीस वर्ष- हम कहलियनि- हिन्दी मे नहि देब, हिन्दीमे नहि लीखब- तखन अंग्रेजी अथवा मैथिलीमे द ' सकै छी । अंग्रेजीमे द ' देलियिनि । पछाति ओकर हिन्दी अनुवाद छपलैक । ओहिमे अंग्रेजीक एकटा शब्दक अनुवाद गलत छपि गेलैक- से जे पछाति ओ लेखक रुष्ट भेलाह से जुनि पूछू- जनिका प्रसंग ओ शब्द लीखल गेल रहैक । '' -"" ओ लेखक के रहथि ?'' -"" से नहि कहब !'' -"" ओ शब्द की रहैक ? '' -"" शब्द रहैक अंग्रेजीमे Forte । एहि बेरि कीर्तिनारायण मिश्र आएल रहथि- धोती, डोप्टा आ पागसँ सम्मानित कएलनि । कहलनि अपनेक बालक डाक्टर अनिल बाबूकें बम्बइमे कहने रहियनि जे एहि खेप दरभंगामे अपनेक पिताजीकें सम्मान करबनि- से हम अपनेक शिष्य.. कतेक बात कहलनि... मोनकें मुदित क ' देलनि । '' -"" जी, अपने एक समय नवीन कविताक व्याख्या कएने रहिके .... ताहि प्रसंग अपनेक आब धारणा अछि ? '' उमानाथ बाबू उद्विग्न होइत कहलनि- हमरा की आब ओ सब मोन अछि.... हम एहि घरसँ ओहि घर गेलहुँ आ फेर घुरि क ' गेलहुँ... आ तकर बाद मोन नहि रहैत अछि जे हम घर किएक गेल रही ! '' हमर मोन आकुल.... उमानाथ बाबू अंग्रेजी साहित्यक निष्णात विद्वान.... बाल्यकालेसँ मैथिलीक विभिन्न धारा-उपधारामे, कथा-लेखनमे आ अनेक संस्था-समितिमे समर्पित रहलाह अछि । समकालीन साहित्य पर किछु बाजय नहि चाहैत छथि.... हमर मोनमे विप्लव जकाँ.... अनेक प्रश्न... हम साकांक्ष होइत कहल्यनि- "" अच्छा कहल जाए, मैथिलीमे अपनेक प्रिय कवि ? '' -"" से हम नहि कहि सकै ' छी, चिन्तन नहि कएल एहि प्रसंग ।... '' -"" मैथिलीमे महाकाव्यक प्रसंग कहल जाए.... '' -"" एकावली परिणय साहित्यपत्रमे प्रकाशित भेल रहैक । ओ तँ मैथिलीक उत्कृष्ट महाकाव्य थिक । कविशेखर पं. बदरीनाथ झा संस्कृत तथा मैथिलीमे अनेक ग्रन्थक रचना कएल । तंत्रनाथबाबूक कीचकवध क्रमिक साहित्यपत्रमे प्रकाशित भेल रहैक । सम्पूर्ण अंश नहि छपल रहैक । बादमे कीचकवध सम्पूर्ण रुपमे प्रकाशित भेल । रमानाथबाबूकें ई श्रेय देल जा सकैत अछि जे ओ बहुत गोटेकें मैथिली लेखनक हेतु उत्प्रेरित कएल । लोकक प्रतिभाकें चीन्हि लिखबाक हेतु प्रोत्साहित कएल । मुदा रमानाथ बाबूकें एकटा दोख रहनि... '' -"" जी, से की ? '' -"" से हम रमानाथ झा व्याख्यानमालाक पहिल अभिभाषणमे स्पष्ट रुपें कहने रहिऐक- हमरे व्याख्यानक भार देल गेल छल- व्याख्यान लिखित रहैक.. '' -"" जी, कोन दोख... ? '' -"" जेना कि कनेक ओ आग्रही छलाह, अपन जे विचार रहनि, अपन पक्षकें प्रस्तुत करबामे- अनकर विचारकें न्यून देखेबामे ! तहिना हरिमोहन बाबूक प्रसंग सेहो हमर स्पष्ट मान्यता अछि । ' -"" जी, से की ? '' -""हरिमोहन बाबू मुख्यतः गप्पी छलाह, एहन गप्पी ने पूर्वमे भेटल ने बादमे भेटल ।'' -""मुदा, ई तँ हुनक दोख भ ' गेल.... प्रकारान्तरमे निन्दा...'' उमानाथ बाबू गम्भीर होइत कहलनि- "" हम हुनक मूल रुपकें पकड़ि क ' रखलहुँ अछि । ओ गप्पी रहथि !'' -""आ यात्रीक मूल रुप? '' -""ओ रिवेल छलाह ! विद्रोही !'' -""केहन विद्रोह ? '' -""सब चीजक विद्रोह ! आइओ काल्हिक लेखककें डऽर हेतनि तेहन बस्तु ओ पारोमे लिखने छथि । हुनक कविता... शून्य गगनमे मुद्गर. ... केहन विद्रोहक स्वर ल ' क ' आएल अछि ! जखन जवाहर लालक ध्वजा सउँसे देशमे लहराइत छलन्हि तखन ओ निर्भीक आ निर्लोभ भेल विद्रोहक स्वरकें गुंजित कएने रहथि । अपन सिद्धांत आ मान्यताक प्रति अडिग... निर्भीक योद्धा ।.... यात्रीजी यद्यपि व्यासजीक समवयस्क ... यात्रीजी जेठ ... मुदा समवयस्क जकाँ..... यात्रीजी संगे सखावते हमरो व्यवहार रहय- पटनामे अनेक दिन भोरे-भोर आबि जइतथि- औ फल्लाँ बाबू (उमानाथ बाबू) छी अओ ! फल्लाँ बाबू !! दूधबला चाह नहि पीयब ।... नेबेला चाह बनाउ । हम संगमे नेबो लेने आयल छी। -""आ सुमनजी ? '' -""सुमनजी ब ड़ सीनियर-श्रेष्ठ । हम दरभंगामे स्कूलमे पढितहि रही तखने ओ मिहिरक सम्पादक- रुपमे यशस्वी भ ' गेल रहथि आ सम्पादकजी नामे विख्यात । हमरासँ अत्यन्त घनिष्ठ सम्बन्ध । ..... एखनहुँ ओ सम्बन्ध बनल अछि । '' -""अपने वैचारिक स्तर पर सुमनजीक समीप की यात्रीजीक समीप ? '' उमानाथ बाबू किछु काल धरि मौन रहलाह.... द्वन्द्व... फेर जेना आकृति प्रखर भ' उठलैन्हि । कहलनि- "" हम प्रबुद्ध मैथिल समाज बनौने रही । वैचारिक सामीप्य निश्चित रुपें यात्रीजीक संग ।... हमरा लोकनि बट्रेन्ड रसेलक विचारधारासँ प्रभावित रही । -""आ राजकमल चौधरीक प्रसंग ? '' -""किछु दोसर तरहक छनि- विद्रोह कएने छथि ।'' -"" चेतना समितिक संग अपनेक सम्बन्ध केहन रहल ? '' -"" हम १९६८मे गयासँ पटना अएलहुँ । पटना विश्वविद्यालय ज्वाइन कएल । पन्द्रह-बीस दिनुका बाद चेतना समितिक कार्यकारिणीक बैसक रहैक । हमरो विशेष आमंत्रित सदस्यक रुपमे सम्मिलित होएबाक अवसर भेटल । बहुत मैथिलीप्रेमी लोकनि ओहि बैसकमे सम्मिलित रहथि । हमरा सब गोटए कहलनि जे अपने गयामे रहिक मृत प्राय विद्यापति परिषद्कें जगाओल अछि । गयामे विद्यापति परिषद् जागल रहैक । कहैत गेलाह जे चेतना समितिक विकासमे सहयोग करिऔक । निरंतर सहयोग करैत रहबाक वचन देलियनि । तकर लगले बाद जे चेतना समितिक कार्यकारिणीक गठन भेलैक ताहिमे हम विधिवत कार्यकारिणीक सदस्यक रुपमे चूनल गेलहुँ । -"" जी, तकर बाद... ? '' -""तकर बाद चेतना समितिक विकासक हेतु सक्रिय रुपें समर्पित भ ' गेलहुँ । अहाँकें ई सूनि आश्चर्य होएत जे १९६८ धरि चेतना समितिक अपन बैंक एकाउन्ट नहि छलैक।.. विद्यापति स्मृति-पर्व मनाओल जाइत रहैक । विद्यापति भवन बनएबाक योजना बन लागल रहैक । हम कार्यकारिणी बैसकमे परामर्श देलियनि जे दुनूक एकाउन्ट अलग-अलग खोलल जाए- स्मृति-पर्वक हेतु अलग आ विद्यापति भवनक हेतु अलग। कार्यकारिणी समितिक एक जन प्रभावशाली सदस्य हमर प्रस्तावक विरोध कर ' लगलाह। हुनकर विचार छलनि जे एकाउन्ट आदिक की प्रयोजन ? जहिना अनौपचारिक रुपें चलैत रहल अछि तहिना चलैत रह ' दिऔ ! -""जी, सदस्यक नगाम कहल जाए.... '' -""नाम नहि कहब... हुनक विरोध नहि चललनि । हमर प्रस्ताव स्वीकृत भेल । स्मृति पर्व आ भवनक अलग-अलग बैंक एकाउन्ट खोलल गेल । एहिसँ चेतना समितिक स्थायित्व आ निरन्तरताकें एक आधार भेटलैक ।'' -""चेतना समितिक संग एकटा आर समस्या रहैक....'' -"" जी, से की ? '' उमानाथ बाबू अतीतक स्मृतिमे डूबल जकाँ नहुँए-नहुँए एक-एक विन्दु स्पष्ट कएने जा रहल छथि... "" देखू, पटनामे विद्यापति भवन जे बनल छैक से जमीन बिहार सरकारसँ चेतना समितिकें प्राप्त भेल रहैक । मुदा राजेन्द्र नगरमे जे समितिक भू-खण्ड छैक से इम्प्रुभमेन्ट ट्रस्टसँ खरीदल गेल रहैक । एहि प्रसंग एकटा समस्या उत्पन्न भ ' गेल रहैक.... इम्प्रुभमेन्ट ट्रस्टकें रुपैयै जमा करबाक रहैक । चेतना समितिक अर्थाभाव । तखन हमरा आ चेतकरकें भार देल गेल एहि समस्याक समाधान करबाक हेतु ... ओहि समयमे श्रीमती कृष्णासाही इम्प्रुभमेन्ट ट्रस्टक सदस्या रहथि । हुनक पति चेतकरक आप्त... पछाति हमरो सम्पर्क बढ़ल । एक दिन हुनका ओतए भोजन करबाक सेहो अवसर भेटल । साँझमे हम आ चेतकर श्रीमती कृष्णा साहीक ओतए पहुँचलहुँ । हमरा लोकनि निवेदन कएलिएनि जे चेतना समिति अर्थाभावक कारणे एखन इम्प्रुभमेन्ट ट्रस्टमे जमीनक शुल्क जमाकरबामे असमर्थ अछि । तें किछु दिनक हेतु एक्सटेन्शन दिआ दिअ । हमरा लोकनि पाइ जमा क ' देबैक । श्रीमती साही हँसैत कहलनि जे एहिसँ पूर्वो अहाँ लोकनिकें हम एक्सटेन्शन दिया चुकल छी । एक बेरि आर दिआ देब । मुदा ई आखिरी हैत । निर्धारित समयसीमाक अन्तर्गत पाइ क ' देबाक हेतु हमरा लोकनिसँ वचन लेलनि । ठीके, श्रीमती साहीक युक्तिसँ एक्सटेन्शन भेटल आ समय पर पाइ जमा क ' चेतना समितिक हेतु राजेन्द्र नगरमे इम्प्रुभमेन्ट ट्रस्टसँ जमीन प्राप्त करबामे हमरा लोकनि सक्षम भेलहुँ । '' -""चेतना समितिक जे विकास आ विस्तार भेलैक ताहिमे सर्वाधिक श्रेय कोन व्यक्तिक ?...'' उमानाथबाबू निर्द्वेन्द्वभावें कहलनि- "" शत-प्रतिशत श्रेय देवकान्त बरुआक- तत्कालीन राज्यपाल देवकान्त बरुआक योगदानकें स्वर्ण-अक्षरमे अंकित कएल जा सकैत अछि । '' -""से कोना ? '' -""देखू, १९७० धरि विद्यापति स्मृति-पर्वक आयोजन पटनाक लेडीज स्टीफेन्सन हॉलमे मनाओल जाइत छलैक । मुदा ७१मे मोइनुलहक स्टेडियममे पर्वक आयोजन भेलैक । आब अहाँ एहीसँ अनुमान लगा यकैत छी जे चेतना समितिक केहन विस्तार भेलैक । एहि पाछाँ प्रेरणा, प्रोत्साहन, संकलन, सहयोग सबटा देवकान्त बरुआक रहैन्ह ।... हरिजीक सहयोग सेहो प्राप्त भेल रहय । हरिनाथ मिश्र-सन मैथिली प्रेमी आ इमानदार जननेता के भेला? मुदा दरभंगाक राजनीतिज्ञ सब तँ हुनक नाम तक नहि सुनए चाहैत छथि ।'' -""जी, देवकान्त बरुआक योगदान ? '' -"" हमरा लोकनि चेतना समिति आ विद्यापति स्मृति पर्वक प्रसंग किछु निवेदन करबाक हेतु राज्यपाल श्रीवरुआसँ भेंट करबाक हेतु पहुँचलहुँ । एहि बीचमे कुमार तारानन्द सिंह चेतना समितिक अध्यक्ष भ ' गेल रहथि आ हम उपाध्यक्ष रही । श्री बरुआ रहथि स्वयं साहित्यकार... संवेदनशील । कहलनि कविकोकिल विद्यापति मिथिलाक फोकल प्वाइन्ट छथि... मिथिलाक सम्पूर्ण छवि विद्यापतिमे प्रतिविम्बित अछि । तें अहाँ लोकनि जेना उज्जैनमे कालिदास समारोह मनाओल जाइत छैक तहिना मनाउ ! हमरा लोकनि कहलियनि जे उज्जैन कालिदास समारोहमे भाग लेबाक अवसर हमरा लोकनिकें नहि भेटल अछि तें तकर अनुभव नहि अछि । राज्यपाल महोदय कहलनि जे दोसर खेप जे अहाँ लोकनि आएब तँ हम उज्जैनक कालिदास समारोहक पूर्ण विवरण देब । '' -""जी....'' -"" हमरा लोकनि जे दोसर खेप राजभवन गेलहुँ तँ राज्यपाल महोदय सम्पूर्ण विवरण देलनि । विवरण देखिक ' चकित रहि गेलहुँ । उज्जैनक एक लाख टाकाक बजट रहैक। हमरा लोकनि मात्र तेरह हजारसँ काज चलबैत रही । किछु बिहार सरकारसँ क्षतिपूर्ति - अनुदान भेटैत छल । शेष खर्चा चन्दा बेहरीसँ ऊपर होइत छल । सबटा समस्या कहलियनि... मूलमे अर्थाभाव । राज्यपाल देवकान्त बरुआ कहलनि अहाँ लोकनि मनोयोग पूर्वक काज करु आर्थिक व्यवस्था भ ' जाएत । ... हमरालोकनि आश्वस्त कएलियनि जे अपनेक जँ अनुग्रह बनल तँ पटनाक एक-एक मैथिल कुली जकाँ अपन श्रम-स्वेद सँ समारोहकें सफल करबामे समर्पित भ ' जेताह । से सत्ये ओहि खेप १९७१मे उज्जैनक कालिदास समारोह जकाँ पटनामे विद्यापति स्मृति-पर्वक आयोजन भेल रहैक ।... आब जखन पटनामे विद्यापति भवनकें गर्वोन्नत भेल ठाढ़ देखैत छिऐक तँ सहसा देवकान्त बरुआक सहज-निश्छल छवि मोन पड़ि जाइत अछि आ हम बरुआक स्मृतिमे नत-विनत भ ' उठैत छी । '' -""चेतना समितिक मुख्य उपलब्धि की ? '' उमानाथबाबू गम्भीर होइत कहलनि- ""चेतना समिति अनेक कारणसँ मैथिली भाखाक कम-सँ-कम बिहारमे केन्द्रीय संस्थाक स्वरुप ग्रहण कएने अछि । यद्यपि मिथिला विश्वविद्यालय सिनेटमे चेतना समितिक प्रतिनिधित्व नहि छैक... ई चिन्तनीय प्रश्न अछि। प्रतिनिधित्व छैक अखिल भारतीय मैथिली साहित्य परिषद्कें - मुदा दरभंगामे मैथिली साहित्य परिषद्क की स्थिति छैक से हम नहि कहब- कारण, से जगजाहिर छैक ।... '' सामनेमे ट्ेबुल पर राखल घड़ीमे एक बाजि क ' चालिस मिनट, २० सेकण्ड... कैलेण्डरमे तारिख नचैत रहइक पाँच अगस्त २००१ रवि । हमर मोन आकुल भ ' उठल। भूकम्पक बाद बलभद्रबाबू (खर्रख)क प्रेरणासँ दरभंगा आएल रहथि... राजस्कूल... मुर्दाक्लवक अबैतनिक लिपिकक कार्यभार... सहपाठी स्वर्गीय शंकर झाक सान्निध्य... साहित्यपत्र...पटनाक साइन्स कॉलेज... पटना कओलेज.. प्रबुद्ध मैथिल समाज, चेतना समिति... मिथिला विश्वविद्यालय... -""अपने तँ स्नानो नहि कएने छिऐक... भोजनो नहि ! '' उमानाथबाबूक अधरपर स्मितहास्यक रेखा... अहाँ पुछू जे पुछबाक अछि... बादमे भोजन हेतैक ! -""अपनेकें भोजनमे की नीक लगैत अछि? '' "" देखू, उपनिषद्मे अन्नकें ब्रह्म कहल गेल अछि ।...तें हमरा थारीमे जे किछु गरम-गरम सिद्ध अन्न चल अबैत अछि से अमृत समान बूझि पड़ैत अछि । मुदा मिरचाइ नहि नीक लगैत अछि... ... हरियर मिरचाइ सेहो ..... -""हँ, मिरचाइ आ अम्मत... अम्मत सेहो हमरा पसिन्न नहि...'' -""तखन तँ ओल आ अरिकोंच सेहो पसिन्न नहि होएत !'' -""ओल प्रिय अछि... यद्यपि अपकारक... मुदा ओल हम खाइत छी । अरिकोंच ओतेक प्रिय नहि ।'' बीतल कोनो बातक स्मरण भ अएलनि तँ हँसी लागि गेलनि, कहलनि- ""बुझलहुँ कि हरिमोहन बाबू कहलनि जे चाहक संगे जँ चूड़ा भूजल आ मारा माछ रहय तँ ओहिसँ बढियाँ बेरहट नहि ।'' पुन : निमिष मात्रक लेल स्वप्नावस्थित जकाँ... - "" कटा गोपन रहस्य अछि... कहि दी की नही कही । '' -""जी अबस्स-बस्स कहल जाए.... '' किछु काल मौन रहि स्थिर चित्त जकाँ आँखि मूनि लेलन्हि, फेर मौन भंग करैत कहलनि - हम पच्चीस बरख धरि माछ छोड़ि देने रहिऐक । माछ आ मांस । पूर्णत : शाकाहारी। '' -""से माछ किएक छोड़ि देलिऐक ? '' -"" १९३७क गप्प थिक । हम सब स्वदेशी रही । ओहि समयमे हम तुलानाथ सरस्वती एकटा लॉजमे रहैत रही । हम स्वयं चेचरा माछ तरैत रही । '' हाथसँ संकेत करैत कहलनि- ""सँउसे-सँउसे चेचरा माछकें तरल जाइत छैक । से चुल्हा पर लोहिया रहइक, लोहियामे तेल आ चेचरामाछकें ... सँउसे चेचरा माछकें हम स्वयं तरैत रहिऐक... लोहियामे पड़ल चेचरा माछक आँखि आ हमर आँखि लागल जेना एकाकार भ ' उठल अछि; लागल जेना चेचरा माछक आँखि खूजि गेलैक, लागल जेना सप्राण भ ' उठल अछि; लागल जेना आर्त स्वरमे कहि रहल हो- हमर कोन देख ? हमर किएक हत्या करैत छह ? हमर कोन अपराध?... फेर चेचरा माछक आँखि आ हमर आँखि एकाकार !'' उमानाथ बाबूक संवेदनशील आकृति पर राग, ताल आ छन्द साकार भ ' उठल रहनि... नचैत सिंलिंग फैन, चलैत घड़ीक सुइया, फड़फड़ाइत कैलेण्डर आ कलशमे राखल फूल हमरा संगे एहि घटनाक साक्षी बनल रहय .... -""जी, तकर बाद ?'' -""तकर बाद हम हाथ धोलहुँ । माछ तरल भ ' गेल रहइक । हम कहलियनि- तुलाबाबू अहाँ माछ खाउ.... हमरासँ खाएल नहि जाएत । ..... तकर पच्चीस वर्ख धरि, १९३७सँ ६२ धरि हम माछ नहि खएलहुँ ... पूर्णत : शाकाहारी ! '' -""ई माछ नहि खएबाक व्रत कत ' टूटल ?'' -""ई व्रत टूटल काठमाण्डूमे, १९६२मे ।'' -""से किएक टूटल? '' -""टूटल मूलतः ' मेडिकल ग्राउन्ड ' पर । काठमाण्डूमे हमर स्वास्थ्य खराप रहए लागल। हम आ दामोदर ठाकुर ओतऽ ' रहैत रही- अलग-अलग डेरामे । दुनू गोटक परिवार कुछ दिनक लेल गम जाइत गेल रहथि । एक साँझ हमरा ओत ' भोजन बनय आ दोसर साँझ दामोदर ठाकुर ओतऽ- दुनू गोचए आनन्दसँ रही । बीचमे की भेल तँ हमरा एसीडीटीक प्रकोप बढि गेल ।.... एकदिन क्लास करबाक हेतु जाइत रही से रास्तामे छातीमे तेहन दर्द अनुभव भेल जे ठमाहि सड़क पर बैसि रहलहुँ- क्लास नहि क ' सकलहुँ ।.... डाक्टर देखलनि... स्वास्थ्यक परीक्षण कएलनि । तखन कहलनि जे हमरा तँ डऽर भ ' गेल । हर्ट प्रोब्लेमक.... मुदा से किछु नहि । एसीडीटीक प्रोब्लेम । डाक्टरक सुझाव भेलनि जे एनिमल प्रोटीनसँ गैस कम होइत छैक तें जँ हम माछ खाइ तँ हम शीघ्र रोगमुक्त भ ' सकैत छी। डाक्टरसँ हमरा बहस भ ' गेल । कहलियनि जे की काठमाण्डूमे शाकाहारी सब जल्दी परलोक चल जाइत छथि ? की एत ' शाकाहारी सब स्वस्थ नहि रहैत छथि ?'' -""जी, ....?'' -""डाकटर धैयपूर्वक काठमाण्डूमे शाकाहारी सब छथि स्वस्थ छथि । मुदा एसीडीटीक कारणे माछ खाएब लाभदायक होएत । स्वास्थ्यवर्द्धक होएत । दामोदर ठाकुर सेहो आकुल भेल डाक्टरक गप्प सुनैत रहथि, कहलनि- अहाँक स्थिति देखल नहि जाइत अछि, व्रत तोडू ! ' मेडिकल ग्राउन्ड ' पर माछ खाएब- कोन दुविधा ? कोन द्वन्द्व ?.... दोसर दिन हम अमेरिकन लाइब्रेरीसँ पाक-विज्ञान पर किताब अनलहुँ । माछ बनएबाक विधि हम पढ़ने जाइ आ तकरा बूझि-बूझि दामोदर ठाकुर माछ बनौलनि । ....फेर दुनू गोटए संग बैसि ' मत्स्य खण्ड 'क स्वाद लेल । काठमाण्डूमे व्रत टूटल.. पच्चीस बरख पर ! '' -""जी, व्रत टुटबामे अधिक विलम्ब भ ' गेल !'' हमर गप्प सुनिक मुस्कुराय लगलाह- "" आब छोटका मारा माछ तऽरल नीक लगैए...खाइत छी तँ हरिमोहन बाबूक स्मरण भ ' अबैत अछि । '' किछु काल धरि भोजनक विन्यास आ विविध व्यञ्जन आदिक चर्चा चलैत रहल । हम साकांक्ष होइत कहलियनि- "" जी, साहित्य-पत्रक समय आ एखुनका वातावरणमे की अन्तर ?'' -""एखनुका की वातावरण छैक से हमरा बूझल कहाँ अछि ? साहित्य-पत्रक समयमे एकटा मर्यादा छलैक ! राजनिति रहैक- विरोध रहैक । साहित्यपत्रक शैलीक प्रसंग मतभेद रहैक । किछु गोटए साहित्य- पत्रक शैलीकें सोतिपुराक वर्तनी कहि उपहास करैत छलाह- ओना, साहित्यपत्रक शैलीक निर्माणमे दीनबन्धु बाबू-सन महावैयाकरण आ सुभद्र बाबू-सन भाषावैज्ञानिकक योगदान सर्वोपरि रहनि ।.... आब एखन केहन वातावरण छैक- कहाँ बूझल अछि ? हम जे अन्तिम खेप मैथिलीक समारोहमे गेल रही से पैटघाट.... सगर रातिमे... प्रभासजीक आग्रह पर । हुनक मैथिलीक निष्ठा मोनकें आह्लादित करैत रहल... बड़ घनिष्ठ रहथि । कहलनि- पैटघाट चल ' पड़त । हमर जमायक घऽर लालगंज ते रहबामे असौकर्य नहि । प्रभासजीकें कहलियनि- हमरा राति भरि जागल नहि होएत। कहलनि-एगारह बजेक बाद अपने चल जाइत रहब - हुनके आग्रह पर गेल रही । मैथिलीक नव पुरान लोकासँ भेट भेल । मोन आह्लादित भेल । तकर बाद एकटा साहित्य अकादेमीक गोष्ठी राँटीमे भेल रहैक- मुदा ओहिमे बड़ असमंजसमे पड़ि गेलहुँ ।'' -""से की?'' -""सूचना समाचारपत्र सबसँ रहए- मुदा राँटी ड्यौढ़ीक आयोजक लोकनि आमन्त्रित नहि कएलनि । कार्डो धरि.... सामान्य कार्डो नहि भेटल, कार्ड-वितरणमे को गड़बड़ी भेल रहैक से नहि कहब । मुदा जाहि दिन कार्यक्रम रहैक ताहि दिन प्रात : काल सात-साढ़े सात बजैक लगभग रिजनल सेक्रेटरी, साहित्य अकादेमीक फोन आएल । कहलनि- राँटी गोष्ठीमे अहाँक आएब आवश्यक । कहलियनि-कार्डो धरि नहि भेटल अछि । कहलनि- हम आमंत्रित करैत छी । मूल गोष्ठीक उपरान्त अकादेमीक एक अलग बैसक छैक जाहिमे अहाँक उपस्थिति आवश्यक अछि ।.... टेक्सी ल ' लिअ आ चल आउ........ । सब खर्चा अकादेमीक । सैह भेल.... कोनहुना भाग लेलहुँ- तें कहलहुँ जे साहित्यपत्रक समयमे राजनीति रहैक, विरोध रहैक मुदा मर्यादा रहैक... आब से मर्यादा नहि, विवेक नहि ... '' -""एखन की लेखन भ ' रहल छैक?'' -"" असलमे, हमरा 'केटरेक्ट' भ' गेल छल । से, मास छबेक भेल अछि नवीन आँखि प्राप्त भेल अछि । एखन संस्मरण लीखल अछि- देशक कण्ठसंगीत आ वाद्यसंगीतक जे शीर्षस्थ व्यक्तिक कार्यक्रम सबमे हम उपस्थित भेल रही.... तनिक सभक संसमरण। -""मैथिलीक भविष्य.... ?'' -""भविष्य तँ पाठकक हाथमे छइक । जँ मलयालम जकाँ मैथिल लोकनि मैथिलीकें अपना लेथि तँ निश्चय भविष्य उज्जवल छैक । बंगाली ललनाक अनुकरण करु । एकटा पोथी बिकाइत छैक तँ मैथिली एकडेग बढ़ैत छैक ।'' -"" आकाशवाणीमे मैथिली कार्यक्रम ?'' -"" संतोषजनक स्थिति नहि अछि । गाम-घऽरमे कतहु संस्कृतनिष्ठ भाषाक उपयोग हो ! अव्यवस्थित । पहिने हम जाइत रही.... आकाशवाणी कार्यक्रममे- आब की- महा अव्यवस्था- स्थिति चिन्तनीय अछि । सब मैथिलीप्रेमीकें एहि दिशामे सोचबाक थिक।'' -""अपनेक कोनो एहन इच्छा अछि जकर पूर्ति नहि भेल हो ?'' प्रश्न सूचिक ' उमानाथ बाबूक चित्त आकुल.... मुख-मुद्रा क्लान्त, कहलनि किछु नहि, दुनू हाथ उठा क' बजलाह- सीधे। हम विस्मित भ' उठलहुँ- सीधे ? -"" हँ सीधे, ऊपर, आब रह ' नहि चाहैत छी ? जीब ' नहि चाहैत छी....'' -"" से, किएक... '' -"" सोफोकेसन होइत अछि । स्कूल, कॉलेज, यूनिवर्सीटी, लोक सम्बन्ध.. सोफोकेसन होइत अछि.... जेम्हरे देखैत छिऐक !'' "" तँ की देखियौक ? '' -""अपनेक कैम्पसमे झुमैत गाछ अछि, कलि-फूल अछि । हरियर-हरियर... मौसम-मौसममे परिवर्त्तन । अपने प्रकृतिकें देखियौक ।'' -"" से ठीके कहैत छी । पहिने हम अपने खुरपी ल 'क' गाछक जड़ि सबकें कोरिअबैत रही..... एखनहु ठाढ़ भ'क' पानि पटबैत छी । प्रकृतिमे तँ हमर प्राण अछि .... '' तकर बाद चलैत घड़ीक सुइया, नचैत सिंलिंग फैन, फड़फराइत कैलेण्डर आ कलशमे राखल फूल कें छोड़ि प्रणाम-पाती करैत चल आएल रही । उमानाथ बाबूक कैम्पसमे गाछ-पातक निर्दोष भंगिमाकें देखैत, कली-फूलक मर्मर ध्वनिकें सुनैत, अतीतमे डुबल जकाँ, रेखाचित्रकें बनबैत । |
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आशुतोष कुमार, राहुल
रंजन
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प्रकाशक
: प्रकाशक मैथिली रचना मंच,
सोमनाथ निकेतन, शुभंकर, दरभंगा (बिहार)
- ८४६००६
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प्रकाशित
मुद्रक
प्रिंटवेल, टावर चौक,
दरभंगा - ८४६००४ ,
दूरभाष
: ३५२०५
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