दियाजी और मीरजी सेना लेकर
गुदलिया तालाब की ओर चल पड़ते हैं। रास्ते में उन्हें कपूरी धोबन मिलती है।
कपूरी धोबन पूछती है की आज सवारी कहां जा रही है ? दियाजी कहते है कि देव की
गायों को घेरने जा रहे है और ग्वालों को भी पकड़ कर लायेगें। कपूरी धोबन कहती
है कि दरबार आपके घोड़े देखकर ही ग्वाले भाग जायेगें, आप किसको पकड़ कर लाओगे।
ये काम तो मैं ही कर दूंगी। ग्वाले तो रोज मेरा काम करते हैं। मैं तो वहां
पेड़ के नीचे आराम से बैठी रहती हूं और सारे कपड़े ग्वालों से धुलवाती हूं।
मीर और उमराव कपूरी धोबन की बात सुनकर उसे अपने साथ लेकर रावजी के दरबार में
वापस आ जाते हैं। रावजी कहते है वापस कैसे आ गये ? तो दियाजी बताते हैं ये
कपूरी धोबन है, जो कहती है कि ये काम तो मैं ही कर दूंगी। रावजी कपूरी धोबन
को अपने सामने बुलवाते हैं और कहते हैं कि अगर ये काम तू कर देगी तो मैं १०
गांव तेरे नाम कर दूंगा।
कपूरी धोबन रावजी से कहती है
कि शहर के सारे धोबियों को मेरे अधीन कर दो और गुदलिया तालाब पर मेरे लिये
तम्बू लगवा दो, आपका काम हो जायेगा। गांव के सभी धोबियों को इकट्ठा करके
कपूरी धोबन को सोंप देते हैं और उसके लिये गुदलिया तालाब पर तम्बू लगवा देते
है। सारे धोबियों से कहते हैं कि आज से इसे कपूरी धोबन कोई नहीं कहेगा, सब
इसे कपूरी काकी के नाम से पुकारेगें।