भगवान विष्णु
बगड़ावतों को श्राप देने के लिये
देव लोक से पृथ्वी पर साधु का
वेश धारण कर बगड़वतों के गांव
गोठांंं में प्रकट होते हैं। साडू
माता अपने महल में पूर्ण नग्न अवस्था
में स्नान कर रही होती है और
सभी बगड़ावत गायें चराने हेतु
जंगल में गये होते हैं। साधु वेश
धारण कर भगवान विष्णु साडू माता
के द्वार पर आकर भिक्षा मांगते
हैं। सा माता की दासी भिक्षा लेकर
आती है तो साधु भिक्षा लेने से
मना कर देते है और कहते हैं
कि वह दास भिक्षा ग्रहण नहीं करेगें
तुम्हारी मालकिन अभी जिस अवस्था
में है उसी अवस्था में आकर भिक्षा दे
तो वो ग्रहण करेगें अन्यथा वह श्राप
दे कर चले जाऐगे।
यह बात सुनकर
साडू माता सोचती है
कि यह साधु जरुर कोई पहुंचे
हुए संत हैं, इन्हें अगर इसी अवस्था में
भिक्षा नहीं दी तो वो जरुर श्राप दे देंगे।
साडू माता नहाना छोड़ नग्न अवस्था
में
ही दान लेकर साधु महाराज को देने
के लिये आती है। भगवान देखते है
कि यह तो उसी अवस्था में चली आ
रही है। सा माता एक दैवीय शक्ति
होती है। उसके सतीत्व के प्रभाव से
उसके सिर के केश (बाल) इतने बढ़ जाते
हैं कि उसके केशों से सारा शरीर ढक
जाता है। साधु को दान देकर उन्हे प्रणाम
करती है।
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