झारखण्ड

झारखण्ड प्रदेश में शासकीय व्यवस्था :
एक परिचय

पूनम मिश्र


राज्यपाल - राज्य का संवैधानिक मुखिया
राज्यपाल की नियुक्ति
राज्यपाल की योग्यताएँ

राज्यपाल का कार्यकाल

राज्यपाल के वेतन और भत्ते

उनमुक्तियाँ

राज्यपाल के अधिकार तथा कार्य

(अ) व्यवस्थापिका सम्बंधी अधिकार
(ब) कार्यपालिका सम्बन्धी अधिकार

(स) न्यायपालिका सम्बन्धी अधिकार

(द) वित्तीय अधिकार

 

भारत के २८वें राज्य के रुप में १५ नवम्बर, २००० को अस्तित्व में आए झारखण्ड प्रदेश में भारत के संविधान के प्रावधानों के अनुसार संसदीय शासन प्रणाली स्थापित की गयी है। राज्य की कार्यपालिका का संवैधानिक प्रमुख राज्यपाल होता है परन्तु वास्तविक शक्तियाँ राज्य मंत्रिमण्डल में निहित होती है जो सामूहिक रुप से राज्य विधान सभा के प्रति जवाबदेह है।

राज्यपाल - राज्य का संवैधानिक मुखिया

अन्य भारतीय राज्यों की तरह झारखण्ड प्रदेश में भी राज्यपाल ही राज्य का मुखिया होता है। राज्यपाल की नियुक्ती भारत का महामहिम राष्ट्रपति करते हैं और उसका कायर्काल पाँच वषों का होता है। राज्यपाल मुख्यमंत्री की नियुक्ती करता है। सामान्य परिस्थतियों में वह बहुमत दल का नेता को ही मुख्यमन्त्री नियुक्त कर पद एवं गोपनियता की शपथ दिलाता है किन्तु विधानसभा में यदि किसी भी दल को स्पष्ट बहुमत प्राप्त न हो तो राज्यपाल स्वविवेक से मुख्यमन्त्री नियुक्त कर सकता है। राज्य में धारा ३५६ के अन्तर्गत संवैधानिक संकट की स्थिती उत्पन्न होने पर राज्यपाल, राष्ट्रपति को अपना रिपोर्ट सौंप कर राज्य में राष्ट्रपति शासन लगानें की अनुशंसा कर सकता है। विधानसभा सत्र की पहली बैठक में राज्यपाल अपना अभिभाषण देता है। विधानसभा का अधिवेशन बुलाना तथा सत्रावशान असानी राज्यपाल का ही दायित्व है। वह राज्य के सभी विश्वविधालयों का कुलपति भी होता है। इस राज्य के प्रथम राज्यपाल श्री प्रभात कुमार थे। श्री प्रभात कुमार पूर्व में एक वरिष्ठ प्रशासनिक अधिकारी थे। जुलाई २००२ में पंजाब एवं हरियाणा उच्च न्यायालय के भूतपूर्व मुख्य न्यायाधीश श्री मनाडा गड्डे रामा जोयेस को झारखण्ड का दूसरा राज्यपाल नियुक्त किया गया।

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राज्यपाल की नियुक्ति

राज्यपाल की नियुक्ति महामहिम राष्ट्रपति महोदय द्वारा पाँच वषों के लिए की जाती है। भारतीय संविधान की धारा १५५ के अनुसार राज्यपाल की नियुक्ति राष्ट्रपति के द्वारा उसके हस्ताक्षर तथा मुहर से की जाती है। एक राज्य के राज्यपाल को किसी दूसरे राज्य के राज्यपाल पद का भी प्रभार दिया जा सकता है।

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राज्यपाल की योग्यताएँ

भारतीय संविधान की धारा १५७ और १५८ के अनुसार राज्यपाल पद पर नियुक्ति हेतु निम्नलिखित योग्यताओं का होना अनिवार्य है ...

(क) वह भारत का नागरिक हो
(ख) पागल या दिवानिया न हो
(ग) उसनें ३५ वर्ष की अवस्था पूरी कर ली हो
(घ) वह संसद अथवा किसी राज्य विधान मण्डल का सदस्य न हो
(च) वह किसी लाभ के पद पर न हो

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राज्यपाल का कार्यकाल

राज्यपाल का कार्यकाल सामान्यत: पाँच वषों का होता है। परन्तु अनिच्छेद १५६ (१) के तहत राज्यपाल राष्ट्रपति शासन के प्रसाद -पर्यन्त अपने पद पर रहता है। राष्ट्रपति को अधिकार है कि वह राज्यपाल को किसी भी समय पदमुक्त अथवा स्थानान्तरित कर सकता है। राज्यपाल यदि स्वयं भी चाहे तो राष्ट्रपती को अपना त्यागपत्र भेज कर अपना पद छोड़ सकता है।

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राज्यपाल के वेतन और भत्ते

राज्यपाल का मासिक वेतन वर्तमान में ३६,००० रु है। उसके अलावा उसे विभिन्न तरह के भत्ते और सुविधाएँ उपलब्ध कराये जाते हैं। राज्यपाल को नि:शुल्क सरकारी आवास प्रदान किया जाता है। कार्यकाल के दौरान उसके वेतन और भत्ते घटाये नही जा सकते हैं। उसका वेतन राज्य की संचित निधि पर भारित होता है जिसपर राज्य विधानमण्डल मतदान नही कर सकती है।

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उनमुक्तियाँ

(क) राज्यपाल अपने कर्तव्यों के पालन के संबंध में किसी भी न्यायालय के प्रति उत्तरदायी नहीं है।
(ख) अपने कार्यकाल के दौरान राज्यपाल को बन्दी नहीं बनाया जा सकता।
(ग) कार्यकाल के दौरान राज्यपाल पर फौजदारी मुकदमा नहीं चलाया जा सकता है।

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राज्यपाल के अधिकार तथा कार्य

राज्य का संविधान प्रमुख होने के नाते राज्य की कार्यपालिका संबंधी सभी कार्य राज्यपाल के नाम होतें हैं। सभी कार्यकारी अधिकार राज्यपाल को प्राप्त होते हैं। परन्तु यथार्थ में इन अधिकारों का प्रयोग राज्यपाल लोकप्रिय सरकार (मन्त्रीमण्डल ) की सलाह से करता है। राज्यपाल के अधिकार तथा कार्यों का विवरण नीचे दिया जा रहा है -

(अ) व्यवस्थापिका सम्बंधी अधिकार - राज्यपाल राज्य की व्यवस्थापिका का अंग होता है। उसके व्यवस्थापिका सम्बंधी प्रमुख अधिकार निम्नलिखित हैं।

(क) अनुच्छेद १७४ के तहत राज्यपाल को राज्य व्यवस्थापिका का सत्र बुलाने, सत्र अवसान करने का अधिकार प्राप्त है।

(ख) नवगठित विधानमण्डल का पहला अधिवेशन तथा प्रत्येक नव वर्ष का पहला सत्र राज्यपाल के अभिभाषण से प्रारम्भ होता है।

(ग) राज्य विधानसभा द्वारा पारित विधेयकों को अन्तिम स्वीकृती राज्यपाल द्वारा ही दी जाती है। यदि राज्यपाल विधेयक से असहमत हों तो वह उसे राज्य विधानसभा को पूर्नविचार के लिये भेज सकता है अथवा राष्ट्रपति के पास उसके अनुमोदन के लिए प्रेषित कर सकता है। यदि राज्य विधानमण्डल विधेयक को दोबारा पारित करके राज्यपाल की स्वीकृति के लिए भेजती है तो राज्यपाल उसे स्वीकृति प्रदान करने के लिए बाध्य है। यदि राज्यपाल विधेयक को राष्ट्रपति के पास भेज देता है तो राष्ट्रपति उसे स्वीकृति प्रदान करने या नहीं करने के लिए स्वतन्त्र होता है।

(घ) राज्यपाल अध्यादेश जारी कर सकता है। यदि राज्य विधानमण्डल का सत्र नहीं चल रहा हो तो राज्यपाल मंत्रिमण्डल की सलाह से अध्यादेश जारी कर सकता है। एसे अध्यादेश को अगले सत्र में पारित करवाना अनिवार्य होता है अन्यथा अध्यादेश निष्प्रभावी हो जाता है।

(ब) कार्यपालिका सम्बन्धी अधिकार - राज्यपाल को राज्य कार्यपालिका का प्रमुख होने के नाते व्यापक कार्यकारी अधिकार प्राप्त होते हैं। कार्यपालिका सम्बन्धी अधिकारों का संक्षिप्त विवरण कुछ इस प्रकार है -

(क) राज्यपाल को नियुक्ति सम्बन्धी व्यापक अधिकार प्राप्त है। वह राज्य का मुख्यमन्त्री की नियुक्ति करता है तथा उसकी सलाह पर अन्य मन्त्रियों की भी नियुक्ति करता है। परन्तु मुख्यमन्त्री की नियुक्ति के संदर्भ में उसे इस बात को घ्यान में रखना पड़ता है कि राज्य विधानसभा में बहुमत दल के नेता को ही मुख्यमन्त्री नियुक्त किया जाना चाहिए। यदि विधानसभा में किसी दल को स्पष्ट बहुमत प्राप्त न हो तो एसी परिस्थिती में राज्यपाल को स्वविवेक से कार्य करने का अवसर प्राप्त होता है। एसी परिस्थिती में सामान्यत: राज्यपाल उसी व्यक्ति को मुख्यमन्त्री नियुक्त करता है जिसके विषय में उसे प्रतीत हो कि वह विधानसभा में बहुमत सिद्ध कर सकता है।

(ख) मुख्यमन्त्री तथा मन्त्रियों के अलावा राज्य के महाअधिवक्ता तथा राज्य लोकसेवा आयोग के अध्यक्ष तथा सदस्यों की नियुक्ति भी राज्यपाल करता है। झारखण्ड उच्च न्यायालय के न्यायधिशों की नियुक्ति के सम्बन्ध में राष्ट्रपति राज्यपाल से सलाह लेता है। झारखण्ड विधानसभा में एक एंगलो इण्डियन सदस्य का मनोनयन भी करता है।

(ग) राज्यपाल मन्त्रीमण्डल को बरखास्त कर सकता है, साथ ही विधानसभा भंग करने की सिफारिश भी कर सकता है। यदि राज्यपाल को एसा प्रतीत हो कि राज्य का शासन संवैधानिक तरीके से नहीं चल पा रहा है तो वह राष्ट्रपति को राज्य में राष्ट्रपति शासन लागू करने की सिफारिश कर सकता है। यह उसकी स्वविवेकाधीन शक्ति है।

(स) न्यायपालिका सम्बन्धी अधिकार -

(क) झारखण्ड उच्च न्यायालय के न्यायधिशों की नियुक्ति के सम्बन्ध में राष्ट्रपति राज्यपाल से सलाह लेते हैं। साथ ही राज्यपाल किसी न्यायालय द्वारा दण्डित व्यक्ति को क्षमादान दे सकता है अथवा उसकी सजा को कम कर सकता है, अथवा दण्ड को बदल सकता है।

(ख) राज्यपाल जिला न्यायधिशों की नियुक्ति आदि के मामले में निर्णय लेता है।

(द) वित्तीय अधिकार - राज्यपाल को अनेक वित्तीय अधिकार प्राप्त हैं -

(क) कोई भी वित्त विधेयक राज्यपाल की पूर्वानुमति के बिना सदन में प्रस्तुत नहीं किया जा सकता है।

(ख) राज्यपाल को धन विधेयक और अनुदान की माँगा की सिफारिश करने का अधिकार प्राप्त है।

(ग) राज्य की आकस्मिक निधि पर राज्यपाल का नियंत्रण होता है।

 

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