वाराणसी वैभव

काशी की विभूतियाँ


  1. महर्षि अगस्त्य
  2. श्री धन्वंतरि
  3. महात्मा गौतम बुद्ध
  4. संत कबीर
  5. अघोराचार्य बाबा कानीराम
  6. वीरांगना लक्ष्मीबाई
  7. श्री पाणिनी
  8. श्री पार्श्वनाथ
  9. श्री पतञ्जलि
  10. संत रैदास
  11. स्वामी श्रीरामानन्दाचार्य
  12. श्री शंकराचार्य
  13. गोस्वामी तुलसीदास
  14. महर्षि वेदव्यास
  15. श्री वल्लभाचार्य

 

 

 

श्री पतञ्जलि

पतञ्जलि काशी में ईसा पूर्व दूसरी शताब्दी में विद्यमान थे।  इनका जन्म गोनारद्य (गोनिया) में हुआ था पर ये काशी में "नागकूप' पर बस गये थे।  ये व्याकरणाचार्य पाणिनी के शिष्य थे।  काशीनाथ आज भी श्रावण कृष्ण ५, नागपंचमी को "छोटे गुरु का, बड़े गुरु का नाग लो भाई नाग लो' कहकर नाग के चित्र बाँटते हैं क्योंकि पतञ्जलि ्को शेषनाग का अवतार माना जाता है।  पतञ्जलि महान् चकित्सक थे और इन्हें ही 'चरक संहिता' का प्रणेता माना जाता है।  पतञ्जलि का महान अवदान है 'योगसूत्र'।  पतञ्जलि रसायन विद्या के विशिष्ट आचार्य थे - अभ्रक विंदास अनेक धातुयोग और लौहशास्र इनकी देन है।  पतञ्जलि संभवत: पुष्यमित्र शुंग (१९५-१४२ ई.पू.) के शासनकाल में थे।  राजा भोज ने इन्हें तन के साथ मन का भी चिकित्सक कहा है।

ई.पू. द्वितीय शताब्दी में 'महाभाष्य' के रचयिता पतञ्जलि काशी-मण्डल के ही निवासी थे।  मुनियत्र की परंपरा में वे अंतिम मुनि थे।  पाणिनी के पश्चात् पतञ्जलि सर्वश्रेष्ठ स्थान के अधिकारी पुरुष हैं।  उन्होंने पाणिना व्याकरण के महाभाष्य की रचना कर स्थिरता प्रदान की।  वे अलौकिक प्रतिभा के धनी थे।  व्याकरण के अतिरिक्त अन्य शास्रों पर भी इनका समान रुप से अधिकार था।  व्याकरण शास्र में उनकी बात को अंतिम प्रमाण समझा जाता है।  उन्होंने अपने समय के जनजीवन का पर्याप्त निरीक्षण किया था।  अत: महाभाष्य व्याकरण का ग्रंथ होने के साथ-साथ तत्कालीन समाज का विश्वकोश भी है। यह तो सभी जानते हैं कि पतञ्जलि शेषनाग के अवतार थे।  द्रविड़ देश के सुकवि रामचन्द्र दीक्षित ने अपने 'पतञ्जलि चरित' नामक काव्य ग्रंथ में उनके चरित्र के संबंध में कुछ नये तथ्यों की संभावनाओं को व्यक्त किया है।  उनके अनुसार शंकराचार्य के दादागुरु आचार्य गौड़पाद पतञ्जलि के शिष्य थे किंतु तथ्यों से यह बात पुष्ट नहीं होती है।

प्राचीन विद्यारण्य स्वामी ने अपने ग्रंथ 'शंकर दिग्विजय' में शंकराचार्य में गुरु गोविंद पादाचार्य का रुपांतर माना है।  इस प्रकार उनका संबंध अद्वेैत वेदांत के साथ जुड़ गया।  पतञ्जलि के समय निर्धारण के संबंध में पुष्यमित्र कण्व वंश के संस्थापक ब्राह्मण राजा के अश्वमेध यज्ञों की घटना को लिया जा सकता है। यह घटना ई.पू. द्वितीय शताब्दी की है।  इसके अनसार महाभाष्य की रचना काल ई.पू. द्वितीय शताब्दी का मध्यकाल अथवा १५० ई. पूर्व माना जा सकता है।  पतञ्जलि की एकमात्र रचना महाभाष्य है जो उनकी कीर्ति को अमर बनाने के लिये पर्याप्त है।  दर्शन शास्र में शंकराचार्य को जो स्थान 'शारीरिक भाष्य' के कारण प्राप्त है, वही स्थान पतञ्जलि को महाभाष्य के कारण व्याकरण शास्र में प्राप्त है।  पतञ्जलि ने इस ग्रंथ की रचना कर पाणिनी के व्याकरण की प्रामाणिकता पर अंतिम मुहर लगा दी है।

 

 

वाराणसी वैभव


Content given by BHU, Varanasi

Copyright © Banaras Hindu University

All rights reserved. No part of this may be reproduced or transmitted in any form or by any means, electronic or mechanical, including photocopy, recording or by any information storage and retrieval system, without prior permission in writing.