Yugantar

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डॉ. श्री जयकान्त मिश्र

३० अगस्त, २००१। हम जखन प्रातःकाल इलाहाबाद पहुँचलहुँ तँ अनेक दैनिक पत्र मे प्रकाशित भेल रहैक... इलाहाबाद विश्वविद्यालयक अंग्रेजी अध्ययन एवं आधुनिक यूरोपीय भाषा विभागक पूर्व अध्यक्ष एवं मैथिलीक पुरोधा डा. जयकान्त मिश्रकें साहित्य अकादेमी, नई दिल्लीसँ भाषासम्मान पुरस्कार २१ अगस्तकें प्राप्त भेलनि । प्रशस्ति-पत्र, स्मृति-चिह्म आ २५०००/- रु. नगद।

प्रातःकाल । घड़ीमे बजैत रहैक आठ बाजिक' पैंतीस मिनट । इलाहाबादक एलनगंजमे... पी.सी. बैनर्जी रोडमे जयकान्त बाबूक अपन वासा छनि । आवासक नाम रखने छथि तीरभुक्ति । मिथिला सांस्कृतिक संगम, प्रयागक डॉ. अवधेश कुमार झाक संग हम 'तीरभुक्ति'क गेटकें खोलैत बराम्दा पर प्रवेश क' जाइत छी ।.... ई आवासस्थल... विशाल परिसर... मिथिलाक सउरभसँ प्रदीप्त... असलमे म.म. डा. उमेश मिश्रक अर्जित १३ विस्वा (कट्ठा)क विस्तृत भूखण्ड पर बनल अछि । बीचमे पैघ मकान रहइक... चारुकात गाछ-वृक्ष । एहि भूमिखण्ड पर जयकान्त बाबू सब भाइ अपन-अपन मकान बनौने छथि ।

मधुबनी जिलाक गजहरा गामक म.म. पण्डित जयदेव मिश्र काशीमे आबि सारस्वत साधनामे निमग्न भ गेल रहथि ... म.म. डा. सर गंगानाथझाक गुरु रहथिन । म.म. पण्डित जयदेव मिश्रक आत्मज म.म. डा. उमेश मिश्र प्रयागराज आबि मिथिलाक गौरवकें बढ़ौने रहथि। डा. श्री जयकान्त मिश्रक पिता रहथिन डा. उमेश मिश्र - तावत एक जन युवक हमरा सबकें कहलनि- दादा पूजा पर छथि । चलल जाए ड्राइंग रुम। बराम्दासँ जुड़ल ड्राइंग रुम । सामने तरु-लता... फुलायल फूल... झुमैत आलय । अछिञ्जल जकाँ पवित्र आवास । ऊपर आरती आ घंटीक संकेत ध्वनि । धूप आ धूमनसँ सुरभित।

अवधेश जी कहलनि- हम जाइत छी । फेर भेंट होएत । ओ चल जाइत रहलाह । हम चुपचाप ड्राइंगरुमक सोफा पर बसैल छी ।

सामेनेमे भाषा-सम्मानक स्मृति-चिह्म । अन्दाज २० बरखक एक जन युवक एक कप चाह आगाँ राखि दैत छथि। पता चलल 'वैदेही'क संस्थापक आ मैथिलीक एकान्त साध क कृष्णकान्त बाबूक नाति छथिन । एतहि कृष्णकान्त बाबूक मकानमे रहि अपन पैघ भाइक संग पढ़ाइ क' रहल छथि । कहलनि- दादा आबि रहल छथि ।"

सुभ्यस्त मुद्रामे जयकान्त बाबूक प्रवेश.. प्रणाम करैत छियनि । कहलियनि- "हम दरभंगासँ आएल छी । अपनेसँ इन्टरभ्यू... मिथिला... मैथिलीक प्रसंग ।"

जयकान्त बाबू गम्भीर होइत कहलनि- "तँ एहिमे संकोच की ? एखन मैथिली अति संकटमे अछि । हाइकोर्ट हमर सभक पक्षमे निर्णय देने अछि । बिहार लोकसेवा आयोगमे पुनःमैथिलीके सम्मिलित करबाक आदेश पटना हाइकोर्टसँ प्राप्त भेल अछि। मुदा सरकार सुप्रीम कोर्टमे केस ल' गेल अछि । पता नहि पटनाक वकील साहेब सब की क' रहल छथि... पटनाक समिति-संस्था, दरभंगा-मधुबनीक लोक.... पूर्णिया... सहरसा... सब ठामक लोक सम्मिलित भ'क' लड़ए तखने मैथिलीक सम्मान आ स्वाभिमानक रक्षा होएत... अधिकार प्रप्त होएत ।"

- "जी, अपने एखन कोन तरहक लेखनमे लागल छिऐक ?"

- "देखू, किछु दिन... दू साल हम नाना जी देशमुखक निमन्त्रण पर चित्रकूट ग्रामोदय विश्वविद्यालयमे भाषा-विज्ञानक संकाय - अध्यक्ष आ पछाति समाज विज्ञान संकाय अध्यक्षक रुपमे कार्यरत रहलहुँ । बड़ आदर आ सम्मान । आर्थिक लाभ सेहो छल । अठारह घण्टा खटैत छलहुँ । दू सालक उपरान्त हम कहलियनि- आब हमरा मुक्त क' देल जाए। हमर जीवनक लक्ष्य मिथिला अछि। मैथिलमे बहुत काज बाँकी अछि, बहुत किछु लिखबाक अछि ।"

- "जी, की लिखबाक अछि ?"

-"लिखबाक अछि आत्मकथा... किछु पन्ना लिखल अछि मुदा एखन 'प्वाइन्ट्स' नोट क' रहल छी । 'आत्मकथा'क लेखनमे छैक दुविधा आ द्वन्द्व । कतेक व्यक्तिकें दु:ख पहुँचि सकैत छनि । एक गोटे लिखलनि जे जयकान्त बाबूक इतिहास बालु परहक भित्ति छनि । कतेक व्यंग्य, कटाक्ष, गंजन हमरा सूनए पड़ल अछि ।... मुदा तकर हमरा पर कोनो प्रभाव नहि । जीवनमे पलखति नहि । अहर्निश अध्ययन, लेखन, यात्रा, आन्दोलन... खोज-अनुसन्धान... शब्द-कोश । हमरा समय कहाँ अछि ? हमरा समय कहाँ अछि जे अनकर बात सूनब ?" ...... तकर बाद साहित्य अकादेमीक भाषा सम्मानक प्रसंग गप्प उठि जाइत अछि । बैगसँ निकालि एकटा लीफलेट दैत छथि- साहित्य-अकादेमी, नई दिल्लीसँ प्रकाशित- अभिमुख होइत जयकान्त बाबू कहलनि- कालजयी (क्थ्ठ्ठेssत्ड़ठ्ठेथ्) आ मध्यकालीन साहित्यक क्षेत्रमे महत्त्वपूर्ण योगदानक लेल भाषा - सम्मानक पुरस्कार हमरा प्राप्त भेल अछि । एहिना एहि खेप गुजरातीक ख्यातनामा लेखक चिमनलाल शिवशंकर त्रिवेदी, अहिराणी लोकसाहित्यक क्षेत्रमे महत्त्वपूर्ण योगदान हेतु मराठी लेखक कृष्ण पाटिलकें तथा लेपचाभाषा आ साहित्यक क्षेत्रमे योगदानक हेतु श्री पास छिरि लेपचाकें भाषासम्मानक पुरस्कारसँ सम्मानित कएल गेल छनि । ई भाषासम्मान पहिले खेप आरम्भ भेलैक अछि।"

-"अपनेक प्रेरणा-स्रोत के छथि ?"

-"हमर प्रेरणा-स्रोत रहलाह हमर पिता म.म. डा. उमेश मिश्र... संस्कृतक निष्णात विद्वान... प्रख्यात दार्शनिक। मिथिला आ सर्वोपरि मैथिलीक प्रति हुनक हृदयमे अनन्य अनुराग रहनि । तें हमरो हृदयमे जे मैथिलीक प्रति निष्ठा अछि तकर मूल प्रेरक रहलाह हमर पिता ।"
-"अपने मैथिली दिस कोन अवस्थासँ आकर्षित भेल रहिऐक ?"

-"७ दिसम्बर १९२२ कें वाराणसीमे हमर जन्म भेल । अहाँकें बुझाले होएत जे हमर पितामह प्रख्यात आ प्रकाण्ड विद्वान रहथि- म.म. जयदेव मिश्र । ओ वाराणसीमे रहि सारस्वत साधनामे निमग्न रहलाह । म.म. डा. सर गंगानाथ झाक ओ गुरु रहथिन । गंगाबाबू अपन आत्मकथामे मुक्तकणठें स्वीकार कएने छथि जे हम जे किछु ज्ञान अर्जित कएल से अपन गुरु जयदेव मिश्रक सान्निध्यसँ... गंगाबाबू आ अमरनाथबाबूसँ हमरालोकनिक विशेष घनिष्ठ पारिवारिक सम्बन्धक यैह कारण रहल । हमर पिता म.म. डा. उमेश मिश्र कामेश्वर सिंह दरभंगा संस्कृत विश्वविद्यालयक संस्थापक कुलपति रहथि। "
-"जी, मैथिलीक प्रति आकर्षण ?"

-"हँ-हँ, हम कनेक भटकि गेल रही। हम जखन ८-९ वर्षक रही तखनहिसँ हमरा मैथिलीक प्रति आकर्षण जागल । आकर्षण की... मैथिलीक प्रति समर्पित भ गेल रही। हमर गाम अछि गजहरा... जखन छुट्टी सबमे गाम जाइ तँ हस्तलिखित पत्रिका बहार करी लोक सबसँ लेख, कविता आदिक संकलन कए सुरुचिपूर्वक हस्तलिखित पत्रिका बहार करी हेतैक.. दू चारि प्रति कतहु... कहियो आएब तँ देखाएब.... "
-"पत्रिकाक नाम ?"

-"नाम रहैक बाल-विनोद । एहि पत्रिकाक ऊपरमे लीखल रहैत छलैक :-

जाहिसँ हो बालक सभक विनोद  

सएह पत्र ई थिक बाल-विनोद ।"

-"अपनेक मैथिलीमे पहिल रचना ?"

-"हमर पहिल रचना अछि आलोचनात्मक... बाबू गंगापति सिहंक 'सुशीला' नामक उपन्यासक आलोचनात्मक समीक्षा.. दीर्घ आलोचनात्मक लेख रहैक । मिथिला मिहिरमे १९४३मे प्रकाशित भेल रहए। बाबू भुवनेश्वर सिंह 'भुवन'सँ जे हमरा घनिष्ठ आत्मीयतापूर्ण सम्बन्ध भेल तकर यैह कारण... "

-"भुवन'जी रहथि हृदयसँ साहित्य-तपस्वी ।... मुजफ्फरपुरमे जे मैथिली साहित्य परिषदक अधिवेशन भेल रहइक ताहिमे हमर पिता डा. उमेशमिश्रक अति महत्त्वपूर्ण भाषण भेल रहनि । सम्पूर्ण मिथिला जगतमे 'भुवन' जीक नाम रहनि । 'मिथिला मिहिर'मे सुशीला उपन्यासक हम तर्कपूर्ण आलोचना कएने रहिऐक । हम लिखने रहिऐक... स्पष्ट शब्दमे लिखने रहिऐक जे एहन खराप उपन्यास आ से पटनाक प्रमुख संस्थासँ छपए तकर बाद तँ मिथिला मिहिरमे हमर विरोधमे अनेक पत्र छपल । आब देखू एहि उपन्यासमे मैथिली शब्दक हिन्दी अनुवाद गंगापति सिंह प्रकोष्टमे द' देने रहथिन... "

-"जेना.. "

-"आब मोन नहि अछि कोन-कोन शब्दक हिन्दी अनुवाद देने रहथिन... ओना एकटा उदाहरण लिअ... गाछ आतकर प्रकोष्ठमे पेड़ लीखि देलिऐक । कलकत्ता विश्वविद्यालयक मैथिलीक प्रोफेसर आ तखन एहन हिन्दीक प्रति आग्रह ! हम कड़ा शब्दमे आलोचना कएने रहिऐक । अच्युतानन्द दत्त हमरा विरोधमे मिथिला मिहिरमे लिखलनि । आनो कतेक गोटए लिखलनि । तकर बाद एक पत्र छपल राजहंसक नामसँ । राजहंस लिखने रहथि जे नवयुवक आलोचकक उत्तर तर्कक आधार पर देल जएबाक चाही । जे प्रश्न जयकान्तबाबू उठौने छथि तकर उत्तर नहि द'क' खिधांश करब उचित नहि । ई पत्र पढि हमर मनोबल बढ़ल.. उत्साहबर्द्धन भेल। बादमे ज्ञात भेल, 'भुवन'जी राजहंसक उपनामसँ मिथिला मिहिरमे लिखैत छलाह । हुनकासँ पत्र-व्यवहार भेल । ... सम्पर्क भेल... बड मधुर हृदयक लोक रहथि । एकटा रहस्यक गप्प कहैत छी ।"

-"जी कहल जाए... "

-"भुवन'जी आन बबुआन-बाबू साहेब जकाँ नहि रहथि । ओ रहथि विद्रोही । खुशामद करब- दरबार करब- हँ - मे - हँ मिलाएब हुनक स्वभावमे नहि रहनि । दरभंगा राजक जुलूम हुनका पर चएल लगलनि । अर्थाभाव... रोगशय्याग्रस्त । इलाजक अभावमे हुनक देहान्त भेलनि । "

-"जी, रहस्य ?"

-"डा. अमरनाथझा तँ हमर गुरु, पथदर्शक-अभिवक जकाँ छलाह । हुनक जीवनक ई गोपनीय रहस्य थिक । हिन्दी, मैथिली, उर्दु तथा अन्य भाषा आदिक जे साहित्यकार अर्थाभावमे रहथि, विपन्न रहथि तनिका ओ चुपाचाप आर्थिक सहायता कएल करथिन । से हमरा ज्ञात भेल 'भुवन'जीसँ । १०/- रु.क चेक ओ 'भुवन'जीकें पठा देने रहथिन। 'भुवन'जीसँ भेंट भेल तँ कहलनि, मुजफ्फरपुरमे भजएबामे झमेला होएत आ किछु पाइ से कटि जाएत तें प्रयागमे भजाक' अहाँ द' जाएब ।... से भजाकर १०/- रु. हम द' आएल रहिएनि ।"

-"किछु गोटेक कहब छनि जे मैथिली कवितामे नवीनता 'भुवन'जी अनलनि, अपनेक की मन्तव्य ?"

-"हमर स्पष्ट मन्तव्य अछि जे ठीके 'भुवन'जी मैथिली कवितामे नवीनता अनलनि। "

-"तकर की आधार ?"

-"तकर आधार स्पष्ट अछि । ओ मैथिलीक नवीन कविताक चिन्तन-धाराकें स्पष्ट कएलनि । कविताक नवीन वैचारिक स्रोत आ चिन्तन प्रस्तुत कएने रहथि - एकटा आइडियोलॉजी ..... एकटा विचारधारा... सबसँ पहिने मैथिलीमे वैह प्रस्तुत कएलनि। हुनक 'आषाढ़' कविसंग्रहक भूमिकामे नवीन कविताक वैचारिक स्रोत आ विचारधारा सन्निहित अछि ।... हुनकर देहान्तक बाद इण्डियन नेशन तथा आनो अनेक ठाम लेख श्रद्धाञ्जलि आदि लीखल ।"

इलाहाबाद एलनगंजमे पी.सी. बैनर्जी रोडक मुख्य स्थल पर अछि 'तीरमुक्ति'... पुरान टाइपक दुमंजिला मकान... मकानक ड्राइंगरुममे सोफाक एक कुर्सी पर बैसल छी... हमर सम्मुख सुभ्यस्त भेल धोती आ कुर्त्तामे सनातन मैथिल पण्डितक मुद्रामे बैसल छथि अंगेजी भाषा तथा साहित्यक प्रकाण्ड विद्वान डा. जयकान्त मिश्र । मैथिली जगतमे डा. मिश्र कालयजी इतिहासकारक रुपमे पाँच दशकसँ चर्चाक केन्द्रमे छथि । ड्राइंगरुमक एकटा देबाल... देबालक मध्यमे कविकोकिल विद्यापतिक भव्य चित्र ... सोफासेट, कालीन, कालीन पर पटिया, दू टा पुरान ढंगक कुर्सी, एकटा कलात्मक चित्र... स्टूलपर राखल.. पत्र लिखैत विरहाकुल नायिका.. उन्नत उरोज ओ गुरु नितम्ब.. मेरु उपर दुइ कमल फुलायल.. चित्रांकन मुग्धकारी । ऊपर देबालमे कृष्णक रासलीला... तेसर चित्र.. सघन वृक्ष... पाशर्वमे सरोवर, नील आकाश आ मचकीपर झुलैत नायक-नायिका ।... एकटा चित्र हमरा आकर्षित करैत अछि.. देबालमे सजीव चित्रांकन... प्रेमालाप करैत नायक-नायिका.. हाथमे गुलाबक फूल... नायिकाक कामातुर प्रेम-निमन्त्रण... अभिसारक दृश्य । जयकान्तबाबूक भव्य रंगीन हालक फोटो... पुतरा-पुतरी... शुभ सूचक एकटा हाथी... इलाहाबादक एकटा पुरान टाइपक मकानक ड्राइंगरुममे हम बसैल छी।

-"अपनेक जे अंग्रेजीमे दू खणडमे 'A History of Maithili Literature ' प्रकाशित भेल... तकर लेखन... योजना.. प्रेरणा ?"

-"हम जखन एम.ए. मे पढितहि रही तँ ज्ञात भेल जे एकटा संस्था छैक INDIAN PEN .... मूल संस्था रहैक P.E.N.... P सँ Play Wrights , क सँ Essayists, Editors, N सँ Novelists ....आ समग्रत PEN अर्थात् कमल... माने जे केओ कलम छएने छथि तनिका सभक ई संस्था । अन्तर्राष्ट्रीय साहित्यकार एवं बुद्धिजीवीक संस्था रहैक घ्कN... एहि संस्थाक मूल चिन्तन रहैक 'Brotherhood of Writers ' । साहित्य अकादेमीसँ पूर्व... एहन सभ भाषा-भाषीक मंच.. एक साहित्यसँ दोसर साहित्यक परस्पर आदान-प्रदानक कोनो आन मंच नहि रहैक ।"

-"एहि संस्थाक मूलमे के रहथि ?"

-"एहि संस्थाक मूलमे के रहथि Madam SophiyaWadia ... १९३३मे अमेरिकासँ आएलि रहथि। १९८८ धरि जिबैत छलीह । थियोसॉफीक कार्यकर्त्ता छलीह । एनी विसेन्ट जकाँ भारतक साहित्य-संस्कृति आ कलासँ प्रभावित छलीह । INDIAN P.E.N. मे मैथिलीकें सेहो स्थान भेटि गे रहैक । हमहूँ मेम्बर भ' गेल रही । 'भुवन'जीक देहान्त भेलनि तँ हुनक प्रसंग एक टिप्पणी P.E.N. मे हम पठौने रहिऐक ... जाहिमे 'भुवन'जीक साहित्यिक अवदानक चर्चा कएने रहिऐक । जयपुरमे अधिवेशन भेल INDIAN PEN क व्यापक स्तर पर... हम नहि जा सकलहुँ... हमर पिता म.म. डा. उमेश मिश्र गेल रहथि। ओ मैथिलीक प्रतिनिधित्व कएने रहथि। १९०१सँ १९४० तक मैथिली साहित्यक विवरण प्रस्तुत कएने रहथि। INDIAN PEN असमिया आ बंगला साहित्यक इतिहास अंग्रेजीमे छपने रहैक । ओहीमे सूचना रहैक अग्रिम प्रकाशनक संबंधमे... मैथिली साहित्यक इतिहास लिखताह डा. अमरनाथ झा, भाइस चान्सलर, इलाहाबाद यूनिवर्सिटी ।... ई सूचना हमहूँ पढ़ने रही... हमरो मोनमे एकटा चिनगारी जागल रहए... हमहूँ इतिहास लीखि सकैत छी अंग्रेजीमे ।"

-"जी, तकर बाद ?"

-"तकर बाद हम अंग्रेजीमे एम.ए. क' लेने रही आ डाक्टरेटक हेतु शोध-कार्यक हेतु प्रवृत्त भेल रही । पहिने हम एक अति महत्त्वपूर्ण विषय शोधक हेतु चयन कएने रही । Pre Shakespearian Literature सँ सम्बन्धित रहैक । तुलनात्मक अध्ययन । युद्धक समय रहैक । इंगलैण्डक पुस्तालयसँ किताब मंगलिऐक... आॅरिजनल किताब सब पठा दैत छलैक । मुदा एहि खेप युद्धक समयमे बम बरिसैत रहैक । किताब सबकें सुरक्षित तहखानामे राखल गेल रहैक। इंगलैण्डक लाइब्रेरीसँ उत्तर भेटल जे एखन किताब नहि भेटि सकैत अछि। आब हमर मोन आकुल भ' गेल । हम अमरनाथ बाबूक ओतए गेलहुँ। हम अंग्रेजीमे मैथिलीक साहित्यक प्रसंग लिखने रही- ओ कहलनि से सबटा सुनाउ । मूमभेन्ट चलैत रहैक । युनिवर्सिटी बन्द रहैक । हम दुपहरियामे जाइ। हुनकर एकटा प्रिय नौआ रहनि - सेमाथमे मालिश करैत रहनि । सिगार पिबैत रहथि.. हम अपन पोथा खोली... आगाँक पंक्ति पाछाँ करु... पाछाँक आगाँ... फुटनोट जोडू ई शब्दक ओ शब्द क' दिऔ । जखन बहुत सूनल भ' गेलनि तँ कहलनि यैह भ' गेल अहाँक डाक्टरेटक थेसिस... अहाँ मैथिली साहित्यक इतिहासकें शोधक विषय बनाउ । हम दुविधाग्रस्त । कहाँ अंग्रेजी कहाँ मैथिली ?... मैथिलीमे काज कएलासँ हमरा अंग्रेजीमे की उन्नति होएत? अमरनाथबाबूकें कहलियनि अपन दुविधा आ द्वन्द्व !... ओ रहथि दूरद्रष्टा । आकृति राजपुरुष जकाँ हिन्दुस्तानी अंग्रेज । सम्पूर्ण शिक्षा-जगत हुनक सारस्वत व्यक्तित्त्वक लोहा मानैत रहनि।"

-"जी, अमरनाथबाबू की कहलनि ?"

-"कहलनि जे अहाँक भाग्योदय होएत... एहि पर काज नहि भेलैक अछि... अहाँ चिरकालिक यश अर्जित करब । साहित्य साहित्य थिकैक । कोनो भाषा साहित्यक अहाँ अनुसन्धान कए सकैत छी। एहिसँ हमर मनोबल बढ़ल । संकल्प दृढ़ भेल निर्द्वेन्द्व भ'क' निर्णय लेल जे डाक्टरेटक हेतु मैथिली भाषा साहित्य पर शोध करब । अमरनाथबाबूक आदेश भेल तुरत सिनोपसिस बनाउ ।... सिनोपसिस स्वीकृत भेल ।"

-"गाइड के भेल रहथि ?"

-"अमरनाथबाबूक आदेशसँ गाइड भेल रहथि अंग्रेजी विभागक तत्कालीन अध्यक्ष सतीश चन्द्र देव । परीक्षकमे सुधाकर झा शास्री सेहो रहथि ।... १९४८-५०क कालखण्डमे A History of Maithili Literature क दुनू खण्ड प्रकाशित भेल रहए ।"

-"मैथिली साहित्यक इतिहासमे अपनेक मूल स्थापना की अछि ?"

-"हमर स्थापना अछि जे मैथिली एक स्वतंत्र समृद्धशाली भाषा-साहित्य थीक । एहिमे सुदीर्घ, अविच्छिन्न आ क्रमबद्ध साहित्य-लेखनक परम्परा रहलैक अछि। मैथिली जीवन्त भाषा-साहित्य थीक । निरन्तर साहित्य-लेखन चलि रहल छैक । मैथिलीक अपन लिपि आ व्याकरण छैक । शब्द आ लोकोक्ति छैक। विपुल लोकसाहित्यक भंडार छैक ।"

-"अमरनाथबाबू अपनेक इतिहासकें देखलनि तँ की कहलनि ?"

-"कहलनि- बड़ दिव भेल । ओ विशुद्ध मैथिली बजैत छलाह । मैथिलीक ओहेन अनुरागी न भूतो न भविष्यति । 'दिव' शब्द 'दिव्य' सँ बनल छैक। केहन लालित्य । कहलनि बड़ दिव भेल अछि । मुदा किताब छपबैत काल हपर एक योजनाकें ओ खारिज क' देलनि ।"

-"से कोन योजना रहए ?"

-"हम शोध-अनुसन्धानक क्रममे सँउसे मिथिला घूमल रही। छोट-पैघ, नवीन-पुरान तीन सए लेखकक फोटोक ब्लॉक बना लेने रही । इच्छा रहए जे History of Maithili Literature मे लेखक सभक फोटो छपा देबनि। अपरनाथ बाबूकें कहलियनि तँ किछु कालक हेतु गम्भीर भ' गेलाह । ध्यान टुटलनि तँ कहलनि- बच्चाक किताब भ' जाएत। अंग्रेजी साहित्यक इतिहासकार Saints Bury क रहथि ओ अतिशय प्रशंसक । कहलनि - Saints Bury अपन किताबमे देने छैक ?... फोटो देने छैक जे अहाँ देबैक ?... जखन ओहेन विश्व-प्रसिद्ध इतिहासकार फोटो नहि देने छैक तखन अहाँ किएक देबैक ?... आब सोचैत छी केहन दूरद्रष्टा रहथि । फोटो देलासँ हल्लुक भ' जइतैक । बादमे किछु ब्लॉक देलिऐक जेना विद्यापतिक हस्तलिखित भागवतक अंश- मुदा ओ प्रामाणिक दस्तावेज जकाँ इतिहासक महत्त्वकें बढ़एबामे सहयोग कएलक ।"

-"अपनेक इतिहासक के समर्थन कएलनि ?"

-"जखन हमरा इतिहास लीखल भए गेल -सम्पूर्ण इतिहास... तँ हम तन्त्रनाथबाबूकें एहि आशयक पत्र लिखलियनि । तन्त्रनाथबाबू अ.भा. मैथिली साहित्य परिषद्सँ संबंधित रहथि। ओहि समयमे परिषद्क अधिवेशन चलैत रहैक। पत्र पाबि तन्त्रनाथबाबू ततेक आह्लादित भेलाह जे अधिवेशनमे उठि कए ठाढ़ भए घोषणा कएल जे प्रो. जयकान्तमिश्र मैथिली साहित्यक इतिहासकें पूर्ण कएलनि । आब अपन भाषा-साहित्यक इतिहास लिखा गेल हमर सम्पूर्ण पत्र अधिवेशन मे पढिक' सुनाओल । बादमे पता चलल सभामे उपस्थित समस्त विद्वज्जन एहि आशयक घोषणाक करतल धवनिसँ स्वागत कएने रहथि ।"

-"अपने जे मैथिली साहित्यक इतिहास लीखल ताहि हेतु अध्ययन- साग्रीक संकलन कोना कएल ?"

-"हमरा अधिकांश सामग्री अपने घऽरमे प्राप्त भ गेल । हमर पिताकें मैथिली साहित्यसँ अनन्य अनुराग । अनेक पत्र आ पत्रिका... मैथिली पुस्तकक संकलन कएने रहथि । INDIAN P.E.N. क हेतु से लिखने रहथि । 'परिषद'क अधिवेशनमे हुनक अभिभाषण भेल रहनि तक लेख सब आ ताहिसँ बढिकए एक आर महत्त्वपूर्ण बात भेल... "

-"जी, से की ?"

-"इलाहाबादमे हिन्दुस्तानी एकेडमीसँ हिन्दुस्तानी नामक पत्रिका बहराइत रहैक। एहि पत्रक सम्पादक हमर पितासँ आग्रह कएने रहथिन किछु लिखबाक हेतु.... हमर पिता रहथि शास्रीय परम्पराक विद्वान ... अत्यन्त परिश्रमपूर्वक हिन्दुस्तानी पत्रिकाक हेतु मैथिली साहित्यक इतिहास लिखब आरम्भ कएल । ओही क्रममे ओ विद्यापति पर लिखलनि । पाछाँ स्वतंत्र रुपें ओकर प्रकाशन भेलैक । हम स्वीकार करैत छी जे हमरा अपन शोध क हेतु आधारभूत सामग्री पितासँ प्राप्त भेल रहए । ... हम अपन शोधमे एकटा बिन्दु रखने रही... आधुनिक मैथिली साहित्य पर अंग्रेजी साहित्यक प्रभाव । हमरा ज्ञात भेल जे १९४२मे रमानाथ बाबू छात्रावास्थामे मैथिली साहित्यक इतिहास लिखने रहथि... हम हुनकासँ सम्पर्क कएल । ओ यथासम्भव सहयोग कएलनि । विशेष रुपें अंग्रेजी साहित्यक प्रभाव की रहलैक... कोना रहलैक मैथिली पर .... ताहि सन्दर्भमे हुनक सहयोग महत्त्वपूर्ण सिद्ध भेल।

इतिहास लेखनक प्रसंग हम लोकसाहित्यक सेहो संकलन कएने रही। अमरनाथ बाबूक आदेश भेल जे एहि सामग्रीक उपयोग अन्यत्र करु । फलतः१९५१-५२क काल खण्डमे An Introduction to Maithili Folk Literature दू खण्डमे प्रकाशित भेल।"

एक जन सज्जन जयकान्त बाबूक समीप ठाढ़ भ' बजलाह- भोजन एतहि... जयकान्तबाबू हमरा दिस स्नेहपूर्ण दृष्टिसँ तकैत कहलनि-" अहाँ दरभंगासँ आएल छी, भोजन हमरहि ओत' करए पड़त ।"

हम ड्राइंगरुममे बैसल छी । वयोवृद्ध विद्वान, तापस ॠषि, सुच्चा मैथिल संस्कार,... विनम्रताक प्रतिमूर्ति । हमर हाथ पकड़ैत कहलनि- "भोजन एतहि करए पड़त ।" हम असमंजसमे पड़ि गेलहुँ -" एहि खेप क्षमा कएल जाओ । टैगोर टाउनमे हम पूर्वहिसँ निमन्त्रित छी ।"

जयकान्त बाबू बजलाह-" तखन मधुरे आनू ।"

खोआ मलाइ देल इलाहाबादक रसस्निग्ध मधुर... एक गिलास पानि ।

हम साकांक्ष होइत पुछलियनि- "अपनेकें भोजनमे की प्रिय अछि ?"

-"प्रिय अछि चूड़ा आ दही । अँचार आ मरिचाइ । तें चूड़ा दहीक संग चारि तरहक तरकारी नहि। बिना तरकारीक सुच्चा मैथिल भोजन चूड़ा आ दही । अँचार आ मरिचाइ। चूड़ा दही भोजनक पाछाँ एकटा कारण छैक ।"

-"जी, से की ?"

-"लीखब-पढ़ब.. पूजा-पाठ ... एहिमे बेशी झंझटि नहि होइक, चुल्हा नहि पजारए पड़ए-सबठाम सहज रुपें भोजनक इन्तजाम भ' जाए तेहन व्यवस्था कएल गैलैक अछि ।"

-"जी, चूड़ा-दहीक अतिरिक्त ?"

-"चूड़ा-दहीक अतिरिक्त माछ नीक लगैत अछि । शुद्ध अपन घऽर-आङ्नवला माछ-सरिवस देल बिना लहसून प्याजक ।"

हम मधुर शेष करैत बजलहुँ - "आ मधुरमे ?"

-"मधुरमे रसगुल्ला । रसगुल्लासँ हमरा तृप्ति नहि... खएने जाइत छी आ फेर खएबाक इच्छा भ' जाइत अछि । ... रसगुल्ला हमरा नीक लगैत अछि।"

हम हाथ धोक' पुनः सोफा पर बैसि जाइत छी । इलैंजी आ लौंग । मोन गतिशील भ उठैत अछि । मत्स्य पुराणमे प्रयागराजक महत्त्व पढ़ने रही । गंगा-जमुना आ सरस्वतीक संगम... अन्तःसलिला सरस्वती । सरस्वतीक वरदपुत्र डा. जयकान्तमिश्र हमर सम्मुख बैसल छथि । फोनक घण्टी बजैत अछि । पल दुइएक जयकान्त बाबू फोनपर गप्प करैत छथि आ फेर सम्मुख आबिकए बैसि जाइत छथि ।

-"यात्रीक चित्रा अपने छपने रहिएनि ?"

-"हँ, हम छपने रहिएनि । यात्रीजी मूलतः मैथिलीक लेखक छथि । 'चित्रामे हुनक मूल कविरुपक अभिव्यक्ति भेल अछि । हुनक कवितामे, उपन्यासमे, शब्द-शब्दमे मिथिलाक सउरभ आ सुगन्धि पसरल भेटत । हुनक हृदयमे मिथिलाक प्रति मात्सर्य रहनि । भाषा पर अधिकार रहनि । जेहन दृश्य, जेहन भाव, जेहन डिमान्ड तेहन शब्दक संयोजन... क्लिष्टसँ क्लिष्ट संस्कृत शब्दक उपयोग आ सहज-सँ-सहज सुच्चा मैथिलीक संयोजन.. मुदा सबटा स्वाभाविक ! तखन एक टा भेलैक..."

-"जी. से की ?"

-"यात्रीजी रहथि निरुपाय.. कोनो जीविका नहि तें अधिक समय हिन्दीमे देबए पड़लनि... दूर-दूर धरि ख्याति भेलनि । मुदा तइयो मैथिलीमे हुनक समान आन नहि दोसर..मन होइछ विश्वासे ।"

-"आ'सुमन'जी ?"

-"सुमन'जीक आरम्भिक कविताक हम रही प्रशंसक... बादमे हुनक कवितामे कृत्रिमता बढ़ए लगलनि... "

-"अपने यात्रीक समीप अपनाकें मानैत छै कि सुमनजीक समीप ?"

प्रश्न सूनि क' जयकान्त बाबू विहुँसए लगलाह, कहलनि- "हमरा यात्री जी बेशी पसिन्न। हुनक साहित्यमे दीदीक इनारकपानि छैनि ।" कहि क' भभा-भभाक हँस' लगलाह ।
-"अपनेकें नव कविता पचल अछि ?"

-"नवीन कविता नहि पचल रहैत तँ यात्रीजीक प्रशंसा कोना करितहुँ ? आ हुनक की नाम रहनि... की तँ नाम रहनि.... अरे-रे-रे... मैथिलीक नव कविताक पुरोधा... हँ-हँ, पावरफुल प्वैट...ओहो...हो...हँ महिषीक राजकमल चौधरी । यात्री आ राजकमल चौधरी मैथिलीमे अनपैरलल ! ताहिसँ आगाँ क्यो नहि, ताहिसँ दग्ध सब क्यो !"

-"आ हरिमोहन बाबू ?"

-"हँ, हरिमोहन बाबूक योगदान छनि मुदा गद्यक क्षेत्रमे । सहज स्वाभाविक घचनाक विम्बविधानमे... पिउसी, बुच्चीदाइ... लालकका... लालकाकीक वर्णनमे । हुनक 'रेलक अनुभव' अतिशय नीक लागल रहए । केहन सुन्दर पंक्ति छैनि... पद्मा आ कमला तँ एके अर्थक बोधक थिकीह तखन एतेक अन्तर किएक ? कतहु-कतहु हरिमोहन बाबूक रचनामे सनातन धर्म पर व्यंग्य-कटाक्ष मोनकें क्लान्त करैत अछि । मुदा हरिमोहन बाबू मैथिलीक विकासमे अपूर्व योगदान कएल ।"

-"राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघक गुरुदक्षिणामे भाग लैत छिऐक ?"

-"देखू... रज्जू भैयासँ सम्पर्क रहल... वर्तमान मानव संसाधन मंत्री डा. मुरलीमनोहर जोशीसँ सम्पर्क रहल । इलाहाबाद विश्वविद्यालयमे सहकर्मी रहथि ।"

-"जी, गुरुदक्षिणा ?"

-"हँ-हँ, किएक नहि, गुरुदक्षिणामे भाग लैत छिऐक ! कोनो व्यक्तिकें नहि, भगवा ध्वजकें प्रतीक रुपमे गुरुदक्षिणा अर्पित कएल जाइत छैक । नानाजी देशमुखसँ सम्पर्क भेल... ओ राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघक छथि... हुनकासँ सम्पर्कक बाद हम संघ परिवारसँ घनिष्ठ भ' गेल छी ।"

-"उमानाथ बाबूक रेखाचित्र अपने छपने रहिएनि ?"

-"हँ, हम छपने रहियनि । हुनक परिवारसँ बहुत दिनक सम्बन्ध । -फ्रायडक थ्योरी... लघुकथा...इन्टेरियर मोनोलॉग... मनोविश्लेषण... नव टेकनीक...नीकलागल... छपलियनि। बादमे दस-पाँच कॉपी रहि गेल । कृष्णाकान्तकें द' देलियनि दरभंगा ल' जाउ । उमानाथ बाबू हमर मित्र । विद्यापति गीतशतीमे खाली विद्यापतिक श्रृंगाररसपूर्ण कविताक संकलन कए देने छथिन । साहित्य अकादमीसँ प्रकाशित छनि । हम विरोध कएने रहियनि । एकांगी भ' गेल । मुदा के मानैत अछि !

-"साहित्य अकादमीक पहिल कथा-संग्रहमे ललितक कथाकें सम्मिलित नहि कएल गेलनि, तकर की कारण ?

-"हम मानैत छी जे मैथिलीक कोनो कथा-संग्रह ललितक कथा बिनु पूर्ण नहि भ' सकैत अछि । हम गछैत छी जे ई भयंकर त्रुटि भेल रहैक । हमरा पूर्वमे स्वयं ललितक कथा पढ़ल नहि रहए । पत्र-पत्रिका सबमे बहराइन्ह । मुदा से हम पढि नहि सकल रहिएनि। बादमे ललितक प्रतिनिधि कथा-संग्रह पढ़लहुँ । 'मुक्ति' आ 'रमजानी' पढ़लहुँ । तखन बुझलियनि 'ललित'क कथा लिखबाक सामर्थ्य, हुनक तकनीक, हुनक यथार्थ, हुनक शब्द संयोजन, कथाक सम्पूर्ण प्रभाव। ओ हमर सम्बन्धी छलाह । हुनक पिता चन्द्रशेखर बाबूसँ हमरा सम्बन्ध छल। एहन त्रुटि नहि होएबाक चाहैत छलैक। हम गछैत छी गलती भेलैक !"

डा. जयकान्त मिश्र इलाहाबाद विश्वविद्यालयक अंग्रेजी अध्ययन एबं आधुनिक यूरोपीय भाषा विभागमे १९४४मे प्राध्यापकक रुपमे अपन कार्यजीवन आरम्भ कएल आ १९८३ मे एहि विभागक प्रोफेसर एवं अध्यक्षक रुपमे अवकाश ग्रहण कएल । सुनीति कुमार चटर्जी, सुकुमार सेन, डा. हजारीप्रसाद द्विवेदी, डा. राम कुमार वर्मा, फिराक गोरखपुरी आ डा. हरिवंशराय बच्चनसँ घनिष्ठ सम्बन्ध रहलनि । डा. महादेवी वर्माक प्रियपात्र आ प्रशंसक रहलाह । इलाहाबादक शलाका पुरुष सूर्यकान्त त्रिपाठी निराला सँ कोनो सम्पर्क नहि रहलनि । १९६३ सँ ८२ धरि साहित्य अकादेमी, नई दिल्लीसँ सम्बन्धित रहि मैथिलीक विकास विस्तारक कार्य-योजनासँ प्रत्यक्ष रुपें जुड़ल रहलाह।

-"साहित्य अकादेमीमे मैथिलीक स्वीकृतिक की पृष्ठभूमि रहलैक ?"

-"एहि प्रसंग हम सर्वप्रथम पं. जवाहरलाल नेहरुक प्रति हृदयसँ आभार व्यक्त करए चाहैत छी । संयोग एहन भेलैक जे हमरा एक पहुँचल आध्यात्मिक सम्पर्क भेल। हम जीवनमे किछु उन्नति करए चाहैत रही। हम हुनकासँ पुछलियनि जे हम कोन अनुष्ठान करी जाहिसँ हमर जीवनमे उन्नति होएत ? ओ आध्यात्मिक व्यक्ति रहथि पहुँचल... किछु पल आँखि मुनि ध्यानस्थ भ' गेलाह । ध्यान टुटलनि तँ कहलनि-गायत्रीक अनुष्ठान कएल जाए । हम गायत्रीक अनुष्ठान कएल... तकर तुरत परिणाम भेल ! हमरा साहित्य अकादेमीक सामान्य परिषदक सदस्यक रुपमे मनोनीत कएल गेल। हम साहित्य अकादमीक बैसकमे प्रस्ताव रखलिऐक जे मैथिलीकें साहित्य अकादेमीमे स्वीकृत कएल जाए । पं. नेहरु हमर विचारकें गम्भीरतासँ सुनलनि । विभिन्न भाषाक विद्वानक समर्थन प्राप्त भेल । मुल्कराज आनन्द, हरेकृष्ण महताव, उमाशंकर जोशी प्रभृति प्रख्यात साहित्यकार लोकनि मैथिलीक पक्षमे अपन विचार प्रस्तुत कएलनि । पं. नेहरुक कहब छलनि -Maithili has been for a long time and is today a living language among the people of that area. The language deserves encouragement. फलतः साहित्य अकादेमीमे मैथिलीक स्वीकृतिक प्रस्ताव विचार कोटिमे स्वीकृत भेल !.. तकर बाद हम दिल्लीमे व्यापक स्तर पर पुस्तक प्रदर्शनीक आयोजन कएल । एहि प्रदर्शनीक कार्य-वृत्त प्रकाशित अछि । पं. नेहरु एहि प्रदर्शनीमे सम्मिलित भए मैथिलीक दिस सम्पूर्ण राष्ट्रक ध्यान आकृष्ट कएल । साहित्य अकादेमीमे मैथिलीक स्वीकृतिक सम्बन्धमे एक कमीटीक गठन कएल गेल।

-"एहि कमीटीक सदस्यक नाम कहल जाए ।"

-"एहि कमीटीमे रहथि डा. सुभद्र झा, सुनीतिकुमार चटर्जी, एस.एन कात्रे, हजारी प्रसाद द्विवेदी । हजारीप्रसाद द्विवेदीक अप्रत्यक्ष रुपेण पूर्ण समर्थन रहए । सुनीति कुमार चटर्जी सदासँ मैथिलीक विकासक यज्ञमे सहयोग करैत रहलाह । कात्रेक सेहो समर्थन प्राप्त कएल। साहित्य अकादेमीमे मैथिलीक प्रवेशक विरोध के कएलनि से बूझल अछि ?"

-"जी, कहल जाए... "

-"डा. सुभद्र झा... "

हमर मोन आकुल भ' उठल । हम विनम्रतापूवर्क कहलियनि-"देखल जाए सुभद्र बाबू आब जिबैत नहि छथि, ओ एहि आरोपक उत्तर नहि द' सकैत छथि । की एहन स्थितिमे हम सुभद्र बाबूक प्रसंग अपनेक आरोपकें नोट करु ?"

-"हँ-हँ, किएक नहि ? सत्य सत्य थिकैक ! हमरा स्वयं सुभद्र कहलनि जे साहित्य अकादेमीमे मैथिलीक स्वीकृतिक प्रस्तावक विरोधमे ओ अपन विचार देने रहथिन । ओ तँ धन्य कहू सुनीति बाबूक मैथिलीप्रेम, कार्यशैली आ प्रभावकारी व्यक्तित्वक जे साहित्य अकादेमीमे मैथिलीक प्रवेश भेल ।"

-"अपनेक मौलिक मैशिली लेखन ?"

-"अनेक निबन्ध, पुस्तक समीक्षा, सम्पादकीय टिप्पणी आदि ।"

-"जी मैथिलीमे लीखल अपनेक पुस्तक ?"

- १९६७मे प्रकाशित भेल तिरहुत ककहरा, १९६९ मे प्रथमिक शिक्षा, १९७०मे किर्तनियाँ नाटक, १९८८ मे साहित्य अकादेमी सँ मैथिली साहित्यक इतिहास प्रकाशित भेल । वृहत मैथिली शब्दकोषक प्रथम खण्ड १९७३ मे प्रकाशित भेल, दोसर खण्ड १९९५ मे प्रकाशित भेल । एहि शब्दकोषक अन्य भाग प्रकाशनक पथपर अछि ।

-"अपनेक अप्रकाशित ग्रन्थ आदि ?"

एकटा महत्त्वपूर्ण कृति अनुसंधान प्रक्रिया मैथिलीक सन्दर्भमे अप्रकाशित अछि... पटना विश्वविद्यालय मैथिली डेभलॉपमेन्ट फन्डक तत्त्वावधान मे हमर ६ गोट भाषण भेल रहए । लेख सभक संकलन छपएबाक योजना अछि ।

-"पृथक मिथिला प्रान्तक सन्दर्भमे की योजना अछि ?"

-"हम मिथिला प्रान्तक प्रबल समर्थक छी । एहिसँ मिथिलाक भाषा, संस्कृति आ साहित्यक विकास होएतैक । आ सबसँ महत्त्वपूर्ण जे आर्थिक दृष्टिसँ मिथिला आत्मनिर्भर होएत । ओना हम डा. लक्ष्मणझाक विचार सँ सहमत नहि छी । भारतीय संविधान आ लोकतंत्रक प्रति हमरा अटूट निष्ठा अछि । स्वतंत्र मिथिला गणराज्यक प्रश्न भारतीय संनिधानक प्रतिकूल भेल । हम जानकी नन्दन सिहंक पृथक मिथिला प्रान्तक संकल्पनासँ सहमत छी । छोट-छोट राज्यक निर्माणसँ विकासक गति तीव्र होएतैक ।"

-"मैथिलीक विकासक लेल अपनेक सुझाव ?"

-"हमर दृढ़ मत अछि जे प्राथमिक शिक्षामे मातृभाषाक माध्यमसँ पढ़ाइ कएल जएबाक चाही । सम्पूर्ण मैथिलीभाषा क्षेत्रमे प्रथमिक कक्षामे मैथिलीक माध्यमसँ पढ़एबाक व्यवस्था अविलम्ब होएबाक चाही । हम अवकाश ग्रहण कएलाक बाद एही उद्देश्यसँ १९८३सँ १९८८ धरि गामे-गाम भ्रमण कएल। लोकक सहयोग भेटल रहय । प्रशासनिक स्तर पर अवश्य व्यवधान उपस्थित कएल गेल।"

बिहार लोक सेवा आयोगसँ मैथिलीकें हटा देल गेल । कोनो प्रोटेस्ट जोरगर नहि भेल । अन्यायक आ प्रतिकार होएबाक चाही । एहि सन्दर्भ मे मैथिलीक संश्थासभक सही मूल्यांकन कएल जएवाक चाही । कोन संस्था की कऽ रहल अछि । मैथिलीक सबसँ पुरान संस्था अखिल भारतीय मैथिली साहित्य परिषद्क भूमिखण्ड पर जेना-तेना एकटा मकान बनलैक । केहन उज्जवल इतिहास परिषद्क रहलैक । आब भम पड़ैत छैक । एहि सब तथ्यक मूल्यांकन होएबाक चाही । दोषी व्यक्तिकें सजा देल जएबाक चाही... भत्र्सना कएल जएबाक चाही । मैथिलीक विकासक लेल जे हमर सबसँ महत्त्वपूर्ण सुझाव अछि से नोट करु।"

-"जी, कहल जाए... "

-"मैथिलीक विकासक लेल महिला लोकनिमे जागरण अपेक्षित अछि । महिला लोकनिक सहभागिता आवश्यक अछि । हमर पत्नी श्रीमती अपराजिता देवी मैथिलीमे कविता लिखैत छथि, निबन्ध लिखैत छथि । गृहविज्ञान पर पुस्तक प्रकाशित छनि । हुनक एकटा पुस्तक छनि 'बरबाद हुअसँ पहिने' - एहिमे पद्य आ गद्यक संकलन अछि ... हुनक लीखल ।" -एक जन व्यक्ति भीतरसँ पुस्तकक एक प्रति द' जाइत छथि- बरबाद हुअसँ पहिने- हमर हाथमे पुस्तक अछि । मुख्य कवरपृष्ठ पर मिथिला प्रान्तक नक्शा अछि- भारतीय भाषा सर्वेक्षणक अनुसार । अन्तिम कवर पृष्ठ पर लोखिकाक फोटो.. परिचय.. मैथिली महिला विद्यापीठक संचालिका १९७०-७२ धरि । मिथिला मिहिरमे लेख आ कविता प्रकाशित। ग्राम पिलखबाड़, जिला मधुबनी छनि नैहर ।

जयकान्त बाबू कहलनि -"हमरा की द' रहल छियनि हमर पत्नी छथि तें नहि... आनो जो कोनो महिला लेखिका मिथिला मैथिलीक लेल समर्पित छथि तनिक सम्मान कएल जएबाक चाही । हम अपन परिवारक एकटा संघर्षक कथा कहैत छी ।"

-"जी, कहल जाए ।"

-"हमर माझिल बेटी छथि श्रीमती लीला देवी । पति रेलवेमे नौकरी करैत- सिलीगुड़ीमे... पारिवारिक जीवनमे किछु मतान्तर भ' गेलनि । लीली बाल्यकालेसँ अतिशय भावुक आ स्वाभिमानी । गृहविज्ञानमे मैथिलीमे लिखल हुनक एकगोट पुस्तक अछि । पढ़लि-लिखलि सुशिक्षिता । ओ पहिने स्कूल ज्वाइन क' लेलनि । हुनक एक कन्या आ दू बालक हमर संरक्षणमे एतहि पढि-लिखि आब सब केओ अपन अपन पैर पर ठाढ़ छथि ।

लीलाक कन्याक विवाह भ' गेल छनि । हुनक जेठ बालक श्री पुनीत झा 'लव' आस्ट्रेलियामे जीविकापन्न छथि आ दोसर बालक नवनीत झा 'कुश' बैंगलोरमे उच्च पद पर कार्यरत छथि । आब सुनू लीलीक संघर्षक कथा... ओ पहिने स्कूल ज्वाइन कएलनि... तकर बाद इंगलैण्ड चल जाइत रहलीह । ओतहि ओ एकटा दोकान चलबैत छथि 'Stock onTank ' शहरमे... दोकनाक नाम रखने छथि - अनादि-अनन्त ! केरल... इलाहाबाद... मधुबनी आदि अनेक जगहसँ बस्तुजात, सामग्री सब ल' जाइत छथि आ ओएत सबटा बिका जाइत छैन्हि । जँ मिथिलाक महिला एहिना संघर्षक पथपर चलिक' अपन रास्ता बनबैत जयतीह तँ फेर मिथिला आ मैथिलीक विकासक रथकें के रोकि सकैत अछि ?"

दिन रहइक बृहस्पति । घड़ीमे बजैत रहैक बारह बाजिक पैंतिस मिनट । ३० अगस्त २००१ । ड्राइंग रुमक सोफा पर बसैल छी । सामनेमे टेबुल पर राखल कलाचित्र... विरहाकुल नायिका प्रेमपत्र लिखैत.... देबालपर प्रेमालाप करैत नायिका... हाथमे गुलाबक फूल... अभिरासक दृश्य... बीच देबालमे विद्यापति चित्र । सामनेमे जयकान्त बाबूक भव्य रंगीन फोटो ।

-"जी, अपनेक आराम, विश्रामक समय भ' रहल छैक की ?"

-"देखू, हम अठारह घण्टा काज करैबला' लोक छी । हमरा नानाजी देशमुख अपन विश्वविद्यालय चित्रकूट ल' गेल रहथि । हुनका एहन अंग्रेजीक विद्वान अपेक्षित रहथिन जे सिगरेट नहि पिबैत होथि, एहन अंग्रेजीक विद्वान अपेक्षित रहथिन जो धोती कुर्त्ता पहिरैत होथि ।... तें कहलहुँ जे हमर आराम-विश्राम काव्य-शास्र थिक... काव्य-शास्र विनोदेन ।"
-"जी, से अवश्य ...अपनेक कोनो इच्छा अछि जकर पूर्कित्त नहि भेल हो ?"

-"हँ, हमर इच्छा अछि जे प्रथमिक कक्षामे मैथिलीक माध्यमे पढ़एबाक व्यवस्था कएल जाए ... हमर ई इच्छा अपूर्ण । १९८३ सँ ८८ धरि आ बादोमे हम कत' -कत' नहि गेलहुँ ! ओना हमर जन्म भेल बनारसमे... हम पढ़लहुँ लिखलहुँ प्रयागमे... जीविका आ पारिवारिक दायित्वक निर्वाह कएल एहि कुम्भनगरीमे... मुदा हमर इच्छा अछि जे हमर मृत्यु मिथिलाक गामे-गाम घुमैत भ' जाए । हमर आत्मा मिथिलाक गाममे अछि ।"

-"मैथिलीमे वर्तनीक प्रसंग अपनेक की विचार अछि ?"

-"ई प्रश्न अति महत्त्वपूर्ण अछि । हमर पिता डॉ. उमेश मिश्रक अध्यक्षतामे वर्तनीक निर्धारण कएल गेल रहैक । रमानाथबाबू, दीनबन्धुबाबू, सुभद्रबाबू आदिक योगदान रहनि। पछाति एहि वर्तनीकें रमानाथबाबूक शैली कहि कतेक व्यक्ति विरोध कएने रहथि । हमर स्पष्ट मत अछि जे वर्तनीक प्रसंग हमर पिता आ रमानाथ बाबू लोकनि जे निर्धारण कएने रहथि से सर्वथा वैज्ञानिक, तर्कयुक्त आ अपेक्षित । अतएव तकरे पालन उचित ।"

-"रमानाथबाबूक संग अपनेकें कोन-कोन बिन्दुपर विवाद रहए ?"

-"मूलतः किर्तनियाँ नाटक आदि विन्दुपर वैचारिक मतभेद रहए । हम मध्यकालीन मैथिली साहित्यक गम्भीर अध्ययन कएने छी । विभिन्न स्रोतसँ सामग्रीक संकलन कए प्रकाशित कएने छी । अहाँकें बुझले होएत १९७०मे हमर महत्त्वपूर्ण पुस्तक किर्तनियाँ नाटक प्रकाशित भेल छल । हम एहि क्षेत्रमे गम्भीर अध्ययन एवं अनुशीलन कएने छी । तथ्यक संकलन आ विश्लेषण करैत रहलहुँ अछि ... तें हम अधिकृत आ प्रामाणिक रुपमे कहि सकैत छी जे किर्तनियाँ नाटक थिक ।"
-"मुदा रमानाथबाबूक कहब रहनि जे किर्तनियाँ नाच थिक, नाटक नहि ।"

-"देखू, रमानाथबाबू नि:संदेह सुयोग्य व्यक्ति रहथि पाठ्य-पुस्तकक हेतु जे ओ पुस्तक सभक सम्पादन कएने छथि से हुनक विद्वत्ताक परिचायक थिक... आयुमे हमरासँ श्रेष्ठ रहथि। मुदा किर्तनियाँक प्रसंग हुनक दृष्टिकोण तर्कपूर्ण नहि छनि । हुनका मध्यकालीन साहित्यक विशेष अध्ययन नहि छलनि ।"

-"की एम्हर किर्तनियाँक प्रसंग अपनेक दृष्टिकोणमे कोनो परिवर्तन भेल अछि ?"

-"कोनो परिवर्तन नहि । वस्तुतः एम्हर आबिक' एहि प्रसंग हमर धारणा दृढ़ होइत गेल अछि । नेपालसँ हमरा विपुल सामग्री भेटल। किर्तनियाँ नाटक थिक- ई धारणा क्रमिक पुष्ट होइत गेल अछि ।"

-"अपनेक एक सम्पादित पुस्तक अछि मैथिली धूर्तसमागम ।"

-"हँ, अछि, १९६१मे प्रकाशित अछि ।"

-"की एहि पोथिक मूल पांडुलिपिमे 'मैथिली' शब्द रहैक ।"

-"नहि ! मैथिली शब्द नहि रहैक । धूर्तसमागमक संग हम मैथिली शब्द जोड़ि देने छिऐक। ज्योतिरीश्वरक समयमे मैथिली शब्दक उपयोग नहि होइत छलैक ।"

-"एम्हर मैथिलीक कोन-कोन पुस्तक पढ़लहुँ अछि ?"

-"एम्हर दू गोट पुस्तक ध्यान आकर्षित कएलक अछि । पहिल भीमनाथ झाक 'मन आङ्नमे ठाढ़' - विलक्षण आत्मीयतापूर्ण संस्मरण एवं श्रद्धांजलि प्रस्तुत कएने छथि ।"

-"आ दोसर ?"

-"प्रो. अमरनाथ झा (नवटोल) द्वारा लिखित रमानाथ बाबूक जीवन चरित- 'सारस्वत सरमे हे मराल' - जेहने रमानाथ बाबूक व्यक्तित्व तेहने चित्रण ।"

-"नवीन कविताक भविष्य ?"

-"भविष्य उज्जवल छैक । जनिकर कवितामे मोन आ हृदयकें झंकृत करबाक सामर्थ्य रहतनि से किएक नहि लोककें आकर्षित करतैक? तखन बेशी संत्रास... कुंठा हमरा पसिन्न नहि। रमानन्द रेणुकें पुरस्कार भेटलनि - 'कतेक रास बात' - पर। कथाकार रेणु हमरा अधिक आकर्षित करैत छथि । एहि बेर पुरस्कारक निर्णायकमे हमहुँ रही । 'रेणु'जीक पक्षमे निर्णय देयलनि । 'कतेक रास बात' मे जे.पी. आन्दोलनक मूल्यांकन प्रशंसनीय अछि ।"

-"अपने कोन-कोन संस्थासँ संबंधित रहलहुँ अछि ?"

-"अखिल भारतीय मैथिली साहित्य समितिसँ १९४३सँ एखन धरि, गंगानाथ झा रिसर्च इन्स्टि#ीट्यूट, इलाहाबाद, मैथिली अकादेमी, पटना... साहित्य अकादेमी आदिसँ जुड़ल रहलहुँ ।"

-"अपने मैथिलीक कोन-कोन पत्रिकाक सम्पादन कएल ?"

-"हम १९८४-८५मे भाखा पत्रिकाक सम्पादन कएने रही । १९६०-९९ धरि मैथिली समाचार (News Bulletin )क सम्पादनक दायित्वमे रहलहुँ ।"

-"अपनेकें कोन-कोन सम्मान प्राप्त भेल अछि ?"

-"१९६७मे मुमबइमे अखिल भारतीय मैथिली सम्मेलनमे सम्मानपत्र प्राप्त भेल । चेतना समिति, पटना सम्मानित कएने रहए... ताम्रपत्र आ दोशाला प्राप्त भेल । मैथिली सांस्कृतिक संगम, प्रयाग सम्मान-पत्र प्रदान कएने छल... १९९५मे । १९९९मे विद्यापति-समिति, धनवादसँ सम्मान-पत्र प्राप्त भेल ।

-"एम्हर किछु गोटेकें अभिनन्दन-ग्रंथ अर्पित कएल गेलनि अछि... अपनेक सुरसार चलि रहल अछि की ?"

आदरणीय जयकान्त बाबू भभा-भभाक' हँसए लगलाह, फेर उदास भ' गेलाह, फेर स्थिर, फेर साकांक्ष होइत कहलनि- "हम मैथिलीक सिपाही छी ।... मैथिलीक पुस्तक प्रदर्शनी कएल... एगारह हजार पी-एफसँ लोन ल'क' हम पुस्तक प्रदर्शनीक आयोजन कएने रही ।... गामे-गाम घुमैत रहलहुँ । अमरनाथ बाबू सन गुरु भेटलाह । कर्मयोगीक अभिनन्दन की? हम मैथिलीक ध्वजा उठौने गजहरासँ दिल्ली धरि चलैत रहलहुँ... मैथिलीक छ्वजा फहराइत रहए... हम रही नहि रही.. हमर कोन ?"

ड्राइंगरुममे कविकोकिल विद्यापतिक भव्य चित्र... साहित्य अकादमीक भाषा-सम्मानक प्रशस्तिचिह्म... देबाल पर मचकी पर झुलैत नायक-नायिकाक रुपांकन ... हम उठए लगलहुँ । जयकान्तबाबू हमर हाथ पकड़ैत कहलनि-दरभंगामे म्लेच्छमर्दिनी भगवती मन्दिर लग एक जन ज्योतिषी भविष्यवाणी कएलनि- अपने ९५ वर्ष धरि रहबैक। ... बुझलहुँ, हम मैथिलीक प्रसंग, मिथिलाक प्रसंग, अपन समाजक प्रसंग सोचैत रहलहुँ.... अपन इच्छा आ आकांक्षा कोनो नहि.. साधारण कपड़ा, साधारण भोजन... तें हमर मोन बलित रहैत अछि ... कोनो भय नहि !"

आ तकर बाद हम विदा भ' गेल रही । इलाहाबाद स्टेसन पर बसैल छी । रातिक दस बाजि रहल छैक । प्लैटफार्म नं. ४ । तूफान पकड़ि पटना चल जाइत रहब.. लीलादेवीक संघर्ष... श्रीमती अपराजिता देवीक कविता ... कविताक चिनगारी आ एलनगंज, १ पी.सी. बैनर्जी रोडक तीरभुक्ति निवास आ अवकाशप्राप्त प्रोफेसर जयकान्त मिश्र.... मैथिलीक ध्वजा फहराइत रहय .. हम रही नहि रही.. हमर कोन.. एहि यज्ञकें की कही.. समिधा की? आहुति कोन ? - अनादि अनन्त ।

 

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© आशुतोष कुमार, राहुल रंजन  

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