हजारीप्रसाद द्विवेदी के पत्र

प्रथम खंड

संख्या - 72


IV/ A-2074

शान्तिनिकेतन

दिनांक :27 .10.45

श्रध्देय चतुर्वेदी जी,

              सादर प्रणाम!

       आपकी तीन चिट्ठियाँ मिलीं। एक का उत्तर दे ही नहीं पाता कि दूसरी हाज़िर है। आजकल चाय कौन बनाता है, यह जानने की इच्छा हो रही है। सिर्फ चाय के पत्तोंसे बुढ़ापे (!) में इतनी स्फूर्ति तो नहीं आ सकती। ज़रुर वह चौबई बूटी का प्रयोग कर रहा है। प्रश्नों के उत्तर इस प्रकार हैं।

              १. मेरे सहकारी मित्र श्री मोहनलाल वाजपेयी बाहर गए हैं। उनके आते ही चिट्ठियों का संग्रह आपके पास भिजवा दूँगा। आवश्यक चिट्ठियाँ छाँटकर निकाल लूंगा।

              २. १९१७ को निकेतन को सीख थोड़ा लिख लिया है पर बड़ा लंबा होता जा रहा है। इसलिए इस अंक के लिये इस अंक के लिये संस्कृत साहित्य से क्या सीखा जा सकता है, भेज रहा हूँ शान्तिनिकेतन वाला भी भेज दूँगा। काम लायक बना लिया जायेगा।

              ३. व्यास जी का जीवन मैं लिखूँगा। पर देर से। मैं आपकी बताई हुई पुस्तक World of Yesterday कलकत्ते से मँगा रहा हूँ। उसे पढ़कर ही व्यास जी की जीवनी लिखूँगा।

              ४. बिदुला उपाख्यान नितांत उपेक्षित नहीं हैं। जर्मन अनुवाद जौकोबी जैसे पंडित ने किया था और अंग्रेजी कविता ख्.ग्द्वेत्द्ध ने बहुत सुंदर अनुवाद किया था (दे. Metrial Translation from Sanskrit Writers , घ्. १२०-१३३)। मुझे इसका हिंदी अनुवाद करने में बड़ी प्रसन्नता होगी, परन्तु इस समय मैं बुरी तरह उलझा हुआ हूँ। हिंदी भवन को ज़रा चलता बनाकर तब आपकी सब आज्ञाओं को एक साथ उठा लूँगा।

       आशा है, प्रसन्न होंगे। यहाँ कुशल है।

आपका

हजारी प्रसाद  

पिछला पत्र   ::  अनुक्रम   ::  अगला पत्र


© इंदिरा गांधी राष्ट्रीय कला केन्द्र १९९३, पहला संस्करण: १९९४

सभी स्वत्व सुरक्षित । इस प्रकाशन का कोई भी अंश प्रकाशक की लिखित अनुमति के बिना पुनर्मुद्रित करना वर्जनीय है ।

प्रकाशक : इन्दिरा गांधी राष्ट्रीय कला केन्द्र, नई दिल्ली एव राजकमल प्रकाशन प्राइवेट लिमिटेड, नई दिल्ली