देवनारायण फड़ परम्परा Devnarayan Phad Tradition महेन्दू जी एवं भूणाजी का मिलाप भूणाजी के कारनामें उधर भूणा जी मेहन्दू जी से मिलकर सीधे राण में पातु के पास आते हैं और पिछली सारी बात पूछते हैं। पातु बताती है कि हां तुम बगड़ावतों के लड़के हो यह सही है। अब भूणा जी के दिल में अपने बाप का बदला लेने की भावना जाग जाती है। भूणाजी
पातू कलाली के यहां से सीधे दरबार
में जाकर अरज करते हैं कि बाबासा
मेरे को इजाजत दो मैं भीलों की खाल
को फतेह करने जाता चाहता हूं।
वहां एक बहुत अच्छी बोर घोड़ी है,
उसे लेकर आना है। रावजी
सोचते हैं कि इसे कहीं पता तो नहीं
चल गया। लगता है मेहन्दू ने इन्हें
सब कुछ बता दिया। रावजी कहते
हैं बेटा भूणा भीला की खाल में खतरा
है। वहां ८० हजार भीलो की सेना
है। उनसे वहां लड़ाई में जीतना
बहुत कठिन काम है। भूणाजी कहते है बाबासा मैं तो जा भीलों का मुझे कोई डर नहीं है, मेरे को तो बोर घोड़ी चाहिये। रावजी सोचते है जाना चाहता है तो जाने दो। खुद-ब-खुद ही मर जायेगा, अपने रास्ते का कांटा साफ हो जायेगा। रावजी भूणाजी के साथ दियाजी और कालूमीर पठान को और उनके साथ १७,००० सैनिक और तौपें, गोला-बार्रूंद देकर भेजते हैं। भूणाजी
भीलों की खाल में जाकर भीलों से
अपने बाप का बैर लेने के लिये धांधू
भील को संदेश भेजते हैं कि धांधूजी
हमारी बोर घोड़ी वापस कर
हमारे सामने माफी मांगों नहीं तो
युद्ध करने को तैयार रहो। मैं मेरे
बाबासा (बगड़ावत) का बैर लेने आ
रहा हूं। धांधू भील भूणाजी को संदेश
भेजते हैं कि भूणा तेरा बाप को रण
में मैंने मारा था और अब तू भी मरने
के लिये तैयार हो जा । भीलमाल
ठाकुर भूणा को कहते हैं कि तेरे
बाप के खातिर हमारा धणी खारी के
युद्ध में मारा गया। अब तू घोड़ी लेने
चला आया। सारे के सारे भील भूणा
पर चढ़ आते हैं। दोनों में घमासान युद्ध
हो जाता है और युद्ध ५ महीने तक चलता
है। जब भीलों की सारी फौज आ गई तब कालूमीर और दीया जी तो डर के भाग गये, सब भील १७ कोस तक भूणा जी घेर लेते है। भूणा जी समझ जाते हैं कि रावजी की फौज तो साथ नहीं दे रहीं है यह युद्ध तो अपने बलबूते पर ही लड़ना होगा। उधर
राण में रावजी को तलावत खां खिलजी
का युद्ध का संदेश मिलता है। तलावत
खां खिलजी, खरनार के बादशाह का
संदेश पढ़ कर रावजी घबरा जाते
हैं। सोचते हैं कि उनके खास उमराव
तो भूणाजी के साथ भीलों की खाल में
लड़ाई कर रहें हैं, तलावत खां का
क्या करे ? रावजी
ने पहले तलावत खां को बगड़ावतों
से युद्ध के समय कहा था कि युद्ध जीतकर
दीपकंवर बाई से आपका विवाह करवायेगें।
मगर दीपकंवर बाई तो युद्ध में मारी
जाती है। तलावत खां उस समय तो वापस
लौट जाता हैं मगर फिर रावजी को
संदेश भेजता हैं कि दीपकंवर न
सही आपकी बेटी तारादे से मेरा
विवाह (निकाह) करा दो, नहीं तो मेरे
साथ युद्ध करो। मैं तुम्हें अपने साथ
कैद करके ले जा रावजी तलावत खां के डर से तारादे को राताकोट में छिपा देते हैं और कहते है कि कुछ भी हो तुम यहां से बाहर मत निकलना। तलावत
खान अपनी सेना के साथ राण पर चढ़ाई
कर देता हैं। बहुत ढूंढने पर भी तलावत
खां को तारादे कहीं नहीं मिलती
है। फिर
बादशाह तलावत खां नौलखा बाग में
छुपकर रावजी के आने का इन्तजार करने
लगा। रावजी का ग्यारस (ग्यारस का
वृत) नजदीक आ गया था। रविवार के
दिन रावजी जब ग्यारस को व्रत खोलने
नौलखे बाग में गये वहां बादशाह
तलावत खां ने रावजी को कैद कर
लिया। रावजी
को कैद कर अपने साथ ले जाते समय
रास्ते में शोभादे को, जो पुरोहित
की लड़की होती है, उसको भी पकड़
लिया। खरनार के बादशाह को रावजी
न कहा तू शोभादे को छोड़ दे। बादशाह
ने कहा कि मैं शोभादे को एक शर्त पर
छोड़ दूंगा, तुम मेरा निकाह तारादे
से करा दो। बादशाह एक लोहे का पिंजरा बना कर रावजी को बन्द कर लेता है और शोभादे से निकाह कर लेता है। और उन दोनों को साथ लेकर खरनार वापस चला जाता है। जब तारादे को पता चलता है कि तलावत खां, बाबासा (रावजी) को कैद कर ले गया है तब तारादे सांडीवान के हाथ भीलों की खाल में अपने भाई भूणाजी को संदेश भेजती हैं कि भूणाजी मैं बहुत बीमार हूं और अगर आखिरी समय मुझसे मिलना हो तो जल्दी से आ जाओ। तारादे दूसरा परवाना दीयाजी और कालूमीर को लिखती है कि बाबा रावजी को खरनार का बादशाह पकड़ ले गया है। उधर
भूणाजी धाधूं भील को मारकर
वहां से अपनी बोर घोड़ी को छुड़ाकर,
साथ लेकर राण वापस आते है। तारादे
भूणाजी को सारी बात सुनाती है कि
तलावत खां सात संमुदर पार रावजी
को कैद कर ले गया है। विनती करती
है कि उन्हें छुड़ाकर लायें। भूणाजी तारादे
को कहते हैं कि अगर तू मुझे भीलमाल
में ही पूरा समाचार लिख भेजती तो
मैं बादशाह को रास्ते में ही रोक
लेता, लेकिन तूने तो अपनी बीमारी
का समाचार भेजा था। और फिर रावजी
के सारे उमराव तो यहीं वापस आ गए
थे। उन्होनें तलावत खां को क्यों नहीं
रोका ?
तारादे तब भूणाजी को बताती है कि
वे सब तो महल में छिप कर बैठ गए
थे। इस पर भूणाजी कहते हैं कि तारादे
अब तक तो तलावत खां ने उन्हें मार
दिया होगा। अब जाने से क्या फायदा।
और सात संमुदर पार इतनी सारी
सेना हाथी घोड़ो को लेकर जाना भी
मुमकिन नहीं है। राणी
सांखली भूणाजी को ताना कसती है
कि भूणाजी आप मेरे जाये नहीं हो
इसलिये आप नहीं जाना चाहते हैं। आप
को राण का राज ज्यादा प्यारा है। राणी सांखली का उलाहना सुनकर भूणाजी जाने के लिये तैयार हो जाते हैं और बहादुर सैनिको का चुनाव कर, उमरावों, सरदारों और राजाओं को इकट्ठा करते हैं। दीयाजी, कालूमीर, टोडा के सोलंकी और पिलोदा ठाकुर को संदेश भेजते हैं कि रावजी को खरनार के बादशाह की कैद से आजाद कराने के लिए हम सबको साथ-साथ काबुल चलना होगा। भूणाजी तलावत खां खिलजी से युद्ध करने के लिये राणी सांखली से विदाई लेते हैं। वह भूणाजी की आरती करती है और तिलक लगा कर विदा करती हैं। भूणाजी
की फौज खरनार के बाहर समुद्र के
किनारे पहुंच जाती है। भूणाजी
अपनी बोर घोड़ी को कहते हैं कि
हम दोनों को यह समुद्र लांघकर
अकेले ही खरनार पहुंचना होगा।
इतने सारे सैनिक समुद्र लांघ कर
कैसे जाऐंगे ? घोड़ी
कहती है कि भूणाजी गढ़ कोटे होते
तो मैं जरुर चढ़ जाती मगर पानी तो
मैं नहीं लांघ सकती। तब
भूणाजी बन्ना चारण से कहते हैं कि
मैंने माताजी को वचन दिया है तो
बाबाजी को छुड़ाने तो जाना ही पड़ेगा।
लेकिन इस समुद्र को कैसे पार किया
जाए। बन्ना चारण कहता है भूणाजी भगवान
देवनारायण का ध्यान कीजिए। वे ही
इस समस्या को हल करेंगे। भूणाजी स्नान-ध्यान कर देवनारायण को याद करते हैं। देवनारायण भूणाजी की सहायता के लिए भैरुजी को भेजते हैं। भैरुजी आते हैं और पानी में पत्थर का रास्ता बना देते हैं। भूणा जी की फौज पानी के ऊपर के रास्ते पर चल पड़ती है। सात समुद्र को पार कर भूणा जी अपनी फौज के साथ खरनार पहुंच जाते हैं। भूणाजी खरनार के बादशाह पर हमला कर महल में जाकर उनको पकड़ लेते हैं। भूणाजी खरनार के बादशाह को मारने ही वाले होते हैं कि बीच में शोभादे आ जाती हैं और भूणाजी से कहती है कि दादा ये जैसे भी हैं अब मेरे पति हैं, आप इनको छोड़ दीजिए। भूणाजी तारादे की तरह शोभादे को भी अपनी बहन मानते थे इसलिए खरनार के बादशाह को माफ कर जीवित छोड़ देते हैं। और रावजी को कैद से छुड़ाकर वापस राण की तरफ रवाना होते हैं। जब भूणाजी रावजी को साथ लेकर राण पहुंचते हैं तो रानीजी भूणाजी और रावजी की आरती करती हैं। राण में वापस खुशियां लौट आती हैं। राता कोट में घी के दिये जल उठते हैं
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