बुंदेलखंड संस्कृति

चन्देलयुगीन ललित कलाएँ

नागरिक स्थापत्यकला

चन्देलों ने पूर्णवैभव के साथ चिरकाल तक राज्य किया। उन्होंने अनेक आततायी शत्रुओं का दमन कर शांति एवं सुव्यवस्था स्थापित की। विदेशी आक्रमणों तथा आन्तरिक उपद्रवों के समय राष्ट्र की समग्र शक्तियाँ दुर्गों के निर्माण तथा उनके जीणोद्धार में लगी थीं, किन्तु जब देश में शांति तथा सुव्यवस्था का राज्य था उस समय राष्ट्र का धन तथा ध्यान मन्दिर तथा 
भवनों के निर्माण की ओर उन्मुख हुआ। तत्कालीन मध्य युग में धार्मिकता अपनी चरमसीमा पर थी और लोग धर्म को तर्क से अधिक श्रेयस्कर समझते थे। तत्कालीन दृष्टिकोण पत्थर में मूर्तिमान हो उठा। फलतः विभिन्न मतों के विशाल मंदिर अपनी विविधताओं के साथ सर्वत्र ही बहुतायत से पाये जाते हैं। परन्तु राजप्रासादों तथा अन्य भवनों की भी कमी नहीं है। चन्देल नरेश अनेक प्रकार की सुख-सुविधाओं से युक्त सुन्दर प्रासादों में निवास करते थे। उस समय प्रासादों को बैठक भी कहते थ्ज्ञे। अनेक प्रासादों के चिह्म आज भी पाये जाते हैं। अनेक प्रासाद प्रकृति के थपेडों को सह न पाने से विलीन हो गये। कुछ प्रासादों को मुस्लिम विजेताओं ने नष्ट-भ्रष्ट कर दिया और कुछ मस्जिद में परिवर्तित कर दिये गये। फिर भी जो प्रासाद बचे हैं, उनसे चन्देल नरेशों की रुचि तथा तत्कालीन कारीगरी के कौशल का बोध होता है। चन्देल-युग में अनेक तड़ागों का भी निर्माण हुआ और वे नागरिक वास्तुकला के मुख्य अंग हैं। इसके अतिरिक्त अनेक स्तम्भों का भी निर्माण हुआ। अस्तु, चन्देल नागरिक स्थापत्य-कला तीन भागों में विभक्त की जाती हैं- 

 

प्रासाद अथवा बैठक

चन्देल प्रासादों का निर्माण आयोजन साधारणतः एक ही प्रकार था। एक खुले आंगन के चारों ओर कमरे बने होते थे। उनमें खुले हुए स्तम्भ युक्त बरामदे भी होते थे। राज महिषियों के एकान्त के विचार से लकड़ी अथवा कपड़े के पर्दे का प्रबन्ध किया जाता था, जिसके चिह्म अब परिलक्षित नहीं होते हैं।

१. महोबा का राजप्रसाद
महोबा परवर्ती चन्देल नरेशों की राजधानी थी। अस्तु, वहां मन्दिरों तथा भवनों का बाहुल्य था, किन्तु प्रकृति के प्रतिरोध में न ठहर सकने के कारण परमर्दिदेव के पूर्व की कोई भी इमारत उपलब्ध नहीं है। महोबे में एक प्रासाद था, जिसे मुस्लिम विजेताओं का कोपभाजन बनना पड़ा। कहा जाता है कि यह परमर्दिदेव का राज प्रासाद था। यह दुर्ग की पहाड़ी पर स्थित है और अब उसका भग्नावशेष मात्र रह गया है। इसमें केवल एक बारादरी है जो ८० फीट लम्बी तथा २५ फीट चौड़ी है। बाद में यह मस्जिद में परिवर्तित कर दिया गया था। उसके खम्भे अब भी सुरक्षित हैं। ये पत्थर से काटकर बनाये गये हैं और इनकी ऊंचाई १२ फीट है। ये अनेक मूर्तियों तथा ज्यामितीय चित्रों से अलंकृत हैं। भवन की लम्बाई में इस प्रकार के स्तम्भों की ८ पंक्तियां तथा चौड़ाई में तीन पंक्तियां हैं। उनसे मस्जिद के अग्रभाग के सात दरवाजों का निर्माण होता है।

२. जबलपुर का मदन महल
यह चन्देल नरेश मदनवर्मन का राजप्रसाद कहा जाता है, किन्तु यह अत्यन्त साधारण भवन है। यह एक बड़ी गोल चट्टान पर बना हुआ है। इसमें अनेक छोटे-छोटे कमरे हैं। ऐसा प्रतीत होता है कि इस भवन में दो खण्ड थे। इसमें एक आंगन था और उसके चारों ओर साधरण कमरे थे। अब आंगन के केवल दो ओर कमरे बचे हैं। छत की छपाई उत्तर है और उसमें सुन्दर चित्रकारी है। यह छत फलक युक्त वर्गाकार स्तम्भों पर आश्रित है।

३. गढ़कोट महल
गढ़कोट नामक दुर्ग में यह महल जीर्ण-शीर्ण दशा में स्थित है। महल में जाने का मार्ग लम्बा, संकरा तथा वक्र है। अस्तु, आक्रमण आदि के समय सुरक्षा के विचार से इसकी स्थिति बड़ी उत्तम है। यह महल किले की उच्चतम भूमि पर बना है। महल की दो चहारदीवारें ईंट तथा पत्थर की बनी है और शेष दो ओर सोन तथा उसकी सहायक नदियाँ उसकी सुरक्षा करती है।

४. हाटा के दो बाराखम्भा महल
ये दोनों महल प्राचीन है। हिन्दू तथा मुसलमान दोनों इस पर अपना स्वत्व प्रकट करते हैं। इसके कमरे अब छत विहीन हैं और केवल स्तम्भ मात्र शेष है। स्तम्भ अपने मूल-स्थान पर ही प्रतीत होते हैं। खम्भे तथा उनके फलक सुरक्षित हैं। सूक्ष्म निरीक्षण से प्रतीत होता है कि सभी स्तम्भों के फलक समान माप के नहीं हैं।

५. मदनपुर बारादरी
मदनपुर नगर की सबसे अधिक महत्वपूर्ण इमारत यह बारादरी है। इसमें पृथ्वीराज चौहान का शिलालेख है जिसमें उसकी विजय तथा परमर्दिदेव की पराजय का उल्लेख है। यह एक छोटी तथा खुली हुई बारादरी है, जिसमें छह स्तम्भ हैं।

६. हाटा का महल
यह महल हाटा दुर्ग के अन्दर है।। इसमें पत्थर के वर्गाकार ऊंचे स्तम्भ हैं, जो अलंकृत नहीं हैं। इन स्तम्भों पर मेहराव बना हुआ है और इसके खुले हुए आँगन के चारों ओर कमरे हैं।

७. चिल्ला का महल
यमुना के दाहिने किनारे में इलाहाबाद से १० मील पश्चिम चिल्ला एक छोटा-सा गांव है। यहां बनाफर सरदार आल्हा-ऊदल के महल थे।। यह महल एक सुरक्षित चहारदीवारी में है, जिसको कोट कहते हैं। इस कोट की दीवार मिट्टी की बनी हुई है पर बाहर तथा अन्दर की दीवार का अग्रभाग पत्थर से बना हुआ है। इस कोट के चोरों कोनों पर बुर्ज बने हुए हैं। यह महल ४६ वर्ग फीट है और इसकी प्रत्येक भुजा स्तम्भों तथा दीवारों से विभक्त है। दोनों ओर पांच-पांच पंक्तियाँ होने के कारण उसमें पच्चीस खुले स्थान हैं। उत्तर की ओर मुख्यद्वार हैं, जिसके दोनों ओर पत्थर की एक-एक बैठक बनी हुई है और उनमें छोटे-छोटे स्तम्भों पर आश्रित नीची छतें हैं। मध्य में एक खुला हुआ आंगन है और उसके चोरों ओर कमरे हैं। प्रत्येक ओरपांच कमरे हैं, जिनके दरवाजे अलग-अलग हैं। कमरों को प्रकाशित करने के लिए दीपदान बने हुए हैं, जिनमें से प्रत्येक ८ फीट १० इंच ऊंचा है।
इसकी छत चौरस है। चार स्तम्भ छत के कुछ टूटे हुए भाग को संभाले हुए हैं। सभी दरवाजे, देहली तथा स्तम्भ थोड़े बहुत अलंकृत हैं। इस भवन का महत्व इसलिए है कि यह प्राचीन भारतीय साधारण भवन का एक उदाहरण है। विजेताओं की विध्वंसक नीति के कारण ऐसे भवन कम पाये जाते हैं।

Top

चन्देल -स्तम्भ

देश के इतिहास में स्तम्भों का विशिष्ट स्थान होता है और इसी कारण उनकी रक्षा अतीत काल से होती चली आई है। मौर्य तथा गुप्त स्तम्भों की भाँति चन्देल स्तम्भों का बुन्देलखण्ड के इतिहास में बड़ा महत्व है उनका प्रयोग जय-स्तम्भ, तीर्थ स्तम्भ तथा सीमा द्योतक चिह्मों के रुप में होता था।

जय-स्तम्भ

जय स्तम्भों की स्थापना विजेताओं की कृतिओं को अमरत्व प्रदान करने की दृष्टि से होती है यद्यपि इस प्रकार के अधिकांश चन्देल स्तम्भ अब सुरक्षित नहीं हैं, फिर भी इस कोटि के प्राप्त एक स्तम्भ का निर्देश आवश्यक है।

१. अकोरी का जयस्तम्भ
अकोरी ग्राम उरई के निकट स्थित है। वहाँ पृथ्वीराज तथा परमर्दिदेव का भयंकर युद्ध हुआ था जनश्रुतियों के आधार पर ज्ञात होता है कि वहां पर एक जयखम्भा अथवा जयस्तम्भ था, किन्तु अब उस स्तम्भ के कोई चिह्म प्राप्त नहीं हैं। यह बतलाया जाता है कि इस जयस्तम्भ को पृथ्वीराज ने स्थापित किया था। अब उसके स्थान पर एक नीम का वृक्ष है, जिसे यात्री लोग अपनी पूजा समर्पित करते हैं।

तीर्थ-स्तम्भ

ये स्तम्भ किसी तीर्थ अथवा मंदिर आदि के सूचक होते हैं और ये बहुतायत से पाये जाते हैं। बुन्देलखण्ड में अनेक झील तथा तालाब हैं और प्रत्येक नवनिर्मित तड़ाग के पास स्तम्भ स्थापित करने की प्रथा थी। इनमें से अधिकांश स्तम्भ अब नष्टप्राय हैं, लेकिन थोड़े-से स्तम्भ अपने मूल स्थान में अब भी स्थित हैं।

१. महोबा का दिया अथवा दीवट
झील के उत्तरी किनारे पर स्थित मनियादेवी मंदिर के सामने एक पाषाण स्तम्भ है। यह दिया अथवा दीवट इसलिए कहा जाता है कि निर्धारित तिथियों में इसकी चोटी पर दीपक रखने की प्रथा है, किन्तु यह इस स्तम्भ का मूल उद्देश्य नहीं प्रतीत होता, क्योंकि इसमें दीपक रखने का एक भी स्थान नहीं है। यह स्तम्भ १८ फीट ऊंचा तथा आधार १ वर्ग फीट है। इसका मध्यभाग अष्टकोण है, किन्तु ऊपर जाकर यह गोल हो गया है। स्तम्भ का आधार तथा मध्यभाग बिल्कुल सादा है, किन्तु ऊपरी भाग बहुत अलंकृत है। इसके फलक के नीचे चार सिंहों के शिरों में बंधी हुई चार घंटियां उत्कीर्ण हैं। स्तम्भों के ऊपर चौड़ा तथा उठा हुआ चारस फलक है।

२. चांदपुर का गज-स्तम्भ
चांदपुर दुबई के सात मील उत्तर-पश्चिम में स्थित है। यह स्तम्भ ब्रह्मानन्द मण्डप नामक शिव मंदिर के सम्मुख स्थित है। आधार पर यह १ फीट ८ वर्ग इंच है। ऊपर ३ फीट की ऊंचाई पर यह अष्टकोण में परिवर्तित हो जाता है और फिर ३ फीट की ऊंचाई पर षट्कोण हो जाता है और पुनः तीन फीट की ऊंच???्र्ऱ्ह पर गोल हो जाता है। स्तम्भ की पूरी लम्बाई १४ फीट है। यह गज स्तम्भ कहलाता है और यह बिल्कुल सादा है। आधार के समीप के एक वर्ग में इसके निर्माण कर्ता की प्रशस्ति है। लेख का प्रारम्भ ""ओम् नमः शिवाय ब्रह्माण्ड मंडप'' से होता है। इस लेख की लिपि से अनुमान यह है कि यह स्तम्भ ११वीं अथवा १२वीं शताब्दी में स्थापित किया गया था।

अन्य स्तम्भ

उपर्युक्त दो प्रकार के स्तम्भों के अतिरिक्त अन्य प्रकार के भी स्तम्भ पाये जाते हैं जिनका उद्देश्य भली भाँति ज्ञात नहीं होता है। सम्भवतः उनका उपयोग सीमा द्योतक चिह्मों तथा अन्य इसी प्रकार के कार्यों के लिए होता था।

१. आल्हा की गिल्ली
महोबा का दक्षिणी-पूर्वी भाग दरीबा कहलाता है। वहीं एक स्तम्भ है जो ""आल्हा की लाट'' अथवा ""आल्हा की गिल्ली'' कहलाता है। यह लाट अथवा गिल्ली ९ फीट ऊंची तथा इसका व्यास १३ इंच है। यह एक चट्टान में कटे हुएचौकोर छिद्र में इस प्रकार रक्खा हुआ है कि तनिक से स्पर्श मात्र से यह घूमने लगता है।
इस स्तम्भ के सम्बन्ध में एक किम्वदन्ती है। जिसके आधार पर कहा जाता है कि जब आल्हा आगरा अथवा मथुरा में गिल्ली खेल रहा था तब अपने डंडे से इतने जोर से मारा कि गिल्ली महोबे में उसके अकवाड़े में गिरी यह भी कहा जाता है कि जिस डंडे से आल्हा ने गिल्ली मारी वह इस स्तम्भ से कहीं बड़ा है, और वह आगरा अथवा मथुरा में है, किन्तु वहां इस डंडे अथवा स्तम्भ का कोई चिह्म नहीं है।

२. महोबे का चण्ड मतावर
यह स्तम्भ आल्हा की गिल्ली के निकट ही है। यह भूमि के अन्दर गड़ा हुआ है और दो वर्ग फीट है। इसमें एक अश्वारोही की मूर्ति है जो चंड मतावर कहलाता है। उसकी पूजा भी अब होती है, किन्तु इस स्तम्भ का उद्देश्य ज्ञात नहीं है।

Top

चन्देल तड़ाग

बुन्देलखण्ड में अनेक तालाब और झील हैं और इनकी बहुलता का एक कारण भी है। यद्यपि बुन्देलखण्ड में अनेक छोटी नदियाँ हैं, पर वहाँ वर्षा की कमी होत है। अस्तु अनावृष्टि आदि उत्पातों से मुक्ति पाने के लिए चन्देल नरेशों ने अनेक तड़ागों का निर्माण किया। सौभाग्य से बुन्देलखण्ड एक पहाड़ी देश है और वहां तड़ाग निर्माण के सभ्ज्ञी साधन सुलभ हैं। अस्तु, प्रत्येक मंदिर के साथ एक तड़ाग का निर्माण उस युग में एक नियम-सा बन गया था, मानो दर्शनार्थियों को मंदिर प्रवेश के पूर्व पाद-प्रक्षालन के लिए ये निर्मित हुए हों। इस प्रकार का प्रबन्ध दक्षिण भारत के कुछ मंदिरों में है। मैदान तथा पहाड़ियों में समान रुप से बुन्देलखण्ड भर में तालाब पाये जाते हैं। ऐसा प्रतीत होता है कि चन्देलों के पास अनेक कुशल शिल्पी थे, जिनकी सेवाओं का उपयोग उन्होंने जिस क्षेत्र में भी चाहा, सफलतापूर्वक किया।

चन्देल तड़ागों की मुख्य विशेषता उनका मंदिरों से संयोजन था। इन तड़ागों में गढ़े हुए पत्थरों का उपयोग किया गया है। अधिकांश तड़ाग किसी-न-किसी देवी-देवताओं के नाम से प्रसिद्ध हैं, जैसे "शिवसागर', "रामसागर' आदि। किन्तु ऐसे भी तड़ाग हैं, जो अपने निर्माणकर्त्ता अथवा जिस स्थान में स्थित हैं, उसके नाम से प्रसिद्ध हैं। बुन्देलखण्ड में अनेक तड़ागों में से कुछ विशेष उल्लेखनीय तड़ागों का वर्णन नीचे दिया जा रहा है।

१. खजूर सागर
यह नैनोरी ताल के नाम से भी पुकारा जाता है। यह एक मील लम्बा और पौन मील चौड़ा है। यह खजुराहो के समीप स्थित है। गर्मियों में इसका क्षेत्रफल बहुत कम हो जाता है और यह अपने मूल क्षेत्रफल के केवल आधे में रह जाता है।

२. शिवसागर
यह उत्तर से दक्षिण तक लगभग पौन मील लम्बा और खजुराहो से लगभग पौन मील ही दूर है। गर्मियों में यह लगभग ६०० वर्ग फीट रह जाता है। खजुराहो के पश्चिमी समूह के हिन्दू मंदिर इसी के तट पर स्थित है।

३. मदन सागर
महोबा नगर के दक्षिण चन्देल नरेश मदनवर्मन द्वारा निर्मित "मदन सागर' स्थित है। यह लगभग ३ मील के घेरे में है। यह अपनी निर्माण कला के लिए प्रसिद्ध है। यह बुन्देलखण्ड का सर्वाधिक सुन्दर एवं विशिष्ट तड़ाग है। इसके पश्चिम में गोकर पहाड़ी है। दक्षिण-पूर्व की ओर तीन अन्य पहाड़ी श्रेणियां हैं। ये श्रेणियां मध्य झील में बाहर निकल आई है। इस झील का उत्तरी किनारा घाटों तथा मंदिरों से अलंकृत है। झील के मध्य में "ककरामढ़ा' नामक मंदिर है।

२. शिवसागर
यह उत्तर से दक्षिण लगभग पौन मील लम्बा और खजुराहो से लगभग पौन मील ही दूर है। गर्मियों में यह लगभग ६०० वर्ग फीट रह जाता है। खजुराहो के पश्चिमी समूह के हिन्दू मंदिर इसी के तट पर स्थित हैं।

३. मदन सागर
महोबा नगर के दक्षिण चन्देल नरेश मदनवर्मन द्वारा निर्मित "मदन सागर' स्थित है। यह लगभग ३ मील के घेरे में है। यह अपनी निर्माण कला के लिए प्रसिद्ध है। यह बुन्देलखण्ड का सर्वाधिक सुन्दर एवं विशिष्ट तड़ाग है। इसके पश्चिम में गोकर पहाड़ी है। दक्षिण-पूर्व की ओर तीन अन्य पहाड़ी श्रेणियाँ हैं। ये श्रेणियाँ मध्य झील में बाहर निकल आई हैं। इस झील का उत्तरी किनारा घाटों तथा मंदिरों से अलंकृत है। झील के मध्य में "ककरामढ़ा' नामक मंदिर है।

४. कीरत सागर
महोबा नगर के पश्चिम कीर्तिसागर है, इसे महाराज कीर्तिवर्मन ने बनवाया था। इसका घेरा लगभग डेढ़ मील है।

५. कल्याण सागर
महोबा के पूर्व एक छोटी झील है, जिसे राहिल सागर कहते हैं। इसकी निर्माण शैली साधारण है।

६. विजय सागर
यह कल्याण सागर के पूर्व में स्थित है और इसका निर्माण चन्देल नरेश विजयपाल ने करवाया था। इसका घेरा लगभग ४ मील है और यह महोबे की सबसे बड़ी झील है।

७. राहिल ताल
यह तालाब राहिल अथवा राहिल्य नगर में स्थित है। चन्देल नरेश राहिल्य वर्मन ने इस तालाब का निर्माण किया और उसने राहिल्य नगर भी बसाया था जो अब उजड़े हुए ग्राम के रुप में शेष रह गया है। चन्दबरदाई का कथन है कि इस तालाब का निर्माण बनाफर सदार आल्हा-ऊदल के पिता दशरथ अथवा दस्सराज ने किया था, किन्तु इस कथन की पुष्टि का कोई प्रमाण नहीं है।

८. रसिन का अधिक ताल
बांदा से २९ मील पूर्व एक छोटी पहाड़ी पर स्थित रसिन एक छोटा ग्राम है। वहां अनेक सुन्दर तालाब हैं। किम्बदन्ती के आधार पर वहां ८० तालाब थे। जनरल कनिंघम ने अपनी रिपोर्ट में १९ तालाबों की एक अपूर्ण सूची दी थी। उन सबमें "अधिक ताल' अति प्रसिद्ध है। इन तड़ागों के निर्माण कर्ता के सम्बन्ध में कुछ भी ज्ञात नहीं है, किन्तु निश्चय है कि चन्देल राज्य में रसिन एक महत्वपूर्ण स्थान था।

९. अजयगढ़ के तड़ाग
अजयगढ़ में भी अनेक तड़ाग हैं। इनमें सबसे बड़ा तालाब एक ठोस चट्टान काटकर बनाया गया है और वह टेढ़ा-मेढ़ा है। अनुमान यह है कि भवनों के निर्माण के लिए खोदकर पत्थर निकाले जाने से यह तालाब अपने आप बन गया था। यह तालाब कभी सूखता नहीं है और सदा १० फीट से अधिक पानी रहता है। इसके तटों पर अनेक क्षत-विक्षत मूर्तियां बिखरी पड़ी हैं।

१०. दुधई का रामसागर
यह एक बड़ी झील है जो लगभग एक मील लम्बी तथा आधा मील चौड़ी है। यह पूर्व की ओर डुंग्रिया झील तक फैली हुई है। यह एक कृत्रिम झील है और विशाल बांधों द्वारा बनाई गयी है। बाँध के नीचे एक कुआं है जिसमें से पानी निकलता है और यही कुआं झील के पानी का स्रोत है।

११. कलिं का स्वर्गारोहन ताल
यह तालाब कालिं के नीलकण्ठ मंदिर के मण्डप के बाहर स्थित है। वास्तव में यह एक कुण्ड है तो पहाड़ की चट्टान काटकर बनाया गया और स्वर्गारोहण के नाम से प्रसिद्ध है। कुण्ड के दाहिनी ओर काल भैरव की एक विशाल मूर्ति है। मूर्ति २४ फीट ऊंची है और उसके दोनों पैर पानी के अन्दर है। यह तालाब १७ फीट चौड़ा है। इसका वर्णन अबुल फ़ज़ल ने भी किया है। इसके अतिरिक्त वहां काली की भी एक मूर्ति है। जो लम्बी ४ फीट की है और पानी के अन्दर है। इस मूर्ति का केवल एक फुट हिस्सा पानी के बाहर है। पानी ऊपर से निकलकर इन मूर्तियों में गिरता है।

१२. पाताल गंगा
यह कालिं में एक चट्टान में कटा हुआ गहरा कूप है। इससे निरन्तर पानी निकलता रहता है और छत तथा चारों ओर की दीवारों में टकराता है।

१३. कालिं का पाण्डु कुण्ड
यह एक छिछला गोलाकार तालाब है, जिसका व्यास १३ फीट है। चट्टान की तिरछी सतह की दरारों से इसमें पानी आता है।

१४. कालिं का बूढ़ी अथवा बुढिया ताल
एक चट्टान की सतह में यह बावली के रुप में बना है और इसमें पहुंचने के लिए चारों ओर सीढियां बनी हुई हैं।

१५. कालिं की मृगधारा
कालिं दुर्ग की चहारदीवारी के अन्दर यह एक छोटा तालाब है। जिसमें पत्थर के मृग के मुँह से निरन्तर पानी निकलता रहता है।

१६. कालिं का कोट तीर्थ
यह एक बड़ा तालाब है जो लगभग १०० गज लम्बा है। इसमें पहुंचने के लिए अनेक घाट तथा सीढियां हैं यह तालाब कालिं दुर्ग के अन्दर स्थित है।

इन तालाबों के अतिरिक्त जयपुर, सिरवा, बरांव, मैहर, मऊ, कांच, कालिं तथा अन्य स्थानों में अनेक तालाब हैं।

 

Top

::  अनुक्रम   ::

© इंदिरा गांधी राष्ट्रीय कला केन्द्र

Content prepared by Mr. Ajay Kumar

All rights reserved. No part of this text may be reproduced or transmitted in any form or by any means, electronic or mechanical, including photocopy, recording or by any information storage and retrieval system, without prior permission in writing.