झारखण्ड |
झारखण्ड का उच्च न्यायालय पूनम मिश्र |
परिषद |
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नगर
पालिका का संगठन
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देश के इक्किसवें उच्च न्यायालय का रुप में झारखण्ड उच्च न्यायालय का गठन १५ नवम्बर २००० को प्रदेश के निर्माण के साथ ही किया गया। पटना उच्च न्यायालय की राँची खण्डपीठ को ही उच्च न्यायालय में रुपान्तरित किया गया। इस उच्च न्यायालय के प्रथम मुख्य न्यायाधीश न्यायामूर्ती विनोद कुमार गुप्ता नियुक्त किए। स्थानीय शासन की संरचना झारखण्ड में नगर निगम शासन की संरचना ५ भागों में विभक्तकर देखा जा सकता है। ये हैं -
अब इनका संक्षिप्त में वर्णन किया जा रहा है। (क) नगर निगम नगर निगम एक निश्चित सीमा तक स्वायत संस्था है। नगरीय क्षेत्र का लिए नगर निगम को सर्वोच्च स्थानीय संस्था की संज्ञा प्राप्त है।इसकी स्थापना राज्य विधानमण्डल द्वारा निर्मित अधिनियम के द्वारा होती है। नगर निगमों को चार्टर के रुप में स्थानीय जनता पर शासन करने का अधिकार होता है तथा एक वैधानिक संस्था होने के कारण नगर निगम अधिनियम में इसकी संरचना, शक्तियाँ, अधिकारियों और विभागों के मध्य शक्तियों का विवरण आदि का उल्लेख होता है। नगर निगम की स्थापना प्राय: ऐसे नगरों में की जाती है जहाँ जनसंख्या घनी हो। राँची नगर निगम राँची नगर निगम की स्थापना १९७९ में हुई। इसे ३७ वार्डों में विभक्त किया गया है। जिसके मुख्य अंग हैं -
परिषद नगर निगम का शक्तिशाली अंग है। सभी वार्डों से एक- एक निगम पार्षद का चुनाव क्रमश: मतदान द्वारा नगर के व्यस्क निवासी करतें हैं। इन ३७ निर्वाचित पार्षदों के अतिरिक्त १५ और भी सदस्य होते हैं जो निम्नलिखित तरीके से चुने जाते हैं -
इस प्रकार परिषद में कुल ५२ सदस्य होते हैं.। नगर निगम परिषद की सभी शक्तियाँ तथा अधिकार परिषद में निहित होते हैं। इसके प्रमुख कार्यों में सफाई, स्वास्थ्य, जलापूर्ती, चिकित्सा, मनोरंजन शामिल है। महापौर (मेयर) महापौर अथवा मेयर का चुनाव एक प्रति वर्ष निगम परिषद के द्वारा किया जाता है।मेयर को शहर का प्रथम नागरिक का सम्मान प्राप्त होता है। वह नगर निगम परिषद की बैठक बुलाता है तथा इसकी अध्यक्षता भी करता है। महापौर निगमकी बैठकों में कार्यसंहिता का भी संचालन करता है।उसकी अनुपस्थिती में उपमहापौर अथवा डिप्युटीमेयर उसके तमाम तमाम दायित्वों का निर्वहन करता है। निगम परिषद का आकार बना होने के कारण उसकी नीतियों तथा योजनाओं के क्रियावयन के लिए विभिन्न समितियों की व्यवस्था होती है। ये समितियाँ लोकतान्त्रिक पद्धति से गठित होती है तथा निगम के कार्य के सम्पादन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं। उदाहरण के लिए, राँची नगर निगम के अन्तर्गत निम्नलिखित दो प्रकार को समितियाँ होती हैं - (१) स्थायी समिति : स्थायी समिति में १५सदस्य होते हैं,जिसमें १३ निर्वाचित होते हैं और महापौर तथा उप-महापौर इसके पदेन सदस्य होते हैं। स्थायी समिति नगर निगम के बजट, ठेका, कर तथा अन्य प्रकार के कार्यों कीदेख-रेख करती है। (२) परामर्शदायी समिति :परामर्शदायी समितियों में सर्वाधिक ९ और न्यूनतम ५ सदस्य होते हैं। ये समितियाँ प्रमुख मामलों में सलाह -मशवरा देने के हिए गठित की जाती हैं। प्रशासन को सुचारु रुप से चलाने के लिए नगर निगम में एक प्रशासकीय पदाधिकारी होता है। यह मुख्य कार्यकारी पदाधिकारी होता है जिसकी नियुक्ति राज्य सरकार करती है तथा इसके वेतन तथा सेवा शर्तें भी राज्य सरकार ही निर्धारित करती है यह निगम द्वारा किये जोनेवाले सभी प्रशासनिक कार्यों का प्रत्यक्ष नियन्त्रण करता है। निगम परिषद के अस्तित्व में नहीं होने की स्थिति में यह निगम का प्रशासक होता है। प्रमुख कार्य राँची नगर निगम के प्रमुख कार्यो का उल्लेख संक्षेप में कुछ इस प्रकार है : करना; ८. घातक बिमारियों से रक्षा/ बचाव के लिए टीकों,सुइयों,तथा खुराकों का प्रबन्ध करना; ९. भवनों तथा जमीनों का सर्वेक्षण करना; १०. आम नागरिक के लिए पुस्तकालयों, स्टेडियमों, संग्रहालयों आदि का निर्माण करना; ११. आवारा कुत्तों,सुअरों एवं अन्य जानवरों आदि पर नियंत्रण करना; १२. अतिथियों का अभिनन्दन करना। राँची नगर निगम के आय के आधार राँची नगर निगम के आय के निम्नलिखित प्रमुख स्रोत हैं :
(ख) नगर पालिका नगर पालिकाएं सम्पूर्ण भारतवर्ष में अंग्रेजों के शासन के समय से ही स्थानीय स्वशासन की महत्वपूर्ण संस्था रही है। झाखण्ड प्रदेश में नगर पालिकाओं का गठन ऐसे शहरों में किया जाता है जहाँ की जनसंख्या १० लाख से कम हो। नगर नगर -निगम के समान ही नगर पालिका अपने क्षेत्र के निवासियों के लिए जन सुविधाओं की व्यवस्था करती है। नगर पालिका का संगठन (क) नगर पालिका परिषद : नगर पालिका की परिषद को नगर परिषद भी कहकर सम्बोधित किया जाता है। इसमें नगर के विभिन्न वार्डों से निर्वाचित सदस्य होते हैं। कुछ सदस्य मनोनित भी होते हैं। (ख) पदाधिकारी : नगर परिषद अपने सदस्यों के बीच से एक अध्यक्ष तथा एक उपाध्यक्ष का चुनाव करते हैं। नगर पालिका अध्यक्ष का पद बहुत ही प्रतिष्ठा का पद माना जाता है। यह परिषद की सभाओं की अध्यक्षता करता है तथा विचार विमर्श में परिषद के सदस्यों का मार्गदर्शन भी करता है। नगर पालिका के प्रशासनिक कार्यों का सीधा नियंत्रण अध्यक्ष के द्वारा किया जाता है। अध्यक्ष की अनुपस्थिती में उपाध्यक्ष परिषद की सभाओं की अध्यक्षता करता है। अध्यक्ष तथा उपाध्यक्ष के अतिरिक्त एक कार्यपालक पदाधिकारी भी होता है, जिसकी नियुक्ति राज्य सरकार द्वारा की जाती है। वह नगर पालिका की परिषद के रुप में कार्य करता है और नगर पालिका कार्यालय का प्रभारी भी होता है। इसकी सहायता के लिए एक पदाधिकारी तथा कर्मचारी होते हैं। (ग) समितियाँ : नगर पालिका अपने विभिन्न कार्यों को कुशलतापूर्वक पूरा करने के लिए कुछ समितियों का गठन करती है जिसमें परिषद के अनुभवी तथा कर्मठ सदस्यों को शामिल करती है। इन समितियों में शिक्षा समिति, जल समिति, लोक निर्माण समिति, नागरिक स्वास्थ्य समिति,आदि प्रमुख हैं। नगर पालिका के आय के स्रोत
नगर पालिका के कार्य
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