हजारीप्रसाद
द्विवेदी के पत्र |
प्रथम खंड |
संख्या - 108
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IV/
A-2105
29.12.1953
आदरणीय
पंडित जी,
प्रणाम!
इस
बार दिल्ली
यात्रा में व्यस्तता
ही रही और
आपके साथ यथेच्छ
बात करने
और प्रेरणा
लेने का अवसर
नहीं मिला।
आगामी यात्रा
में अधिक साथ
रहने का प्रयत्न
कर्रूँगा। दिल्ली
से लौटने
के बाद हम
लोग यह
अनुभव कर
रहे हैं कि
हिंदी के हित
चिंतकों का एक
सम्मेलन यथाशीध्र
होना चाहिए।
यह कार्य
दिल्ली में
ही हो तो
अच्छा हो। क्या
दिल्ली में
एक सम्मेलन
बुलाना संभव
है? इस समय
हिंदी की स्थिति
का सिंहावलोकन
आवश्यक हो
गया है। ऐसा
तो लग रहा
है कि लोग
हिंदी का महत्व
समझने लगे
हैं पर यह
नहीं मालूम
होता कि खुलकर
उसे अपनाने का
प्रयत्न हो रहा
हो।
आप
कब तक दिल्ली
लौट आएँगे?
आज मैं डा. धीरेन्द्र
वर्मा जी को
भी पत्र लिख
रहा हूँ।
शेष
कुशल है।
आशा है, सांनद
हैं।
आपका
हजारी प्रसाद
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© इंदिरा
गांधी राष्ट्रीय कला केन्द्र १९९३, पहला
संस्करण: १९९४
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