देवनारायण फड़ परम्परा  Devnarayan Phad Tradition

रानी जयमती का सवाई भोज के साथ/भाग जाना

बगड़ावत रानी जयमती की तलाश में  


बगड़ावतों के दरबार में सभी भाई बैठे होते है, हीरा चील बनकर आकाश में उड़ती हुई आती है और रानी जयमती का पत्र गिरा देती है। जिसे नियाजी देख लेते हैं और अपनी ढाल से ढक देते हैं। यह सब सवाई भोज देख लेते हैं और नियाजी से अकेले में पूछते हैं कि भाई नियाजी क्या संदेश आया है। वो कागज का परवाना कहां है जो ऊपर से गिरा था। नियाजी को हमेशा 6 महीने आगे का अहसास पहले ही हो जाता था इसलिए वह भांप जाते हैं कि इस परवाने पर अगर हम गौर करेंगे तो सभी मारे जायेगें। सवाई भोज जिद करते हैं तो नियाजी पत्र सवाई भोज को दे देते हैं। सवाई भोज रानी जयमती का पत्र पढ़ते हैं।

और फिर सभी बगड़ावत भाई आपस में बैठकर निर्णय लेते हैं कि रानी को रावजी के यहां से भगाकर लाना   ही होगा। रानी को भगाकर लाने के बाद क्या होगा, इसके भी सारे परिणामों पर गौर कर लिया जाता है और बगड़ावत सारी तैयारी में जुट जाते हैं।

तेजाजी को भी साड़ीवान भेजकर पाटन की कचहरी बुलाया जाता है।

साडू माता नियाजी को बुलाकर पूछती है कि क्या बात है, कहाँ की तैयारी है? नियाजी उन्हें सारी बात बता देते हैं कि सवाई भोज की शादी कैसे रानी जयमती के साथ हुई। फिर नियाजी साडू माता से कहते हैं कि हम सब रानी को लेने जरुर जाऐंगे। वो हमारे भाई सवाई भोज के खाण्डे के साथ शादी कर चुकी है। ऐसा कहकर नियाजी और बाकी सभी भाई अपने घोड़ो को तैयार करते हैं।

जब साडू माता उन्हें जाने के लिए मना करती है तो नियाजी कहते कि हमने शक्ति को वचन दिया है इसलिए जाना तो अवश्य पडेगा।साडू माता कहती है कि ऐसी औरत को घर लाने से क्या फायदा जिसके लिये खून बहाना पड़े।एक भवानी के लिए आप को अपने माथे देने पड़ेगें। साडू माता फिर नियाजी को समझाती है कि घर में एक औरत है तो दूसरी को क्यों लाते हो? लेकिन नियाजी नहीं मानते और जयमती को लेने जाने की बात दोहराते हैं।

तेजाजी की पत्नी तेजाजी को कहती है, आप तो बणीये के भाणजे हो, आप रण में मत जाना।

साडू माता कहती है कि मैं आपकी दारु यहीं मंगवा देती हूं। राण में दारु पीने मत जाओ। मैं प्याले भर यहीं पिला दूंगी। तो नियाजी फिर कहते हैं कि वचन दिया हुआ है, जाना तो पडेगा। साडू माता बगड़ावतों को जाने के लिए बार-बार मना करती हैं।

साडू माता कहती है कि पर नारी को अंग लगाना अच्छा नहीं है। रावण चाहे कतना ही बलवान था मगर सीता हरण करने से उसका भी अंत हो गया। जयमती रावजी की स्री है। पर-नारी को आप भी मत लाओ नहीं तो अन्जाम बुरा होगा।

साडू माता नियाजी को बताती है कि मैंने सपना देखा है कि खारी नदी के ऊपर घमासान युद्ध हो रहा है। कटे हुए माथों का ढेर लगा हुआ है। मेरी आखों से आंसू आ रहे हैं। सा माता कहती है कि मैंने भवानी को मुण्ड माला धारण किये हुए खारी नदी के घाट पर बैठे देखा है। इस पर नियाजी कहते हैं कि माताजी सपना तो झूठा होता है, सपने पर क्या यकीन करना।

जब बगड़ावत साडू माता के बहुत समझाने पर भी नहीं मानते हैं तो साडू माता बगड़ावतों के गुरुजी को एक पत्र लिखती है कि गुरुजी आप के चेले गलत राह पर जा रहे हैं। आप आकर इन्हें समझाओ।

बाबा रुपनाथजी पत्र का जवाब देते हैं कि साडू माता रानी को तो जरुर लाना है। नियाजी बाबा रुपनाथजी का पत्र पढ कर सबको सुनाते हैं बगड़ावतों के यहां रणजीत नगाड़ा बजने लगता है। माता साडू कहती है, बाबाजी को तो आग बुझाने के लिये कहा था इन्होंने तो और आग लगा दी है।

नियाजी रानी जयमती की सुन्दरता का वर्णन साडू माता के सामने करते हैं। उनके श्रृंगार और रुप के बारे में बताते हुए उन्हें रानी पद्मनी की उपमा देते हैं।

इस पर सा माता नियाजी से कहती है कि आप जाओ और रानी को लेकर आओ मैं नई रानी को अपनी बहन के जैसे समझूंगी और उसे लेकर आओगे तो उसकी आरती उतारकर हंसी-खुशी उसका स्वागत कर्रूंगी।

दूसरी सभी रानियाँ साडू माता से कहती हैं कि रानी जयमती है तो बहुत खूबसूरत लेकिन है तो दूसरे की औरत।

बगड़ावत राण जाने के लिए अपने घोड़ों का श्रृंगार करते हैं। सवाई भोज हीरों-पन्नों और सोने के जेवरों से सजी हुई बुली घोड़ी पर सवार होकर निकलते हैं।

साडू माता बगड़ावतों को शाम के वक्त जाने के लिए मना करती है और सुबह जाने का आग्रह कहती हैं। नियाजी कहते हैं कि जाना तो है ही, आप हमारी वापसी के लिए शगुन करना और अब हमें आज्ञा दो।

साडू माता की अनुमति के बाद सभी भाई घोड़ों को नचाते हुए सवार होकर गांव के बाहर इकट्ठे होते हैं और देखते हैं सभी भाई आ गये मगर तेजाजी नहीं आये।

नियाजी तेजाजी को परवाना लिखते हैं कि तेजाजी आप पत्र पढ़ते ही जल्दी आ जाना हम आप पर आंच भी नहीं आने देंगे। आपको सुरक्षित वापस लायेगें। आप नहीं आये तो आपका सिर काटकर साथ ले जायेगें। समाचार सुनकर तेजाजी अपने घोड़े पर सवार होकर अपने भाइयों के साथ आ जाते हैं। और सारे बगड़ावत भाई रानी को लेने के लिए राठौड़ा की पाल पर पहुंचते हैं।

उधर रानी जयमती के लिये बनाया गया नया महल बनकर तैयार है, रानी जयमती महलों में रहने आ जाती है। जब रावजी अपनी नई रानी जयमती के पास रात को आते हैं, रानी उनके साथ चौपड़ खेलती है और अपनी माया से रावजी को मुर्गा बना देती है और हीरा को बिल्ली बना देती है। रात भर मुर्गा बने रावजी बिल्ली से बचने से लिये इधर-उधर भागते, छिपते रहते हैं। ऐसा क्रम कई दिनों तक चलता रहता है। एक दिन रावजी के छोटे भाई नीमदेजी पूछते हैं कि भाईसा नई रानी में इतना मगन हो गये हो कि आपकी आंखे इतनी लाल हो रही हैं, क्या रात भर सोये नहीं? रावजी कहते हैं कि नीमदे लगता है महल में कोई भूत प्रेत हैं जो रात भर मेरे पीछे बिल्ली बनकर घूमता रहता है और मुझे डराता है।

इधर राण में जयमती (भवानी) हीरा से पूछती है कि बगड़ावत आ गये क्या? हीरा जवाब देती है कि मुझे नहीं लगता कि वो आऐगें।

जयमती कहती है बादलो में बिजली चमक रही है। बगड़ावतों के भाले चमक रहे हैं, बगड़ावत आ रहे हैं। हीरा कहती है बाईसा मेरे को ऐसा कुछ नहीं दिख रहा है।  

बगड़ाबत राण में रानी को लेने आ जाते हैं और नौलखा बाग में ठहरते हैं। सवाई भोज बकरियों की पाली बनाकर रानी के महलों के पिछवाड़े उन्हें चराने निकल जाते हैं और रानी जयमती को संकेत कर देते हैं कि हम आपको लेने आ गये हैं।

जैसे ही रानी जयमती को बगड़ावतों के आने की सूचना मिलती है रानी जयमती अपनी माया से अपने पसीने का सूअर बनाकर नौलखा बाग के पास छोड़ देती है। नियाजी की निगाह जब उस पर पड़ती है तो वह उसका शिकार कर लेते हैं।

वहां नौलखा बाग में नियाजी और नीमदेवजी की फिर से मुलाकात होती है। नीमदेवजी रावजी के पास जाकर बगड़ावतों के आने की खबर देते हैं।

इधर रानी जयमती हीरा को कहती है की जाकर पता करो सवाई भोज के क्या हाल हैं। जब हीरा जाने के लिए मना करती है तो जयमती हीरा को लालच देती है और अपने सारे गहने हीरा को पहनने के लिये देती है। हीरा कहती है ये गहने मुझे अच्छे नहीं लगते हैं, ये तो आपको ही अच्छे लगते हैं। जयमती हीरा को कहती है कि ये गहने पहनकर तू सवाई भोज का पता करने जा।

हीरा नौलखा बाग में बगड़ावतों से मिलने पहुंचती है जहां बगड़ावत भाई पातु कलाली की बनाई दारु पी रहे हैं। वहां हीरा के गले में नियाजी दारु का गिलास उण्डेल देते हैं। हीरा दारु पीकर बेहोश हो जाती है और रात भर नौलखा बाग में ही रहती है। बगड़ावत हीरा को जाजम (दरी) से ढक देते हैं, ताकि कोई देख ना ले।

जब सुबह हीरा को होश आता है और वह महलों में रानी के पास लौटती है तो किसी को शक न हो इसलिए अपने साथ चावण्डिया भोपा को लेकर आती है और कहती है कि रानी के पेट में दर्द था उसको ठीक करने के लिए इसे लेने गई थी। चावण्डिया भोपा के वापस लौटने के बाद रानी जयमती हीरा को पीटती है और ईर्ष्या वश उसे खूब खरी-खोटी सुनाती है कि तू भोज पर रीझ गयी है। भोज ने रात को तुझे छुआ तो नहीं और क्या-क्या बात हुई बता।

जब हीरा सारी बात सही-सही बताती है तब रानी जयमती वापस हीरा को मनाती है, उसे खूब सारा जेवर देती है।

एक दिन रात को हीरा और रानी जयमती सवाई भोज से मिलने नौलखा बाग की ओर जा रही होती हैं, संयोग से उस दिन नीमदेवजी पहरे पर होते हैं और वो रानी की चाल से रानी को पहचान जाते हैं। रानी नीमदेवजी को देख पास ही भडभूजे की भाड़ में जा छुपती है। जिसे नीमदेवजी देख लेते हैं और हीरा से पूछते हैं कि हीरा भाभी जी को इतनी रात को लेकर कहां जा रही हो? हीरा सचेत हो कर कहती है कि बाईसा को पेट घणो दूखे है, इस वास्ते भड़भूजे के यहाँ आए हैं। यह झाड़ फूंक भी करना जानता है, बताबा ने आया हैं। नीमदेवजी को हीरा की बात पर विश्वास नहीं होता है। भड़भूजा की भाड़ में छिपी रानी को निकालते हैं और हीरा को कहते हैं कि हीरा तुझे इस सच की परीक्षा देनी होगी। हीरा परीक्षा देने के लिए तैयार हो जाती है। नीमदेवजी लुहार को बुलवाते हैं और लोहे के गोले गरम करवाते हैं। लुहार भट्टी पर लोहे के बने गोलों को तपा कर एकदम लाल कर देता है। जब लुहार लोहे के तपते हुए गोले चिमटे से पकड़कर हीरा के हाथ में देने वाला होता है तब नीमदेवजी हीरा से कहते हैं कि यदि तू सच्ची है तो तेरे हाथ नहीं जलेगें और अगर तू झूठ बोल रही होगी तो तेरे हाथ जल जायेगें।  

हीरा लोहे के गर्म गोलों को देखती है तो एक बार पीछे हट जाती है और रानी की ओर देखती है। फिर अचानक हीरा को लाल तपते हुए गोले के उपर एक चिंटी चलती दिखाई देती है तो वो समझ जाती है कि यह बाईसा का चमत्कार है। और वह तपते हुए गोले को अपने हाथों में ले लेती है। इस पर नीमदेवजी कहते हैं कि रानी जी के पेट में दर्द था तो भड़भूजे को ही महलों मे बुलवा लेते। इतना कहकर नीमदेवजी वहां से चले जाते हैं।

इसके बाद नीमदेवजी दरबार में रावजी के पास जाकर रानी की शिकायत करते हैं, और कहते हैं कि कहीं बगड़ावत भाई रानी को उठाकर न ले जाएं। रावजी जवाब देते हैं कि राण में आप जैसे उमराव हैं ऐसे कैसे कोई रानी को उठाकर ले जा सकता है।

रानी जयमती दूसरे दिन हीरा के हाथ बगड़ावतों को संदेश भेजती है कि आप कुछ दिन तक यहीं बिराजो, नौलखा बाग को छोड़कर कहीं मत आना जाना। महलों की ओर भी नहीं आना, नहीं तो लोग समझेगें बाईसा त्रिया चरित्र है। रानी जयमती का यह संदेश नियाजी को ही देकर हीरा वापस लौट आती है। जब रानी हीरा से पूछती है कि सवाई भोज से क्या बात हुई तो हीरा बताती है कि सवाई भोज से तो मैं मिली ही नहीं, मैं तो नियाजी से ही मिलकर वापस आ गई हूँ।

तब रानी कहती है कि तूने नियाजी से बात क्यों करी? तुझे सवाई भोज से मिलने भेजा था और तू नियाजी से ही मिल कर वापस आ गई। हीरा कहती है रानी जी आपका आज मुझ पर से भरोसा उठ गया है। अब आपका और मेरा मेल नहीं हो सकता है। अब मैं आपके साथ नहीं रह सकती।

रानी हीरा को मनाती है और उसकी बढ़ाई करती है। कहती है हीरा तेरे को मैं सारे श्रृंगार करवाऊगीं और हीरा को अपने कपड़े और सारे गहने देती है। मनाती है और हीरा से कहती है तू मेरा साथ मत छोड़। रानी हीरा से कहती है, हीरा यहां से कैसे निकला जाय कोई उपाय करो। हीरा कहती है रावजी का चारों ओर पहरा लगा हुआ है, क्या करें। रावजी को तो हम सूअर का शिकार करने भेज देगें। मगर पहरे का क्या करेगें? हीरा कहती है बाईसा आप पेट दुखने का झूटा बहाना करो। रानी हीरा की सलाह अनुसार ऐसा ही करती है।

हीरा रावजी के दरबार में जाकर फरियाद, फरियाद चिल्लाती है। रावजी पूछते है हीरा क्या बात हैं। हीरा कहती है दरबार बाईसा के पेट में बहुत दर्द हो रहा है और लगता है बीमारी इनकी जान लेकर ही छोड़ेगी।

रावजी नीमदेवजी को कहते है भाई नीमदेव रानीजी की बीमारी बढ़ती ही जावे है। कोई अच्छा जाना-माना भोपा हो तो पता करवाओं। महीनो से ये बीमारी निकल ही नहीं रही है। नीमदेवजी उडदू के बाजार में आते हैं। वहाँ उन्हें चांवडिया भोपा मिलता हैं और नीमदेवजी से कहता है कि डाकण (डायन), भूत, छोट (प्रेत), मूठ (दुष्ट आत्मा) को तो मैं मिनटों में खत्म कर देता हूं। उसे नीमदेवजी अपने साथ महलों में ले जाते हैं।

नीमदेवजी हीरा से कहते हैं कि इसे ले जा और तेरे बाईसा को दिखा। हीरा भील को रानी जयमती के महल में ले जाती है। रानी अपनी माया से भोपा में भाव डाल देती है जिससे भोपा रावजी के पास आकर कहता है कि मैं रानी जी को ठीक कर सकता हूँ।

भोपा ने बताया कि रानी जयमती ने भैरुजी से अपने लिए राजा जैसा वर मांगा था। उन्होनें राजा जैसा वर तो पा लिया मगर भैरुजी की जात अभी तक नहीं जिमाई। इसलिये भैरुजी का दोष लग गया। जात जिमाणी पड़ेगी। नीमदेवजी हीरा से पूछते हैं कि जात जिमाने में क्या लगेगा? हीरा बताती है की १२ मन का पूवा, १२ मणकी पापड़ी, १२ मण का सुवर जिसके बाल खड़े नहीं होवे, खून निकले हुआ नहीं हो, को बाईसा पर वारकर छोड़ो तो बाईसा बचे, नहीं तो नहीं बचेगी। और यह टोटका रावजी के हाथ का ही लगेगा और किसी के हाथ का सूअर नहीं चढ़ेगा। और ये बात सुनते ही रावजी सूअर का शिकार करने के लिये अपनी सेना तैयार करने का हुकम देते हैं। उसमें सभी उमराव दियाजी, कालूमीर, सावर के उमराव और रावजी के खासम खास सरदार और ५०० घुड़ सवार तैयार हुए। इतने में दियाजी ने कहा रावजी मेहलो में पहरा अच्छा लगाना क्योकि २४ बगड़ावत भाई नौलखा बाग में डटे हुए है। वो कहीं रानी सा को उठा कर न ले जाये। रावजी कहते है वो तो मेरे भाई हैं और उन्होनें ही मेरी शादी करवाई और पैसा भी उन्होने ही खर्च किया। वो ऐसा नहीं कर सकते। फिर भी रावजी शिकार पर जाने से पहले नीमदेवजी को पहरे की जिम्मेदारी सोंप कर जाते हैं।

उधर रानी जयमती अपने पसीने से एक सूअर बनाती है। उसका वजन १२ मण होता है। और अपनी माया से उसे रावजी के आगे छोड़कर कहा की हे सुवरड़ा राजाजी को नाग पहाड़ से भी आगे दौड़ाता हुआ ले जाना और दिनो तक वापस आने का अवसर मत देना। इस तरह रावजी सुवर के पीछे-पीछे नाग पहाड़ से आगे निकल जाते हैं। नाग पहाड़ पहुंच कर वह माया से बना सूअर गायब हो जाता है।

 

 

 
 

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