देवनारायण फड़ परम्परा Devnarayan Phad Tradition खैड़ा चौसला में भूणाजी की वापसी भूणाजी और देवनारायण का मिलाप वहां
से भूणाजी सीधे अपने १८ हजार घोड़ो
और अपने सेना प्रमुख बन्ना चारण के
साथ राठोडां की पाल पर आकर रुकते
हैं। वहां आकर देखते हैं कि थोड़ी दूर
देवलियों के चबूतरे बने हुए हैं।
भूणाजी बन्ना चारण से पूछते हैं ये
क्या बना हुआ है ?
चारण कहता है यहां बगड़ावतों का
युद्ध हुआ था। ये उनकी सतियां है इसे
सतीवाड़ा कहते हैं। भूणाजी ने पूछा
यहां मेरी माताजी की देवलियां
भी होगी, इनमें से कौनसी है ?
बना चारण कहता है ये ते मुझे पता
नहीं है की आपकी माताजी की देवलियों
का कौन सा चबूतरा है। यहां पास
ही एक गांव है आसीन्द। वहां के पटेल,
सुजा पटेल को जरुर पता होगा। भूणाजी
कहते है गांव से सुजा पटेल को बुला
कर ले आओ और उनको दो गांव नजराना
दे दो। बन्ना चारण सुजा पटेल को बुलाकर
लाता है। भूणाजी उनसे पूछते हैं कि
उनके माता सलूण की कौनसी देवलियां
है। सुजा पटेल माताजी सलूण बाई
की देवली की पहचान कर बताता है।
भूणाजी अपनी माताजी के चबूतरे पर
जाकर देखते है वहां झाड़-झंखड़
हो रहे हैं। चबूतरा खंडित हो
रहा है। वहां सतीवाड़े में भूणाजी
सभी देवलियों की सफाई कराते
हैं और चबूतरों की मरम्मत करवाते
हैं, गंगा जल से स्नान कराते हैं। धूप-दीप
करते हैं और अपनी माताजी के चबूतरे
पर जाकर उन्हें याद करते है और कहते
हैं कि मँजी ११ वर्षो बाद आपके पास आया
हूं, मुझे दर्शन दो। भूणाजी के सत
और धर्म के कारण भगवान भूणाजी की
पुकार सुन लेते हैं और माता सलूण
की देवली में प्राण आ जाते हैं और
वह भूणाजी से बातें करती हैं। भूणाजी कहते हैं माताजी जब में ६ महीने का था तब आपसे बिछुड़ा था आपसे तो मेरा दूध भी बाकि है और मेरे को आशिष भी दो। सलूण की मूर्ति में से एक हाथ बाहर निकलता है। भूणाजी को आशीश देता है और दूध की धार फूट पड़ती है जो सीधी भूणाजी के मुंह में आती हैं। भूणाजी की आंखों से आंसु आ जाते हैं और वह माताजी से सारी बातें करते हैं कि वो कैसे छोटे से बड़े हुए। राण की सारी बातें अपनी माता को बताते हैं। सलूण माताजी कहती है बेटा अपने बाप और काका को बैर लेना मत भूल जाना और आशिर्वाद देकर वापस लौट जाती है। वहां से भूणाजी वापस आकर अपनी सेना के साथ दड़ावत (गोठां) की ओर प्रस्थान करते हैं।
भूणाजी अपने आने की सूचना अपने भाईयों को करवाते हैं। चारों भाई भूणाजी से सामने आकर गले मिलते हैं जैसे ही देवनारायण और भूणाजी गले मिलते है, भूणाजी की कटी हुई अंगुली ठीक हो जाती है और देवनारायण के शरीर का लांछन ठीक हो जाता है। देवनारायण को राम का अवतार और भूणाजी को लक्ष्मण का अवतार बताया गया है। इसके बाद भूणाजी खेड़ा चौसला में ही अपना रावड़ा बनाते हैं।
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