देवनारायण फड़ परम्परा  Devnarayan Phad Tradition

रानी जयमती का सवाई भोज के साथ/भाग जाना

सवाई भोज का रानी जयमती को भगाकर ले जाना


रावजी और सारे सामन्तो को शिकार के बहाने दूर भेजकर रानी जयमती और हीरा बगड़ावतों के साथ भागने की योजना बनाती है।

रावजी शिकार पर जाते समय नीमदेवजी को पहरे पर लगा जाते हैं कि रानी का ध्यान रखना। रानी हीरा से कहती है कि हीरा रावजी तो गये पर नीमदेवजी को पहरे पर लगा गये। अब इसका क्या उपाय करें। हीरा कहती है बाजार से जहर मंगवाओ और लाडू बनवाओ। जहर के लड्डू बनते हैं और भैरुजी के चढ़ाकर हीरा सब को बांट देती है। जो भी लड्डू खाता है वो घंटे की नींद सो जाता है। जिस रास्ते से जाना है उस रास्ते हीरा सब को लड्डू बांटकर वापस आती है ताकि उन्हें जाते हुए कोई देख ना सके।

चावण्डिया भोपाजी लाडू खाते हैं तो हीरा से कहते हैं, हीरा मैंने तो मीठा मुहं कई वर्षों बाद किया है। हीरा कहती है लाडू तो सब को दे दिये मगर नीमदेवजी की सवारी महल के सामने घूम रही है। हीरा कहती है रानी जी श्रृंगार करो और पीछे के रास्ते से बगड़ावतों के यहां चलते हैं। हीरा रेशम की डोर लेकर आती है और उसकी रस्सी बनाती है और महल की पिछले वाली खिड़की से रेशम की रस्सी डालती है जिसके सहारे दोनों महल से बाहर निकल आते हैं।

रानी और हीरा दोनों नौलखा बाग के बाहर आकर अपनी माया के प्रभाव से बाग के दरवाजे के ताले खोल देती है। ये देख कर बाग का माली रानी जी के पांव छूता है और रानी जी बगड़ावतों से मिलने अंदर जाती है।

सवाई भोज अपनी बूंली घोड़ी पर रानी जयमती को और नियाजी अपने नौलखे घोड़े पर हीरा को बैठाकर राण से भाग निकलते हैं।

रास्ते में रानी सोचती है कि बगड़ावतों की परीक्षा लेती हूं और देखती हूं कि ये रावजी की सेना से मुकाबला कर पायेगें कि नहीं। रानी वहीं पर घोड़े से उतर जाती है और अपने पांव की पायल खोलकर गिरा देती है और कहती है मेरी पायल बावड़ी में गिर गयी है उसे निकालो। अपनी करामात दिखाओ नहीं तो मुझे यहीं छोड़ कर वापस चले जाओ।

सवाई भोज शिव महादेव जी का ध्यान करते हैं, और पानी के ऊपर पायल तैरने लग जाती है, सवाई भोज रानी को पायल वापस दे देते हैं। जब वो वापस वहां से चलने लगते हैं तब भवानी घोड़े पर सवार सवाई भोज के कलेजे (दिल) पर हाथ रखे होती है और अपने मैल से तीतर बनाकर घोड़ी के पावों में छोड़ देती है जिससे घोड़ी चमक जाती है, और उछलती है। तब सवाई भोज की धड़कन तेज हो जाती है और रानी जयमती कहती है कि सवाई भोजजी घोड़ी के चमक जाने से ही आपका कलेजा जोर से धड़कने लगा है। आप मुझे लेकर जा तो रहे हो, मगर रावजी की विशाल सेना के सामने क्या लड़ सकोगे। तो सवाई भोज को जोश आ जाता है और वो अपनी तलवार से ११ हाथ की भाटा चट्टान को चीर देते हैं। ये देख कर रानी सोचती है कि एक ही वार से चट्टान चीर दी, रावजी का क्या हाल होगा, जब सभी २४ भाई एक साथ लड़ाई करेगें।

रानी जयमती वहीं पर सवाई भोज से वचन लेती है कि रावजी से युद्ध के समय आप सभी २४ भाई अपनी सेना के साथ रावजी से एक-एक कर युद्ध करोगे। सभी भाई साथ मिलकर युद्ध नहीं करोगें। सवाई भोज रानी जयमती को ये वचन दे देते हैं कि हम साथ मिलकर युद्ध नहीं करेंगे।

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सवाई भोज रानी जयमती को गोठांंं में लाने से पहले रातादेवरा में उतारते हैं। रातादेवरा में सवाई भोज और नियाजी भवानी को दारु पीने के लिये मनुहार करते हैं, भवानी कहती कि आप लोग माथा (सिर) देवो तो में दारु पी और कहती है कि आपके घर से मुझे बधाई के गीत गाते हुए लेने आएं तो मैं घर चलूं। जब बगड़ावत वहाँ से घर वालों को खबर देने गोठांंं चले जाते हैं तब वहाँ पर पोमा घासी आ जाता है और राणी से कहता है, आप मेरे साथ शादी कर लो, बगड़ावतों के यहां तो पहले से ही बहुत रानियां है। भवानी उससे बगड़ावतों के घर की सारी बातें पूछ लेती है। और बाद में नोहत्थी नाहरी बन के हुंकार करती है। पोमा घासी नाहरी को देखकर डर के मारे गिर जाता है, उसके रोटी और प्याज बिखर जाते हैं और पानी की बतूकड़ी फूट जाती है। गांव की गू महिलाएं बधाई के गीत गाते हुए रानी को लेने के लिये आती हैं। साथ में २४ भाईयों की राणीयां भी आती हैं।

जब नेतूजी और दीपकवंर रानी जयमती के पास आती है तो रानी जयमती दीप कंवर से पूछती है की तू किसकीे बेटी है और ये किसकी बहू। दीपकंवर बाई रानी को जवाब देती है कि मै सवाई भोज की लड़की और ये काका नियाजी की रानी नेतुजी हैं।

सभी रानियाँ तो रानी जयमती के पांव छूती हैं मगर नेतूजी नहीं छूती।

जब सब औरतें रानी को लेकर गोठांंं पहुंचती है तो वहां पर सा माता आरती ऊतारकर नववधु का स्वागत करती है।

रानीजी सा माता से कहती है कि आपने बहुत प्यार से मेरा स्वागत किया है आज तो मैं आपकी सौत बनकर आई हूँ। जब देवनारायण भगवान आपकी गोद में खेलेंगे तब मैं आपकी बहू बनकर आऊँगी।

रानी जयमती को उनके महल में ले जाया जाता हैं। रानी जयमती और सवाई भोज गोंठा के महल में चौपड़ खेलते हैं।

 

 
 

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