झारखण्ड

झारखण्ड प्रदेश और ग्रामीण प्रशासन

पूनम मिश्र


ग्राम सभा
ग्राम सभा के कार्य
ग्राम पंचायत
ग्राम पंचायत के कार्य
झारखण्ड में पंचायत समिति
पंचायत समिति के कार्य
जिला परिषद
जिला परिषद का गठन
जिला परिषद के कार्य

 

भारत के अधिकांश राज्यो की तरह झारखण्ड प्रदेश की अधिकांश आबादी गांवों में रहती है तथा कृषि कार्यों से जुड़ी हुई है। प्रदेश की जनसंख्या का एक बहुत बड़ी मात्रा आज भी गरीबी रेखा से नीचे जीवन -यापन कर रही है। इन परिस्थितयों में ग्रामीणों को स्वशासन का अधिकार देकर विकास कार्यों में सीधे -सीधे भागीदार बनाना अनिवार्य है। इसी बात को ध्यान में रखकर इस प्रदेश में पंचायती राज व्यवस्था लागू की गई है। यह तीन स्तरीय व्यवस्था है :

(क) ग्राम स्तर पर ग्राम पंचायत;
(ख) प्रखण्ड स्तर पर पंचायत समिति;
(ग) जिला स्तर पर -जिला परिषद।

ग्राम सभा

ग्राम सभा को पंचायती राज व्यवस्था की आधारशिला माना जाता है। गाँव के सभी मतदाताओं को मिलाकर ग्राम सभा का गठन किया जाता है। यह ग्राम पंचायत के कार्यों का निगरानी तथा मार्गगर्शन करती है।

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ग्राम सभा के कार्य

संक्षेप में ग्राम सभा के कार्यों का विवरण नीचे दिया गया है।

(क) ग्राम सभा की सम्पति का देखभाल करना;
(ख) ग्राम पंचायत के वार्षिक बजट पर विचार विमर्श करना;
(ग) ग्रामीण योजनाओं की प्राथमिकता का निर्धारण करना;
(ध) वृक्षारोपन तथा वन संरक्षण पर ध्यान देना;
(च) निर्धनता उन्मूलन तथा अन्य कार्यक्रम हेतु उचित लाधिकों का चयन करना;
(छ) ग्राम पंचायत के प्रतिवेदन तथा वार्षिक लेखा पर विचार करना;
(ज) युवा शक्ति के विकास हेतु खेल -कूद की सुविधाओं का विकास करना;
(झ) साफ -सफाई की व्यवस्था करना।

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ग्राम पंचायत

ग्राम पंचायत के सदस्यों का प्रत्यक्ष चुनाव किया जाता है । अपने में से यह एक मुखिया तथा उपमुखिया का निर्वाचन करती है। ग्राम पंचायत का सदस्य होने के लिए निम्नलिखत योग्यताओं का होना अनिवार्य है :

(क) वह भारत का नागरिक हो;
(ख) वह किसी न्यायालय द्वारा पागल अथवा दिवालीया घोषित न किया गया हो;
(ग) वह चुनाव लड़ने के अयोग्य न ठहराया गया हो;
(घ) जो राज्य या केन्द्र सरकार के अन्तर्गत कार्यरत न हो।

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ग्राम पंचायत के कार्य

(क) सफाई तथा प्रकाश की व्यवस्था करना;
(ख) स्वच्छ पेयजल का प्रबन्ध करना;
(ग) पशुपालन को प्रोत्साहित करना;
(घ) सड़कों को निर्माण तथा रख -रखाव करना;
(च) सार्वजनाक स्वास्थ्य के लिए अस्पतालों तथा चिकित्सा केन्द्रों का प्रबन्ध करना;
(छ) व्यस्क शिक्षा को प्रोत्साहन देना;
(ज)पाठशालाओं का प्रबन्ध करना;
(झ) ग्रामीण कुटीर उधोगों को प्रोत्साहन देना;
(ट) सामाजिक तथा कृषि वानिकी के प्रोत्साहित करना;
(ठ) छोटी सिंचाई योजनाओं का कार्यान्वयन तथा देख -भाल करना;
(ड) सार्वजनिक कुँओं,तालाबों,विश्रामघरों,आदि का निर्माण तथा देखभाल करना;
(ढ) अपाहिजों, बीमारों तथा कुष्ट रोगियों की सहायता करना;
(त) लघु वन उत्पादों का संग्रह, भंडारण तथा विपणन की व्यवस्था करना;
(थ) सहकारी क्षेत्र को प्रोत्साहित करना;
(द) स्थानीय झगड़ों तथा विवादों को हल करना।

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झारखण्ड में पंचायत समिति

अन्य राज्यों की तरह झारखण्ड प्रदेश में प्रखण्ड स्तर पर पंचायत समिति का गठन किया जाता है। पंचायती राज की त्रि-स्तरीय व्यवस्था के अन्तर्गत पंचायत समिति, ग्राम पंचायत तथा पंचायत समिति के बीच की कड़ी है। पंचायत समिति का गठन निम्नलिखित से मिलकर होता है :

(क) पंचायत समिति के क्षेत्र से निर्वाचित सदस्यों से;
(ख) उस क्षेत्र के निर्वाचित जन प्रतिनिधि से;
(ग) २०ऽ ग्राम पंचायतों के मुखिया;
(घ) राज्य सरकार द्वारा मनोनित सदस्य।

पंचायत समिति अपने सदस्यों के बीच से एक प्रमुख तथा एक उपप्रमुख का चुनाव करती है। इनका कार्यकाल पाँच वर्ष तक होता है।

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पंचायत समिति के कार्य

पंचायत समिति के कार्यों को संक्षेप में नीचे दिया जा रहा है :

(क) शुद्ध पीने के पानी की व्यवस्था करना;
(ख) प्राथमिक स्वास्थ्य सुविधाओं का विकास करना;
(ग) सड़कों का निर्माण तथा देख-भाल करना;
(घ) ग्रामीण लघु एवं कुटीर उधोगों का विकास करना;
(च) कृषि विकास का कार्य करना;
(छ) सामाजिक वानिकी
(social forestry) परियोजनाओं की देख-भाल करना;
(ज) पुस्तकालयों की स्थापना तथा व्यस्क शिक्षा को प्रोत्साहन करना;
(झ) प्राथमिक शिक्षा की देख-रेख करना;
(ट) पशुपालन, मुर्गीपालन तथा सुअर पालन को बढ़ावा देना;
(ठ) जनवितरण प्रणाली का नियंत्रण करना;
(ड) तकनीकि तथा व्यवसायिक शिक्षा को प्रोत्साहित करना;
(ढ़) सामुदायिक विकास कार्यक्रमों का क्रियान्वयन करना;
(त) सिंचाई की सुविधाएँ उपलब्ध कराना तथा सिंचाई के लघु साधनों का रख -रखाव करना;
(थ) सहकारिता को प्रोत्साहन देना;
(द) दुग्ध उत्पादन तथा व्यवसाय की देख- रेख तथा प्रोत्साहन देना;
(ध) उन्नत खाद तथा उर्वरकों की उपलब्धि तथा वितरण सुनिश्चित करना;
(प) मनोरंजन तथा खेल -कूद के साधनों का विकास करना;
(फ) साहित्यक तथा सांस्कृतिक गतिविधियों का विकास करना।

स्मरणीय तथ्य यह है कि पंचायत समितियों की सफलता का दारोमदार पंचायत समितियों तथा ग्राम पंचायतों के बीच आपसी सामंजस्य तथा समन्वय पर होता है। पंचायत समिति कार्य -क्षेत्र ग्राम पंचायतें ही होती हैं। जाहिर है ग्रामीण विकास से समबन्धित कार्यक्रसों की सफलता हेतु यह जरुरी है कि पंचायत समितियां अपने अन्तर्गत आनेवाली ग्राम पंचायतों के साथ सहयोग,समन्वय तथा ताल -मेल बनाकर विकास के मार्ग पर अग्रसर होने का प्रयास करें। साथ ही साथ सामान्य जनता तक विकास कार्यक्रमों एवं परीयोजनाओं को ले जाने के लिए समाज के अन्तिम पंक्ति के व्यक्ति तक की भागीदारी सुनिश्चित करें तभी पंचायती राज,स्थानीय स्वशासन, सत्ता विकेन्द्रीकरण तथा ग्रामीण विकास के महान लक्ष्यों की पूर्ति हो सकती है।

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जिला परिषद

झारखण्ड में जिला परिषद का गठन अधिनस्त पंचायतों पर नियन्त्रण तथा उनके कार्यों में समन्वय स्थापित करने के उद्देश्य से किया जाता है। जिला परिषद अधिनस्थ पंचायतों तथा राज्य सरकार के बीच कड़ी का कार्य करती है। इस प्रदेश में लागू त्रिस्तरीय पंचायती राज व्यवस्था की यह सर्वोच्च कड़ी होती है।

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जिला परिषद का गठन

(क) क्षेत्रीय स्तर पर निर्वाचित सदस्य;
(ख) जिले की सभी पंचायत समितियों के प्रमुख;
(ग) क्षेत्रके लोक सभा एवं विधानसभा के सदस्य;
(घ) राज्य सरकार द्वारा मनोनित सदस्य।

जिला परिषद अपने सदस्यों में से एक को अध्यक्ष तथा एक को उपाध्यक्ष चुनती है। अध्यक्ष की अनुपस्थिति में उपाध्यक्ष उसके दायित्वों का निर्वाहन करता है। परिषद का अध्यक्ष जिला परिषद की बैठक आयोजित करता है तथा उसकी अध्यक्षता करता है। यह उसके वित्त निधि पर निर्भर करता है। साथ ही जिला परिषद की गतिविधियों तथा कार्यकलापों पर भी नियंत्रण रखता है।

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जिला परिषद के कार्य

जिला परिषद के कार्यों के समबन्ध में जानकारी नीचे दिया जा रहा है :

(क) जिला परिषद का वार्षिक बजट तैयार करना;
(ख) राज्य सरकार द्वारा जिलों को दिए गए अनुदान को पंचायत समितियों में वितरित करना;
(ग) प्राकृतिक संकट के समय राहत - कार्य का प्रबन्ध करना;
(घ) पंचायत समितियों द्वारा तैयार की योजनाओं का समन्वय करना;
(च) पंचायत समितियों तथा ग्राम पंचायतों के कार्यों का समन्वय तथा मूल्यांकन करना;
(छ) ग्रामीण और कुटीर उधोगों को प्रोत्साहन देना;
(ज) कृषि का विकास करना;
(झ) लघु सिंचाई,मत्स्य पालन तथा जलमार्ग का विकास करना;
(ट) अनुसूचित जाति, जनजाति तथा पिछड़े वर्गों के कल्याण की योजना बनाना;
(ठ) शिक्षा का प्रसार करना।

सही अर्थों में जिला परिषद एक समन्वय एवं पर्यवेक्षण करने वाला निकाय है। इसे कोई निष्पादक कार्य नहीं सौंपा गया है। झारखण्ड प्रदेश में जिला परिषद पंचायत समितियों के कार्यों का पर्यवेक्षण करती है तथा उनमें समन्वय स्थापित करने के साथ ही साथ यह राज्य सरकार और पंचायत समितियों के बीच कड़ी का कार्य भी करती है। झारखण्ड में ग्रामीण विकास की अपार संभावनाओं को देखते हुए पंचायती राज संस्थाओं की भूमिका बहुत बढ़ जाती है। यदि ग्रामस्तर से लेकर जिलास्तर तक पंचायती राज संस्थाएँ आपस में ताल-मेल तथा समन्वय बनाकर कार्य करें तथा जन-जन की भागीदारी सुनिश्चित करें तो निश्चित रुप से झारखण्ड प्रदेश के गांव आदर्शग्राम में परिवर्तित हो सकते हैं।

 

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